कटाक्ष: हम हैं मदर ऑफ डेमोक्रेसी!
यारब न विरोधी समझे हैं न समझेंगे मोदी जी की बात! बताइए, मोदी जी के विरोधी ब्राजील की मॉडल की हरियाणा की मतदाता सूची में एंट्री तक का स्वागत करने को तैयार नहीं हैं। उल्टे इसके वोट चोरी का सबूत होने का शोर मचा रहे हैं। मोदी जी की इच्छा से ज्ञानेश बाबू अगर मतदाता सूची को अंतर्राष्ट्रीय बनाने में लगे हुए हैं, उसमें सिर्फ एक प्रदेश के ही नहीं पूरे देश के और सिर्फ अपने देश के ही नहीं, परदेश के भी लोगों के भी चेहरे लाने में लगे हुए हैं, तो किसलिए? जाहिर है कि भारत की डेमोक्रेसी को इंटरनेशनल बनाने के लिए। आखिर, हमारी डेमोक्रेसी, मदर आफ डेमोक्रेसी है या नहीं?
पर सिर्फ मदर ऑफ डेमोक्रेसी होने से ही क्या होगा? दुनिया से मनवाना भी तो पड़ेगा कि डेमोक्रेसी की मम्मी हमारे पास हैं। वर्ना जंगल में मोर नाचा, किसने देखा? और दुनिया हमारे कहने से ही थोड़े ही मान लेगी हमारे पास डेमोक्रेसी की मम्मी हैं। दुनिया सबूत मांगेगी। और अब हम भी उसके मुंह पर सबूत दे मारने की स्थिति में होंगे। हमारी मतदाता सूची में ब्राजीलियाई मॉडल का नाम है और वह भी एक बार नहीं, बार-बार, पूरे बाईस बार! और किसी देश में ऐसी अंतर्राष्ट्रीय मतदाता सूची होगी क्या? और सुनते हैं कि ब्राजीलियाई मॉडल की तस्वीर के साथ, दर्जनों वोट पड़े भी थे। यानी हरियाणा में डेमोक्रेसी को ब्राजीलियाई मॉडल ने जमकर सहारा दिया है।
होने को तो दुनिया में डेमोक्रेसी में और बहुत कुछ भी है, बहुत सी वैराइटी हैं। अमरीका के ट्रंप और तुर्किए के एर्दुआं जैसे कहने को चुनाव से बने राष्ट्रपति हैं, जो खुद को पुराने जमाने के बादशाहों से कम नहीं समझते हैं। पड़ोस में पाकिस्तान जैसे और आगे बांग्लादेश में होने जा रहे चुनाव हैं, जिनमें चुनाव तो होता है, लेकिन विपक्ष नहीं होता है। और तो और नेतन्याहू जैसे नेता भी हैं, जो नेता तो चुनाव से बने हैं, पर ऐसे चुनाव में जिसमें जिस आबादी पर राज कर रहे हैं, उसके बड़े हिस्से को वोट देने का अधिकार ही नहीं है। ऐसी-ऐसी ढीली डेमोक्रेसी भी हैं, जहां नागरिक को वोट देने का मौका मिलता है, चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में रहता हो। और भी बहुत कुछ। पर मतदाता सूची के ऐसे अंतर्राष्ट्रीयकरण की हमारे जैसी दूसरी मिसाल नहीं मिलेगी।
दुनिया झख मारकर मानेगी--यही है मदर ऑफ डेमोक्रेसी!
फिर भी हमारी मतदाता सूचियों में ही मदर ऑफ डेमोक्रेसी के लक्षण और भी बहुतेरे हैं। सुना है कि हरियाणा में ही मतदाता सूची में एक माताजी के फोटो के साथ पूरे 222 वोट पाए गए हैं। लाखों वोटर हैं, जिनका पता संख्या वाला शून्य है या अक्षरों में शून्य है यानी अ, ब, स, द वगैरह। हजारों वोटर, छोटे-छोटे घरों में सैकड़ों की तादाद में, मुर्गियों की तरह भी नहीं, शायद कबूतरों की तरह रहते हैं। हजारों वोटर हैं, जिन्हें एक व्यक्ति एक वोटर की कैद मंजूर नहीं है और एक व्यक्ति, अनेक वोटर बनकर रहने की आजादी पसंद करते हैं, आदि, आदि। बेशक, ये सब भी हैं तो डेमोक्रेसी की मम्मी वाले लक्षण ही। फिर भी जो वजन ब्राजीलियाई मॉडल को भारतीय जनतंत्र का महत्वपूर्ण सहारा बनाने में है, वह दूसरे छोटे-मोटे लक्षणों में कहां है!
