सुभाषिनी अली : हेल्पलाइन 181 की आयुषी के बहाने, उत्तर प्रदेश से कुछ ज़रूरी सवाल

कुछ दिन पहले ही मुझसे किसी ने पूछा – उत्तर प्रदेश का असली चेहरा कैसा है? मैं काफी देर तक सोचती रही। बहुत सारे चेहरे मेरी नज़रों के सामने घूम रहे थे – कुछ भयावह; कुछ बड़े कांया; कुछ नेक और कई परेशान; कुछ खुश और कई निराश। यह तमाम चेहरे और इनके अलावा बहुत से अन्य चेहरे घूमते रहे मेरी नज़रों के सामने और मैं उस सवाल का उत्तर दे ही नहीं पाई। बस कह दिया, प्रदेश का चेहरा दाग़दार है।
4 तारीख को (4 जुलाई, 2020), उत्तर प्रदेश का असली चेहरा मेरी नज़रों के सामने आया और वहीं टिक गया। एक मासूम महिला का चेहरा जो बिलकुल कमसिन लड़की लगती है। लेकिन वह एक पाँच साल की बच्ची की माँ है, एक दिव्यांग पुरुष की पत्नी। है नहीं, थी।
चेहरा आयुषी का है। आयुषी, एक 32 साल की महिला जिसने 3 जुलाई की शाम को अपने कानपुर के श्याम नगर स्थित मायके के पास पी ए सी की क्रासिंग पर, रेलगाड़ी की पटरियों अपनी जान दे दी।
उसकी हताशा, उसकी लाचारी किस हद तक पहुँच गयी होगी कि उस पति और बच्ची का मोह भी उसे जीवन की ओर नहीं खींच पाया जिनकी अथक सेवा उसने पिछले कई वर्षों से की थी। उसको कैसी मायूसी ने घेरा होगा कि उसने अपना मन मारकर अपने आप को ही मार डाला।
उसकी तस्वीर 4 तारीख की सुबह मेरे फोन पर दिखी। उसके नीचे एक अच्छे मित्र और ट्रेड यूनियन के नेता, दिनकर कपूर, का संदेश था। यह आयुषी है। इसने आत्महत्या की है। इसका शव कानपुर के चीर घर (पोस्टमार्टम हाउस) पहुँच गया है लेकिन वहाँ बहुत समय लग रहा है। उसके परिवार के लोगों की कोई सुन नही रहा है। वह रो रोकर बेहाल हो रहे हैं। कृपया उनकी मदद कीजिये। खैर, जो बन पाया, किया। उसका पोस्टमार्टम हो गया। कुछ घंटों में उसके अंतिम संस्कार भी पूरे कर दिये गए और अग्नि से उसके पार्थिव शरीर का जो कुछ भी बचा, उसे गंगा मैया की शीतल गोद मे समा दिया गया।
आयुषी उत्तर प्रदेश की 181 नंबर की हेल्पलाइन मे 2017 से काम कर रही थी। नौकरी पाने के लिए समाज शास्त्र मे स्नातक होना और समाज सेवा का कुछ अनुभव अनिवार्य था। आयुषी एक पढ़ी लिखी महिला थी और उसे यह नौकरी मिल गयी। उसकी पोस्टिंग उन्नाव मे हुई। वह अपने पति और बच्ची को छोड़ के नहीं जा सकती थी। दैनिक यात्री भी नही बन सकती थी तो उसने उन्नाव मे एक छोटा कमरा किराया पर लिया और वहाँ पति और बच्ची के साथ रहने लगी।
181 की नौकरी 24/7 की नौकरी है। काउंसिलिंग करने वाली हर महिला को दिन भर पूरी ड्यूटी अपने कार्यालय मे देने के बाद, अपना फोन हर वक्त खुला रखना पड़ता है। कभी भी कॉल आ सकती है। उसको रिसीव करके, परेशान महिला की बात सुनकर उसको समझाना है। अगर मामला गंभीर है तो हस्तक्षेप भी करना है। इस कड़ी ड्यूटी को पूरा करते हुए, आयुषी अपने पति और बच्ची की पूरी देखभाल भी करती थी, अपने छोटी सी गृहस्थी को ज़िंदा रखती थी।
