ख़बरों के आगे-पीछे: चुनाव आयोग निष्पक्ष दिखना ही नहीं चाहता
चुनाव आयोग की कार्यशैली को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं और आरोप लग रहा है कि चुनाव आयोग सरकार के निर्देश पर भारतीय जनता पार्टी का मददगार बना हुआ है। लेकिन ऐसे सवालों से बेफिक्र चुनाव आयोग ऐसा कुछ भी करता नहीं दिखता जिससे लगे कि वह निष्पक्ष तरीके से काम कर रहा है।
जब से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के दूसरे चरण का ऐलान हुआ और 12 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों में इसकी शुरुआत हुई है तब से पश्चिम बंगाल में विवाद खत्म ही नहीं हो रहा है। वहां ताजा विवाद बूथ लेवल एजेंट्स बीएलए की नियुक्ति को लेकर छिड़ा है।
चुनाव आयोग ने बीएलए की नियुक्ति की शर्तों में थोड़ी ढील दी है, जिसे लेकर माना जा रहा है कि ऐसा भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए किया है। गौरतलब है कि अभी तक बीएलए की नियुक्ति के लिए यह शर्त थी कि पार्टियां, जिसे जहां बीएलए बनाएंगी, उसका नाम वहां की मतदाता सूची में होना चाहिए। अब चुनाव आयोग ने इसमें बदलाव करके कहा है कि एक विधानसभा क्षेत्र का व्यक्ति उस पूरे क्षेत्र में कहीं का भी बीएलए नियुक्त हो सकता है। सवाल है कि जब नाम ही बूथ लेवल एजेंट है तो बूथ से बाहर के किसी व्यक्ति को कैसे एजेंट बनाया जा सकता है। तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि चूंकि पश्चिम बंगाल में भाजपा के पास हर बूथ पर एजेंट बनाने के लिए लोग नहीं हैं, इसलिए चुनाव आयोग ने यह नियम बदला है।
फिर हो सकता है ऑपरेशन सिंदूर!
लगता है कि पाकिस्तान के खिलाफ फिर सैन्य कार्रवाई हो सकती है। इस संभावना का कारण यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर से आतंकवादियों को अंग्रेजी में चेतावनी दी है। दिल्ली में लाल किले के सामने हुए विस्फोट के अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी दो दिन की भूटान यात्रा पर गए। वहां उन्होंने इस घटना पर शोक जताया और आतंकवादियों को चेतावनी दी की किसी को बख्शा नहीं जाएगा। प्रधानमंत्री ने यह लाइन अंग्रेजी में बोली। उन्होंने कहा कि, 'ऑल दोज रिस्पॉन्सिबल विल बी ब्रॉट टू जस्टिस।’ माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने इस चेतावनी के जरिये दुनिया को भी बता दिया है कि भारत कार्रवाई करेगा। मोदी ने लगभग यही लाइन पहलगाम कांड के बाद बिहार के मधुबनी में बोली थी। उन्होंने वहां एक सभा आतंकवादियों को मिट्टी में मिला देने की बात करते हुए अंग्रेजी मे चेतावनी दी थी। उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर हुआ था। सरकार और सेना की ओर से भी बार-बार कहा जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर खत्म नहीं हुआ है, वह जारी है। दिल्ली में हुए विस्फोट के तार कश्मीर और पाकिस्तान से जुड़ने के बाद माना जा रहा है कि सैन्य कार्रवाई होगी। पाकिस्तान को भी इसका अंदाजा है। इसीलिए उसके भी लड़ाकू विमान सीमा के आसपास उड़ान भर रहे हैं। पाकिस्तान पिछली बार किसी भी सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार था। इस बार वह ज्यादा तैयारी में रहेगा। भारत को उस हिसाब से अपनी रणनीति बनानी होगी। पहलगाम कांड के दो हफ्ते बाद सैन्य कार्रवाई हुई थी। इस बार उससे ज्यादा समय लग सकता है।
उम्मीदवारों की कमाई की जांच होगी
आमतौर पर विधानसभा या लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार अपने नामांकन के साथ जो हलफनामा दाखिल करते हैं, उसके आधार पर मीडिया में उसकी व्याख्या होती है। किसके ऊपर कितने मुकदमे हैं या किसके पास कितनी संपत्ति है या किसने कहां तक पढ़ाई की है, पांच साल में किसकी उम्र कितनी बढ़ी जैसे मुद्दों में लोगों की दिलचस्पी होती है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) नाम की संस्था बहुत व्यवस्थित तरीके से इसका अध्ययन करती है। हर उम्मीदवार का पूरा ब्योरा तीन बार अखबारों में छपता है ताकि लोगों को अपने उम्मीदवार के बारे में हर बात की जानकारी हो। इस बार संभवत: पहली बार ऐसा हो रहा है कि उम्मीदवारों के हलफनामे पर सरकार और एजेंसियों की भी नजर है। बताया जा रहा है कि आयकर विभाग इस बात की जांच करेगा कि किस उम्मीदवार की संपत्ति ज्यादा बढ़ी है और ज्यादा बढ़ी है तो क्यों बढ़ी है। गौरतलब है कि कई उम्मीदवारों की संपत्ति पांच साल की अवधि मे पांच गुना या दस गुना बढ़ जाती है। जिन उम्मीदवारों का कोई कानूनी रूप से वैध कारोबार है उनकी बात अलग है। लेकिन बहुत से नेता ऐसे हैं, जिनका कोई कारोबार नहीं है फिर भी संपत्ति कई गुना बढ़ जाती है। जांच होने पर पता चलेगा कि ऐसा चमत्कार कैसे होता है। एजेंसियों की नजर संभवत: इसलिए भी उम्मीदवारों पर गई है क्योंकि देश के हर चुनाव में करोड़पति उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। बहरहाल, सवाल है कि नेताओं पर बढ़ते आपराधिक मामलों का क्या होगा?
