बंगाल: कॉर्पोरेट मीडिया के बाइनरी नेरेटिव से लड़ता वाम-कांग्रेस गठबंधन

कोलकाता: बावजूद इसके की राज्य में भीषण गर्मी पड़ रही है, पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान जोर-शोर से चल रहा है। अन्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले संसाधनों की कमी के बावजूद, कई वामपंथी उम्मीदवार चिलचिलाती धूप में पैदल चलकर और रास्ते में लोगों से मिलकर या रोड शो के माध्यम से अपने निर्वाचन क्षेत्रों को कवर कर रहे हैं। यहां हम कुछ 'उच्च प्रभाव' वाली संसदीय सीटों पर वामपंथियों के चुनाव अभियान की कुछ झलकियां पेश कर रहे हैं।
मुर्शिदाबाद
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने मुर्शिदाबाद में तृणमूल कांग्रेस या टीएमसी के मौजूदा सांसद अबू ताहिर खान के खिलाफ अपने सचिव मोहम्मद सलीम को मैदान में उतारकर चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। पिछले पंचायत चुनाव परिणामों से उत्साहित होकर, जिसमें कई पंचायत समिति, जिला परिषद सीटें और ग्राम पंचायतें वाम-कांग्रेस गठबंधन ने जीती थीं, पार्टी ने सलीम को मैदान में उतारने का फैसला किया, जिन्हें बंगाल का एक जन-नेता माना जाता है।
भाजपा, जिसे मुर्शिदाबाद सीट पर कोई उम्मीद नहीं है, ने गौरी शंकर घोष को मैदान में उतारा है। लेकिन मुख्य मुकाबला वाम-कांग्रेस उम्मीदवार सलीम और टीएमसी के खान के बीच ही है।
सलीम का मुख्य चुनाव अभियान, अभी तक नदी के तट के कटाव और प्रवासी मजदूरों के मुद्दों पर केंद्रित रहा है और उनके समर्थकों का कहना है कि उन्हें लोगों से जो समर्थन मिल रहा है वह "सकारात्मक से कहीं अधिक है"।
विश्लेषकों का कहना है कि डोमकल में, जहां सीपीआई (एम) ने टीएमसी से प्रमुख पंचायत सीटें छीन लीं थी और साथ ही रानीनगर और जलांगी से, इस सीट पर सलीम को लगभग 60 फीसदी वोट मिलने की उम्मीद है। उनका कहना है कि इस साल खान के लिए इस अंतर को पाटना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि सांसद पर जिले के बीड़ी श्रमिकों (इस जिले में दस लाख से अधिक बीड़ी श्रमिक और उनके परिवार रहते हैं) की दुर्दशा को सुधारने के लिए कुछ नहीं करने का आरोप लगा है। सलीम ने बीड़ी श्रमिकों में पैठ बना ली है और कहा कि जब वे सांसद थे तो उन्होंने हमेशा बीड़ी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी देने पर और बीड़ी श्रमिकों के लिए अस्पतालों को चलाने के लिए सरकार पर दबाव डालते थे।
बहरामपुर
बहरामपुर में कांग्रेस नेता और 16वीं लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी मौजूदा सांसद के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। टीएमसी से उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान हैं, जो गुजरात से आते हैं।
लोकसभा चुनाव में, बहरामपुर को चौधरी के लिए सुरक्षित गढ़ माना जा रहा है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान टीएमसी उम्मीदवारों ने यहां से जीत हासिल की थी। भाजपा के उम्मीदवार निर्मल कुमार साहा हैं, जो विधानसभा की संख्या पर भी भरोसा कर रहे हैं और रोड शो कर रहे हैं।
लेकिन, मुर्शिदाबाद की पहचान अपने मतदाताओं से जुड़ने की चौधरी की जमीनी अभियान की रणनीति रही है। चौधरी की भारी मतों से जीत सुनिश्चित करने के लिए इलाके में कांग्रेस और वामपंथी कार्यकर्ताओं के बीच एकता का माहौल दिखाई दे रहा है।
दम दम
दम दम लोकसभा क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों में वामपंथियों की भारी मौजूदगी के कारण, इस क्षेत्र में हर दिन बड़ी रैलियां हो रही हैं, जहां सीपीआई(एम) केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती उम्मीदवार हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में लोगों के लिए सत्ताधारी पार्टी की आतंकी रणनीति नई बात नहीं है और इस साल वे 1 जून को मतदान के दिन सुचारू रूप से मतदान करना चाहते हैं। लाल झंडा जुलूस दम दम में एक रोजमर्रा की घटना है, जहां मौजूदा सांसद, टीएमसी के सौगत रॉय को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। सीपीआई(एम) के नेता पलाश दास ने न्यूज़क्लिक को बताया कि ऐसा कहा जाता है कि बीजेपी के उम्मीदवार शीलभद्र दत्ता उसी विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं को आकर्षित कर पा रहे हैं जिसका वह प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन अन्य विधानसभा क्षेत्रों में ऐसा नहीं है, उन्होंने दावा किया कि बीजेपी का राम मंदिर अभियान इस साल "बुरी तरह से विफल" रहा है।
