हेमंत सोरेन खनन पट्टा मामला: निर्वाचन आयोग ने झारखंड के राज्यपाल को अपनी राय भेजी

नयी दिल्ली: निर्वाचन आयोग ने झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को उस याचिका पर अपनी राय भेज दी है, जिसमें दावा किया गया है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक खनन पट्टे का विस्तार अपने लिए करके चुनावी कानून का उल्लंघन किया है। याचिका में सोरेन को एक विधायक के तौर पर अयोग्य घोषित किए जाने की मांग की गई है।
सूत्रों ने बृहस्पतिवार को बताया कि आयोग ने अपनी राय आज सुबह सीलबंद लिफाफे में झारखंड के राजभवन को भेज दी। झारखंड के राज्यपाल ने इस मामले को आयोग को भेजा था।
मामले में याचिकाकर्ता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) है जिसने जन प्रतिनिधि कानून की धारा नौ ए का उल्लंघन करने के लिए सोरेन को अयोग्य ठहराने की मांग की है।
यह ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामले है। बताया जा रहा है कि राज्यपाल ने हेमंत सोरेन को अयोग्य ठहराए जाने पर मुहर लगा दी है। हालांकि अभी इसका औपचारिक ऐलान नहीं किया गया है। माना जा रहा है कि दोपहर तक ऐलान हो जाएगा। यदि ऐसा होता है तो उनकी विधायकी संकट में आजाएगी। इसके अलावा सोरेन पर पांच साल तक के लिए चुनाव लड़ने पर भी रोक लग सकती है।
आरोप है कि मुख्यमंत्री रहते सोरेन ने खदान आवंटित किए थे और अपनी शैल कंपनियां बनाकर उसका गलत तरीके से लाभ उठाने की कोशिश की थी। हालांकि सोरेन ने इस मामले पर अपने ऊपर लगे आरोपों के विरोध में हाई कोर्ट याचिका दायर की है।
संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत, किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन के किसी सदस्य की अयोग्यता से संबंधित कोई मामला आता है तो इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा और उनका फैसला अंतिम होगा।
उसमें कहा गया है, “ऐसे किसी भी मामले पर कोई निर्णय देने से पहले राज्यपाल निर्वाचन आयोग की राय लेंगे और उस राय के अनुसार कार्य करेंगे।”
ऐसे मामलों में चुनाव आयोग की भूमिका अर्द्धन्यायिक निकाय की तरह होती है।
सोरेन की विधायकी जाने से क्या होगा?
विधानसभा की सदस्यता रद्द होने पर हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी से भी हाथ धोना पड़ेगा। उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) जिसे राज्य में बहुमत हासिल है उसे राज्य में नए सिरे से किसी और के नेतृत्व में एक नई सरकार का गठन करना होगा। इसके लिए JMM को या तो अपने चुने हुए विधायकों से अपना नया नेता चुनना होगा या फिर गैर-चुने व्यक्ति को भी विधायक दल का नेता बनाया जा सकता है, बशर्ते उसे 6 महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेने हेतु चुनाव लड़ना और जीतना पड़ेगा। विधायक दल का नेता ही राज्य का अगला मुख्यमंत्री बन सकता है। यह उनकी पार्टी के लिए इतना आसान नहीं होगा क्योंकि राज्य में JMM, कांग्रेस, एनसीपी, राजद की गठबंधन वाली सरकार है, ऐसे में सबको एक नाम के लिए राजी करना सोरेन के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। दूसरी ओर, अगर सोरेन अपनी परिवार के किसी सदस्य को, जिसमें उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की सबसे ज्यादा दावेदारी बताई जा रही है, आगे करते हैं, तो उनको अपनी पार्टी के भीतर भी बगावत के तेवर देखने को मिल सकते हैं।
सोरेन आज 4:30 बजे प्रेस कांफ्रेंस करेंगे जिसमें वो ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट मामले पर अपना पक्ष रखेंगे।
(भाषा इनपुट के साथ)
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