मिर्ज़ापुर: यूपी में मुकदमे बने हथियार!, सियासत गरमाई

उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में योगी सरकार के निर्देश पर पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी, उनके पिता पूर्व एमएलसी राजेशपति त्रिपाठी और हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश गिरधर मालवीय समेत 42 लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किए जाने के बाद पूर्वांचल की सियासत गरमा गई है। इन पर भारतीय दंड विधान की धारा-419, 420, 467, 468 और 471 के तहत धोखाधड़ी, बेईमानी और फर्जीवाड़े के गंभीर आरोप हैं। मिर्ज़ापुर के गोपलपुर स्थित संयुक्त सहकारी कृषि समिति की करीब साढ़े नौ हजार बीघे जमीन को खुर्द-बुर्द करने के मामले में इन्हें नामजद किया गया है।
राजेशपति यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के पौत्र और ललितेशपति प्रपौत्र हैं। पूर्व न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। वह बीएचयू के संस्थापक और भारतरत्न पंडित मदन मोहन मालवीय के पोते हैं। गिरधर मालवीय के पिता पंडित गोविंद मालवीय भी कांग्रेस सांसद रह चुके हैं।
पिछले महीने मुख्यमंत्री कार्यालय से संबंधित एक ट्विटर हैंडल के जरिए जमीन के मामले में कांग्रेसी नेताओं पर कार्रवाई करने के कड़े निर्देश जारी किए गए थे। जिन लोगों को नामजद किया गया है उनमें ज्यादातर कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। इस बाबत मिर्ज़ापुर के मड़िहान थाने में आपराधिक धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।
कांग्रेस ने शासन के निर्देश पर दर्ज की गई एफआईआर की कार्रवाई को एकपक्षीय और दुर्भावनापूर्ण करार दिया है। मिर्ज़ापुर के गोपलपुर स्थित संयुक्त सहकारी कृषि समिति पूर्वांचल की सबसे बड़ी सहकारी संस्था है, जिसका गठन साल 1951 में किया गया था। उस समय जमींदारी उन्मूलन कानून भी अस्तित्व में नहीं था। संस्था के पास करीब नौ हजार बीघा जमीन थी, जिसमें करीब ढाई हजार बीघे जमीन पथरीली है। इतनी ही जमीन में जंगल है। बाकी जमीन पर लेमन ग्रास, धान, मसूर, अनार, अमरूद आदि की खेती होती है। साल 2009, 2012 और 2018 में सहकारिता विभाग की देखरेख में संस्था के पदाधिकारियों का चुनाव भी हुआ है। कुछ रोज पहले ही समिति ने जमीनों का लगान जमा किया था।
क्या चाहती है योगी सरकार
यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोपलपुर सहकारी कृषि समिति की जमीन पर फूड पार्क का निर्माण कराना चाहते हैं। मिर्ज़ापुर प्रशासन ने यहां विंध्याचल एटिवो फूड पार्क स्थापित करने के लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार की है। योजना के मुताबिक फूड पार्क बनने पर करीब 50 हजार लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकेगा। जमीन पर कब्जा लेने के साथ ही विंध्याचल एटिवो फूड पार्क पर काम शुरू हो जाएगा।
आजादी के बाद मिर्ज़ापुर, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और तेजस्वी लेखक, पत्रकार एवं स्वतंत्रता सेनानी रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी के पुत्र पूर्व स्वास्थ्य मंत्री लोकपति त्रिपाठी की राजनीतिक कर्मभूमि हुआ करती थी। बाद में इनकी विरासत को ललितेशपति त्रिपाठी ने आगे बढ़ाया। कांग्रेस हाईकमान ने यूपी के जिन 75 नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए सिग्नल दिया है उनमें ललितेशपति त्रिपाठी का नाम शामिल है।
