चुनाव 2019 : एक दिल्ली ऐसी भी जिसे सिर्फ़ वोट के समय याद किया जाता है

एक दिल्ली ऐसी भी है जहाँ आज भी पीने का पानी, गंदे पानी की निकासी और अन्य मूलभूत सुविधाओं का घोर आभाव है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि ऐसे इलाकों में वही लोग बसते हैं जिनके दम पर दिल्ली जैसे शहर की चकाचौंध दिखती है। ये दिल्ली के मेहनतकश मज़दूर हैं जो इन बस्तियों में रहते हैं। जो शहर को तो रौशन करते है लेकिन उनकी खुद की जिंदगी अंधकारमय है।
दिल्ली सिर्फ कनॉट प्लेस और नार्थ एवन्यू जैसे इलाके नहीं है, जहाँ अधिकतर मीडिया वाले जाकर बहस करते हैं, बल्कि ये अनाधिकृत और झुग्गी बस्ती हैं जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। इन बस्तियों में दिल्ली की बहुत बड़ी आबादी रहती है। सीपीआर के मुताबिक इन इलाकों में तकरीबन 50 लाख लोग रहते हैं।
हर चुनाव से पहले इनसे हर बार वादे किये जाते हैं और लोग भी इसी उम्मीद में वोट करते हैं कि अबकी बार कुछ बेहतर होगा लेकिन उनकी हालत चुनाव के बाद जस की तस बनी रहती है। एक बार फिर दिल्ली में चुनाव है। यहां कुल सात लोकसभा सीटों के लिए 12 मई को छठे चरण में वोट डाले जाएंगे।न्यूज़क्लिक की टीम ने कई अनाधिकृत कालोनी का दौरा किया और जानने की कोशिश की कि उनके मुद्दे क्या हैं और चुनाव को लेकर वे किस प्रकार से सोच रहे हैं। सरकार की नीतियों से उनकी ज़िंदगी किस तरह से प्रभावित हो रही है।
पूर्वी दिल्ली के झिलमिल औद्योगिक क्षेत्र के पास सोनिया कैंप के इलाके में तक़रीबन 52 वर्षीय गोविंद हमें मिले। गोविंद आज से तकरीबन 7 साल पहले ट्रक ड्राइवर थे लेकिन उनका साल 2012 में पेट का ऑपरेशन हुआ, जिसके बाद से उनकी एक किडनी फेल हो गई और वो कोई भारी काम नहीं कर सकते थे। इसके साथ ही उनकी आँखों की रोशनी काम हो गई है| इसके बाद भी आज वो छोटी गाड़ी चलाते हैं, हमने उनसे बात की, पूछा कि वो अपना इलाज क्यों नहींकराते हैं, तो उनका जवाब था कि “अगर मैं अपना इलाज कराउंगा तो मेरा परिवार कैसे चलेगा।” क्योंकि सरकारी अस्पताल में जल्दी इलाज होता नहीं और प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने की स्थिति नहीं है, क्योंकि चार लोगों का परिवार है और मैं अकेला कमाने वाला हूँ।
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गोविंद की ये जो हालत है वो सिर्फ उनकी नहीं है ऐसी कई कहानियां इन बस्तियों में हैं और इस सबकी वजह सरकार का इनके प्रति उदासीन रैवया है।
पूर्वी दिल्ली के ही एक अन्य इलाके सीमापुरी का हाल भी कुछ बेहतर नहीं है। वहां रह रहे लोगों ने बताया कि आज से तकरीबन 40 साल पहले दिल्ली के कई इलाकों से लोगों को उजाड़कर इस इलाके में बसाया गया था लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद आज भी यहाँ पीने के पानी से लेकर गंदे पानी की निकासी और सफाई का कोई इंतज़ाम नहीं है। बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याएं यहां बनी हुई हैं। इसके अलावा इस इलाके में कानून व्यवस्था एक गंभीर सवाल है।
सीमापुरी के आरडब्लूए (RWA) के सचिव ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बताया कि अबतक की सभी सरकारों ने हमारे साथ वादाखिलाफी की। यहां तक की पिछले चुनावों में हमने आम आदमी पार्टी को बड़ी उम्मीद से समर्थन किया था, लेकिन उन्होंने भी हमारे साथ वही किया जो पिछली सरकारों ने किया था।आज भी हम गंदा पानी पीने को मज़बूर हैं।
भलस्वा डेयरी में एक व्यापारी दीपक, भारतीय जनता पार्टी के स्वच्छ भारत मिशन के बारे में बात करते हैं। उनका कहना है कि “क्या यह स्वच्छ भारत है?हम वर्षों से कर का भुगतान कर रहे हैं। अभी भी हम एमसीडी कर्मचारियों के बारे में सुनते हैं कि उन्हें उनके वेतन का भुगतान नहीं किया गया है?" उनका आगे तर्क है कि इन क्षेत्रों में अंधाधुंध निर्माण एक गंभीर चुनौती है और इसीलिए बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए नियमितीकरण किया जाना चाहिए।