जादवपुर
जादवपुर लोकसभा सीट पर, एसएफआई के पूर्व राज्य-सचिव सृजन भट्टाचार्य टीएमसी की सयानी घोष को कड़ी टक्कर दे रहे हैं, जो अभिनेत्री हैं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें मैदान में उतारा है। भाजपा के उम्मीदवार अनिर्बान गांगुली हैं, जिनका अभियान काफी निष्क्रिय लग रहा है, कम से कम जब दीवार लेखन में यह स्पष्ट नज़र आता है। सीपीआई(एम) नेता अरिंदम मुखर्जी ने कहा कि, भट्टाचार्य को अपनी रैलियों में युवाओं, महिलाओं, छात्रों और श्रमिक वर्ग के लोगों की भीड़ मिल रही है। टीएमसी ब्लॉक अध्यक्ष और उम्मीदवार राणा सरदार ने वाम उम्मीदवार द्वारा किए गए विशाल शक्ति प्रदर्शन को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने कहा कि बहुत कुछ मतदान के दिन "समीकरण" पर निर्भर करेगा, उन्होंने संकेत दिया कि वामपंथी मतदाताओं का मतदान कम होगा और टीएमसी "बीजेपी के दूसरे नंबर की भूमिका निभाने से संतुष्ट होगी"।
श्रीरामपुर
टीएमसी का गढ़ माने जाने वाले इस सीट पर सीपीआई(एम) ने युवा नेता दीपशिता धर को मैदान में उतारा है, जो लगभग हर दूसरे दिन सुर्खियां बटोर रही हैं। अपने उत्साह और मतदाताओं के साथ गपशप के साथ दीपशिता धर की सोशल मीडिया पर भारी मौजूदगी है। उनके प्रतिद्वंद्वी टीएमसी सांसद और वकील कल्याण बनर्जी हैं, जो अपने घमंडी रवैये के लिए जाने जाते हैं। बीजेपी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता कबीर शंकर बोस को मैदान में उतारा है। हालांकि, इस चुनाव में भी, भाजपा का राम मंदिर अभियान विफल होता दिख रहा है, धार के आक्रामक अभियान के कारण बनर्जी भी अपने भाषणों में नियमित रूप से सीपीआई (एम) पर हमला कर रहे हैं।
कोलकाता दक्षिण
ममता बनर्जी के गढ़ में, वाम ने सायरा शाह हलीम को उम्मीदवार बनाया है, जिन्होंने पिछले विधानसभा उपचुनाव में बालीगंज से चुनाव लड़ा था और स्थिति लगभग पलट दी थी, जिससे भाजपा तीसरे स्थान पर आ गई थी। वह अपने अभियान को अपने निर्वाचन क्षेत्र के कोने-कोने में ले जा रही हैं, लेकिन राज्य प्रशासन की सहायता से टीएमसी समर्थकों ने कालीघाट में हरीश मुखर्जी रोड पर उस इलाके में प्रचार करने की इज़ाजत नहीं दी गई, जहां मुख्यमंत्री रहती हैं।
प्रशंसित हिंदी फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की भतीजी, हलीम, एक सामाजिक कार्यकर्ता, बंगाल के 'पीपल्स डॉक्टर' डॉ. फवाद हलीम की पत्नी हैं। वह चुनावी लड़ाई को दीदी के मैदान में ले जा रही हैं, जहां टीएमसी ने कलकत्ता निगम की अध्यक्ष माला रॉय को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने देबाश्री चौधरी को मैदान में उतारा है।
बशीरहाट
दक्षिण बंगाल की यह लोकसभा सीट संदेशखाली प्रकरण को लेकर चर्चा में है, जहां हाल ही में यौन उत्पीड़न और जमीन हड़पने की खबरें आम रही हैं, जिनके बड़ी खबर बनने के बाद टीएमसी को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। सीबीआई और ईडी द्वारा संदेशखाली के प्रमुख टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी से, यह उम्मीद की जाती है कि सीपीआई(एम) या बीजेपी को फायदा होगा।
सीपीआई(एम) ने अपने संदेशखाली नेता और पूर्व विधायक निरापद सरदार को मैदान में उतारा है। संदेशखाली आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए उन्हें हाल ही में ममता बनर्जी की पुलिस ने जेल में डाल दिया था। भाजपा ने संदेशखाली आंदोलन के चर्चित चेहरों में से एक रेखा पात्रा को मैदान में उतारा है। टीएमसी ने पूर्व सांसद हाजी नुरुल इस्लाम को मैदान में उतारा है।
कृषि यूनियन के नेता निरापद सरदार मजदूर वर्ग के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। हालांकि, टीएमसी और बीजेपी दोनों ही पहचान की राजनीति करते हैं। इलाके बड़े अल्पसंख्यक वोट होने के नाते दोनों युद्धरत दलों के लिए मैदान खुला है।
