बिहारः शिक्षकों की हड़ताल से चरमराई शिक्षा व्यवस्था

बिहार की 'सुशासन' सरकार की हठधर्मिता के कारण पिछले 17 फरवरी से प्रदेश के प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों के साथ साथ सभी टेट पास शिक्षक ‘समान वेतन, समान काम’ समेत अपनी सात सूत्री मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। जिससे पूरे प्रदेश के लगभग 76 हज़ार प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में पठन–पाठन और संबंधित सारे कार्य ठप्प पड़ गए हैं।
हाल ही में किसी तरह सम्पन्न हुई मैट्रिक और इंटर की परीक्षाओं के बाद उसकी उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन कार्य बाधित होने के कारण परीक्षाफल निर्धारित समय पर निकलने के भी आसार कम ही दिख रहे हैं। इस हड़ताल के कारण सभी प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्कूलों की पढ़ाई बाधित है वहीं परीक्षाफल में देरी होने से आगे की पढ़ाई करने वाले सभी छात्र – छात्राओं के भविष्य पर भी खतरा मंडराने लगा है।
शिक्षक –कर्मचारी आंदोलनों से जुड़े वरिष्ठ कर्मचारी नेता और अराजपत्रित कर्मचारी संघ (गोप गुट) के अध्यक्ष रामबली का कहना है सरकार के गैर जिम्मेदाराना रवैये से बिहार की लचर शिक्षा व्यवस्था इस हड़ताल के कारण चौपट होने की कगार पर जा पहुंची है। इसका कारण सरकार की हठधर्मिता है। सरकार के सामने आंदोलनकारी शिक्षकों ने अनेकों बार ज्ञापन दिये लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया। सरकार के अलावा राज्य के शिक्षा विभाग ने भी इन मांगों के समाधान की दिशा में कोई कारगर कदम उठाना तो दूर कोई संज्ञान तक नहीं लिया। अब मजबूरी में हड़ताल पर गए शिक्षकों को ही सरकार राज्य में गिरती शिक्षा व्यवस्था का ज़िम्मेदार ठहरा रही है।
शिक्षकों के आंदोलन और हड़ताल का संचालन कर रहे बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के नेताओं का कहना है कि सरकार अभी तक हमसे कोई वार्ता नहीं करके अपनी हठधर्मिता ही दिखा रही है। इससे हड़ताली शिक्षकों का गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है। 13 मार्च के इस हड़ताल में पिछले 27 फरवरी से शामिल टेट उत्तीर्ण शिक्षक संघर्ष समिति के सदस्यों ने राजधानी स्थित गर्दनी बाग धरनास्थल पर सामूहिक मुंडन करवाकर अपने गुस्से का इजहार किया।
इसी दिन प्रदेश के कई इलाकों में हड़ताली शिक्षकों ने नुक्कड़ सभाएं कर जनसंपर्क अभियान चलाया। इसके पहले भी 2 मार्च को सामूहिक भिक्षाटन कर अपना विरोध जताया। 5 मार्च को सभी जिलों में आक्रोश मार्च निकालकर ज़िला शिक्षा अधिकारी के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया गया। सरकार के रुख के खिलाफ आंदोलनकारी शिक्षकों ने होली नहीं मनाई और होलिका दहन के दिन मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री और शिक्षा सचिव का पुतला दहन किया। आंदोलन कर रहे शिक्षकों ने यह भी ऐलान किया है कि प्रदेश सत्ताधारी दल के मंत्री - विधायक प्रदेश में जहां भी जाएंगे उनका घेराव किया जाएगा। खबर है कि इसी कारण राज्य के शिक्षा मंत्री ने 13 से 15 मार्च के अपने बेतिया– बगहा दौरे को स्थगित कर दिया।
शिक्षकों के जारी आंदोलन को लेकर प्रदेश विधान सभा और विधान परिषद में भी विपक्षी दलों के नेताओं ने भी शिक्षकों के आंदोलन और हड़ताल को मुद्दा बनाते हुए सरकार से उनकी मांगों के त्वरित समाधान कर हड़ताल समाप्त कराने की मांग की। जबकि भाकपा माले व अन्य विधायकों ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए हड़ताली शिक्षकों की मांगों के समर्थन में पोस्टर लगाकर प्रदर्शन किया।
माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने बिहार की लचर शिक्षा व्यवस्था के लिए नीतीश कुमार शासन को दोषी ठहराते हुए कहा कि खुद बिहार हाई कोर्ट ने भी प्रदेश में शिक्षा की बदहाल स्थिति के लिए सरकार को फटकार लगाते हुए तल्ख टिप्पणी की है कि – सरकारी विद्यालय फटेहाल किसानों, दलित – गरीबों की चीज़ बन गए हैं। इसीलिए सरकार को हड़ताल और उससे छात्रों को हो रहे नुकसान की कोई चिंता नहीं है।
आंदोलनकारी शिक्षकों ने सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए कहा है 2019 के शिक्षक दिवस के मौके पर राज्य विधानसभा और विधान परिषद में खुद मुख्यमंत्री ने सभी नियोजित शिक्षकों को सातवां वेतनमान देने की घोषणा की थी, आज इससे मुकर कर सभी शिक्षित बेरोजगारों की हकमारी कर रहें हैं। हमारे शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने के लिए दमन और आंदोलनकारी शिक्षकों पर झूठे मुकदमे थोपकर बर्खास्त किया जा रहा है। दर्जनों बार दिए गए हमारे लिखित आवेदनों– ज्ञापनों पर न तो कोई रुचि दिखाई गयी है और न ही अभी तक कोई आश्वासन ही मिला है। जबतक सरकार हमसे सम्मानजनक समझौता नहीं करेगी , हमारा आंदोलन जारी रहेगा।
शिक्षक – कर्मचारी नेता रामबली जी का यह भी कहना है कि कुछ ही महीनों बाद राज्य में विधान सभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार की हठधर्मिता कहीं उसके लिए नुकसानदेह साबित न हो जाए। क्योंकि मामला अब सिर्फ हड़ताली शिक्षकों की मांगों तक ही नहीं सीमित रह गया है अब यह राज्य में शिक्षा बचाओ अभियान का रूप ले चुका है। सरकार समान काम का समान वेतन तो नहीं ही दे रही, शिक्षा सुधार के नाम पर प्रदेश की पूरी शिक्षा व्यवस्था का निजीकरण करने पर तुल गयी है। इसीलिए मिड डे मिल समेत कई ग्रामीण योजनाओं को निजी एजेंसियों के हवाले करने की तैयारी शुरू हो चुकी है। पिछले चुनावों में नीतीश कुमार की सरकार बनाने में शिक्षकों की अहम भूमिका रही है।
जिसे वे सिरे से खारिज कर आज उनकी जायज़ मांगों को भी अनसुना कर रहें हैं। आज प्रदेश में नियोजित और टेट उत्तीर्ण शिक्षकों की बड़ी संख्या जब अपनी जायज़ मांगों को लेकर सड़कों पर आ गयी है तो सरकार को भी समय रहते तानाशाही का रवैया छोड़ कर प्रदेश के अनगिनत स्कूली बच्चों के बेहतर भविष्य के हित में अपने राज्य के शिक्षकों के साथ समन्वय से काम लेना चाहिए।
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