क्या तानाशाह हैं त्रिवेंद्र सिंह रावत, आधी रात साध्वी को आश्रम से उठाया

देश ने आधी रात को हासिल आज़ादी का जश्न मनाया था। लेकिन मौजूदा भाजपा हुकूमतें आधी रात को विरोध के स्वर कुचलने के लिए जानी जाएंगी। दिल्ली में विरोध कर रहे छात्रों के साथ ऐसा ही हुआ। देहरादून भी इसकी मिसाल है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने अस्थायी राजधानी में विरोध कर रहे आयुष छात्रों पर आधी रात को लाठियां बरसायीं। हरिद्वार के मातृसदन में अविरल गंगा के लिए अनशन कर रही साध्वी पद्मावती को उठाने के लिए पुलिस दल-बल के साथ आधी रात को पहुंची।
गुरुवार-शुक्रवार की रात 11 बजे भारी पुलिस बल (100 से ज्यादा) हरिद्वार के मातृसदन आश्रम में दाखिल हुआ। साध्वी पद्मावती के विश्राम कक्ष के गेट को पुरुष पुलिस ने तोड़कर प्रवेश किया और पीछे महिला पुलिस साध्वी के विरोध के बावजूद उसे उठा ले गई। इस घटना का वीडियो भी मौजूद है। जिसमें पद्मावती खुद के स्वस्थ्य होने और ज़हर देकर मारने का आरोप लगा रही है। वह कहती हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत तानाशाह हैं।
‘वीआईपी वार्ड में कैदी की तरह रखा गया’
साध्वी पद्मावती को दून अस्पताल के वीआईपी वार्ड में रखा गया है। उनसे किसी को मिलने नहीं दिया जा रहा है। पत्रकारों को भी दूर रखा गया है। मातृसदन आश्रम के संतों ने फ़ोन पर पद्मावती से बात की और ऑडियो क्लिप साझा की। जिसमें वह बता रही हैं कि मेरे सभी मेडिकल टेस्ट ठीक आए हैं। मैं बिलकुल स्वस्थ्य हूं। वह कह रही हैं कि हमारे सामान की इस तरह चेकिंग की गई जैसे कि मै कोई आतंकवादी हूं। हमें वीआईपी वार्ड में कैदी की तरह रखा गया है।
अविरल गंगा के लिए मातृसदन की लंबी तपस्या
गंगा की अविरलता को लेकर हरिद्वार का मातृसदन आश्रम अनशन के ज़रिये एक लंबी लड़ाई पर अडिग है। इसके लिए आश्रम के दो संत निगमानंद और स्वामी सानंद उर्फ प्रो जीडी अग्रवाल अपने प्राणों की आहूति दे चुके हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान मई-जून में मांगें मानने के आश्वासन के साथ केंद्र सरकार ने स्वामी आत्मबोधा नंद के अनशन पर विराम लगवाया, अब उन्हीं मांगों के साथ साध्वी पद्मावती 15 दिसंबर 2019 से अनशन कर रही हैं। अब चुनाव नहीं है तो सरकार को फ़िक्र भी नहीं है। मातृसदन आश्रम कहता है कि मोदी सरकार तो अपने लिखित वादे से पलट गई। साध्वी लगातार आशंका जता रही थीं कि जो निगमानंद के साथ हुआ, स्वामी सानंद के साथ हुआ, अब फिर वही कहानी दोहरायी जाएगी।
मातृसदन आश्रम की 6 प्रमुख मांगों में से मुख्य मांग है कि गंगा पर प्रस्तावित और निर्माणाधीन सभी बांधों को सरकार निरस्त करे। इसमें सिंगोली-भटवारी(रुद्रप्रयाग, अलकनंदा-मंदाकिनी नदी), फाटा-ब्यूंग(रुद्रप्रयाग, मंदाकिनी-अलकनंदा), तपोवन-विष्णुगाड(चमोली,धौलीगंगा), विष्णुगाड-पीपलकोटी (चमोली-अलकनंदा नदी) प्रमुख बांध हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान केंद्र ने मातृसदन आश्रम को दिया लिखित आश्वासन
मई 2019 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने मातृसदन आश्रम को लिखित आश्वासन दिया था कि सरकार इस बारे में जल्द निर्णय लेगी। क्योंकि इसमें अलग-अलग स्टेक होल्डर शामिल हैं तो उनसे बात की जाएगी। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय की टीम ने इस पर स्पॉट विजिट भी किया है और रिपोर्ट तैयार की है। निरीक्षण के दौरान मिली जानकारियों के आधार पर जल-विद्युत परियोजनाओं को लेकर जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा।
