आखिर रतिया मार्ग के लड़कों की शादियां क्यों नहीं हो रही हैं?

आज कल आप अर्बन नक्सल के बनाये हुए भ्रमजाल से रूबरू हो रहे होंगे। लेकिन इस पिक्चर स्टोरी के जरिये अर्बन बारिश की हकीकत से रूबरू होने की कोशिश कीजिये। अभी दो दिन पहले ही दिल्ली में खूब बारिश हुई। मौसम विभाग की माने तो तकरीबन 23.5 मिलीमीटर। दिल्ली की तपिश में अचानक से 5 डिग्री सेल्सियस की कमी आ गय। ऐसे माहौल में यह होता है कि जिनकी जीवनशैली मौसम को बदसूरती में बदलती है,वह मौसम को खुबसूरत कहने लगते हैं और जिनकी जीवनशैली पर गरीबी और मजबूरी की बौछारें अधिक पड़ती है,वह मौसम की मार सहने लगते हैं। जब यह ख्याल मन में आया तो आपलोगों तक बरसात की बौछार के अनछुए रंग पहुंचाने के लिए दिल्ली के उस इलाके की तरफ निकल पड़ा जिधर भारत के उन लोगों का एक हिस्सा रहता है,जिनकी जिन्दगी के बलबूते जीडीपी ग्रोथ रेट के आंकडें बढ़ते जरुर है,लेकिन उनकी जिन्दगी के विकास में कोई बढ़ोतरी नहीं होती। यह इलाका है दिल्ली का संगम विहार और संगम विहार का रतिया मार्ग। इसे दिल्ली में रोजगार की तलाश में आये प्रवासी लोगों के संगम का गढ़ कहा जाता है ।
रतिया मार्ग के मुहाने पर स्वागत करने के लिए सबसे पहली मुलाकात गली के इस छोटे से सड़ रहे तालाब से हुई। पानी के इस जमावड़े के किनारे स्थानीय लोहा लक्क्ड़ के व्यापारी सीपी मित्तल दूकान है। इस तालब और रतिया मार्ग के इतिहास,भूगोल और समाज की सबसे पहली पूछताछ इन्हीं से की गयी। मित्तल साहेब ने बताना शुरू किया कि वह तकरीबन 34 साल से दिल्ली के इस इलाके में रह रहे हैं। जब वह आये थें तो यहां जंगल था,उनके सामने ही यह इलाका आबादी से बर्बादी के कागार पर पहुंचा है। साल 1990 के बाद से इस जगह पर आबादी बढ़नी शुरू हुई और साल 2011 तक खूब बढ़ी। बाद में जाकर इसपर लगाम लगा। लेकिन फिर भी हम मौजूद हैं ,इसका मतलब है कि आबादी बढ़ रही है। मैंने यहां पर 50 रूपये से लेकर 10 हजार तक के कमरे भाड़े पर उठते देखें हैं।अब भी यहां पर 500 रूपये तक के कमरे मिल जाते हैं। लोग दिनभर दिल्ली की गलियों में मजदूरी करते हैं और रात काटने के लिए 500 रूपये वाले कमरों में रहते हैं। मेरे दूकान की सड़क ही नहीं बल्कि पूरे रतिया मार्ग की सड़क तकरीबन हर 2,3 साल में टूट जाती है। जिस पानी के जमावड़े के बारें में आप पूछ रहे हैं,वह यहां की सलाना हकीकत है। आप ऐसा न समझिये कि यह केवल बरसात में ही दिखती है। हाँ ,यह जरूर है कि बरसात में स्थिति दुरूह हो जाती है और केवल प्रचंड गर्मी में ही इस पानी के जलजले से निजात मिलती है।
थोड़ा आगे बढ़ने पर सड़क के बीचोंबीच परनाला जैसा कुछ दिखा। सड़क की यह बदहाली समझ से परे थी। सड़क के किनारे मौजूद किराने की दूकान पर जीवन की दोपहर गुजारते लोगों से बात करने की कोशिश की। पहले तो सबने सवालों को चलताऊ तरीके से लिया। लेकिन जब बाद में थोड़ी सी गंभीरता बढ़ी तो स्थानीय निवासी अशोक ने कहा कि सड़क के बीचों बीच बना यह परनाला हमारे नेताओं के आपसी झगड़े का नतीजा है। पानी की निकासी की व्यवस्था के लिए तकरीबन एक-दो महीने पहले सड़कों के बीचोंबीच खुदाई की गयी थी। बाद में इस काम को भाजपा और आप की तनातनी की वजह से रोक दिया गया। जिसकी वजह से सड़कों की जगह परनाले ने ले लिया और अब सड़कों की जगह परनाले दिखाई देते हैं। गड्ढों,पानी के जमावड़ों और परनालों की वजह से अगर थोड़ी बहुत भी ट्रैफिक हुई तो रतिया मार्ग में चार किलोमीटर की दूरी तय करने में तकरीबन दो घंटे लग जाते हैं। यहां की स्थिति इतनी बदहाल है कि दुकानों के सामान मुश्किल से बिक रहे हैं। छोटी मोटी चोरियां करना यहां के बेरोजगार युवाओं का रोजागर बन चुका है। नौजवान लड़के काम के अभाव में दिन में शराब पीते हैं और रात में चोरी करने निकल पड़ते हैं।