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पीएम मोदी का भाषण: लाल क़िले के प्राचीर से 2014 की यादें

प्रधानमंत्री जी, आपका लाल क़िले का यह संबोधन 2014 के आपके वादों और स्लोगनों की याद ताज़ा कर देता है। फ़र्क़ बस इतना है कि तब आप चुनावी मैदान में थे, और आज लाल क़िले पर।
MODI LAL QILA

79वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन कई बार 2014 की चुनावी रैलियों की याद दिला गया। प्रधानमंत्री के इस संबोधन पर कुछ टिप्पणियाँ करना चाहता हूँ, जो उनके भाषण के वाक्यों से ली गई हैं और जिन पर हमारी टिप्पणी है।

प्रधानमंत्री कहते हैं— "स्पेस सेक्टर का कमाल तो हर देशवासी देख रहा है, गर्व से भरा जा रहा है।… मेरे देश के 300 से ज्यादा स्टार्टअप्स अब सिर्फ और सिर्फ स्पेस सेक्टर में काम कर रहे हैं और उन 300 स्टार्टअप्स में हजारों नौजवान पूरे सामर्थ्य के साथ जुटे हैं।"

हाँ मोदी जी, स्पेस सेक्टर का कमाल तो हर देशवासी देख रहा है, और मीडिया हमें गर्व से भरने में कोई कसर नहीं छोड़ता। क्या यह विडंबना नहीं है कि हम चाँद और मंगल पर झंडा गाड़ने का जश्न मना रहे हैं, लेकिन धरती पर लाखों लोग इलाज के बिना मर रहे हैं? सरकारी अस्पताल में एक बेड पर तीन-तीन मरीज़ पड़े हैं। बच्चे जर्जर स्कूलों में पढ़ रहे हैं, और कुछ तो वहीं जान भी गंवा रहे हैं। 

आप जिस समय लाल किले के प्राचीर से संबोधन कर रहे थे, उसी समय उदयपुर ज़िले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कोटड़ा में निर्माणाधीन पीएम-श्री स्कूल का छज्जा गिरने से एक बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई और एक घायल हो गई। 

स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहे बूंदी में फॉल्स सीलिंग गिरने से 5 छात्र घायल हो गए। दिल्ली जैसे शहरों तक में पीने का साफ पानी नहीं है। गाँव की औरतें आज भी पानी के लिए कई किलोमीटर पैदल चलती हैं।

अंतरिक्ष में ‘आत्मनिर्भरता’ का सपना जितना सुनहरा है, धरती पर आत्मनिर्भर नागरिकों के लिए बुनियादी ढाँचा उतना ही खस्ताहाल है। 

विकास की असली पहचान आसमान में नहीं, बल्कि इस बात में है कि आम आदमी को स्वास्थ्य, शिक्षा और सम्मानजनक जीवन मिले। वरना, चाँद पर तिरंगा लहराने से पहले हमें धरती पर इंसानों की गरिमा बहाल करनी होगी। हम एक तरफ मंगल पर जाने का सपना बुन रहे हैं तो दूसरी तरफ आम जनता रसातल में जा रही है।

अगर यही विकास है, तो फिर गरीब जनता को भी बता दीजिए—दवाई के लिए अस्पताल, स्कूल मत जाओ, चाँद की तरफ देखो। धरती अब सिर्फ बड़े-बड़े सपनों और टीवी कैमरों के लिए है, इंसानों के लिए नहीं।

प्रधानमंत्री जी, क्या "वोकल फॉर लोकल" का नारा देते आए हैं और कहते हैं कि इस मंत्र को हर नागरिक के जीवन का मंत्र बनाएं। प्रधानमंत्री जी की कार से लेकर  घड़ी, चश्मा, पेन सब विदेशी है। यहाँ तक कहा जाता है कि खाने में आप विदेशी मशरूम इस्तेमाल करते हैं। 