मातृसदन के स्वामी दयानंद कहते हैं कि जब नमामि गंगे प्रोजेक्ट के महानिदेशक खुद मातृसदन आश्रम में कई दौर की बैठक करके गए। तो हमने माना कि सरकार सकारात्मक रुख अपना रही है। इसलिए अऩशन को विराम दिया गया और सरकार को अपेक्षित समय दिया गया। लेकिन दिसंबर तक कोई बातचीत न होता देख आश्रम ने फिर अनशन का फ़ैसला लिया। इस बार नालंदा विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट छात्रा साध्वी पद्मावती अनशन के लिए आगे आईं। 15 दिसंबर से वह सिर्फ पानी, नीबू, शहद ले रही हैं। उनका वज़न अब तक 9 किलो घट चुका है।
अपने किए वादे से मुकर गई मोदी सरकार- मातृसदन आश्रम
10 जनवरी को दिल्ली में एनएमसीजी के सभागार में इस सिलसिले में बैठक हुई। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मातृसदन के संतों के साथ इस मुद्दे पर बात की। स्वामी दयानंद कहते हैं कि केंद्र सरकार इस बैठक में अपने किए वादे से सिरे से मुकर गई और कहा कि हमने ऐसा कोई वादा ही नहीं किया। वह बताते हैं कि वहां मौजूद अधिकारी राजीव रंजन मिश्रा के चेहरे पर झलक रही निराशा साफ पढ़ी जा सकती थी। गजेंद्र सिंह शेखावत ने जल शक्ति मंत्रालय में सचिव यूपी सिंह को आगे कर ये कहलवाया कि हमने चारो डैम बंद करने की बात नहीं की थी। ये तो भाषाई खेल कर रहे हैं।
अनशन खत्म करने का दबाव
17 जनवरी को हरिद्वार की एसडीएम कुसुम चौहान ने मातृसदन के स्वामी शिवानंद को मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर अनशन खत्म कराने का नोटिस दिया। साध्वी पद्मावती को भी अलग से अऩशन खत्म कराने का नोटिस दिया गया। इस पर मातृसदन ने प्रशासन से कहा कि वे यदि साध्वी का मेडिकेशन कराना चाहें तो आश्रम में ही कराएं। मातृसदन इससे पहले स्वामी निगमानंद और स्वामी सानंद को ज़हर देकर मारने का आरोप लगा चुका है। बीते शनिवार को मातृसदन की ओर से सीजेएम कोर्ट में प्रार्थना पत्र भी दिया गया, जिसमें साध्वी की सुरक्षा को लेकर आशंका जतायी गई।
बिहार में साध्वी पद्मवती को मांगों का समर्थन
गंगा को लेकर तपस्यारत साध्वी के समर्थन में जलपुरुष राजेंद्र सिंह कई सभाएं कर चुके हैं। 30 जनवरी को बिहार के नालंदा में देवी स्थान में पद्मावती गंगा सत्याग्रह समर्थन सम्मेलन आयोजित किया गया। स्वामी दयानंद कहते हैं कि साध्वी के अनशन को लेकर बिहार में मूवमेंट तेज़ हो रहा है। लेकिन उत्तराखंड इस पर बात करने को तैयार नहीं।
22 जनवरी को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साध्वी की मांगें मानने और अनशन समाप्त करवाने को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। जिसमें उन्हें गंगा को लेकर वर्ष 2017 के पटना घोषणा पत्र और दिल्ली घोषणा पत्र की याद दिलाई। ये घोषणा पत्र गंगा की अविरलता को लेकर पास किए गए थे। 23 जनवरी को बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा और नालंदा सांसद कौशलेंद्र सिंह तपस्या को समर्थन देने मातृसदन आश्रम पहुंचे।
‘हरिद्वार में गंगा के लिए अनशन की जरूरत नहीं-मुख्यमंत्री’
लेकिन उत्तराखंड सरकार का कोई नुमाइंदा मातृसदन नहीं गया। राज्यपाल बेबीरानी मौर्य और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कई बार हरिद्वार आए, यहां के संतों का आशीर्वाद लिया लेकिन मातृसदन आश्रम कोई नहीं पहुंचा। उलटा, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने जवाब दिया कि उनके राज्य में गंगा स्वच्छ है यहां गंगा को लेकर अनशन करने की किसी को आवश्यकता नहीं है। स्वामी दयानंद कहते हैं कि मुख्यमंत्री का बयान तो सामान्य शिष्टाचार से भी परे है।