अंत में जब सवालों और जवाबों का सिलसिला बहुत गम्भीर हो गया तो अशोक ने कंधे पर हाथ रखते हुए कि अगर आप कुछ कर सकते हैं तो यहां के शराब के ठेके बन्द करवा दीजिए। इसकी वजह से यहां की लड़कियों को सबसे अधिक परेशानी झेलनी पड़ती है।
आगे बढ़ने पर परनालों और सड़े हुए तालाब का अंतर मिटता चला जाता है। तभी अचानक कुछ गाएं वहां आवारा पशुओं की तरह घूमती हुई नजर अाई। स्थानीय दुकानदार सीके गुप्ता से पूछा कि गाय तो दिख रही हैं लेकिन गोरक्षक नहीं दिख रहे। तो गुप्ता जी ने जवाब दिया कि सब भक्षक हैं। कोई रक्षक नहीं है। बात आगे बढ़ी तो वह सबके लिए धर्म को दोष देने लगे। कहने लगें कि धर्म को छोड़कर अधर्मी होते समाज की वजह से यह सब बुराइयां आ रही हैं। और केवल मोदी जी ही इन बुराइयों से इस समाज को बचा सकते हैं । तभी अचानक दूसरे स्थानीय नागरिक ने उन्हें रोककर कहा कि इन लोगों की वजह से यहां की स्थितियां और बदतर हो रही है ।असलियत यह है कि यहां से कुछ ही दूरी पर स्थानीय सब्जी मंडी है और सड़कों पर ही घरों से निकलने वाले अपशिष्ट खाद्य पदार्थों का जमावड़ा होता रहता है। इसलिए यहां के कुछ स्थानीय लोगों के घरों पर रहने वाली गाएं सड़कों पर अपने चारे का तलाश करने लिए छोड़ दी जाती है और अनुत्पादक होने पर सड़क ही इन गायों का घर बना जाता है और इन्हें आवारा पशु का नाम दे दिया जाता है ।बाकी सब तो आप जनाते ही हैं कि जिस दुनिया में दो वक़्त की रोटी के लिए भूखे मरने पड़ता है ,वहां आवारा घूम रही गायों को कौन बचाएगा ..
रतिया मार्ग की बदहाल सड़क पर अपने उम्र के अंतिम दौर से गुजर रहे रघुवीर शर्मा से मुलाकात हुई। रघुवीर शर्मा पानी के जमावड़े को पार कर रहे थे। उनका शरीर कांप रहा था। बात करने पर कहा कि मुझे कम्पन की बीमारी है। मेरा शरीर झनझनाता रहता है। फिर भी कहूंगा कि भले जवानी मज़बूरी में शहरों की बदहाली में बीत जाए लेकिन किसी का बचपन और बुढ़ापा शाहरों में न बीते। बाकी मैं कर भी क्या सकता हूं बाबू, सबके दाता राम हैं।
पानी के जमावड़े और बरसात की बौछार से बनने वाले तालाबों से बचने के लिए तकरीबन सभी दुकानदारों ने अपनी दुकान की चौखट पर ऐसी छोटी सी दीवार बना रखी है। फिर भी ये बताते हैं कि बरसात अगर अधिक हुई तो पानी उनके दुकान के भीतर आ ही जाता है और अगर मोटरगाड़ियों की चक्कों ने पानी को तेजी से बाहर उछाला तो गंदे पानी से हमारा भीगना तय है। अब इन परेशानियों की आदत लग चुकी है। और इस आदत में जिंदा रहने के लिए हमने यह जुगाड किया है।
यहां पर सड़क और पानी के जमावड़े का रिश्ता ऐसा है कि बच्चों और स्कूल का रिश्ता टूट जाता है। पानी बरसने का मतलब है कि स्कूल से बच्चों की अनुपस्थिति की गारंटी। इस पूरे इलाके में एक ही ठीक-ठाक प्राइवेट स्कूल है। उसकी भी चौखट पानी के जमावड़े से टूट चुकी थी और मरम्मत का काम चल रहा है। रतिया मार्ग में आसपास कहीं भी सरकारी स्कूल नहीं दिखा। स्थानीय लोगों ने बताया कि स्कूल और बच्चों के खेलने के लिए पार्क की गैरमौजूदगी यहां की एक ऐसी समस्या है ,जिस पर सड़कों की बदहाली के वजह से ध्यान नहीं दिया जाता है। अभी सड़कों और पानी की निकासी ही ऐसी समस्या है जिसके भार के तले रतिया मार्ग की सारी परेशानियां दब जाती है।
