पश्चिम अफ्रीका में नव-उपनिवेशवाद और मुक्ति संघर्ष

फ्रांसीसी-भाषी अफ्रीका का कभी पूरी तरह से निरुपनिवेशीकरण (decolonisation) हुआ ही नहीं था। अपने इन पुराने उपनिवेशों में स्थित फ्रांसीसी संपत्ति की हिफाजत करने के नाम पर, फ्रांस ने इसका आग्रह किया था और ये पूर्व-उपनिवेश इसके लिए राजी भी हो गए थे कि इन देशों में, फ्रांसीसी सैनिक तैनात रहेंगे। इससे फ्रांस को अपने इन पूर्व-उपनिवेशों की राजनीति में दखलंदाजी करने के खूब मौके मिले।
इसके अलावा इन देशों से सीएफए फ्रांक नाम की मुद्रा अंगीकार करायी गयी, जिसकी फ्रांसीसी फ्रांक की तुलना में स्थिर विनिमय दर थी। और इस स्थिर विनिमय दर को बनाए रखने के लिए, इन देशों की मुद्रा नीति को फ्रांसीसी केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित किया जाता था। और चूंकि मुद्रा नीति को आम तौर पर आर्थिक नीति से अलग नहीं किया जा सकता है, इसका बुनियादी तौर पर अर्थ यह हुआ कि मोटे तौर पर इन देशों की आर्थिक नीति को फ्रांस ही नियंत्रित करता था।
यह समूची व्यवस्था, फ्रांस के योरपीय यूनियन प्रणाली का हिस्सा बनने के बाद भी जारी रही थी। इसलिए, इन पूर्व-फ्रांसीसी उपनिवेशों की स्वतंत्रता हमेशा से ही गंभीरता से कटी-फटी रही थी। और इनमें से किसी भी देश में सत्ता में आने के बाद क्रांतिकारियों द्वारा जब भी इस स्थिति के शिकंजे से बाहर निकलने की कोशिश की गयी, हर बार उसका मुकाबला फ्रांस की ओर से, अमरीका के समर्थन से, ऐसी सरकारों के खिलाफ नव-उपनिवेशिक निर्ममता की करतूतों से किया गया था।
थामस संकरा को, जो एक क्रांतिकारी थे, जो बुर्किनो फासो में सत्ता में आए थे और जो फ्रांसीसी सेनाओं को अपने देश से बाहर कराना चाहते थे, एक तख्तापलट में मौत के घाट उतार दिया गया था। यह तख्तापलट किया तो उनकी अपनी पार्टी के ही एक सदस्य ने था, लेकिन जाहिर है कि फ्रांसीसी उकसावे पर और फ्रांसीसी समर्थन से ही किया था। बहरहाल, इन देशों में नव-उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष जारी रहा है और अक्सर स्थानीय सेना ही वह क्षेत्र बनी रही है, जिससे इस तरह के प्रतिरोध का नेतृत्व आता है।
कैप्टन त्राओर ने, जो पैट्रिओटिक मूवमेंट फॉर सेफगार्ड एंड रेस्टोरेशन (पीएमएसआर) के नेता हैं, जिसकी स्थापना 2022 के आरंभ में बुर्किनो फासो में हुई थी, 30 सितंबर 2022 को सत्ता संभालने के बाद फ्रांसीसी सेनाओं को अपने देश से बाहर कराने का आग्रह किया था और वास्तव में इसमें कामयाब भी हो गए। इतना ही नहीं, उन्होंने सीएफए फ्रांक व्यवस्था को भी खत्म कर दिया, जिसमें उनका देश फंसा हुआ था। त्राओर ने दो पड़ौसी देशों, माली तथा नाइजर के साथ मिलकर, जो दोनों भी सच्चे निरुपनिवेशीकरण (decolonisation) की इच्छा से भरे हुए थे, एसोसिएशन ऑफ सहेल स्टेट्स (एईएस) का गठन किया। फ्रांसीसी तथा अमेरिकी सेनाओं को नाइजर से हटना पड़ा और वहां पेंटागन का जो एक ड्रोन स्टेशन था, उसे बंद करना पड़ा। इस तरह, इस क्षेत्र में जो कि खनिज संपदा के मामले में बहुत ही समृद्ध है, एईएस साम्राज्यवाद के पांव का कांटा बन गया।