181 हेल्पलाइन की सेवा 2016 में ‘निर्भया कांड’ के बाद देश के कई हिस्सों के साथ, उत्तर प्रदेश के 11 जिलों मे शुरू की गयी थी। जिन महिलाओं को इस काम के लिए भर्ती किया गया उनको प्रशिक्षण देने के बाद, 8 मार्च, अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर, इस योजना का ज़ोर शोर से उदघाटन किया गया था। योजना का खर्च केंद्र और राज्य की सरकार की ज़िम्मेदारी थी लेकिन उसको चलाने के लिए एक निजी कंपनी, GVK EMRI के साथ समझौता किया गया जो कॉल सेंटर के क्षेत्र मे निपुण मानी जाती थी। इसी कंपनी को 180 और 102 नंबरों के एंबुलेंस और इमरजेंसी मेटरनिटी काल सेंटर को चलाने का ठेका भी दिया गया है।
2017 मे इस योजना को उत्तर प्रदेश के हर ज़िले मे शुरू कर दिया गया। हर ज़िले मे ‘आशा ज्योति केंद्र’ (‘निर्भया’ का नाम ज्योति था और उसकी माँ का, आशा है) खोले गए जिनमें इस कॉल सेंटर को भी जगह दी गयी। इन केन्द्रों का नाम बाद में ‘रानी लक्ष्मीबाई आशा ज्योति केंद्र’ रखा गया है।) इन केन्द्रों में परेशान, पीड़ित महिलाओं के लिए अस्थाई संरक्षण गृह बनाया गया जिसमें 5 बिस्तर रखे गए। महिलाएं यहाँ केवल 5 दिन के लिए ही रुक सकती हैं। इन केन्द्रों मे पुलिस चौकी भी बनाई गयी।
केंद्र में सबसे महत्वपूर्ण काम 181 हेल्पलाइन की महिला काउंसलर का ही था। उनके पास ही परेशान और पीड़ित महिलाओं के फोन आते थे। वे उनसे बात करके उनको समझाती थीं और, कई मामलों मे, उन्हें घर से केंद्र तक पहुंचाती थीं। इसके लिए, उनके पास एक गाड़ी भी रखी गयी थी। हेल्पलाइन का प्रचार गाँव-गाँव मे, हर कस्बे और शहर में किया गया था। लड़कियों के लिए चल रहे तमाम स्कूल और कालेजों मे जाकर 181 में काम करने वाली काउंसलरों ने हेल्पलाइन का प्रचार किया। यह सच्चाई है की यह नंबर प्रदेश की हर महिला और युवती के ज़हन की गहराइयों मे प्रवेश कर चुका है।
इसका नतीजा है की 2016 से अब तक 5 लाख 50 हज़ार मामलों मे यह काउंसलर हस्तक्षेप कर चुकी हैं। न जाने कितनी महिलाओं को उन्होने हिंसा से बचाया है, कितनों की पति के साथ काउंसिलिंग करके उनके पारिवारिक रिश्तों को जोड़ने का काम किया है, कितनों को अपहरणकर्ताओं और देह व्यापारियो के चंगुल से बचाया है। एक दिलचस्प बात यह है की उनको फोन करने वाली महिलाएं अक्सर कहती थी कि दीदी थाने तो नहीं जाना पड़ेगा? या, पुलिस गाड़ी में हमे लेने मत आईयेगा, परिवार की बड़ी बेइज्जती होगी।
जहां पुलिस की मदद की आवश्यकता पड़ती थी, वहाँ यह काउंसलर उसमें भी मदद करती थीं।
दो साल पहले, गाड़ियों का खर्च आना बंद हो गया।