पूरे रतिया मार्ग पर सड़कें पानी में डूबी रहती है। लोग सड़कों और प्रशासन से हार मन चुके हैं। इसलिए जुगाड पर उतर आए हैं। पानी से डूब रही सड़कों के किनारे पत्थरों, इंटों, टूटे हुए मकान की दीवारों के टुकड़े का इंतजाम किया गया है।जिनकी जांघों में दम है वे मकानों के सहारे कूदते हुए रतिया मार्ग को पैदल पार करे अन्यथा पैसे खर्च करे और ऑटो या इ रिक्शा सा रतिया मार्ग के कचड़ा सागर को पार करे। यहां पर जरा उनके बारे में सोचिए जिनके पेट में पत्थरी का दर्द उपजता और जिनका चलना मुश्किल हो जाता है। इस जुगाड के तले जिंदगी की असली हकीकत भी दिखने लगेगी।
यह रतिया मार्ग के सड़क पर बना सबसे बड़ा तालाब है। मौके पर अचानक कमाई की तलाश में बैठे एक प्लम्बर से मुलाकात हो गई। प्लम्बर ने बताया कि रतिया के सारे मकानों की पानी की निकासी नालियों से होकर सड़कों पर होती है और सड़कों पर रुककर तालाब बनाती है। हर घरों की यह हालत है कि एक दिन के अंतराल पर पानी आता है और पानी की निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है।अब यह सामने दिख रहा जगह साल भर पानी से भरा रहता है। जिस दिन इस पानी को साफ किया जाएगा, इस पानी से कई मोबाइल फोन निकलेंगे। तकरीबन हर हफ़्ते यहां से गुजरने वाले राहियों में से किसी ना किसी का मोबाइल का इस तालाब में गिर जाता है।
रतिया मार्ग के मुहाने पर पड़ने वाले इस बोर्ड को देखकर लगेगा कि रतिया मार्ग के मालिक दिल्ली प्रदेश के विधायक दिनेश मोहनिया और है ।लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। सीवर लाइन बिछाने की आधिकारिता दिल्ली विधायक के पास है तो टाउन प्लानिंग और ड्रेनेज सिस्टम की अधिकारिता नगरपालिका के पास। सड़क पर बन चुके तालाब को पम्प लगाकर साफ करने की अधिकारिता दिल्ली बाढ़ और सिंचाई विभाग की है तो इन सारे कामों को मिलाजुकार करने की अधिकारिता लोक कल्याण विभाग के पास है। अंत में सबसे जरूरी पहलू दिल्ली प्रदेश और उपराज्यपाल का झगड़ा, जो कुछ होने ही नहीं देता और न ही यह पता चलने देता है कि हाल फिलहाल में इस पूरी समस्या के लिए दोषी किसे ठहराया जाए।
इस पूरे इलाके में जिस किसी से भी बात हुई ,सबने एक बात बताई कि रतिया मार्ग की बदहाली की वजह से यहां के लड़कों की शादियां नहीं हो रही है। इस इलाके का नाम सुनते ही रिश्ते वाले रिश्ता जोड़ने से मना कर देते हैं। लड़कियों की शादियां तो मुश्किल से कर दी जाती है लेकिन बहुत सारे लड़के यहां कुवारें बैठे हैं।
रतिया मार्ग में तकरीबन 5 लाख की आबादी रहती है। इस आबादी के मुकाबले यहां की सड़कें कम चौड़ी है, पूरी आबादी के लिए पानी मिलने और निकासी की व्यवस्था बहुत बुरी है। इतनी बुरी की सड़कों पर जमा होकर कचड़े का तालाब बनाती है। मच्छरों की पैदावार बढ़ती है ।पूरा इलाका बदबू मारता है। यहां की दयनीय स्थिति पर एक स्थानीय नागरिक कहते हैं कि शहरों ने गरीबों के लिए केवल पेट भरने का काम किया है, इसका आलवा शहर हमारे लिए नरक के बराबर है और इस नरक में जिंदा रहने के लिए हमने कई तरह के जुगाड निकले हैं। इनमें से एक जुगाड का नाम है जब तक अपने शरीर को बचाया जा सके तब तक अपने शरीर को बचाने की कोशिश की जाए भले हम सभी को संभालने के लिए जिम्मेदार लोग इस नरक से जीने के लिए जरूरी हवा को भी क्यों न छीन लें।
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