बिहार–झारखंड: वक़्फ़ संशोधन क़ानून के विरोध का सिलसिला जारी

“वक़्फ़ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का स्वागत है, जिसमें मौजूदा वक़्फ़ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने और केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद या राज्य वक़्फ़ बोर्डों में किसी भी ग़ैर-मुस्लिम सदस्य की नियुक्ति पर रोक लगाई गयी है।” ऐसी कई कई प्रतिक्रिया सोशल मीडिया के साथ साथ आम सियासी चर्चाओं में काफ़ी वायरल हो रहीं हैं।
सनद रहे कि “वक़्फ़ संशोधन क़ानून” को रद्द करने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। लेकिन दूसरी ओर, केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा संसद में पारित किये गये ‘वक़्फ़ संशोधन क़ानून” के ख़िलाफ़ सड़कों पर व्यापक प्रतिवाद लगातार जारी है। देश के विभिन्न इलाकों की भांति बिहार और झारखंड में भी विरोध का सिलसिला निरंतर जारी है।
“संविधान विरोधी वक़्फ़ संशोधन क़ानून रद्द करो, मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आजादी और सांस्कृतिक स्वायतत्ता पर हमला बंद करो व संविधान-लोकतंत्र पर हमला नहीं सहेंगे!” जैसे नारों के साथ बिहार में इंसाफ़ मंच व इंक़लाबी नौजवान सभा इत्यादि वाम जन संगठनों के अलावा भाकपा माले व अन्य वामपंथी पार्टियों के एक्टिविस्ट समेत कई मुस्लिम संगठनों के कार्यकर्त्ता, सड़कों पर मार्च निकालकर तीखा विरोध प्रदर्शित कर रहें हैं। उक्त “क़ानून” की प्रतीक प्रतियां व केंद्र सरकार का पुतला जलाकर उक्त क़ानून को रद्द करने की पुरज़ोर मांग कर रहें हैं।
उक्त विरोध कार्यक्रमों के माध्यम से आम जन को यह भी बताया जा रहा है कि- यह न केवल संविधान द्वारा हासिल देश के मुसलामानों की धार्मिक आज़ादी पर हमला है, बल्कि कॉर्पोरेटों के लिए वक़्फ़ की ज़मीन हड़पने की गहरी साज़िश भी है। जिसके ख़िलाफ़ उठ खड़ा होना हर धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्रपसंद नागरिकों की अहम् जिम्मेवारी बन गयी है।
झारखंड में भी वाम दलों के साथ साथ कई सामाजिक जन संगठनों और मुस्लिम सामाजिक संगठनों ने कड़ा विरोध जताते हुए इस क़ानून को रद्द करने की मांग की है। “वक़्फ़ (संसोधन) क़ानून ’2025”- फ़ासीवाद और हिन्दू राष्ट्र की ओर एक और क़दम” नाम से जारी अपील में कहा गया है कि- देश की संसद में भारत सरकार द्वारा पारित “वक़्फ़ (संसोधन) क़ानून, वक़्फ़ अधिनियम 1955 के प्रावधानों के साफ़ उलट देने का सुनियोजित षड्यंत्र है। जो न केवल मुसलामानों की धार्मिक स्वायत्तता और सामुदायिक अधिकारों पर कुठाराघात करता है, बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों और सामाजिक सौहार्द को भी कमज़ोर करता है।
आम चर्चा है कि भले ही देश की संसद और फिर राज्यसभा में “तथाकथित लोकतान्त्रिक” ढंग से कराई गयी व्यापक चर्चा-बहस उपरांत विवादित “वक़्फ़ संशोधन विधेयक” को “बहुमत से” पास कर दिया है। लेकिन इससे एक बार फिर भाजपा की “मुस्लिम विरोधी राजनीति” तो खुलकर सामने आ ही गयी, उससे भी बढ़कर कतिपय स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले “नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू” जैसों की कलई भी जगजाहिर हो गयी। जिसके खिलाफ मुस्लिम समुदाय काफी तीखे विरोध का इज़हार भी कर रहें हैं।
