पांचजन्य ने इंफ़ोसिस को बताया राष्ट्रविरोधी, संघ ने कहा हमारा मुखपत्र नहीं

क्या है पूरा मामला?
सरकार ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए इंफोसिस से एक ई-फाइलिंग पोर्टल तैयार कराया है। लेकिन इस पोर्टल पर लोगों को लगातार समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसे लेकर पिछले महीने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इंफ़ोसिस के सीआईओ सलिल पारेख से एक मुलाकात में इनकम टैक्स भरने के लिए बने पोर्टल में लगातार आने वाली तकनीकी समस्या को लेकर "गहरी निराशा" जताई थी। वित्तमंत्री सीतारमण ने कहा था कि पहले तो यह वेबसाइट देरी से बनकर तैयार हुई और तैयार भी हुई तो सरकार और लोगों को इससे जुड़ी परेशानियों का लगातार सामना करना पड़ रहा है।
मालूम हो कि इनकम टैक्स रिर्टन की यह वेबसाइट लगातार दो दिन बंद हो गई थी जिसके बाद इंफ़ोसिस के सीईओ को बुलाया गया था। इस पोर्टल के जरिए रिटर्न भरने वालों का कहना रहा है कि या तो साइट चल ही नहीं रही है, और अगर चल रही है तो काफी स्लो।
इससे पहले जून में भी सरकार की ओर से इस मामले को लेकर चिंता जताई गई थी। 7 जून को ये पोर्टल शुरू किया गया था और तभी से ही इसको लेकर कई तरह की शिकायतें सामने आ रही हैं। 8 जून को निर्मला सीतारमण ने इन्फोसिस के को-फाउंडर नंदन नीलेकणी को ट्विटर पर टैग करते हुए परेशानियों को लेकर शिकायत की थी।
इस पर नंदन नीलकेणी ने कहा था कि हफ्ते भर में चीजें ठीक हो जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब सलिल पारेख से मुलाकात के बाद वित्त मंत्री ने कंपनी को सब कुछ सही करने के लिए 15 सितंबर तक की डेडलाइन दी है।
इन्हीं समस्याओं को लेकर पांचजन्य ने इंफोसिस को निशाना बनाया है। लेख में आरोप लगाया गया है कि इंफोसिस की इस तरह की सेवाएं असल में विपक्ष की साजिश हो सकती है ताकि ये काम विदेशी कंपनियों को सौंपा जा सके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत की योजना को झटका लगे।
इंफ़ोसिस से जुड़े इस लेख में क्या है?
पांचजन्य में चार पन्नों की इस कवर स्टोरी को #इंफ़ोसिस के साथ शीर्षक दिया गया है- 'साख और आघात'। इसमें इनकम टैक्स भरने के लिए इंफ़ोसिस की बनाई नई वेबसाइट में तकनीकी दिक्कत आने पर सवाल उठाए गए हैं।
इस लेख में कहा गया है कि इंफ़ोसिस के एचआर विभाग में मार्क्सवादियों का वर्चस्व है। लेख में इंफ़ोसिस पर "आत्मनिर्भर भारत अभियान" को ठेस पहुँचाने की कोशिश का आरोप लगाया गया है और पूछा गया है कि क्या कंपनी विदेशी क्लाइंट्स को भी ऐसी ख़राब सेवा दे सकती है?
कवर स्टोरी में इंफ़ोसिस को 'ऊँची दुकान फीका पकवान' और 'संदिग्ध चरित्र वाली कंपनी' बताया गया है और पूछा गया है कि क्या इंफ़ोसिस ने जानबूझकर अराजक स्थिति पैदा करने की कोशिश की है?
लेख में इंफ़ोसिस पर देश विरोधी फंडिंग का आरोप भी लगाया गया है। इसमें ऑल्ट न्यूज़, द वॉयर, स्क्रॉल जैसे उन मीडिया आउटलेट्स को फंडिंग की बात है जो नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हैं।
कवर स्टोरी में कहा गया है कि कंपनी को तीन महत्वपूर्ण सरकारी वेबसाइटों को संभालने का ज़िम्मा दिया गया और तीनों में गड़बड़ी आई। टैक्स रिर्टन के लिए वेबसाइट से पहले इंफ़ोसिस को जीएसटी फ़ाइल करने और कंपनी मामलों की वेबसाइट की ज़िम्मेदारी भी दी गई थी।
नारायण मूर्ति पर भी सीधा निशाना
कवर स्टोरी में साफ़ शब्दों में लिखा है कि इंफ़ोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति का वर्तमान सत्ताधारी विचारधारा के प्रति विरोध किसी से छिपा नहीं है। लेख के मुताबिक़, "इंफ़ोसिस अपने महत्वपूर्ण पदों पर एक विशेष विचाराधारा के लोगों को बिठाती है। इनमें अधिकांश बंगाल के मार्क्सवादी हैं।"
लेख में सवाल उठाया गया है कि "ऐसी कंपनी अगर भारत सरकार के महत्वपूर्ण ठेके लेगी तो क्या उसमें चीन और आईएसआई के प्रभाव की आशंका नहीं रहेगी?"