सूत्र बताते हैं कि भाजपा चाहती थी कि पंडित कमलापति त्रिपाठी का कुनबा कांग्रेस छोड़कर उनके खेमें में शामिल हो जाएं, लेकिन सत्तारूढ़ दल के लोग अपने मंसूबों को अंजाम दे पाने में कामयाब नहीं हो सके। कांग्रेस के पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी ने खुद इस बात की पुष्टि की है।
फिलहाल पूर्वांचल के 42 दिग्गजों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ दो बार चुनाव लड़ऩे वाले पूर्व विधायक अजय राय ने इसी 2 जुलाई को योगी सरकार पर हमला बोला और कहा, “पंडित कमलापति त्रिपाठी के खानदान के लोगों को अरदब में लेने के लिए योगी सरकार दबाव बना रही है”।
प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ दर्ज किए गए मामलों को फर्जी करार देते ट्वीट किया है कि पार्टी के लोग मुकदमे से डरने वाले नहीं हैं। वक्त आने पर ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा।
प्रदेश उपाध्यक्ष, पूर्व विधायक @LaliteshPati जी पर भाजपा सरकार के फर्जी मुकदमें उसके द्वेषपूर्ण एवं तानाशाही रवैये का परिणाम है।
कांग्रेस पार्टी के नेता, कार्यकर्ता इन मुकदमों से डरने वाले नहीं। वक्त आने पर ईंट का जवाब पत्थर से दिया जायेगा।
— Ajay Kumar Lallu (@AjayLalluINC) July 2, 2021
क्या है मामला?
सहकारिता विभाग के सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक (मिर्ज़ापुर) मित्रसेन वर्मा ने मड़िहान थाने में 14/15 जून 2021 की रात करीब दो बजे रपट दर्ज कराई, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के परिवार के सदस्यों के अलावा भारतरत्न पंडित मदन मोहन मालवीय के पोते समेत कुल 42 लोगों को नामजद किया गया है। इसमें विंध्याचल एग्रो नामक कंपनी का नाम भी शामिल हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, शासन ने राजस्व महकमे के अपर मुख्य सचिव रेणुका कुमार की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय जांच समिति (एसआईटी) गठित की थी। यह समिति तब गठित की गई, जब 17 जुलाई 2019 को सोनभद्र के घोरावल इलाके के उम्भा गांव में 11 आदिवासियों का संहार किया गया। समिति की रिपोर्ट फरवरी 2020 के आखिरी हफ्ते में शासन को सौंप दी गई थी, लेकिन यह मामला दबा हुआ था। शासन ने 10 जून 2021 को अचानक मिर्ज़ापुर के कलेक्टर को गोपनीय-पत्र भेजा और दोषी लोगों के खिलाफ रपट दर्ज कराकर विधिक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्ष्कार के निर्देश पर सहकारिता विभाग के सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक मित्रसेन वर्मा ने मड़िहान थाने में गोपलपुर संयुक्त कृषि सहकारी समिति लिमिटेड के प्राथमिक सदस्यों और उनके वारिसान के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी।
रिपोर्ट में न्यायालय और अधिकारियों को भ्रमित करने का आरोप भी लगाया गया है। मित्रसेन द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति के सचिव बैजनाथ सिंह ने 6 सितंबर 2019 को सहकारिता विभाग के सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक (मिर्ज़ापुर) को लिखित जवाब दिया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि निबंधन के समय समिति में कुल 17 मूल सदस्य थे। इनमें यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री