उधर राष्ट्रपति महोदया ने भी पारम्परिक शैली का पालन करते हुए विधेयक पर अपना हस्ताक्षर कर दिया है और अब यह बिल क़ानून का स्वरूप ग्रहण कर चुका है।
कई ख़बरों में ये बातें भी खूब वायरल हो रही हैं कि “भविष्य के रामराज” के मॉडल प्रदेश के रूप में तेज़ी से ढाले जा रहे “उत्तर प्रदेश” में तो “योगी जी की पुलिस” ने आनन-फानन क़ानून के अमल-एक्शन क़वायद भी शुरू कर दी है। पूर्व से तैयार किसी फ़िल्मी पठकथा की भांति “नया वक़्फ़ क़ानून” की घोषणा होते ही वक़्फ़ की विवादित ज़मीनों पर जबरन सरकारी दखल के लिए एकतरफा फ़रमान जारी किया जा रहा है।
गौर तलब है कि इस विवादित विधेयक का शुरू से ही देश की व्यापक धर्मनिरपेक्ष-लोकतान्त्रिक एवं वाम ताकतों के साथ साथ मुस्लिम समुदाय लगातार कड़ा विरोध कर रहे हैं। जिसे देखते हुए केंद्र की सरकार ने इस विधेयक पर व्यापक विमर्श कराने का भरपूर दिखावा करते हुए “संयुक्त संसदीय कमिटी” का गठन कर पूरे देश से सुझाव मांगे। लेकिन लोकसभा-राज्यसभा में कराई गयी चर्चाओं में विधेयक के पुरज़ोर विरोध के सभी तर्कों, सवालों और सुझावों को ज़रा भी महत्व नहीं देकर “सुनियोजित बहुमत” से पास करके ये दिखा दिया गया कि सत्ताधारी दल के लिए विपक्ष की बातें कोई मायने नहीं रखती। बहस के दौरान ये बातें भी खुलकर आयीं कि “संयुक्त संसदीय कमिटी” में शामिल विपक्ष के सभी नेता एक स्वर से ये आरोप लगाते रहे हैं कि कमिटी ने उनके दिए सुझावों को “रद्दी की टोकरी” में डालकर वही बातें कहीं गईं जो सत्ताधारी दल ने उन्हें रटा दिया था।
कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने ज़ोरदार शब्दों में कहा है कि- “इस विधेयक के पास होने से पूरे देश के वक़्फ़ की मालिक भाजपा सरकार-सिस्टम हो जाएगा। जिसे वो हमारे क़ौम में घुसे “आस्तीन के सांपो” से अंजाम देने की खतरनाक चाल चल रहे हैं । देश के मुसलमानों के बचे खुचे संवैधानिक अधिकारों पर खुलकर क़ानूनी डाकेजनी होगी और हमारे पास “भुगतने और मायूसी” का ही रास्ता बच जाएगा।
इस खतरनाक हालात में हमें दिमाग से हर वक़्त एलर्ट रहना है – क़ौम के अन्दर की कमजोरियों (जिनका इलाज़ भी वक़्त की ज़रूरत है) के बहाने हमें ही निशाना बनाने की हर साज़िश को नाकाम करना है।
लेकिन यह तभी मुमकिन है जब हम सही जेहनियत और ईमानदार संजीदगी के साथ अपनी मजबूत एकता को सामने लायें और संविधान पर हो रहे हमलों का ज़ोरदार जवाब दें।”
फिलहाल विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला लगातार जारी है। जिसके माध्यम से बताया जा रहा है कि- भाजपा-आरएसएस का मिथ्या प्रचार है कि- वक़्फ़ संशोधन क़ानून मुस्लिम महिलाओं और पसमांदा समुदाय के हित में लाया गया है। लेकिन मुस्लिम समुदाय के साथ साथ आम जनता भी भाजपा सरकार की मंशा और नीयत को भली-भाँती समझ चुकी है। जिसका वह पूरी एकजुटता के साथ जवाब भी देगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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