खनिज संपदा से जनता का कल्याण
इस खनिज संपदा में सोने का महत्वपूर्ण स्थान है और बर्किनो फासो अफ्रीका के सबसे बड़े स्वर्ण उत्पादकों में से है, जिसने 2024 में 57 टन सोने का उत्पादन किया था। लेकिन, इस देश के लोगों को इस स्वर्ण उत्पादन से शायद ही कोई लाभ मिलता था और सोने के उत्पादन से होने वाली ज्यादातर आय उन विदेशी कंपनियों के हाथों में चली जाती थी, जिनकी मिल्कियत में ये खदानें थीं। बहरहाल, पीएमएसआर सरकार ने 2024 में एसओपीएएमआइबी नाम की एक सरकारी कंपनी स्थापित की और इसके जरिए धीरे-धीरे विदेशी मिल्कियत वाली उन कंपनियों का अधिग्रहण कर लिया, जो सोना निकालने के काम में लगी हुई थीं।
इस तरह, राष्ट्रीयकृत सोना खदानों की कमाई से सरकार के पास पहले से ज्यादा राजस्व आने लगा जिसे सरकार ने देश का औद्योगीकरण करने के लिए और बर्किनो की जनता के लिए स्वास्थ्य तथा शिक्षा की सुविधाओं का विस्तार करने के लिए लगाना शुरू कर दिया। अब जब पिछले कुछ समय से सोने की कीमतें बढ़ रही हैं क्योंकि डॉलर की नियति पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं और बहुत से डॉलर में संपत्ति रखने वालों ने सोने के रूप में संपत्ति जमा करना शुरू कर दिया है, बर्किनो फासो की सरकार इस स्थिति में है कि वह इन हालात का फायदा उठा सकती है और एक हद तक उन पाबंदियों के असर की काट कर सकती है, जो अपनी धरती से उसके फ्रांसीसी सेनाओं को बाहर करने की पृष्ठभूमि में, पश्चिमी ताकतों द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उस पर लगायी गयी थीं।
कहानी इतनी ही नहीं है। त्राओर की सरकार ने दस्तकाराना सोने के क्षेत्र को भी विनियमित किया है, देश में एक गोल्ड रिफाइनरी स्थापित की है, बर्किनो फासो के अन्य प्राथमिक उत्पादों के भी घरेलू स्तर पर प्रसंस्करण की प्रक्रिया शुरू की है, खेती की पैदावार बढ़ाने में किसानों की मदद की है और खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कदम उठाए हैं।
त्राओर के ख़िलाफ़ तख़्तापलट का खेल
जैसाकि अनुमान लगाया जा सकता था, इन कदमों ने अमरीका की नाराजगी को आमंत्रित किया और अमरीकी अफ्रीका कमांड (अफ्रीकॉम) के प्रमुख, जनरल मिखाइल लांग्ले ने अमरीकी सीनेट कमेटी के सामने एक सुनवाई में दुष्टतापूर्ण तरीके से इब्राहीम त्राओर पर आरोप लगाया कि वह सोने से आ रहे राजस्व को खुद अपने ऊपर और खासतौर पर अपनी निजी सुरक्षा बढ़ाने पर खर्च कर रहे थे। लांग्ले की टिप्पणियों का पूरे अफ्रीका में मीडिया में खूब प्रसार हुआ था और पूरे महाद्वीप में लोगों ने व्यापक पैमाने पर उनकी आलोचना भी की थी। बहरहाल, लांग्ले की ये टिप्पणियां तो संभवत: त्राओर के खिलाफ तख्तापलट का मंच सजाने के लिए ही थीं। इसके बाद पश्चिम में जमकर मीडिया प्रचार के पृठभूमि में, जिसमें अक्सर अनाम स्रोतों से त्राओर सरकार की ‘‘तानाशाहीपूर्ण प्रकृति’’ और बर्किनो फासो में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों की कहानियां रहती थीं, 16 अप्रैल को बाकायदा तख्तापलट की कोशिश की गयी। लेकिन, तख्तापलट की कोशिश विफल हो गयी और षडयंत्रकारियां को गिरफ्तार कर लिया गया। इस तरह यह सुनिश्चित हुआ कि त्राओर की नियति शंकरा जैसी नहीं हो।