लेकिन, कोई इससे यह नहीं समझे कि हमारा मदर ऑफ डेमोक्रेसी का दावा सिर्फ अनोखी मतदाता सूचियों पर ही टिका हुआ है। हर्गिज नहीं। वैसे हमारी मतदाता सूचियों का अनोखापन भी सिर्फ किसी ब्राजीलियाई मॉडल का मोहताज नहीं है। बेशक, मोदी जी की ही इच्छा से, ज्ञानेश गुप्ता जी के विशेष शुद्धिकरण की गंगा में नहाकर निकली मतदाता सूचियां तो अपने आप में एक अजूबा हैं। देखा नहीं कैसे बिहार में एक-दो नहीं, दस-बीस नहीं, सैकड़ों नहीं, दसियों हजार लोग जब पहले चरण में गांव-मोहल्ले के नजदीक के मतदान केंद्र पर वोट डालने पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि मतदाता सूचियों को तो उनके नाम से ही शुद्ध कर दिया गया है। जाहिर है कि गरीब-गुरबा की गंदगी जितनी कम होगी, सूची उतनी ही ज्यादा स्वच्छ होगी। मतदाता सूचियों की जो सफाई कराने की बीस साल में किसी की हिम्मत नहीं हुई, वह सफाई मोदी-ज्ञानेश की जोड़ी करा रही है और ऐरों-गैरों से मतदाता सूची को स्वच्छ करा रही है।
लेकिन, स्वच्छता लाने का मतलब सिर्फ कूड़ा-कर्कट हटाना ही थोड़े ही है। स्वच्छता का मतलब मतदाता सूचियों में सलमा-सितारे टांकना भी है। जुगल जोड़ी ने सूचियों में सितारे भी खूब ही टांके हैं। तभी तो मोदी जी की पार्टी के पूर्व सांसद, पहले संसद के चुनाव में और फिर इसी साल के शुरू में विधानसभा के चुनाव में दिल्ली में वोट डालने के बाद, साल खत्म होने से पहले ही बिहार में वोट डाल आए। और सिर्फ पूर्व सांसद जी ही थोड़े ही, मोदी जी की पार्टी के दूसरे कई नेता, दिल्ली के बाद बिहार में वोट डाल आए। और उत्तराखंड समेत दूसरे कई राज्यों के नेता भी। और ये तो वो नेता हैं जो ढोल पीटकर, राज्य बदल-बदलकर वोट डालते देखे गए। जो सैकड़ों किसी ब्राजीलियाई मॉडल या किसी बुजुर्ग दादी की फोटो के पीछे छुपकर वोट डाल आए होंगे, उनका क्या? ऐसे टूरिस्ट वोटर भी दुनिया में और कहां मिलेंगे? दुनिया क्या अब भी हमें डेमोक्रेसी की मदर नहीं मानेगी!
वैसे डेमोक्रेसी की मदर होने के साक्ष्य और भी बहुत हैं। हमारे जैसा तटस्थता-मुक्त चुनाव आयोग दुनिया में कहीं और होगा, क्या? विशेष ट्रेनों में भर-भरकर, दूसरे राज्यों से मतदाताओं को जैसे मोदी-शाह पार्टी बिहार के चुनाव के लिए लायी है, वैसे दुनिया में और कहीं लाने दिया जाता होगा क्या? सरायरंजन में वीवीपैट की हजारों पर्चियां जैसे खेतों में पड़ी मिली हैं, वैसे वीवीपैट वाली मशीन से कहीं और चुनाव कराया जाता होगा क्या? जैसे यहां-वहां ईवीएम के स्ट्रांग रूमों में बिजली जाने और सीसीटीवी बंद होने और संदिग्ध गतिविधियां होने की शिकायतें आयी हैं, उस सब के बाद भी चुनाव आयोग कान में तेल डालकर कहीं और सोया रहता होगा क्या?
दुनियावालो, मोदी जी-ज्ञानेश जी को मदर ऑफ डेमोक्रेसी कहलवाने के लिए, अब और क्या करना होगा?
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं)
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