'जनगायक गदर ने लोक की शास्त्रीय महत्ता को स्थापित किया' : अरुण कमल

सुप्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए कहा,"गदर एक नए तरह के कवि, नए तरह के गायक और नए तरह के नर्तक थे जो अंत तक लाल झंडा के साथ रहे। गदर का सबसे बड़ा योगदान न सिर्फ कम्युनिस्ट आंदोलन को बल्कि पूरे भारत के सांस्कृतिक आंदोलन को यह है कि उन्होंने लोक की शास्त्रीय महत्ता स्थापित की। इप्टा की जो महान धारा है जिसमे अमर शेख, अन्ना भाऊ सेठ और गीतकार शैलेंद्र आते हैं उसे गदर ने आगे बढ़ाया। प्रगतिशील लेखक संघ का जब हैदराबाद में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ तो खगेंद्र ठाकुर बताते थे कि उसमें गदर अचानक से आ गए और आगे आकर गाने लगे तो उससे काफी उत्तेजना फैली और काफी लोग उन्हें देखने के लिए आगे आ गए।"
प्रारंभ में संचालक युवा रंगकर्मी जयप्रकाश ने गदर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया, "गदर की 74 वर्ष की अवस्था में मृत्यु हुई। कॉलेज के दिनो में ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वे वामपंथी आंदोलन से जुड़े। अस्सी के दशक में जन नाट्य मंडली का निर्माण किया। उनके पिता आंबेडकर से मिल चुके थे। अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण उन्हें चार गोली मारी गई। एक गोली तो उनकी रीढ़ की हड्डी में ही अंत तक फंसी रही। गोली लगने के बाद भी उनकी गतिविधियों में कोई कमी नहीं आई। तेलंगाना राज्य के निर्माण के लिए चले आंदोलन में भी वे काफी सक्रिय रहे।"
संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने श्रद्धांजलि सभा में गदर के साथ के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा "जब 6 अप्रैल 1997 को गोली लगी। उसके ठीक कुछ दिन पहले सीवान में जनेवि छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर की हत्या हुई थी। तब हम लेगों ने उसके खिलाफ गांधी मैदान के 'सफदर हाशमी रंगभूमि' पर एक सप्ताह तक प्रतिरोध कार्यक्रम आयोजित किया था। मुझे उनका पटना में उनके एक वर्कशॉप में भाग लेने का मौका मिला। गदर कहा करते थे कि हमारे गीत, संगीत आदि का स्रोत श्रमिक जनता रही है। वे उदाहरण देकर बताते की नृत्य की मुद्राएं व भंगिमाएं खेती, किसानी और आम दैनिक जीवन की गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।
उसी दौरान मैंने उनका इंटरव्यू भी लिया। तब बिहार में रणवीर सेना द्वारा नरसंहार किया जा रहा था। राज्य में इसे लेकर काफी चिंता का माहौल था। गदर की कही एक बात आज भी याद है जिसमें उन्होंने कहा था यदि राज्य और पुलिस हट जाए तो एक दिन में हमलोग रणवीर सेना को समाप्त कर देंगे। इसके अलावा वे अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में भी आया करते।
गांधी मैदान में भी भीड़ के सामने उनका दिया गया कार्यक्रम आज भी याद है। उनके द्वारा गाया गया गीत 'देखो रे देखो भैया अमेरिका वाला आया, ब्रिटेन जापान के संघ अमरीका वाला आया, बम से भरे बैग लेकर, बंदूकें लोड करके भारत माता की छाती पर है पांव रख रहा देखो साला.....हमलोगो द्वारा खूब गया जाता था और पटना में काफी लोकप्रिय भी था। बिहार में अमिताभ, रामबली व्यास जैसे कलाकार गदर के गीतों को गाया करते थे। 1979 में बनी तेलगु फिल्म 'मां मातृभूमि' काफी चर्चित रही थी। वे जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में थे वह 1960 से 1980 तक युवाओं के लिए वामपंथी राजनीति की प्रयोगशाला की तरह था। 1990 में जब भूमिगत जीवन के बाद बाहर आए तो हैदराबाद के एक कॉलेज में शहीद हुए साथियों पर आधारित गीत की प्रस्तुति ने उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया। इस सभा में जो लोग भी शामिल थे वे उनके जज्बे को आज भी याद करते हैं। गीत में वे बताते हैं को जो लड़ते हुए शहीद हो गए वे सितारों से जा मिले हैं।"
बालगोविंद सिंह ने कहा " गदर बहुत बड़े क्रांतिकारी थे। रंगकर्मियों का जो काम होता है उसकी मशाल थे गदर। उनकी आवाज, उनकी आंखों की चमक तमाम नौजवानों को आकर्षित किया करती थी। वे नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़े थे। श्री-श्री, गदर और वरवर राव इन तीनों को आंध्र में बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त था।"
चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद सिन्हा ने श्रद्धांजलि सभा में कहा, "गदर ने तेलंगाना के आदिवासी किसान की भावनाओं को अपने गीतों में जगह दी। गदर में सामाजिक बदलाव का जज्बा था। जनवाद और समाजवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अतुलनीय है। सोचना चाहिए की हिंदी बेल्ट में सांस्कृतिक आंदोलन इतना कमजोर क्यों है? जनता राजनीति के बजाए संस्कृतिकर्म के माध्यम से कही गई बात को अधिक समझती है। जैसे माओ ने लू शुन के बारे में कहा था कि वे सांस्कृतिक आंदोलन के अग्रदूत थे। ठीक उसी प्रकार गदर भारत के सांस्कृतिक आंदोलन के अग्रदूत थे।"
प्रलेस के सुनील सिंह ने कई घटनाओं का उदाहरण देते हुए कहा, "गदर, आंध्र के तेलंगाना के इलाके में सक्रिय थे। कम्युनिस्ट आंदोलन पर दमन चल रहा था उसके कारण वे भूमिगत हो गए थे। जो लोग मारे गए थे उन लोगों को ध्यान में रखकर उनका 'बंदनालू' नामक संग्रह आया। लेकिन इस कविता को धुन देने के लिए उन्होंने महिलाओं के रोने की आवाज को आधार बनाया था। उन्होंने देखा की इतनी शहादत के बाद भी दलितों की स्थिति में क्यों नहीं सुधार हुआ तो उन्हें लगा कि जाति का सवाल भी उठाना चाहिए। बाद के दिनों में वे अपने गीतों की तरह प्रयोगधर्मी बने रहे। गदर देख रहे थे कि हिंदुस्तान में फासीवाद का जो उभार हो रहा है उसके लिए सबको मिलकर काम करना होगा। यही चीज उन्हें कांग्रेस सहित अन्य दलों के पास लेकर गई।"
अनिल अंशुमन ने गदर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा "गदर सर्वहारा के सांस्कृतिक संगठक व नायक थे। वे जनता के कवि, गायक और क्रांतिकारी बदलाव के संस्कृतिकर्मी थे। वे वैकल्पिक धारा को वाणी प्रदान करने वाले गायक थे। तेलंगाना का सशस्त्र आंदोलन हम वामपंथियों के लिए पाठ्यक्रम की तरह रहा है। गदर मार्क्सवाद, लेनिनवाद और माओ विचारधारा के साथ जुड़े थे। गदर कभी भी सत्ता के आगे झुके नहीं और कभी समर्पण नही किया। बात हो रही है कि वे आंबेडकरवाद की तरफ झुक गए और भी इसी तरह की बातें। लेकिन ये बात उनके गीतों और संस्कृतिकर्म में नहीं झलकतीं। गदर ने 'जन नाट्य मंडली' और 'विरसम' जैसे संगठनों का निर्माण किया। हम अब शहीदों को लेकर कुछ पुराना गीत जैसे ऐ लाल फरेरे तेरी कसम ...अब नहीं गा पाते। क्योंकि संदर्भ बदल गया है। हिंदी पट्टी में फासीवाद मजबूत है लेकिन बिहार में थोड़ी संभावना है। हमें इस बात से सचेत रहना होगा कि सत्ता से भी पैसा लें और उसका विरोध भी करें। यह कैसे होगा?"
स्वतंत्र पत्रकार पुष्पराज ने कहा " बड़े दुख की बात है कि मोबाइल और एंड्रॉयड के दौर में भी हिंदी पट्टी में गदर के गीत उपलब्ध नहीं है। 2004 में वर्ल्ड सोशल फोरम के समानांतर हुए मुंबई रेजिस्टेंस में वे शामिल हुए थे। उनका हिंदी क्षेत्र में न घूम पाना भारत के सांस्कृतिक आंदोलन की सबसे बड़ी दुर्घटना थी। गदर खाली बदन में लाल कपड़ा इस कारण नहीं पहनते थे कि वे गांधी से प्रभावित थे बल्कि खुले देह में उनको लगता था कि उनके व्यक्तित्व का रोवां, रोवां खुल रहा है। गदर की हिंदी जुबान कहां है? अफसोस है कि गदर विचारधारा की सीमा से जुड़े होने के कारण फैल नहीं पाए।"
जयप्रकाश ने सामाजिक कार्यकर्ता अनिल सिन्हा द्वारा भेजे गए शोक संदेश का पाठ किया। इस संदेश में अनिल सिन्हा ने कहा, "वे कवि लोकगायक, जन नाट्य विधा से जागृत करने वाले विलक्षण कवि थे। उनकी तुलना बिहार के भिखारी ठाकुर से की जा सकती है। इसका विलक्षण रूप वर्ल्ड इकौनौमिक फोरम के समांतर आयोजित कार्यक्रम में दी गई उनकी प्रस्तुति अविस्मरणीय है। यह उनके जीवन की पराकाष्ठा है। उनकी कृति 'वंदनालू' शोक का वह विलाप है जिसका कभी कोई अंत नहीं होता है। इसका ट्यून माताओं का विलाप है जब वह मृत बच्चों पर विलाप करती है। गदर यहां स्वयं मां बन जाते है।"
श्रद्धांजलि सभा में सूर्यकर जितेंद्र ने भी संबोधित किया।
प्रख्यात जनगायक और क्रांतिकारी सांस्कृतिकर्मी गदर की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन मैत्री-शांति भवन में अभियान सांस्कृतिक मंच, पटना द्वारा आयोजित किया गया। श्रद्धांजलि सभा में पटना के रंगकर्मी, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि मौजूद थे। सर्वप्रथम गदर की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया।
अंत में गदर की याद में एक मिनट का मौन रखा गया। सभा में नंदकिशोर सिंह, कुलभूषण गोपाल, अभय कुमार पांडे, डॉ अंकित, कपिलदेव वर्मा, सतीश कुमार, मनोज कुमार झा आदि प्रमुख लोग मौजूद थे।
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