नेता कमलापति त्रिपाठी के पुत्र लोकपति त्रिपाठी के अलावा करुणापति त्रिपाठी, कमच्छा (वाराणसी) के मांडवी प्रसाद सिंह, बालेश्वरनाथ भट्ट, कैप्टन विजयी प्रसाद सिंह, लक्ष्मीकुंड (वाराणसी) के पुरुषोत्तम शमशेर जंग बहादुर राणा, प्रीतम स्वरूप मलकानी, सूरजकुंड (वाराणसी) के अभय कुमार पांडेय, गोदौलिया (वाराणसी) के सरदार विधान सिंह, पियरी (वाराणसी) के रामशीष प्रसाद सिंह, हथियाराम (गाजीपुर) के महंत विश्वनाथपति, मौजा बस्ती (आजमगढ़) की सुरसती देवी, साहाबाद (बिहार) के वंशीधर उपाध्याय, राज राजेश्वरी देवी, मथुरा सिंह, रामानंद उपाध्याय और सासाराम (बिहार) के राधिका रमण शर्मा का नाम शामिल है। ये वो लोग हैं जो अब जीवित नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में समिति के कुल 42 सदस्य हैं, जिनका नाम साल 2018 की मतदाता सूची में शामिल है। इसमें भारतरत्न पंडित मदन मोहन मालवीय के पोते और बीएचयू के कुलाधिपति पूर्व जस्टिस गिरधर मालवीय का नाम भी शामिल है।
रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि शासन ने समिति के उत्तराधिकारियों के बारे में विधिक दस्तावेज मांगे थे। समिति के सचिव बैजनाथ सिंह ने जांच समिति को अवगत कराया था कि मूल सदस्य के दिवंगत होने पर सहकारिता अधिनियम एवं उपविधि के अनुसार उनके विधिक उत्तराधिकारी समिति के सदस्य स्वतः बन जाते हैं। सहकारिता उप-विधि के अनुसार घोषणा-पत्र और शपथपत्र के अनुसार सदस्यता समिति की सदस्यता प्रदान की गई। साथ ही उसे समिति के रजिस्टर में भी अंकित किया गया। जांच समिति का दावा है कि समिति के मूल सदस्यों के विधिक उत्तराधिकारियों का कोई ऐसा वारिस प्रमाण-पत्र उपलब्ध नहीं कराया गया जो राजस्व विभाग द्वारा निर्गत हो। इससे यह स्पष्ट नहीं हो सका कि मूल सदस्यों के विधिक वारिस कौन हैं?
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का हवाला दिया है कि गोपलपुर संयुक्त कृषि सहकारी समिति लिमिटेड, मड़िहान के निबंधन के समय समिति के मूल सदस्यों ने कोई भूमि पूल्ड नहीं की थी। निबंधन के चार दिन बाद सामूहिक रूप से 16 सदस्यों ने समिति के लिए पट्टे पर भूमि हासिल की। इनमें एक सदस्य के हिस्से में दो व्यक्तियों के नाम अंकित थे। समिति के निबंधन के बाद समिति के सदस्यों ने भूमि पूल्ड की जो विधि विरुद्ध है। समिति के पदाधिकारियों ने 1961 में समिति के 105 सदस्य होने की सूचना अपर जिला सत्र न्यायालय और परगना अधिकारी के न्यायालय में दी गई थी, जबकि समिति के मूल 17 सदस्यों के अतिरिक्त अन्य किसी सदस्य द्वारा नियमानुसार संबंधित समिति में अपनी सीरदारी अथवा भूमिधरी किसी के साथ पुल्ड नहीं की गई। समिति की प्रबंध कमेटी एवं उसके पदाधिकारियों ने मनमाने तौर पर समिति के सदस्यों की संख्या 105 बताकर राजस्व न्यायालय और कर निर्धारण न्यायालय में भ्रामक सूचना पेश कर अनुसूचित लाभ लेने का प्रयास किया। समिति के नए सदस्यों में कई ऐसे हैं जो गैर राज्यों के हैं। कोई बाहरी व्यक्ति समिति का सदस्य नहीं बन सकता है। उनकी सदस्यता नियम विरुद्ध है। समिति के पदाधिकारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और गलत तथ्यों के आधार पर सदस्यों का नाम खारिज कराकर केवल गोपालपुर संयुक्त कृषि सहकारी समिति का नाम दर्ज कराने का आदेश प्राप्त किया जो विधि-सम्मत नहीं है।
अवैध रूप से बेची गईं जमीनें?