योगी सरकार के अधिकारी पहुंचे मातृसदन
28 जनवरी को अचानक हरिद्वार के जिलाधिकारी, एसएसपी, एसडीएम, सीओ समेत अन्य अधिकारी मातृसदन आश्रम पहुंचे और साध्वी का हालचाल लिया। उसी रोज सहारनपुर के कमिश्नर की ओर से भेजे गए मुज़फ़्फ़रनगर के एसडीएम भी मातृसदन आश्रम पहुंचे। साध्वी पद्मावती की मांगों के बारे में जानकारी ली। स्वामी दयानंद बताते हैं कि आश्रम से ही उन्होंने अपने उच्च अधिकारियों को फ़ोन कर जानकारी दी।
स्वामी दयानंद बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ बिजनौर में गंगा के कार्यक्रम में आए थे। वहां उनसे लोगों ने साध्वी पद्मावती के अनशन को लेकर बातचीत की और पूछा कि उनकी मांगों को लेकर योगी सरकार क्या कर रही है। जिसके बाद योगी आदित्यनाथ ने सहारनपुर के कमिश्नर से इस बारे में बात की। अनशन खत्म कराने के लिए योगी सरकार का संदेश लेकर उत्तर प्रदेश के अधिकारी पहुंचे थे लेकिन खाली हाथ लौट गए। दयानंद कहते हैं कि संभवत: उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के आश्रम पहुंचने की सूचना के बाद हरिद्वार प्रशासन के अधिकारी उपस्थिति दर्ज कराने के उद्देश्य से आ गए। वरना इससे पहले तो कोई साध्वी से मिलने नहीं आया।
गंगा के पर्यावरणीय प्रवाह का मुद्दा हाईकोर्ट पहुंचा
मातृसदन की दूसरी प्रमुख मांग गंगा के पर्यावरणीय प्रवाह को लेकर है। सरकार ने गंगोत्री से उन्नाव तक गंगा का पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित करने को कहा है। पर्यावरणीय प्रवाह बरकरार रहने पर ही नदी खुद ब खुद स्वच्छ रहेगी, यानी नदी जीवित रहेगी, साथ ही उसके जल-प्राणियों की सुरक्षा के लिए भी यह जरूरी है। जबकि पिछले वर्ष नवंबर में दो निजी और एक सरकारी बांध ने नए मानकों के लिहाज से ई-फ्लो बरकरार रखने से इंकार कर दिया। उनके मुताबिक इससे विद्युत उत्पादन प्रभावित होगा जिससे उनका बड़ा आर्थिक नुकसान होगा। अलकनंदा हाईड्रो पावर कंपनी लिमिटेड, जयप्रकाश पावर वेंचर्स लि. का विष्णु प्रयाग डैम और उत्तराखंड जलविद्युत निगम का मनेरी भाली फेज-2 इसमें शामिल है। ई-फ्लो को लेकर अलकनंदा हाइड्रो पावर राज्य सरकार और केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। कंपनी का कहना है कि इससे 26 वर्ष में उन्हें 3,036 करोड़ का नुकसान होगा।
जो कहते हैं वो करते नहीं!
जलपुरुष राजेंद्र सिंह कहते हैं कि आज मां गंगा बीमार होकर आईसीयू में भर्ती है तो यह कब तक भर्ती रहेगी? जब तक भारत अपना स्वराज नहीं पा सकता। भारत सरकार मां गंगा पर बन रहे बांधों को रोके और नए बांध आगे न बनें। भारत सरकार ने 4 मई 2019 को जो लिखकर दिया है उसे पूरा करने की प्रतिबद्धता दिखाए।
बनारस से चुनाव लड़ते हुए नरेंद्र मोदी खुद को गंगा पुत्र कहते हैं। मातृसदन की इस मांग और अनशन को एक अरसा हो रहा है। बेहतर होगा कि केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत एक स्पष्ट बयान दें कि वे मातृसदन की मांगे मानेंगे, मान सकते हैं या इससे सीधे तौर पर इंकार कर दें। बाकी ये हम सब को तय करना है कि गंगा का पर्यावरणीय प्रवाह ज्यादा जरूरी है या आर्थिक प्रवाह। गंगा आस्था से ज्यादा राजनीतिक की प्रतीक बन गई है।
जिस तरह विरोध के स्वर कुचले जा रहे हैं, आज़ादी के समय अंग्रेजों ने भी इस तरह नहीं किया। गांधी जी अनशन के रास्ते ही देश को आज़ादी के पथ तक लेकर आए। आज की सरकारें विरोध-प्रदर्शन, अनशन से डरी हुई हैं।
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