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सामाजिक न्याय की जगह सांप्रदायिक राजनीति की ओर संजय निषाद?

निषाद समाज के आरक्षण को राजनीतिक मुद्दा बनाकर 2016 में अस्तित्व में आई निषाद पार्टी मौजूदा वक़्त में निषादराज किले की मस्जिद को हटाने की मांग पर ज़ोर दे रही है।
sanjay nishad

अपनी स्थापना के आठ वर्ष पूरे होने के साथ निषाद पार्टी अपना रुख सांप्रदायिकता की राजनीति की तरफ़ करती दिखाई दे रही है। आरोप लग रहे हैं कि निषाद समाज के आरक्षण और कल्याण को राजनीतिक मुद्दा बनाकर 2016 में अस्तित्व में आई निषाद पार्टी ने अपने मुख्य उपदेशों को ठंडे बस्ते में डालकर अपना केंद्र निषादराज किले की मस्जिद को हटाने तरफ़ मोड़ लिया है।

निषादराज कीले मस्जिद हटाने की मांग

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने पार्टी के स्थापना दिवस पर गोरखपुर में 16 अगस्त को प्रदेश के दोनों उप-मुख्यमंत्रियों बृजेश पाठक और केशवप्रसाद मौर्य की मौजूदगी में श्रृंगबेरपुर के निषादराज किले की मस्जिद को 'बाबरी मस्जिद की तरह हटाने' का मुद्दा उठाया।

ऐसा कहा जा रहा है कि जहां एक तरफ़ सारे देश में ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा गर्म है तो वहीं बीजेपी की सहयोगी पार्टी एक नया सांप्रदायिक मुद्दा उठाकर सांप्रदायिकता की आग को और तेज़ करना चाहती है।

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले डॉ. संजय निषाद अपने समाज के वोट को बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन NDA के पीछे एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने अपनी पार्टी के स्थापना दिवस पर बीजेपी के कद्दावर नेताओं के साथ NDA में हाल में शामिल हुए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेताओं ओपी राजभर आदि को अपने मंच पर जमा किया। 

लेकिन मंच से निषाद समाज के मुद्दों के साथ-साथ वहां सांप्रदायिक रंग भी देखने को मिला। मंच से योगी आदित्यनाथ सरकार के कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने कहा कि "वह उप-मुख्यमंत्री से कहना चाहते हैं कि बाबरी मस्जिद की तरह निषादराज के किले से मस्जिद हटाकर निषाद राज का किला बनवाया जाए।"

उन्होंने कहा कि "इस किले पर भगवान श्री राम रात्रि विश्राम के लिए रुके थे, उन्हीं के सीने पर एक मस्जिद बन गई है। वहां हरे रंग का झंडा लहरा रहा है उसे हटाया जाना चाहिए।"

"लोकतांत्रिक तरीके से कुछ भी करना पड़े तो करेंगे"

डॉ. संजय निषाद ने कहा कि "निषादराज के किले के लिए हमें लोकतांत्रिक तरीके से कुछ भी करना पड़े तो करेंगे। चाहे इसके लिए मुसलमानों से मुक़दमा लड़ना पड़े और चाहे उनसे कोई अपील करनी पड़े।" उन्होंने कहा कि "वह निषाद राज का किला है, विरासत है और उस विरासत को हमारे समाज को दे दिया जाए और वहां निषाद राज का किला बना दिया जाए।"

इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद ने भी 'हिंदुत्व' की राजनीति करने का मौक़ा मिला। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि "कारसेवा करके अयोध्या का विवादित ढांचा गिराया गया और निषाद राज किला चाहे 300 फीट हो या 3000 फीट नीचे हो, किन्तु मस्जिद वहां नहीं रह पाएगी।

निषाद समाज की असहमति 

वहीं निषाद समाज, डॉ. संजय निषाद द्वारा दिये गये भाषण से असहमति जता रहा है। निषाद समाज के अन्य नेताओं का आरोप है कि कि संजय निषाद भाजपा के इशारे पर अशिक्षित निषाद युवाओं को भड़का कर सांप्रदायिक माहौल ख़राब करने का षडयंत्र कर रहे हैं।

राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव लौटन राम निषाद कहते हैं, "निषाद जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण और अधिकार दिलाने के मुद्दे पर जन्मी निषाद पार्टी द्वारा अब असली मुद्दे से भटक कर मस्जिद तोड़ने की बात करना निंदनीय है।"

सामाजिक सौहार्द ख़राब होने का ख़तरा

वह आगे कहते हैं कि “16 अगस्त को गोरखपुर आयोजित निषाद पार्टी की स्थापना दिवस के दौरान बीजेपी के इशारे पर श्रृंगबेरपुर के निषादराज किले के पास स्थित मस्जिद को बाबरी मस्जिद की तरह तोड़कर ढहाने की धमकी दी गई, जिससे सामाजिक सौहार्द ख़राब होने का ख़तरा है।”

"निज स्वार्थ और परिवार हित के लिए राजनीति"

निषाद समाज के आरक्षण के मुद्दे पर राष्ट्रीय निषाद संघ के सचिव ने आरोप लगाया कि "मंत्री डॉ. संजय निषाद निषाद मछुआरा समाज की मल्लाह, केवट, मांझी, कश्यप, बिन्द,धीवर आदि जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण और निषाद मछुआरा जातियों के परंपरागत अधिकारों की बात को भूलकर निज स्वार्थ और परिवार हित के लिए काम कर रहे हैं।"

उन्होंने आगे कहा कि "निषाद पार्टी डॉ. संजय निषाद एंड फेमिली की प्राइवेट लिमिटेड लूट कंपनी है। निषाद समाज को धोखे में रखा जा रहा है वह स्वयं भाजपा के एमएलसी मंत्री हैं और एक पुत्र भाजपा सांसद व दूसरा भाजपा का विधायक है। क्या जिस पार्टी का अध्यक्ष और बेटे भाजपा के एमएलसी, सांसद, विधायक हैं उसे कैसे निषाद मछुआरा समाज की पार्टी कहा जा सकता है?”