प्राथमिकी में कांग्रेस नेता और पूर्व एमएलसी राजेश पति त्रिपाठी और अन्य पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने 16 सितंबर 2016 को नियम के खिलाफ समिति की 132.6 एकड़ भूमि विंध्याचल एटिवो फूडपार्क प्राइवेट लिमिटेड को बेच दी। समिति के सदस्यों ने 16 अप्रैल 2018 को फिर से उसी भूमि का तितिम्मा बैनामा कर दिया। इसके लिए उन्होंने राजस्व संहिता अधिनियम की धारा-89 और भूमि विक्रय के लिए सक्षम पदाधिकारी से अनुमति नहीं ली। गोपलपुर संयुक्त कृषि सहकारी समिति लिमिटेड की प्रबंध कमेटी, सचिव और मूल सदस्यों/विधिक वारिसान ने गलत ढंग से तथ्य प्रस्तुत कर समिति की संपत्ति का निजी हित में उपयोग किया। इसी मामले में मिर्ज़ापुर (मड़िहान) के तत्कालीन एसडीएम रामसजीवन मौर्य को शासन निलंबित कर चुका है।
मिर्ज़ापुर के डीएम प्रवीण कुमार लक्ष्कार कहते हैं, गोपलपुर सहकारी कृषि समिति की जमीनों को खुर्द-बुर्द किया गया है। आरोप बेहद गंभीर किस्म के हैं। एसआईटी जांच में इस बात की पुष्टि हो चुकी है, तभी दोषियों के खिलाफ मड़िहान थाने में संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज कराई गई। आगे की जांच पुलिस करेगी और जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
कांग्रेस नेताओं के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने वाले सहकारिता विभाग के सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक मित्रसेन वर्मा ने “न्यूज़क्लिक” के लिए बातचीत में कहा, “डीएम के निर्देश पर उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कराई है। वर्मा ने बताया कि वह विगत डेढ़ साल से मिर्ज़ापुर जिले में तैनात हैं। उन्हें इस प्रकरण की ज्यादा जानकारी नहीं है। रेणुका कुमार की अध्यक्षता वाली एसआईटी की रिपोर्ट पर शासन ने डीएम को कार्रवाई करने के लिए कहा था। रिपोर्ट दर्ज कराने की जिम्मेदारी डीएम ने सौंपी तो उन्होंने दर्ज करा दी। रिपोर्ट में हुबहू वही बातें लिखी गई हैं जो एसआईटी ने अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में दिया है। हमने अपनी ओर से कोई नया तथ्य नहीं जोड़ा है। यह राजस्व से जुड़ा मामला है। राजस्व विभाग के अधिकारियों की ओर से एफआईआर कराई जाती तो बेहतर होता।”
“आरोप बेबुनियाद और एकपक्षीय”
गोपलपुर संयुक्त कृषि सहकारी समिति लिमिटेड के सचिव बैजनाथ सिंह ने एफआईआर में दर्ज आरोपों को एकपक्षीय और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई बताया। उन्होंने कहा, “साल 1951 में समिति ने एक जमींदार से करीब नौ हजार बीघे पथरीली जमीनें विधिवत बैनामा कराई थी। कायदे-कानून के तहत समिति का संचालन किया जा रहा है। योगी सरकार ने सियासी रंजिश के तहत रपट दर्ज कराई है। इस बाबत उस समिति की रिपोर्ट को आधार बनाया गया है जो करीब सवा साल से योगी सरकार के पास धूल खा रही थी। बैजनाथ सिंह ने इस बात पर भी हैरानी जताई है कि सोनभद्र के जिस जमीन को लेकर आदिवासी किसानों का कत्ल किया गया था वह जमीन अब भी पूर्व आईएएस अफसर की पत्नी विनीता शर्मा के नाम दर्ज है। विनीता के खिलाफ सरकार ने आज तक कोई रपट दर्ज नहीं कराई है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि योगी सरकार की मंशा आखिर है क्या? समिति के सचिव ने कहा है कि वह इस मामले को लेकर कोर्ट में जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि 17 जुलाई 2019 को सोनभद्र के उम्भा गांव में भूमि विवाद के दौरान 11 आदिवासी