तिरछी नज़र: ग़लत बात, आप हमारे डाके को ‘वोट चोरी’ कहते हैं!

रात का समय था। सारा संसार सो गया था। पर सरकार जी की आँखों से नींद जैसे कोसों दूर थी। उम्र सत्तर पार हो चुकी थी। समझो पिचहत्तर पहुँचने ही वाली थी। वैसे भी इस उम्र में नींद कम ही आती है पर आज नींद कम आने का कारण ही कुछ और था। उन्हें चोर कह दिया गया था। नहीं, नहीं, उन्हें यह चिंता नहीं थी कि उन्हें चोर क्यों कहा गया। उन्हें 'वोट चोर' कहा गया था। उनकी चिंता यह थी कि हम डाका डालें और तुम हमें सिर्फ चोर कहो। यह बात तो ठीक नहीं है। एक डाकू को अगर चोर कहा जायेगा तो उसे चिंता तो होगी ही। कारनामों को डाउनग्रेड करने से किसी को भी चिंता तो होगी ही।
सरकार जी ने यह कारनामा 'केंचुआ' के साथ मिल कर किया है। ध्यान रहे यह 'केंचुआ' वह केंचुआ नहीं है जिसकी रीढ़ की हड्डी नहीं होती है और जो जमीन पर रेंग रेंग कर चलता है। वैसे कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इस 'केंचुआ' और उस केंचूए में अब कोई फर्क नहीं बचा है। पर इस 'केंचुआ' में आदमी होते हैं जो भले ही चरित्र में उस केंचुआ जैसे ही होते हों पर होते आदमी ही हैं। तो हमारे यहाँ इसी 'केंचुआ' की कृपा से, जब सब कुछ नकली बन सकता है, हर तरह का सर्टिफिकेट नकली बन सकता है। किसी की डिग्री तक नकली बन सकती है तो वोट तो नकली बन ही सकते हैं, और बन भी रहे हैं।
हमारे देश में एक कमरे के घर में अस्सी लोगों के वोट बन रहे हैं। मतलब वन बीएचके फ्लैट के पते पर अस्सी वोटर आईडी कार्ड इशू हो रहे हैं। और 'केंचुआ' की कृपा से ही इशू हो रहे हैं। और इस पर नेता प्रतिपक्ष को संदेह है कि एक कमरे में अस्सी लोग कैसे रह रहे होंगे। क्यों भाई, संदेह क्यों है। सुना है, मुंबई में कुछ ऐसे कमरे किराये पर मिलते हैं जहाँ तीन-चार बिस्तर पड़े होते हैं और हर शिफ्ट में तीन चार किरायेदार रहते हैं। आठ घंटे के लिए सोने के लिए आते हैं और फिर आठ घंटे बाद दूसरे लोगों की सोने की शिफ्ट शुरू हो जाती है। वे लोग सोने आ जाते हैं। पर यह एक कमरे के मकान में अस्सी वोट की बात मुंबई में नहीं, बेंगलुरु में हुई है। हो सकता है, वहाँ, बेंगलुरु में लोग एक एक घंटे की शिफ्ट में किरायेदार बनते हों, सोने आते हों और उठ कर चले जाते हों। फिर दूसरे लोग एक घंटे की शिफ्ट में सोने आ जाते हों। आई टी हब है, इतनी उन्नति तो हुई ही होगी। तो हो गए ना अस्सी लोग एक कमरे में। एक कमरे में पांच बिस्तर लगे हों तो एक सौ बीस तक वोटर हो सकते हैं। इसी तरह से छोटे छोटे शहरों में भी एक एक मकान में दो सौ, तीन सौ वोटर तक बने हुए हैं।