डॉ. संजय पर आरोप

लौटन राम निषाद का आरोप है कि "डॉ. संजय निषाद और उनके परिवार ने मछुआरों के लिए प्रधानमंत्री के 36 लाख करोड़ का झूठा सपना दिखाकर प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के नाम पर धनवान बनाने लालच दिया गया, लेकिन निषाद मछुआरा समाज को मिला कुछ नहीं, उल्टे मत्स्य पालन पट्टा आदि जैसे सभी परंपरागत पेशे सार्वजनिक कर माफियाओं के हाथों नीलाम कर दिया गया।

लौटन राम ने निषाद समाज से डॉ. संजय निषाद और उनके परिवार के बहकावे में नहीं आने की अपील करते हुए कहा कि "मस्जिद तोड़ने के आंदोलन में शामिल होते हैं तो प्रदेश में सांप्रदायिक आग लग जाएगी, जिसमें सबसे अधिक निषाद, बिन्द, कश्यप आदि को नुकसान होगा।"

"बीजेपी ने धोका दिया"

आरक्षण के मुद्दे पर बात करते हुए राष्ट्रीय निषाद संघ के सचिव कहते हैं, "बीजेपी ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का वादा पूरा नहीं कर के धोखा दिया है। बालू-मोरंग खनन, मत्स्य पालन पट्टा जैसे निषाद मछुआ समाज के परंपरागत पुश्तैनी पेशों को सार्वजनिक कर बालू, नदी और मत्स्य माफियाओं के हाथों नीलाम कर निषाद मछुआरों को बेकारी, बदहाली की स्थिति में पहुंचा दिया है।

"निषाद का स्थापना दिवस या बीजेपी का सम्मेलन?”

निषाद समाज के नेता जय प्रकाश निषाद कहते हैं कि गोरखपुर में 16 अगस्त को हुआ कार्यक्रम निषाद पार्टी का नहीं बल्कि एक तरह से बीजेपी का एक आयोजन था जिसमें डॉ. संजय निषाद शामिल हुए थे। वह अपनी बात का तर्क देते हुए कहते हैं, "वहां मंच पर निषाद पार्टी से अधिक बीजेपी व अन्य दालों के नेता थे।"

इसी वर्ष निषाद महाकुंभ का आयोजन कर चुके जय प्रकाश निषाद कहते हैं कि "डॉ. संजय निषाद की समाज में लोकप्रियता कम हो रही है इसलिए अब वह बीजेपी के एजेंडा को आगे बढ़ा कर बीजेपी नेताओं को खुश रखना चाहते हैं। क़रीब 61 प्रतिशत निषाद समाज ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन गुज़ार रहा है, उनके विकास के लिए निषाद पार्टी ने सत्ता में शामिल रहते हुए क्या किया?”

बता दें कि निषाद मछुआरे समाज को कहा जाता है। निषाद नेता बताते हैं कि "निषाद विभिन्न समुदायों को निरूपित करते हैं, जिनके पारंपरिक व्यवसाय जल-केंद्रित रहे हैं। इनमें रेत ड्रेजिंग, नौका विहार और मछली पकड़ना आदि शामिल है। उत्तर प्रदेश में निषाद शब्द 17 ओबीसी समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। निषाद समुदाय में केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, नोनिया, मांझी और गोंड जैसी जातियां आती हैं। प्रदेश में करीब 60 विधानसभा सीटों पर ये जातियां प्रभाव रखती हैं।"

आरक्षण के लिए हंगामा

विधानसभा चुनाव 2022 से पहले दिसंबर 2021 में गृहमंत्री अमित शाह के लखनऊ दौरे का आगाज रमाबाई मैदान में आयोजित निषाद पार्टी की विशाल रैली से किया गया था। जहां रैली में निषाद समाज के लोग भारी संख्या में आए हुए थे। रैली के दौरान निषाद समाज के लिए आरक्षण की घोषणा भी होने की उम्मीद थी। लेकिन ऐसा कोई ऐलान न होने के कारण निषाद समाज के लोगों में नाराज़गी साफ़ दिखाई दी थी। उस समय निषाद पार्टी के समर्थक भाजपा को वोट न देने की बात कहते हुए हंगामा करते दिखाई दिए थे।

दरअसल लखनऊ की रैली में डॉ. संजय निषाद भी चाह रहे थे कि विधानसभा चुनावों में उसके मंच से अमित शाह यह ऐलान कर दें कि निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की उनकी मांग को जल्द पूरा किया जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। डॉ. संजय निषाद ने भी इसको लेकर नाराज़गी जताई थी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भी लिखा था।

लेकिन अब आरोप लग रहे हैं कि 2024 आते-आते वह आरक्षण का मुद्दा पीछे और सांप्रदायिकता को आगे कर रहे हैं। अब देखना यह है वह सामाजिक न्याय के मुक़ाबले सामाजिक ध्रुवीकरण के नैरटिव को भविष्य में कैसे आगे ले जाएंगे?

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