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ख़बरों के आगे–पीछे: भाजपा का सामना फिर बांग्ला अस्मिता से

ममता ने देवियों और बांग्ला अस्मिता का मुद्दा उठा कर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का एजेंडा तय कर दिया। ममता ने भाजपा पर भाषायी आतंकवाद फैलाने का भी आरोप लगाया।
mamta bangali asmita

ईडी के बहाने सरकार को सुप्रीम नसीहत

प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को लेकर केंद्र सरकार पर अब तक जो आरोप विपक्षी दल लगाते रहे हैं, उनकी पुष्टि अब एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने भी कर दी है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने बीते सोमवार ईडी को जो लताड लगाई है, वह असल में केंद्र सरकार के लिए ही है। जस्टिस गवई ने जब कहा कि राजनीतिक लडाई अदालत में नहीं बल्कि जनता के बीच लड़ी जानी चाहिए, तो उनका इशारा ईडी की ओर नहीं, बल्कि केंद्र सरकार और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की ओर था। 

मामला कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती से जुड़ा हुआ था। मैसुरू शहरी विकास प्राधिकरण से जुड़े मामले में पार्वती को हाई कोर्ट से मिली राहत को ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। ईडी की याचिका को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन के पीठ ने साफ कर दिया कि सिद्धारमैया और उनकी पत्नी के खिलाफ मामला राजनीति से जुड़ा हुआ है। चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि राजनीतिक लड़ाइयों के लिए ईडी का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इसके बाद एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ने याचिका वापस ले ली। चीफ जस्टिस की नाराजगी यहीं पर नहीं थमी। उन्होंने वकीलों को समन भेजे जाने के मामले में भी कहा कि ईडी ने सारी सीमाएं पार कर दी है। वरिष्ठ वकील अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन भेजे जाने के लिए ईडी को फटकार लगाई और कहा कि वह किसी को सलाह देने या कोर्ट में उसकी पैरवी करने के लिए वकीलों को समन नहीं भेज सकती है। 

भाजपा का सामना फिर बांग्ला अस्मिता से

पश्चिम बंगाल में भाजपा को एक बार फिर ममता बनर्जी के बांग्ला अस्मिता वाले दांव का सामना करना होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने इस दांव के सहारे भाजपा को चित किया था। उन्होंने 'खेला होबे’ का नारा दिया और साथ ही जय श्रीराम के बरक्स जय मां काली का नारा भी लगवाया था। वे इस बार फिर 'मां माटी मानुष’ के नारे पर काम कर रही हैं। उन्होंने 21 जुलाई को शहीद दिवस के कार्यक्रम में देवियों और बांग्ला अस्मिता का मुद्दा उठा कर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का एजेंडा तय कर दिया। ममता ने आरोप लगाया कि बांग्ला बोलने वालों को भाजपा शासित राज्यों में प्रताड़ित किया जा रहा है। ममता बनर्जी ने भाजपा पर भाषायी आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया। 

सबको पता है कि भाषा का मुद्दा दक्षिण भारत की तरह पश्चिम बंगाल में भी बहुत संवेदनशील है। भाजपा की मुश्किल यह है कि ममता की इस राजनीति का जवाब देने के लिए उसके पास बांग्ला अस्मिता वाला कोई मजबूत नेता नहीं है। ममता ने दूसरा दांव दुर्गा आंगन का चला है। उन्होंने कहा है कि जैसे दीघा में जगन्नाथ धाम का निर्माण कराया है, वैसे ही दुर्गा आंगन का निर्माण भी होगा, जहां लोग हर समय मां दुर्गा का दर्शन-पूजन कर सकेंगे। गौरतलब है कि अभी साल में एक बार दुर्गापूजा के लिए लोग पंडालों में जाते हैं। ममता जानती हैं कि भाजपा मंदिर और जय श्रीराम का नारा लगाएगी। इसलिए उन्होंने काली और दुर्गा के साथ बांग्ला अस्मिता को जोड़ दिया है।