तख्तापलट की यह कोशिश, अमरीकी साम्राज्यवाद की ओर से किसी ऐसी अफ्रीकी सरकार के लिए पूरी तरह से अनुमेय जवाब थी, जो निरुपनिवेशीकरण हासिल करने की कोशिश कर रही हो। यह सब करीब-करीब इसका एहसास दिलाता था जैसे हम कोई पुरानी और घिसी-पिटी पटकथा ही पढ़ रहे हों। यह अफ्रीकी महाद्वीप में, जिसमें फ्रांसीसी-भाषी अफ्रीका भी शामिल है, निरुपनिवेशीकरण के लिए संघर्ष के सामने आने वाली कठिनाइयों को रेखांकित करता है। इन कठिनाइयों के अनेक स्रोत हैं। मिसाल के तौर पर बुर्किनो फासो को, साम्राज्यवाद का सामना करने के साथ ही साथ, इस्लामी तत्ववादियों की बगावत का भी सामना करना पड़ रहा है, जिनका देश के 40 फीसद भूभाग पर कब्जा है। इसके अलावा यह क्षेत्र ऐसे पश्चिम-परस्त निजामों से पटा पड़ा है, जो साम्राज्यवाद के पैसे पर पलते हैं और जिन्हें रस्म अदायगी की तरह समय-समय पर कराए जाने वाले चुनावों से सत्ता हासिल होती है, जिनमें किसी भी प्रभावी कर्ताभाव से वंचित जनता को वोट भर देने दिया जाता है। साम्राज्यवाद इस तरह के निजामों का इस्तेमाल अपने हित साधने के लिए करता है। इसमें उनसे, अपने खिलाफ जाने वाली किसी भी सरकार के खिलाफ पाबंदियां लगवाने से लेकर, ऐसा सरकारों के खिलाफ तख्तापलट के लिए अड्डा मुहैया कराना तक शामिल है।
निरुपनिवेशीकरण की लड़ाई जारी है
मिसाल के तौर पर इकॉनमिक कम्यूनिटी आफ वैस्ट अफ्रीकन स्टेट्स (ईसीओडब्लूएएस) को बुर्किनो फासो के खिलाफ लामबंद किया गया था। उसने, कहने के लिए जनतंत्र की हिफाजत करने के नाम पर, बुर्किनो फासो के खिलाफ आर्थिक पाबंदियां लगाने की धमकी दी थी क्योंकि वहां सत्ता में आया क्रांतिकारी निजाम, एक कथित रूप से ‘‘जनतांत्रिक तरीके से निर्वाचित’’ पश्चिम-परस्त सरकार का तख्तापलट कर सत्ता में आया था। बहरहाल, इन कोशिशों का कोई खास असर ही नहीं हुआ क्योंकि विडंबनापूर्ण तरीके से तथाकथित ‘‘जनतंत्र-विरोधी’’ इब्राहीम त्राओर को बुर्किनोवासियों के बीच जबर्दस्त जन समर्थन हासिल है, जिसका प्रदर्शन इस सरकार के पक्ष में सड़कों पर विशाल प्रदर्शनों में हुआ था। और ईसीओडब्ल्यूएएस से अलग हुए समूह के रूप में एईएस का गठन किया गया। पड़ोसी देश, आइवरी कोस्ट का फ्रांसीसी स्वार्थों द्वारा बर्किनो फासो में तख्तापलट कराने के लिए अड्डा के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। वास्तव में थॉमस संकरा के खिलाफ तख्तापलट का षडयंत्र रचने वाले आखिरकार भागकर आइवरी कोस्ट चले गए और अब भी उन्हें वहां शरण मिली हुई है। इसी अप्रैल के विफल तख्तापलट के लिए भी, खबरों के अनुसार आइवरी कोस्ट को ही अड्डा के तौर पर इस्तेमाल किया गया था।