संसदीय क्षेत्र उत्तर पूर्वी दिल्ली की करावल नगर विधानसभा जो भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का संसदीय क्षेत्र है, इस क्षेत्र में भी जीवन जीने के लिए जो भी बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए वो भी नहीं हैं। लोगों का कहना है कि चाहे वो पीने का पानी हो या सीवर, लाखों लाख की आबादी पर स्कूल है, इस पूरे क्षेत्र में एक भी अस्पताल तो छोड़िए एक भी ठीक सा स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। ऐसे में सांसद महोदय ने अपनी संसद निधि का धन भी खर्च नहीं किया। वो पांच साल तक अन्य काम करने से चर्चा में रहे लेकिन इलाके से गायब रहे।
इस पूरे इलाके में उनके खिलाफ भारी नारजगी दिखी। भाजपा केवल राष्ट्रवाद के नाम पर अपने नकामी छुपा रही है। राजकुमार जो एक शिक्षक हैं, उन्होंने कहा कि पिछली बार तो मोदी के नाम पर जीत गए लेकिन इस बार उनके काम पर सवाल होगा। उनसे जवाब लिए बिना लोग उन्हें छोड़ेंगे नहीं।
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इन जितने भी इलाकों हमने दौरा किया उनमें कुछ समस्याएं तो एक जैसी थी, जैसे पिछले कुछ समय में दिल्ली सरकार ने सार्वजानिक वितरण प्रणाली के सुधार के लिए कई नए सेंटर खोले जिससे लोगों को फायदा पहुंचना था लेकिन यही लोगों के लिए समस्या का कारण बन गए हैं क्योंकि लोगों की राशन दुकनों को बहुत दूर दूर भेज दिया गया है, जिससे उन्हें राशन लेने भारी दिक्क्त होती है। इसके अलावा ये राशन की दुकानें महीने के शुरुआती कुछ दिन ही खुलती हैं जिससे काफी लोगों इससे बाहर रह जाते हैं।
एक दूसरी सबसे बड़ी समस्या जो लोगों ने बताई कि पिछले दो तीन साल से पानी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि दिल्ली में लगतार भू-जल स्तर में गिरावट आई है जिससे हैंड पंप से पानी आना बंद हो गया। इन क्षेत्रों में पानी का प्राथमिक स्रोत हैंडपंप ही है क्योंकि अभी तक इन क्षेत्रों में जल बोर्ड का सप्लाई वाला पानी नहीं पहुंचा है। ऐसे अब लोग मज़बूरी में आकर सबमर्सिबल लगा रहे हैं जो क़ानूनी रूप से गलत है लेकिन इनके पास कोई और चारा भी नहीं है। मीना जो झिलमिल औद्योगिक क्षेत्र में रहती हैं उन्होंने कहा कि वो दो से चार लोग मिलाकर सबमर्सिबल लगवाते है क्योंकि इसकी लागत 20 हज़ार से अधिक है। इसके साथ ही ये लगवाने के लिए पुलिस भी हम से मोटी राशि वसूलती है।
ज़मीन का मालिकाना हक़
अनाधिकृत कालोनियों में जमीन पर मालिकाना हक की अभी भी लड़ाई है। कई रिपोर्टों से पता चलता है कि लोग यहाँ अपनी संपत्ति के बदले ऋण नहीं ले सकते हैं और इन इलाकों के नियमितीकरण को लेकर लंबी बहस होती रही है लेकिन अबतक कोई समाधान नहीं हुआ है।
अनाधिकृत कालोनियों में मुख्य रूप से कृषि भूमि पर स्थानीय ज़मीदारों और सरकारी भूमि का स्वामित्व है। इन इलाकों के नियमितीकरण में अंधाधुंध निर्माण एक बड़ी समस्या बन गया है। इस तरह की एक समस्या से निपटने के लिए सुझाव दिया गया था कि पचास प्रतिशत खुले क्षेत्र को आगे के निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। परन्तु इसको लेकर भूमि मालिकों को इस पर आपत्ति रही है। केंद्र सरकार ने अनाधिकृत कालोनियों को नियमितीकारण में अड़चन को हल करने के लिए 10 सदस्यी पैनल नियुक्त किया है लेकिन इसकी टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि चुनाव से पहले एक बार फिर इन लोगों को लालीपॉप थमाने जैसा है।
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