कवर स्टोरी में इस पूरे मामले पर विरोधी दलों की चुप्पी को लेकर भी सवाल उठाया गया है। लेख के अनुसार, "लोग पूछ रहे हैं कि कहीं कांग्रेस के इशारे पर ही तो कुछ निजी कंपनियाँ अव्यवस्था फैलाने की कोशिश नहीं कर रही हैं? इंफ़ोसिस के मालिकों में से एक नंदन नीलेकणि कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं।"
पांचजन्य अपनी कवर स्टोरी पर अडिग
पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर अपनी कवर स्टोरी पर अडिग हैं। उन्होंने कहा, "पाँच सितंबर के पांचजन्य संस्करण पर काफ़ी हंगामा हो रहा है। यह कवर स्टोरी सबको पढ़नी चाहिए।"
उन्होंने ट्वीट किया, "पांचजन्य अपनी रिपोर्ट को लेकर अडिग है। अगर इंफ़ोसिस को किसी भी तरह की आपत्ति है तो उसे कंपनी के हित में इन तथ्यों की और गहराई से पड़ताल करके मुद्दे का दूसरा पहलू पेश करने के लिए कहना चाहिए।"
There is a lot of hue and cry over the cover story of the 5th September issue of Panchjanya. Everyone should read this cover story. https://t.co/gsDI52GN15
Three things are worth noting in this context”. #Infosys @epanchjanya pic.twitter.com/Y86pxdFQD2
— Hitesh Shankar (@hiteshshankar) September 5, 2021
हितेश शंकर ने लिखा, "कुछ लोग इस संदर्भ में निजी स्वार्थ के लिए आरएसएस का नाम ले रहे हैं। याद रखिए कि यह रिपोर्ट संघ से सम्बन्धित नहीं है। यह इंफ़ोसिस के बारे में है। यह तथ्यों और कंपनी की अकुशलता से जुड़ी है।"
इंफ़ोसिस की तारीफ़ कर संघ ने दी सफ़ाई
इस लेख के सामने आते ही विवाद बढ़ने लगा और सवाल उठने लगे कि क्या संघ इसमें ज़ाहिर किए गए विचारों से सहमत है? विवाद गहराता देख आरएसएस ने इससे अपनी दूरी बना ली। आरएसएस के प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने रविवार, 5 सितंबर को इस बारे में सफ़ाई देते हुए एक ट्वीट किया।
ट्वीट में उन्होंने लिखा, "पांचजन्य आरएसएस का मुखपत्र नहीं है और इस लेख में ज़ाहिर किए विचारों को आरएसएस से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। ये हमारे संगठन के नहीं बल्कि लेखक के विचार है।"
As an Indian company, Infosys has made seminal contribution in progress of the country. There might be certain issues with a portal run by Infosys, but the article published by Panchjanya in this context only reflects individual opinion of the author. @editorvskbharat
— Sunil Ambekar (@SunilAmbekarM) September 5, 2021
इतना ही नहीं, उन्होंने इंफ़ोसिस की तारीफ़ करते हुए भी एक ट्वीट किया। आंबेकर ने लिखा, "एक भारतीय कंपनी के तौर पर इंफ़ोसिस ने देश की उन्नति में अहम योगदान किया है। हो सकता है कि इंफ़ोसिस की मदद से चलने वाले एक पोर्टल में कुछ दिक्कतें आई हों लेकिन पांचजन्य में इस संदर्भ में छपा यह लेख किसी एक व्यक्ति या लेखक के विचार भर हैं।"
कांग्रेस ने इसे भारत के ‘बहुमूल्य’ कॉर्पोरेट क्षेत्र पर ‘हमला’ बताया
कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने ट्वीट किया, “पीयूष गोयल ने यह आरोप लगाया कि इंडिया इंक राष्ट्र हित के खिलाफ काम करता है और टाटा संस का नाम लिया, अब आरएसएस से जुड़ी एक पत्रिका कहती है कि इंफोसिस ‘राष्ट्र-विरोधी’ ताकतों और टुकड़े-टुकड़े गिरोह की सहयोगी है भारत के बेशकीमती कॉरपोरेट पर संघ का समन्वित हमला है शर्मनाक?’
कौन हैं ये लोग जो राष्ट्रविरोधी होने का सर्टिफिकेट देते हैं?
गौरतलब है कि इंफ़ोसिस एक भारतीय टेक दिग्गज कंपनी है, जो सीधे तौर पर लगभग 2.6 लाख भारतीयों को रोजगार देती है। महामारी के बीच भी कंपनी अपने कर्मचारियों के साथ डटकर खड़ी रही। फिलहाल इसकी नेटवर्थ $100 बिलियन से अधिक की है। ऐसे में इसे देशविरोधी होने का तमगा देना एक कुंठित मानसिकता है।
आखिर इंफोसिस की गलती ही क्या है? जीएसटी साइट पर खराब काम करने के बाद कंपनी आयकर की वेबसाइट के क्रियान्वन में ठीक से सफल नहीं हो पाई या इंफोसिस के संस्थापकों में से एक का रिश्तेदार कथित तौर पर उस ट्रस्ट का हिस्सा है जो नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करने वाले कुछ मीडिया आउटलेट्स को फंड करता है।
ऐसे में बड़ा सवाल ये हा कि क्या यह सब इसे राष्ट्र-विरोधी बना देता है? निश्चित रूप से नहीं, लेकिन इस शब्द के बार-बार इस्तेमाल से इसका महत्व जरूर कम हो जाता है। आज-कल जो भी अपनी अलग राय रखता है या सरकार की आलोचना करता है, उसे सीधे राष्ट्रविरोधी घोषित कर दिया जाता है।
एक देश जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां विविधता में एकता की बातें कही जाती है। आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल के नाम पर पीठ थपथपाई जाती है, वहां राष्ट्रवाद के नाम पर अपने ही निजी उद्योग को निशाना बनाया जा रहा है।
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