प्रधानमंत्री कहते हैं— "जब देश का सामर्थ्य बढ़ता है, तो देशवासियों को लाभ मिलता है– 75 साल आज़ादी के ऐसे ही गए, हमने दंड संहिता को खत्म कर दिया और न्याय संहिता को ले आए हैं।"

हाँ, लेकिन आपने 29 पुराने केंद्रीय श्रम कानूनों को बदलकर 4 लेबर कोड लाने की तैयारी की है, जिससे मज़दूरों के शोषण को बढ़ावा मिलेगा। आप तीन कृषि कानून लाए, जिनका पूरे देश के किसान संगठनों ने विरोध किया और 700 से अधिक किसानों ने शहादत दी। बिजली कानून लाकर धन्ना सेठों की जेब भरना चाहते हैं। स्मार्ट मीटर लगा रहे हैं, जिसका देश भर में विरोध हो रहा है। आपके तथाकथित ‘सुधार’ जनता के शोषण के लिए हैं और अपने दोस्त उद्योगपतियों की तिजोरी भरने के लिए। कोरोना काल में देखा गया, 2020 में भारत में करीब 4.6 करोड़ लोग गरीबी में धंस गए। इसी अवधि में भारत में अमीरों की संख्या करीब 40 फीसदी बढ़कर 102 से 143 हो गई।  अडानी समूह की संपत्ति 27.4 अरब डॉलर बढ़कर 61.2 अरब डॉलर हो गई, जबकि मुकेश अंबानी की संपत्ति 2.61 अरब डॉलर बढ़कर 79.3 अरब डॉलर हो गई।

प्रधानमंत्री कहते हैं— "ऐसे-ऐसे कानून हैं हमारे देश में, छोटी-छोटी चीज़ों के लिए जेल में डालने के कानून हैं।... उन्हें खत्म होना चाहिए।"

मोदी जी क्या इन कानूनों से भीमा कोरेगांव जैसे मामलों में जेल में बंद लोगों को राहत मिलेगी? जिन्हें बिना ट्रायल 7 वर्षों से अधिक समय से जेल में रखा गया है। जमानत मिलने के बाद भी घर जाने की इजाज़त नहीं मिली है। या इन कानूनों से राम रहीम जैसे बलात्कारियों और ‘सहारा श्री’ जैसे भ्रष्टाचारियों को लाभ होगा ?

प्रधानमंत्री कहते हैं— "इस दिवाली मैं आपके लिए डबल दिवाली का काम करने वाला हूं।... पिछले 8 साल से हमने जीएसटी का बहुत बड़ा सुधार किया, पूरे देश में टैक्स का बोझ कम किया।"

मोदी जी, जीएसटी लागू होने के बाद महंगाई का भार और बढ़ा। आपने कहा था कि 15 तरह के टैक्स हटाकर एक टैक्स—जीएसटी—लागू होगा। लेकिन आपके नेतृत्व में 15 टैक्स को ही वस्तु मूल्य मानकर उसके ऊपर जीएसटी जोड़ दिया गया, जिसके बाद पूंजीपतियों के खजाने रॉकेट की गति से भरने लगे। जीएसटी के नाम पर आपने राज्यों पर नियंत्रण और बढ़ा दिया। 

प्रधानमंत्री कहते हैं—"आज देश तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। हम दरवाज़े खटखटा रहे हैं और जल्द ही यह लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे।"

2023–24 में दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय 4.61 लाख रुपये से अधिक है। पर हक़ीक़त यह है कि आज भी 6–7 हज़ार रुपये मासिक वेतन पर महिलाएं 8–10 घंटे काम कर रही हैं। 24 जुलाई, 2025 को दिल्ली के रिठाला में फैक्ट्री में आग लगने से दो महिलाओं की जलकर मृत्यु हो गई। वे मात्र 7 और 7.5 हज़ार रुपये महीना वेतन पर काम करती थीं। भारत चौथी से तीसरी या पहली अर्थव्यवस्था बन भी जाए, तो क्या ऐसे परिवारों की ज़िंदगी में बदलाव आएगा?