यह आरोप भी लगाया गया कि बहुत सारे वोट मकान नंबर जीरो, मतलब मकान नंबर शून्य के भी बने हुए हैं। यह भविष्य की बात है, नेता प्रतिपक्ष को समझ नहीं आएगी। नेता प्रतिपक्ष, मैं आपको समझाता हूँ। शून्य का अविष्कार किसने किया? हमने ना। तो फिर हम मकानों के नंबर किसी और संख्या से क्यों रखें। अब 'केंचुआ' अगर यह प्रयोग कर रहा है कि मकानों के नंबर शून्य ही हों तो आपको क्या दिक्कत है। अभी कुछ मकानों के लिए यह प्रयोग किया हैं, फिर अधिकतर के मकानों के नंबर शून्य होंगे और फिर एक दिन ऐसा आएगा कि सभी मकानों के नंबर शून्य, मतलब जीरो होंगे। कितनी समानता आएगी तब जब भीखू किसान भी कहेगा कि मैं शून्य नंबर के मकान में रहता हूँ और अम्बानी जैसा बड़ा सेठ भी कहेगा कि उसका मकान नंबर भी शून्य है। इतना बड़ा समाजवाद किसी और तरीके से नहीं आ सकता है जितना 'केंचुआ' की इस विधि से आ सकता है।
नेता प्रतिपक्ष ने 'केंचुआ' पर यह आरोप भी लगाया कि उसकी वजह से एक व्यक्ति चार चार जगह वोट डाल रहा है। एक ही विधानसभा क्षेत्र में अलग अलग बूथों पर। और उसके अलावा अलग अलग राज्यों में भी। मतलब बेंगलुरु में तो दो जगह तो है ही, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में भी विराजमान है। राहुल सर, आपने भगवान जी के बारे में नहीं सुना है क्या! जहाँ भक्त याद करें, वहीं प्रकट हो जाते हैं और वोट डाल देते हैं। 'केंचुआ' पर यह आरोप लगा कर तो आप अपनी नास्तिकता ही दिखा रहे हो। यह नहीं चलेगा इस धार्मिक देश में।
आपने फॉर्म 6 के बारे में भी बात की। जनता को समझाया कि फॉर्म 6 वे लोग भरते हैं जो पहली बार वोट देने वाले हों। मतलब जो हाल में ही अठारह साल के हुए हों। अब आपको दिक्कत है कि नब्बे पिचानवे साल के लोगों ने भी फॉर्म 6 भरा है। देखो भाई, इतने उम्रदराज वोटर के वोट डलवाने अधिकारी उसके घर जाते हैं। अधिकारी अपने सामने वोट डलवाते हैं। अब आपको इतनी भी समझ नहीं है क्या? जब अधिकारी अपने सामने वोट डलवायेगा तो किसको डलवायेगा। अठारह बीस साल का वोटर तो पोलिंग बूथ जायेगा। वहाँ अपना वोट गुप्त तरीके से वोट डालेगा। उससे सरकार जी का क्या भला होगा भला!
एक और कारिस्तानी है जो नेता प्रतिपक्ष ने बताई है। उन्होंने यह बताया है कि कई वोटरों के पिता के नाम की ऐसी स्पेलिंग हैं जिनसे कोई नाम ही नहीं बनता है। क्यों भई, ऐसा कोई रूल है क्या कि किसी के पिता के नाम की स्पेलिंग PQRNST नहीं हो सकती है। या फिर SDFGHJ नहीं हो सकती है। नाम तो संज्ञा है, कुछ भी हो सकता है। कोई अपने पिता का नाम CFTGHN रख ले तो आपको क्या दिक्कत है। 'केंचुआ' को तो बिल्कुल भी दिक्कत नहीं है।
तो हम सबका कर्तव्य है कि हम नेता प्रतिपक्ष की बातों में ना आयें और 'केंचुआ' को, सरकार जी के हित में, सॉरी देश हित में जो वह कर रहा है, करने दें। वह वोटर लिस्ट में से हमारा नाम काटे तो काटने दें, हमारा मकान नंबर शून्य करना चाहे तो करने दें, हमारे घर के पते पर अस्सी क्या, आठ सौ वोटर बनाना चाहे तो बनाने दें।
सच तो यह है कि
'हमें पता है वे झूठ बोल रहे हैं,
उन्हें पता है कि वे झूठ बोल रहे हैं,
उन्हें पता है कि हमें पता है वे झूठ बोल रहे हैं,
हमें पता है, उन्हें पता है कि हमें पता है वे झूठ बोल रहे हैं,
फिर भी वे झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं।'
-अलेक्सजेंडर सोलझेनत्सिन (अंग्रेजी से अनुदित)
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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