इन तमाम कठिनाइयों के सामने भी, पश्चिम अफ्रीका में शुरू हुई निरुपनिवेशीकरण की मुहिम को, समूचे अफ्रीकी महाद्वीप में जबर्दस्त और उत्साहपूर्ण समर्थन हासिल हो रहा है। पूरे अफ्रीका में इब्राहीम त्राओर के समर्थन में हजारों लोगों ने प्रदर्शन किए हैं और साम्राज्यवादियों से बुर्किनो फासो से दूर रहने के लिए कहा है। जिस लक्ष्य के लिए पेट्रिस लुमुम्बा, अमिल्कार कबराल, एडुअर्डो मोंडलाने तथा थॉमस संकरा ने अपने प्राणों की आहुति दी थी और जिसके लिए क्वामे न्क्रूमाह तथा जुलियस न्येरेरे जीवन भर लड़े थे, उसका अफ्रीकी जनता के बीच जबर्दस्त असर हो रहा है। और इस समय हम अफ्रीका की मुक्ति के लिए संघर्ष के एक नये अध्याय की शुरूआत देख रहे हैं।
मुक्ति संघर्ष के नये अध्याय की शुरूआत
बहरहाल, आने वाले दिनों में साम्राज्यवाद, निरुपनिवेशीकरण के इस संघर्ष के खिलाफ और भीषण रूप लेने जा रहा है। पुराने फ्रांसीसी स्वार्थों के अलावा अब दुनिया भर में कच्चे मालों की एक नयी तलाश और है, जो डोनाल्ड ट्रम्प निजाम ने शुरू की है और जिसमें जाहिर है कि अफ्रीका की एक महत्वपूर्ण भूमिका रहने जा रही है। वास्तव में ट्रम्प ने पहले ही कांगो के निजाम की मिलीभगत से, कांगो की खनिज संपदा पर नियंत्रण हासिल करने की योजना बना ली है। ट्रम्प जिस तरह की जल्दी में दुनिया भर के खनिज संसाधनों पर नियंत्रण हासिल करने की और खासतौर पर उन खनिज संसाधनों पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश कर रहा है, जो नयी तथा उदीयमान प्रौद्योगिकियों में काम आते हैं, उस पर हम बाद में अलग से किसी लेख में चर्चा करेंगे। लेकिन, इस मामले में उसकी जल्दी यूक्रेन के साथ उसके सौदे से, ग्रीनलैंड को हथियाने की उसकी आकांक्षा से, कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य या प्रांत बनाने की और सागर तल पर भी नियंत्रण हासिल करने के उसके लालची मंसूबों से स्वत:स्पष्ट है। यहां तक कि रूस तथा यूक्रेन के बीच युद्घ में शांति लाने के लिए ‘‘ईमानदार मध्यस्थ’’ बनने की उसकी इच्छा को भी, इन दोनों देशों के समृद्ध खनिज संसाधनों तक पहुंच की उसकी आकांक्षा से पूरी तरह से अलग कर के नहीं देखा जा सकता है।
इसका अर्थ यह है कि आने वाले दिनों में अफ्रीका, एक ओर साम्राज्यवाद और दूसरी ओर निरुपनिवेशीकरण की ताकतों के बीच तीखे संघर्ष का मैदान बनकर उभरने वाला है। इस संघर्ष में जहां साम्राज्यवादी ताकतें उसके समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों पर अपने लिए नियंत्रण हासिल करने की कोशिश कर रही होंगी, वहीं निरुपनिवेशीकरण की ताकतें अपने जनगण की जिंदगियां बेहतर बनाने के लिए इन संसाधनों का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रही होंगी।
(लेखक दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आर्थिक अध्ययन एवं योजना केंद्र में प्रोफ़ेसर एमेरिटस हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
Neo-Colonialism Opens New Chapter of Struggle in West Africa
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