प्रधानमंत्री घोषणा की— "मेरे देश के युवाओं के लिए एक लाख करोड़ रुपये की योजना आज से शुरू हो रही है—प्रधानमंत्री विकसित भारत रोज़गार योजना। निजी क्षेत्र में पहली बार नौकरी पाने वाले युवक-युवतियों को 15 हज़ार रुपये सरकार की ओर से दिए जाएंगे।"

प्रधानमंत्री जी, आपके 15 हज़ार रुपये देने से उनके जीवन में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा। दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी 18,400 रुपये (हेल्पर) से 22,400 रुपये (कारीगर) है, लेकिन उन्हें 8–12 हज़ार रुपये ही मिलते हैं। यानी सालाना 1–1.5 लाख रुपये की लूट इनसे की जाती है यह सब आपके नाक के नीचे हो रहा है। हो सकता है इनमें से कई फैक्ट्री आपके सांसदों या विधायकों या उनके रिश्तेदारों की हों। आप उनकी उचित मजदूरी दिलाने के बजाय 12 घंटे कार्यदिवस का कानून लाने जा रहे हैं। यह सुनकर 2014 का आपका वादा याद आता है, जब आपने कहा था कि हर साल 2 करोड़ नौकरियां देंगे।

आपके शासनकाल में बेरोज़गारी से आत्महत्या करने वालों की संख्या चौंकाने वाली है—2018 में 2,741, 2019 में 2,851 और 2020 में 3,548  हो गई। यह आंकड़ा 2021 में कोरोना काल के बाद, 11,724 हो गया

प्रधानमंत्री कहते हैं— "आज भारत में नारी शक्ति का लोहा हर कोई मान रहा है।... स्टार्टअप से लेकर स्पेस सेक्टर तक, खेल के मैदान से लेकर सेना तक, बेटियां देश का नाम रोशन कर रही हैं।"

जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों को यौन शोषण के ख़िलाफ़ धरना देना पड़ा, और जब वे नए संसद भवन के उद्घाटन के दिन मार्च करना चाहती थीं, तो पूरी दुनिया ने देखा कि दिल्ली पुलिस ने उन्हें कैसे घसीटा और धरना स्थल हटा दिया। आप तब चुप रहे और आज लाल किले से नारी शक्ति की बात कर रहे हैं।

APDR की रिपोर्ट के अनुसार, 16 मौजूदा सांसद और 135 विधायक महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों के आरोपी हैं, जिनमें 5 सांसद आपकी पार्टी के हैं। NCRB के 2022 के आंकड़ों के अनुसार देश में महिलाओं के साथ अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज हुए, जिनमें बलात्कार के 31,516 मामले हैं। यह अनायास ही आपके 2014 के नारे"बहुत हुआ नारी पर वार, अबकी बार मोदी सरकार"—की याद दिलाता है।

आप किसानों की बात कर रहे थे, लेकिन आपके नीतियों के कारण भारत में दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला किसान आंदोलन हुआ, जिसमें 700 से अधिक किसानों ने शहादत दी। आज भी किसानों की मुख्य मांग—फसलों का लाभकारी मूल्य—अधूरी है। किसानों को खाद लेने के लिए भी पुलिस की लाठियां खानी पड़ती हैं। यह सब सुनकर 2014 के आपके नारे"मेरे देश का किसान, देश की शान" और "अधिक उत्पादन, अधिक आमदनी"—याद आ जाते हैं। न्यूजलान्ड्री की एक रिपोर्ट बताती है—"जहां नरेंद्र मोदी ने किसानों से चाय पर चर्चा की थी, वहां किसानों की आत्महत्या दोगुनी हो गई।"

प्रधानमंत्री कहते हैं— "गरीबी क्या होती है, यह मुझे किताबों में पढ़ना नहीं पड़ा। मैं जानता हूं, सरकार में भी रहा हूं और इसलिए मेरी कोशिश रही है कि सरकार केवल फाइलों में न हो, बल्कि देश के नागरिकों के जीवन में हो।... हम उसी दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं।"

