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सभी दलों ने किया सीज़फायर का स्वागत, लेकिन ट्रंप की मध्यस्थता पर सवाल

सभी विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री से तत्काल संसद का विशेष सत्र बुलाकर पूरी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है।
sachin pilot
सीज़फायर पर कांग्रेस का पक्ष रखते हुए सचिन पायलट

भारत–पाकिस्तान के बीच हुए सीज़फायर पर विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं हैं। सभी विपक्षी दलों ने इस संघर्ष विराम का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही इसमें अमेरिकी मध्यस्थता को लेकर कुछ सवाल भी उठाए हैं। और प्रधानमंत्री से तत्काल संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने की मांग की है। 

कांग्रेस की ओर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट ने मीडिया से कहा कि "पिछले कई दशकों से हमारी विदेश नीति बड़ी स्पष्ट थी। उसमें मध्यस्थता, समझौते और तीसरे पक्ष के शामिल होने की बात नहीं होती थी। ऐसे में हमारी अपील है कि सरकार को सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए।

हमारे सैनिकों ने पिछले दिनों जिस ताकत, शौर्य और कार्यकुशलता से पाकिस्तान को मजा चखाने का काम किया है, उस पर हम सभी को नाज और फ़ख़्र है।" 

कांग्रेस ने सवाल कई गंभीर सवाल पूछे हैं– "यह जो मध्यस्थता हुई है, क्या इसे भारत सरकार ने Accept किया है? अमेरिका ने किन शर्तों पर इस प्रकार की घोषणा की है, यह बहुत बड़ा सवाल है। इसमें कश्मीर का जिक्र भी किया गया है। डिप्लोमेसी का अपना एक रोल है, लेकिन अगर इस प्रकार वॉशिंगटन से सीजफायर की घोषणा होती है, तो कई सवाल खड़े होते हैं।"

सभी प्रमुख वाम दलों ने भी सेना के साहस की प्रशंसा करते हुए सरकार से सवाल पूछे हैं–

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी–मार्क्सवादी (CPI-M) के पोलित ब्यूरो बयान जारी कर कहा कि "भारत और पाकिस्तान के बीच तत्काल प्रभाव से लागू होने वाले संघर्षविराम की घोषणा का सकारात्मक रूप से स्वागत करती है। दोनों देशों की जनता शांति की हक़दार है ताकि वे तरक़्क़ी और खुशहाली की दिशा में आगे बढ़ सकें। हम दिल से आशा करते हैं कि दोनों देश इस पहल को आगे बढ़ाएं। पाकिस्तान को अपनी सीमा से आतंकवादी गतिविधियों पर पूरी तरह रोक सुनिश्चित करनी चाहिए। यह ज़रूरी है कि आगे कोई टकराव न हो, इसके लिए उचित कदम उठाए जाएं।"

CPI-M के ही लोकसभा सांसद और किसान नेता अमराराम ने ग्वालियर में कहा कि – "युद्धविराम की घोषणा एक अच्छी और स्वागतयोग्य बात है किन्तु अमेरिका द्वारा इसके लिए की गयी मध्यस्थता की खबर चिंताजनक बात है। आजादी के बाद से लेकर आज तक चाहे कश्मीर का सवाल हो या पाकिस्तान अथवा किसी भी और देश के साथ सीमा विवाद का प्रश्न भारत की यह नीति रही है कि वह  किसी भी तीसरी शक्ति के हस्तक्षेप या भूमिका को स्वीकार नहीं करेगा।   
पहलगाम के जघन्य और निंदनीय आतंकी हमले के बाद के घटना विकास में अमेरीका के चौधरी बनने की कोशिश इस नीति के विपरीत है। प्रधानमंत्री को इस बारे में स्थिति साफ़ करना चाहिए। भारत की जनता अमेरिकी मध्यस्थता को कभी स्वीकार नहीं करेगी।"  

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने भी कहा कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष विराम समझौते का स्वागत करती है और इसे क्षेत्र में शांति बनाए रखने की दिशा में एक सकारात्मक क़दम मानती है, जिससे नियंत्रण रेखा के आसपास रहने वाले लोगों को राहत मिली है। 
हालांकि CPI अमेरिका की इस प्रक्रिया में कथित भूमिका को लेकर गहरी चिंता जताती है। यह द्विपक्षीय मुद्दा था जिसे भारत और पाकिस्तान सीधे संवाद के ज़रिये सुलझा सकते थे। अमेरिका जैसी साम्राज्यवादी शक्ति को इसमें शामिल करना शिमला समझौते की आत्मा के विरुद्ध है और इससे कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण होता है। 

CPI मांग करती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पष्ट करें कि अमेरिका की क्या भूमिका रही और कैसे अमेरिकी राष्ट्रपति ने पहले संघर्षविराम की घोषणा कर दी। साथ ही, CPI संसद का विशेष सत्र बुलाकर इस पर पारदर्शी चर्चा कराने की मांग करती है।

भाकपा माले (CPI-ML) ने भी इस संबंध में अपना बयान जारी किया है–

“तो क्या अब मोदी के नेतृत्व वाला भारत, एक पूर्ण पैमाने पर भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष की आशंकाओं के बीच अमेरिका की मध्यस्थता की 'एक लंबी रात' के बाद ही युद्धविराम पर सहमत हो पाया है? देश में बीते तीन दिनों से बढ़ती चिंता के बीच युद्धविराम की खबर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके अधिकारियों ने दी, जिसे भारत और पाकिस्तान ने बाद में जाकर पुष्टि की।

काश, दोनों देश की सरकारें अपनी जनता की आवाज़ सुनतीं और अमेरिका जैसे बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश न छोड़तीं। 

मोदी सरकार को बीते कुछ दिनों में 'राष्ट्रीय सुरक्षा' के नाम पर उठाए गए मनमाने कदमों को तुरंत वापस लेना चाहिए और उन नागरिकों व मीडिया मंचों के संवैधानिक अधिकारों की गारंटी देनी चाहिए जिन्होंने इस हमले को संभव बनाने वाली चूकों पर सवाल उठाए, नफ़रत और उन्माद को ठुकराया और शांति और न्याय की मांग की।”

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने अपने X हैंडल पर पोस्ट किया– “प्रधानमंत्री जी से आग्रह है कि संसद का विशेष सत्र बुलाकर पहलगाम की आतंकी घटना से लेकर सीजफायर तक तिथिवार और बिंदुवार जानकारी देते हुए देश को भरोसे में लें ताकि समस्त भारतवासी संसद के माध्यम से एक स्वर एक ध्वनि में भारतीय सेना के शौर्य, वीरता और पराक्रम को धन्यवाद देते हुए विभिन्न पहलुओं पर विचार रखें…।” 

ज़्यादातर अन्य दलों ने भी इसी तरह की प्रतिक्रिया दी है और जल्द से जल्द सर्वदलीय बैठक या संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। 

वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने तो कहा कि विपक्ष को इस बार तभी सर्वदलीय बैठक में तभी जाना चाहिए जब सरकार ये आश्वासन दे कि उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। उन्होंने भी संसद का विशेष सत्र तत्काल बुलाने की मांग की

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