किसानों के संहार के बाद कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी ने इस नरसंहार कांड को गरमा दिया था। तब सीएम योगी आदित्यनाथ को दो बार इस गांव में दौरा करना पड़ा। इसी दौरान योगी ने राजस्व विभाग की अपर मुख्य सचिव रेणुका कुमार की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन किया। समिति ने उम्भा से ज्यादा गोपलपुर सहकारी समिति समेत मिर्ज़ापुर की चार अन्य सहकारी समितियों की जांच-पड़ताल में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई। ये समितियां मिर्ज़ापुर के पटेहरा कलां, बसही और ददरा की थीं।
समिति की ओर से जारी अधिकृत बयान में कहा गया है, "धारित समस्त भूमि और उस पर अधिकार का वाद साल 2012 में समिति के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट से डिक्लेयर हो चुका है। समिति के अध्यक्ष ललितेश पति त्रिपाठी हैं। वह मड़िहान विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक भी रह चुके हैं। राजनीतिक दबाव बनाने के लिए जानबूझकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्रवाई कराई है। उच्च स्तरीय जांच समिति के गठन और उसकी आख्या को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट के लखनऊ खंडपीठ में याचिका दाखिल की गई है, जो फिलहाल विचाराधीन है।"
कांग्रेस नेता ललितेशपति त्रिपाठी ने कहा, "यह आरोप बेबुनियाद है कि बिना अनुमति के संस्था की जमीन बेची गई है। उत्तर प्रदेश राजस्व सहिता की धारा 89 (3) में विक्रय के बाद अनुमति का प्रावधान है, जो शासन स्तर पर लंबित है। शासन ने मिर्ज़ापुर के कलेक्टर को 19 मार्च 2019 को अनुमति देने के लिए चिट्ठी भी भेजी थी, लेकिन प्रशासन ने आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया।"
हमलावर हुए कांग्रेस के नेता
जमीन की हेरा-फेरी मामले को लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेता योगी सरकार के खिलाफ हमलावर हैं। एक ओर जहां अजय कुमार लल्लू ने इस मामले में ट्विट करते हुए सरकार के खिलाफ संघर्ष करने का अल्टीमेटम दिया है, वहीं बनारस और मिर्ज़ापुर में पार्टी के नेताओं ने विधिवत प्रेस कांफ्रेंस कर सरकार पर हमला बोला है। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने समूचे पूर्वांचल में योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का मन बनाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चुनावी मुकाबला करने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व विधायक अजय राय ने इस मामले को राजनीतिक विद्वेष की कार्रवाई बताया है। बनारस के पराड़कर भवन पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने एलानिया तौर पर कहा, "भाजपा कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का मनोबल तोड़ना चाहती है। जानबूझकर वह दमन और उत्पीड़न की कार्रवाई कर रही है। जिस तरह का खेल चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में खेला गया, वैसा ही यूपी में शुरू कर दिया गया है। आजादी के आंदोलन में कई बार जेल जाने वाले पंडित कमलापति त्रिपाठी के परिवार को उत्पीड़न से कतई नहीं डिगाया जा सकता है। यूपी में ब्राह्मण तबका योगी सरकार से बेहद खफा है। ब्राह्मण नेताओं को अपने गोल में मिलाने के लिए सरकार तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है। प्रदेश के नामी ब्राह्मण नेताओं को भाजपा में शामिल कराने की योगी सरकार की नीति सफल नहीं होगी। सत्ता दुरुपयोग के ऐसे हथकंडे त्रिपाठी परिवार पर असर नहीं डाल पाएंगे।"