मोदी जी, यदि आप वास्तव में गरीबी को जानते हैं तो मिनिमम बैलेंस पर जुर्माना क्यों लगाते? क्या आप नहीं समझते कि मिनिमम बैलेंस के नाम पर गरीबों के खातों से 2014-15 से 2023-24 के  बीच 15,519 करोड़ रुपये (जिसमें प्राइवेट बैंक शामिल नहीं हैं) सार्वजनिक बैंकों ने वसूले हैं? वहीं, बैंकों से कर्ज लेकर मस्ती करने वालों के 10 वित्तीय वर्षों में 16.35 लाख करोड़ रुपये के एनपीए को बट्टे खाते में डाल दिया गया। महोदय, आपका यह "गरीबी जानना" गरीबों की जान लेने जैसा है। यह आपके 2014 के स्लोगन"अच्छे दिन आने वाले हैं"—की याद दिलाता है।

प्रधानमंत्री लाल किले से कहते हैं— "आज 10 करोड़ गरीब और पिछले 10 वर्षों में 25 करोड़ से ज़्यादा लोग गरीबी से बाहर निकले हैं और एक नया मिडिल क्लास तैयार हुआ है।"

महोदय, वित्त मंत्री बताती हैं कि जनधन योजना के अंन्तर्गत 55 करोड़ से अधिक खाते खोले गए हैं। जनधन योजना गरीबों के लिए थी और 140 करोड़ की आबादी में 18 वर्ष से ऊपर के लोगों में से 55 करोड़ के जनधन खाते हैं—आप स्वयं आंकलन कर लीजिए कि गरीबी घटी है या बढ़ी है। आप प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY) के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की बात करते हैं। आपके ही आंकड़ों के अनुसार, देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीब है। तो क्या आप मिडिल क्लास को भी मुफ्त राशन दे रहे हैं?

प्रधानमंत्री कहते हैं— "आज से 100 साल पहले एक संगठन का जन्म हुआ—राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)। 100 वर्षों की राष्ट्रसेवा, सेवा, समर्पण, संगठन और अप्रतिम अनुशासन इसकी पहचान है। यह दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है, जिसने मातृभूमि के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है।"

मोदी जी, आप आज़ादी का 79वां वर्ष मना रहे हैं—तो आज़ादी की लड़ाई में इस संगठन का योगदान क्यों नहीं दिखता? हम इस पर गर्व कैसे करें? 

प्रधानमंत्री कहते हैं— "एक समय था, जब सवा सौ से ज़्यादा जिलों में नक्सलवाद की जड़ें जम चुकी थीं। माओवाद की चंगुल में हमारे जनजातीय क्षेत्र और नौजवान फंसे हुए थे।"

आपने सही कहा कि नक्सलवाद कमजोर हुआ है लेकिन नक्सलवाद कमजोर होते ही गढ़चिरौली में किस तरह माइनिंग कंपनियों के लिए जंगल काटे जा रहे हैं, यह संतोषी मरकाम की रिपोर्ट में साफ दिखता है। उड़ीसा के तीजिमाली, कुटरूमाली और माजनमाली के पहड़ों को वेदांता और  अडानी की साझी कंपनियों को दिए जा रहे हैं, और विरोध करने वाले आदिवासियों पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। आदिवासियों के पास जाइए, तब आपको पता चलेगा कि आपने उनका कितना हक दिलवाया है। यह आपके 2014 के स्लोगन"सबका साथ, सबका विकास"—की याद दिलाता है।

प्रधानमंत्री जी, आपका लाल किले का यह संबोधन 2014 के आपके वादों और स्लोगनों की याद ताज़ा कर देता है। फर्क बस इतना है कि तब आप चुनावी मैदान में थे, और आज लाल किले पर। "अच्छे दिन आने वाले हैं" का सपना मत दिखाइए—आज जनता वह भूल चुकी है। आपने जब पुरानी बात याद दिलाई, तो हमें भी लगा कि आपके पुराने वादे याद दिला दें।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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