जस्टिस वर्मा पर कांग्रेस का रुख़ इसलिए बदला

वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला बहुत दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस ने इस मामले में अपना रुख बदल लिया है। पहले कांग्रेस के नेता कह रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट की जांच के आधार पर महाभियोग की कार्रवाई शुरू नहीं हो सकती। इसी तरह कांग्रेस के नेता यह भी कह रहे थे कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के दूसरे जज जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर अगर भाजपा साथ नहीं देती है तो जस्टिस वर्मा के मामले में विपक्ष साथ नहीं देगा। गौरतलब है कि जस्टिस शेखर यादव ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में सांप्रदायिक बयान दिया था लेकिन उनके खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने रोक दिया था। अब कांग्रेस ने इन दोनों मुद्दों को छोड़ दिया है और महाभियोग प्रस्ताव पर दस्तखत कर दिए हैं। दोनों सदनों में विपक्ष के 215 सांसदों के समर्थन से महाभियोग प्रस्ताव रखा गया है। अब सवाल है कि कांग्रेस ने क्यों अपना रुख बदल लिया? दरअसल कांग्रेस को लग रहा है कि जस्टिस यशवंत वर्मा को लेकर जनता की राय बन गई है और लोग उनके घर से मिले पांच-पांच सौ रुपये के नोटों के बंडल को सही मान रहे हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस तकनीकी आधार पर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का विरोध करती है तो यह धारणा बनेगी कि कांग्रेस भ्रष्टाचार का समर्थन कर रही है। इसलिए कांग्रेस ने महाभियोग का समर्थन करने का फैसला किया।

संघ-भाजपा के नए दुलारे पुष्कर धामी

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नए दुलारे के तौर पर उभर रहे है। संघ में भी उनकी खूब वाहवाही है तो भाजपा नेतृत्व भी उनके कामकाज को लेकर गदगद है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उनकी तारीफ करते हुए कहा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने निवेशक सम्मेलन में मिले प्रस्तावों को जमीन पर उतार दिया है। उन्होंने कहा कि एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की परियोजनाओं को धरातल पर ला देना बहुत बड़ी बात है। गौरतलब है कि उत्तराखंड निवेशक सम्मेलन में 3.56 लाख करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव मिला था, जिसमें से एक लाख करोड़ रुपए का निवेश आ गया है। यह भी कहा गया कि राज्य में 80 हजार नई नौकरियों के अवसर बने हैं। इसी तरह उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य बना है, जिसने समान नागरिक संहिता लागू की है। यह संघ और भाजपा का पुराना एजेंडा रहा है, जिस पर धामी की सरकार ने अमल किया है। उत्तराखंड मॉडल पर ही दूसरे भाजपा शासित राज्यों भी समान नागरिक संहिता लागू करने की बात हो रही है। सो, शासन के अलावा वैचारिक मुद्दों पर भी धामी की तारीफ हो रही है। धामी की सरकार खोज-खोज कर उत्तराखंड के मुस्लिम नाम वाले गांवों-कस्बों के नाम बदल रही है। इसे लेकर न तो ज्यादा प्रचार हो रहा है और न कोई विवाद हो रहा है। भाजपा की दूसरी पीढ़ी के जितने नेता मुख्यमंत्री बने है उनमें धामी एकमात्र है, जिनका कामकाज अच्छा माना जा रहा है।