दिल्ली में साफ़ हवा के लिए प्रदर्शन
यह शायद पहली बार हुआ कि दिल्ली के लोग साफ हवा के लिए सड़क पर उतरे। पानी के लिए तो प्रदर्शन होते रहे थे। हालांकि साफ पानी की मांग को लेकर प्रदर्शन अभी तक नहीं हुआ है। अभी तो किसी तरह से पानी मिल जाए, इसके लिए प्रदर्शन होते हैं। पहली बार बीती नौ नवंबर को बड़ी संख्या में लोग साफ हवा के लिए प्रदर्शन करने इंडिया गेट पर जमा हुए और उन्होंने वायु प्रदूषण को लेकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। मौके पर पुलिस ने पहुंच कर कुछ लोगों को हिरासत में लिया और बसों में बैठा कर अलग-अलग जगहों पर ले जाकर छोड़ दिया। ये लोग किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता नहीं थे, बल्कि सिविल सोसायटी के लोग थे। उनमें बड़ी संख्या में बुजुर्ग थे और बच्चे भी थे। इनके हाथ में प्लेकार्ड्स थे, जिन पर लिखा था कि ये लोग सांस लेने के अपने अधिकार के लिए सड़क पर उतरे हैं।
सवाल है कि दिल्ली में हर साल वायु प्रदूषण होता लेकिन इस बार क्यों लोग सड़क पर उतरें? इसका जवाब बहुत आसान है। ऐसे इसलिए हुआ क्योंकि इस बार उनको दिख रहा है कि सरकार प्रदूषण से निबटने के उपाय करने की बजाय आंकड़े छिपाने में लगी है। दिल्ली में लोगों का सांस लेना मुश्किल हो रहा है। अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन सरकार के हवाले से रोज अखबारों में खबर आ रही है कि दिल्ली में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।
वंदे मातरम बनाम जन गण मन
पश्चिम बंगाल हर चुनाव से पहले किसी न किसी तरह से संस्कृति और पहचान की बातें होने लगती हैं। याद ही होगा कि कैसे पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की तरह की दाढ़ी रख ली थी। पश्चिम बंगाल के चुनाव में वे उसी तरह से प्रचार करते रहे। भाजपा ने किसी बहाने ईश्वरचंद्र विद्यासागर के सम्मान का भी मुद्दा बनाया। हालांकि उसका उसे कोई फायदा नहीं हुआ। ममता बनर्जी बाहरी बनाम बांग्ला का मुद्दा बना कर चुनाव जीत गईं। पिछली बार 'जय श्रीराम’ बनाम 'जय मां काली’ का भी मुद्दा बना। यह भी अस्मिता का ही सवाल था। इस बार चुनाव से पहले कुछ समय तक जगन्नाथ धाम का विवाद चला।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी ने दीघा में जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया, जिसे धाम कहने पर विवाद हुआ। अब वंदे मातरम और जन गण मन का विवाद शुरू हो गया है। भाजपा और केंद्र सरकार वंदे मातरम की रचना के 150 साल पूरे होने पर उत्सव मना रही हैं। इस सिलसिले में दिल्ली में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ था। उधर भाजपा के एक नेता ने कह दिया कि जन गण मन की रचना इंग्लैंड के राजा के सम्मान में हुई थी। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी बात वापस ली। इस बीच अबू आजमी और जिया उर रहमान बर्क जैसे मुस्लिम नेताओं ने वंदे मातरम गाने से इनकार करके विवाद और बढ़ा दिया है। अब ममता को इस विवाद में उलझाने की कोशिश हो रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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