2019 के लोकसभा चुनावों की तरह राज्य के कोने-कोने में चुनाव प्रचार फैलने से, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में वामपंथी राजनीति से "सावधान" रहने का संदेश दिया जा रहा है और नियमित समाचारों में वाम-कांग्रेस गठबंधन के अभियान को कम महत्व दिया जा रहा है।
जो बाइनरी बनाई जा रही है उसके मुताबिक केवल दो पार्टियां हैं - टीएमसी और बीजेपी। वास्तव में, यदि कोई मैदान में सभी दलों के चुनाव प्रचार के तरीके की जांच करे तो यह एक खराब अध्ययन पाया जाएगा। वाम मोर्चा अभियान की एक पारंपरिक शैली का संचालन करके खड़ा है जो लोगों से लोगों के संपर्क पर केंद्रित है, जबकि भाजपा, टीएमसी और कांग्रेस मुख्य रूप से मीडिया, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पैसे के बदले अभियानों पर भरोसा कर रहे हैं।
लाल झंडे की तरक्की या अभियान साथ ही वाम-कांग्रेस गठबंधन द्वारा उठाए गए मुद्दे, जैसे धर्मनिरपेक्षता, 'रोटी, कपड़ा और मकान' को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पूरी तरह से नजरअंदाज का रहा है, जो अक्सर निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
इसके अलावा, पहचान-आधारित सोशल इंजीनियरिंग क्षेत्रीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा चलाए जा रहे अभियान में सबसे आगे है, जो जानबूझकर पिछले पंचायत चुनावों के परिणामों का उल्लेख नहीं कर रहा है, जिसमें वामपंथियों को 22.5 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था, जबकि भाजपा की हिस्सेदारी में गिरावट आई थी जो मात्र 22 फीसदी रह गई थी।
न्यूज़क्लिक ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में पत्रकारिता और जनसंचार के प्रोफेसर अंजन बेरा से बात की, जिन्होंने कहा कि चुनाव अभियान, जैसा कि राज्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिखाया जा रहा है, मीडिया जगत के कॉर्पोरेट मालिकों को खुश करने के लिए निर्देशित किया गया था।
“कोई भी देख सकता है कि भाजपा ने चुनावी बांड के जरिए 60 फीसदी से अधिक कॉर्पोरेट चंदा बटोरा था, और टीएमसी 1,400 करोड़ रुपये बटोर कर दूसरे स्थान पर है। यह एक मालिक और दूसरे मालिक की सेवा करने वाला मीडिया है। उनकी मीडिया रणनीति मीडिया के समय को तदनुसार विभाजित करने की है। उनके लिए वामपंथी और कांग्रेस "फ्रिंज प्लेयर्स" हैं। सीपीआई(एम) ने चुनावी बांड का एक पाई भी नहीं लिया है। इसलिए, बाइनरी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए काफी उपयुक्त है जिससे उनका वर्ग उद्देश्य पूरा होता है।
बेरा ने वामपंथी ताकतों के प्रति मीडिया की "अत्याचार" की ओर इशारा किया, जिसमें उसने पहले ही "सांप्रदायिक ताकतों की जीत" का इशारा दे दिया है।
उन्होंने कहा कि, “पश्चिम बंगाल में, वाम विरोधी मीडिया दोनों पार्टियों में से किसी एक पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह आसानी से दिखाया जा सकता है कि ममता बनर्जी 10 साल तक भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए शासन का हिस्सा रही थी। लेकिन इस इतिहास को मीडिया द्वारा जानबूझकर नहीं दिखाया जा रहा है।”
बेरा ने कहा कि, भ्रष्टाचार, घोटाले, दंगे, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, धर्मनिरपेक्षता, संवैधानिक मूल्य सभी मीडिया, खासकर टीवी चैनलों के लिए गौण मुद्दे हैं।
“टीएमसी द्वारा वामपंथी उम्मीदवारों पर हमले की खबरों पर मीडिया का ध्यान नहीं जा रहा है। किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है, न ही चुनाव आयोग ने हिंसा के इन कृत्यों पर कोई कार्रवाई की है। उन्होंने कहा कि मीडिया पर छोड़ दिया जाए जो बता रही है कि भाजपा "असली विपक्ष" है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील सजल गांगुली ने कहा कि: "बंगाल में, जो हम देख रहे हैं वह पेड न्यूज नहीं है, बल्कि बीजेपी और टीएमसी के समर्थन में "पेड कॉर्पोरेट-प्रेरित मीडिया अभियान" है।
उन्होंने कहा कि पहले चुनाव आयोग और प्रेस काउंसिल इन सब का संज्ञान लेती थी, लेकिन इस बार सब चुप हैं।
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Bengal: Left-Congress Alliance Fights Corporate Media’s Binary Narrative
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