चुनाव 2019: उत्तर प्रदेश में भाजपा कैसे हार सकती है!

2014 में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा और उसके सहयोगियों ने उत्तर प्रदेश में एक शानदार और अविश्वसनीय जीत हासिल कर सत्ता में वापसी की थी, यहाँ भाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीती थीं, और दो अन्य सीटें उसके सहयोगियों ने जीती थीं। यूपी में भाजपा द्वारा जीती गई सीटें लोकसभा में उनकी कुल 282 सीटों का एक चौथाई हिस्सा हैं। इसलिए, इस बार भाजपा का इस राज्य में अच्छा प्रदर्शन करना महत्वपूर्ण है।
हालांकि, एक बार फिर उसी तरह की सफ़लता न केवल मुश्किल है बल्कि नामुमकिन (असंभव) लग रही है। इसके दो कारण हैं: चुनावी गणित और जनअसंतोष।
अंकगणित- और विपक्ष की एकता
2014 में, यूपी में चार प्रमुख ताक़तें चुनाव लड़ रही थीं: भाजपा और उसके सहयोगी, समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), कांग्रेस और उसके सहयोगी। भाजपा को क़रीब 42 फ़ीसदी वोट मिले, जो कुल वोटों का निर्णायक हिस्सा है। लेकिन तीन साल बाद, 2017 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा के वोट शेयर में गिरावट शुरू हो गई थी, और यह लगभग 40 प्रतिशत वोट शेयर पर आ गया। जो 403 सदस्यीय विधानसभा में 312 सीटों लाने के लिए पर्याप्त था, जबकि इसके सहयोगियों को 13 सीटें मिली थीं।
इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि तीन मुख्य विपक्षी दलों ने मिलकर विधानसभा चुनावों में 52 फ़ीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे।
2019 में, दो मुख्य विपक्षी दल- सपा और बसपा चुनाव में एक साथ आ रहे हैं, और उन्होंने अजीत सिंह के नेतृत्व वाले रालोद(राष्ट्रीय लोक दल) के साथ भी गठबंधन किया है, जिसका पश्चिमी यूपी के कुछ हिस्सों में आधार है। अगर इस एकता के आधार पर वोट डाले जाते हैं तो लोकसभा परिणाम क्या होंगे? न्यूज़क्लिक एनालिटिकल टूल द्वारा विकसित मानचित्र, कुछ निम्न परिणाम दिखाता है:
परिणाम आश्चर्यजनक हैं: इस विश्लेषण से सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को 50 सीटें मिलेंगी जबकि भाजपा और उसके सहयोगी दलों को सिर्फ़ 30 के साथ गुज़ारा करना होगा।
इस गठजोड़ में कांग्रेस को भी शामिल करने की कोशिश की गई है, हालांकि चीज़ें अभी तक साफ़ नहीं हुई हैं। लेकिन अगर ऐसा होता है, तो तस्वीर आगे और बदल जाएगी, जैसा कि नीचे दिए गए नक़्शे में दिखाया गया है:
सपा-बसपा-रालोद-कांग्रेस के महागठबंधन को 64 सीटें मिलेंगी, जबकि भाजपा गठबंधन को मात्र 16 सीटें ही मिल सकती हैं।
चूंकि सपा, बसपा और रालोद गठबंधन पहले से ही तय है, और शायद कांग्रेस भी इस गठबंधन में शामिल हो सकती है, तो यूपी में बीजेपी की हार की काफ़ी संभावना है, अकेले अगर चुनावी अंकगणित से ही अंदाज़ा लगाया जाए।
मोदी की विफ़लता का प्रभाव
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चुनाव सिर्फ़ गणितीय गणना आधार पर जीते या हारा नहीं जाते हैं। लोगों ने 2014 में मोदी का समर्थन किया, और 2017 में लोगों में नीरसता थी और वे भाजपा के सभी शानदार वादों जिसमें- नौकरियों, किसानों को उच्च मूल्य, बेहतर शिक्षा, प्रभावी स्वास्थ्य सेवा, भ्रष्टाचार से मुक्ति, शांतिपूर्ण समाज प्रदान करना शमिल था, ने उसे प्रदेश की सत्ता में ला दिया। हालांकि, इन सभी वादों पर, वह बुरी तरह से विफ़ल रहे हैं। लोगों के पास उन्हें अपना समर्थन जारी रखने का कोई कारण नहीं है। आने वाले चुनावों में मोदी और बीजेपी से उनका दूर होना तय है।
यदि हम संयुक्त विपक्ष की वजह से मानें कि बीजेपी के पक्ष में माहौल नही हैं, तो परिणाम 2017 के विधानसभा चुनाव परिणामों से नाटकीय रूप से भिन्न होंगे, जैसा कि नीचे दिए गए नक़्शे में दिखाया गया है।
मान लीजिए, पांच फ़ीसदी मतदाता विपक्ष को वोट देने के लिए भाजपा और उसके सहयोगियों से दूर हो जाते हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों के अनुमानों से पता चलता है कि भाजपा और उसके सहयोगी केवल 14 सीटों में सिमट जाएंगे, जबकि विपक्ष को 66 सीटें मिलेंगी। यह तब भी होगा जब विपक्ष पूरी तरह एकजुट नहीं होगा, और कांग्रेस अलग से चुनाव लड़ रही होगी।
अगर कांग्रेस भी इस महागठबंधन में शामिल हो जाती है, तो भाजपा का सफ़ाया हो जाएगा, इसे सिर्फ़ एक सीट मिल पाएगी जबकि विपक्ष को 80 में से 79 सीटें मिलेंगी।
नीचे दिए गए नक़्शों के अनुसार, भाजपा से दूर जाने और विपक्षी दलों को वोट देने के लिए अगर सिर्फ़ दो फ़ीसदी मतदाताओं का रूढ़िवादी अनुमान लगाया जाता है तब भी भाजपा को निर्णायक हार का सामना करना पड़ेगा। अगर सपा-बसपा और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं, तो सपा-बसपा गठबंधन को 56 सीटें मिलेंगी, जबकि भाजपा गठबंधन को 24 सीटों पर सब्र करना होगा। दूसरी ओर, अगर सपा, बसपा और कांग्रेस एक साथ गठबंधन करते हैं, और तब भी भाजपा से दो प्रतिशत मतदाता दूर होते हैं, तो महागठबंधन 78 सीटों के साथ भारी बहुमत से भाजपा को पछाड़ देगा।
इसलिए, आने वाले चुनावों में यूपी में बीजेपी की जीत की संभावनाएँ बहुत कम हैं। और इससे लोकसभा में उनकी ताक़त बुरी तरह से प्रभावित होगी।
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