अजय राय ने साफ-साफ कहा, "सोनभद्र के उम्भाकांड के बाद आदिवासियों को ताकत देने के लिए कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी को ललितेशपति त्रिपाठी ने बुलाया था। तभी से सीएम योगी उनसे नाराज हैं। राजनीतिक विद्वेष के चलते एसआईटी गठित कराई और अपने मनमाफिक रिपोर्ट भी बनवाई। योगी सरकार ने पिछले महीने अपने हैंडिल से कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए मैसेज का विधिवत डिजाइन बनवाया और उसे ट्विट कराया था। कांग्रेस नेताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर राजनीतिक भयादोहन की रणनीति का एक हिस्सा है। भाजपा सरकार का यह कृत्य घृणा की परकाष्ठा है।"
कुशवाहा और नसीमुद्दीन की भी बढ़ी मुश्किलें
योगी सरकार ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा पर भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। नसीमुद्दीन कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता हैं, जबकि कुशवाहा जन अधिकार पार्टी बनाकर यूपी में बनी भागीदारी संकल्प मोर्चा के घटक के रूप में भाजपा सरकार से मोर्चा ले रहे हैं। विजिलेंस टीम ने 42 हजार करोड़ रुपये के कथित स्मारक घोटाले में दोनों नेताओं को जुलाई के तीसरे हफ्ते में पूछताछ के लिए तलब किया है। लखनऊ-नोएडा में बने अंबेडकर स्मारक घोटाले में सरकार के तीन दर्जन अफसरों को भी नोटिस भेजा गया है।
सूत्रों का कहना है कि स्मारक के कंसोर्टियम के लिए जो कैबिनेट नोट तैयार किए गए थे, उसमें पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और नसीमुद्दीन के दस्तखत थे। इसी मामले में दोनों नेताओं को तलब किया गया है। विजिलेंस के साथ प्रवर्तन निदेशालय भी मामले में जांच कर रहा है। निर्माण निगम के कई अफसर भी सरकार की रडार पर हैं। साल 2013 से इस स्मारक घोटाले की जांच चल रही है, जो जो मायावती सरकार में सेवा में थे। अभी तक 20 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। विजिलेंस अधिकारियों का कहना है कि प्रोजेक्ट मैनेजरों ने गुलाबी पत्थर को ऊंचे दामों पर खरीदा था। पहली चार्जशीट अक्टूबर 2020 को दाखिल की गई थी। आरोपों के बाबत यूपी के खनन मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा और बसपा नेता नसीमुद्दीन खुद को निर्दोष बताते हैं।
मिर्ज़ापुर में जन अधिकार पार्टी की मंडल अध्यक्ष किरन कुशवाहा ने कहा है कि यूपी में कुशवाहा-मौर्य समाज अब बाबू सिंह कुशवाहा के साथ है। सियासी साजिश के तहत जानबूझकर परेशान करने के लिए उन्हें निशाना बनाया गया है। किरन कहती हैं, “यूपी में पिछड़ों की कुल आबादी में 14 फीसदी हिस्सा मौर्य, कुशवाहा, कोइरी, शाक्य, सैनी, काछी आदि उप-जातियों की है। पिछले चुनाव में उनके समाज के लोगों ने भाजपा का साथ दिया था, जो अब पूरी तरह बिदक गई है। भाजपा ऐसी पार्टी है जो रिंग सेरेमनी हमारे समाज के नेताओं की करती है और शादी की बात आती है जो नया वर ढूंढ लेती है। भाजपा से कुशवाहा-मौर्य समाज का मोह भंग हो गया है, इसलिए योगी सरकार बौखला गई है। बाबू सिंह कुशवाहा के खिलाफ कार्रवाई गंभीर साजिश का हिस्सा है। यूपी में कुशवाहा और हमारी अन्य उप-जातियां अबकी चुनाव में भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देंगी।”
(विजय विनीत वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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