अब महाराष्ट्र में सीडी कांड की धूम

कर्नाटक का सीडी कांड तो कांग्रेस में ही विवाद का कारण बन कर रह गया है लेकिन महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सेक्स सीडी को बड़ा स्कैंडल बनाने का फैसला किया है। प्रदेश कांग्रेस के तीनों शीर्ष नेता इस मसले पर एक राय हैं। पहले महाराष्ट्र के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने 50 से ज्यादा सीडी होने की बात कही है। उसके बाद विधायक दल के नेता विजय वड्डेटीवार ने कहा कि ये सीडी बहुत विस्फोटक हैं। उन्होंने आगे बढ़ कर यह भी दावा किया कि ऐसी ही सीडीज के दम पर ही एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस इन सीडी से पैसा कमाना चाहे तो करोड़ों रुपये कमा सकती है। बाद में कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल भी सीडी राजनीति में कूद गए है और भाजपा व एकनाथ शिंदे की पार्टी को कठघरे में खड़ा किया है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस का इरादा भाजपा में और उसके नेतृत्व वाली महायुति यानी गठबंधन में विवाद पैदा करने का है। कांग्रेस मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को भी कमजोर करने का दांव चल रही है। गौरतलब है कि बहुत जल्दी मुंबई सहित कई महानगरों में स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं। कुल मिला कर कांग्रेस इन चुनावों में भाजपा गठबंधन को बैकफुट पर लाने के प्रयास कर रही है। भाजपा के कई नेता भी मान रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जीती फिर विधानसभा हारी तो अब निकाय चुनाव में उसे जीत मिल सकती है।

पूर्व प्रधान न्यायाधीशों का नया ठिकाना

भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी अब रिटायर नहीं होते हैं, क्योंकि रिटारमेंट से पहले ही उनके लिए सेवा विस्तार की योजना तैयार रहती है। ग्रेट इंडियन एक्सटेंशन प्लान के तहत वे रिटायर ही नहीं होते हैं और अगर रिटायर हो जाते हैं तो कहीं न कहीं उनके पुनर्वास का अच्छा इंतजाम हो जाता है। हाल ही में केंद्रीय गृह सचिव को एक साल का सेवा विस्तार मिला है। पहले सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश भी रिटायर होते थे तो उनको कहीं अच्छी जगह मिलती थी। लेकिन अब तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का पद भी उनसे दूर हो गया है। पहले उस पद पर सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश ही नियुक्त होते थे। लेकिन जस्टिस अरुण मिश्र से यह परंपरा टूटी और अब राजनीतिक नियुक्ति होने लगी है। इसलिए पूर्व प्रधान न्यायाधीशों का नया ठिकाना बनी हैं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी। अभी हाल में रिटायर हुए दो प्रधान न्यायाधीश दो नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक बने हैं। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीय पद से रिटायर हुए जस्टिस संजीव खन्ना अब नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी हिमाचल प्रदेश में कानून के छात्रों को पढ़ाएंगे। उनसे पहले प्रधान न्यायाधीश के पद से रिटायर हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली में प्राध्यापक का पद मिला था। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस चंद्रचूड़ दोनों विशेष प्राध्यापक नियुक्त हुए हैं।

देश भर में होंगे संघ के शताब्दी समारोह 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं और इस मौके पर उसने कई बड़े समारोहों की तैयारी शुरू कर दी है। पिछले दिनों संघ के प्रांत प्रचारकों की एक अहम बैठक दिल्ली में हुई थी, जिसमें शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों को लेकर चर्चा हुई। बताया जा रहा है कि संघ के मुख्यालय नागपुर से लेकर देश के हर हिस्से में लगने वाली शाखा तक शताब्दी समारोह मनाया जाएगा। दिल्ली की बैठक में एक अहम बात यह तय हुई कि संघ खुल कर महात्मा गांधी को अपनाएगा। गौरतलब है कि संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन हुई थी। सो, हर साल अंग्रेजी कैलेंडर की बजाय हिंदी कैलेंडर के मुताबिक विजयादशमी के दिन संघ का स्थापना दिवस मनाया जाता है, जो इस साल दो अक्टूबर को यानी महात्मा गांधी की जयंती के दिन आ रहा है। उस दिन एक तरफ संघ की पारंपरिक शस्त्र पूजा होगी तो दूसरी ओर महात्मा गांधी की रामधुन भी बजाई जाएगी। यह तय किया गया है कि संघ मुख्यालय में और बड़े शहरों में समारोह होंगे और साथ ही जहां भी संघ की शाखा लगती है वहां निश्चित रूप से शाखा लगा कर कार्यक्रम होंगे। सभी पुराने स्वयंसेवकों को शाखा में पहुंचने को कहा जा रहा है। इसी तरह जिस शाखा में सौ या उससे ज्यादा सक्रिय सदस्य होंगे वहां पथ संचलन होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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