एक साल पहले, प्रदेश भर में काम करने वाली 351 महिला काउंसलरों को वेतन मिलना बंद हो गया। वेतन भी कितना? मात्र 12000/- रुपये महीना। वह भी बंद हो गया। उन्होंने काम करना बंद नहीं किया। अधिकारी भी आश्वासन देते रहे की काम करती रहो, वेतन का इंतेज़ाम हो रहा है।
अचानक, 1 जून को GVK EMRI ने लखनऊ के 181 हेल्पलाइन के प्रधान कार्यालय को नोटिस भेज दिया की सरकार से पैसों का भुगतान न होने के कारण, वह अपने आपको इस काम से अलग कर रही है। और 2-3 दिन बाद, कई केन्द्रों में कार्यरत महिलाओं को उनके जिलों के ज़िला प्रोबेशन अधिकारी, जिनकी निगरानी मे केंद्र चलते थे, ने कह दिया की अब काम पर आने की कोई आवश्यकता नहीं है।
उत्तर प्रदेश की हेल्पलाइन की वेबसाइट से 181 का नंबर हट गया है। ऐसा लगता है की वह कभी अस्तित्व मे था ही नहीं। उन 351 काउंसलर का कमाया हुआ वेतन, उन 351 काउंसलर का भविष्य, प्रदेश की करोड़ों पीड़ित-परेशन महिलाओं का जाना-पहचाना सहारा, सब लुप्त हो गये हैं। केंद्रीय बजट में शामिल ‘निर्भया कोष’ का आखिर क्या हुआ? प्रदेश की महिलाओं, जिनके साथ होने वाली हिंसा का आंकड़ा पूरे देश में सबसे अधिक है, उनकी सुरक्षा का वादा कहाँ गया? रोज़गार देने का वचन देने वाले, महिलाओं का रोज़गार छीनने पर क्यों तुले हैं? यह सब ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब उत्तर प्रदेश की सरकार की कोई हेल्पलाइन देने को तैयार नहीं।
आयुषी ने जून के अंत मे उन्नाव का अपना किराये का कमरा खाली कर दिया। उसका कई महीनों का किराया बकाया था। खाली करना उसकी मजबूरी थी। अपने पति और बच्ची के साथ वह अपने मायके लौट आई। कुछ उम्मीद बनी हुई थी कि पिछला वेतन मिल जाएगा। किसी तरह वह अपनी नौकरी को बचाए रखेगी।
योगी जी और मोदी जी ने मिलकर जो लाइव कार्यक्रम किया था, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश के 1 करोड़ 25 लाख निवासियों को काम देने का आश्वासन दिया। उसको आयुषी ने भी सुना होगा और उसके दिल मे भी एक टिमटिमाता उम्मीद का चिराग धीरे से सुलगा होगा। लेकिन जब उसे यह सूचना मिली कि 181 का काम अब बंद हो गया है और कमाए गए वेतन की बात भी कोई सुनने को तयार नहीं तो उस क्रूर झोंके ने टिमटिमाते चिराग को बुझा दिया।
3 जुलाई की शाम को वह अपने घर से यह कहकर निकली कि अपनी CV बनाने जा रही है, दूसरी नौकरी की कोशिश करेगी। शायद उसने अपनी CV ऊपर वाले के वहाँ लगाने की ठान ली थी और वही करने वह रेलवे लाइन की तरफ निकल गयी।
आयुषी का नाम बड़े चाव से उसके माता-पिता ने रखा होगा। लेकिन आयुषी ही तो वह नहीं बन पायी। बन गयी अपने प्रदेशवासियों के टूटे सपनों, टूटे विश्वासों और झूठे वादों से उनकी टूटी हिम्मत की तस्वीर।
{सुभाषिनी अली पूर्व सांसद और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (AIDWA) की उपाध्यक्ष हैं।}
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