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ख़बरों के आगे–पीछे: अवमानना के मामले में दोहरा रवैया!

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में कुंभ के अर्थव्यवस्था पर असर और केनरा बैंक की पहल समेत कई मुद्दों पर बात कर रहे हैं।
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अभी कुछ दिन पहले ही भाजपा के वरिष्ठ सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका पर बहुत आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना का नाम लेकर कहा था कि संजीव खन्ना की वजह से देश में गृह युद्ध हो रहा है। लेकिन तब अदालत ने भाजपा सांसद के खिलाफ अवमानना का मामला नहीं शुरू किया, बल्कि अदालत के सामने यह मामला आया तो उसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि न्यायपालिका ऐसी छुई मुई नहीं है, जो ऐसी टिप्पणियों से बिखर जाएगी। 

अब उसी सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर एक यूट्यूबर अजय शुक्ला के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला शुरू किया है। आरोप है कि अजय शुक्ला ने अपने यूट्यूब प्लेटफॉर्म पर सुप्रीम कोर्ट से हाल ही में रिटायर हुईं जस्टिस बेला एम त्रिवेदी के लिए अपमानजनक टिप्पणियां की है। 

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्वयं इस पर संज्ञान लिया और सुप्रीम कोर्ट की रजिस्टरी को निर्देश दिया है कि वह अवमानना की कार्रवाई शुरू करे। साथ ही अदालत ने कहा कि संविधान ने अभिव्यक्ति की आजादी दी है लेकिन उसके लिए कुछ शर्तें भी लगाई है और किसी को भी न्यायपालिका का अपमान करने की इजाजत नही दी जा सकती। अब सवाल है कि क्या अजय शुक्ला की टिप्पणी निशिकांत दुबे की टिप्पणी से भी ज्यादा अपमानजनक है और क्या वे निशिकांत दुबे से बड़े व्यक्ति हैं? हकीकत यह है कि उनके चैनल के कुछ हजार सब्सक्राइबर हैं और बहुत कम लोग उनका वीडियो देखते हैं। फिर भी उनकी बात से अदालत की भावना आहत हो गई और मुकदमा शुरू हो गया लेकिन भाजपा के एक सांसद ने प्रधान न्यायाधीश पर देश में गृह युद्ध कराने का आरोप लगाया तो वह टिप्पणी अवमानना के योग्य नहीं मानी गई!

परिसीमन 2029 के बाद ही हो पाएगा

केंद्र सरकार ने जनगणना और उसके साथ ही जातिगत गणना कराने का जो ऐलान किया है, उसके मुताबिक दो चरणों में होने वाली जनगणना अक्टूबर 2026 और एक मार्च 2027 को शुरू हो जाएगी। हालांकि इसके आंकड़े आने में समय लगेगा। इसीलिए सरकार की ओर से कहा गया है कि परिसीमन का काम जनगणना से नहीं जुड़ा है। माना जा रहा है कि इस बार जनगणना डिजिटल डिवाइसेज के साथ होगी, जिससे अंतिम आंकड़े आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। फिर भी एक अनुमान के मुताबिक अंतरिम आंकड़े 2028 से पहले नही आएंगे। अगर जनगणना के अंतरिम आंकड़े 2028 में आएंगे तो अंतिम आंकड़े आने में एक साल के करीब समय और लगेगा। तब तक 2029 का लोकसभा चुनाव आ जाएगा। चूंकि परिसीमन के लिए अलग से एक साल से ज्यादा का समय लगेगा, इसलिए यह 2029 से पहले संभव नहीं होगा। इसका मतलब कि लोकसभा का अगला चुनाव 543 सीटों का ही होगा और उसके बाद परिसीमन का काम होगा। गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा किए गए संविधान संशोधन में भी कहा गया है कि 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा। सो, जनगणना 2027 में होगी, 2029 तक उसके अंतिम आंकड़े आएंगे और उसके बाद परिसीमन होगा। संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण का सवाल भी परिसीमन से जुड़ा है। नारी शक्ति वंदन कानून 2023 में कहा गया है कि परिसीमन के बाद महिला आरक्षण लागू होगा। सो, परिसीमन, सीटों की संख्या में बदलाव और महिला आरक्षण के लिए 2034 तक इंतजार करना होगा।

अर्थव्यवस्था पर नहीं दिखा कुंभ का असर

भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग की ओर से वित्त वर्ष 2024-25 के जारी आंकड़ों के मुताबिक इस वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के बढ़ने की दर 6.5 फीसदी रही। इसके साथ ही यह भी आंकड़ा आया कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च 2025 के बीच जीडीपी बढ़ने की दर 7.4 फीसदी रही। यह आंकड़ा एक साल पहले यानी जनवरी से मार्च 2024 की विकास दर 8.4 फीसदी से एक फीसदी कम रहा। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक ज्यादातर सेक्टर में गिरावट रही। गौरतलब है कि उससे पहले के वित्त वर्ष में विकास दर 9.2 फीसदी रही थी, जो 2024-25 में घट कर साढ़े छह फीसदी पर आ गई। ध्यान देने की बात है कि जनवरी से मार्च की अवधि वह थी, जिसमें उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ चल रहा था। दावा किया गया कि 60 करोड़ से ज्यादा लोगों ने कुंभ में डुबकी लगाई। योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से दावा किया जा रहा था कि कुंभ से तीन लाख करोड़ रुपए का कारोबार जीडीपी में जुड़ेगा और उपभोक्ता खर्च बढ़ने का असर जीडीपी पर दिखाई देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चौथी तिमाही यानी जनवरी से मार्च तक जब कुंभ चल रहा था उस समय उपभोक्ता खर्च बढ़ने की दर सिर्फ छह फीसदी रही, जो उससे पहले की पांच तिमाहियों में सबसे कम है। इसका मतलब है कि कुंभ उपभोक्ता खर्च नहीं बढ़ा पाया और देश की अर्थव्यवस्था पर वैसा सकारात्मक असर नहीं डाल पाया, जैसे असर का प्रचार किया जा रहा था।

केनरा बैंक ने रास्ता दिखाया 

सार्वजनिक क्षेत्र के अपेक्षाकृत छोटे बैंक, केनरा बैंक ने तय किया है कि एक जून से किसी के खाते में निर्धारित न्यूनतम बैलेंस नहीं होने पर उसके खाते से पैसे नहीं काटे जाएंगे। पिछले कुछ समय से सार्वजनिक और निजी बैंकों ने न्यूनतम बैलेंस नहीं होने पर जुर्माना लेना शुरू किया है। न्यूनतम बैलेंस नहीं होने पर खातों से पैसे कट जाते हैं और खाते का पैसा खत्म होने पर खाता बंद हो जाता है। निजी बैंकों ने न्यूनतम बैलेंस पांच हजार से 10 हजार रुपए तक रखा है और इसे मेंटेन नहीं करने पर एक सौ से छह सौ रुपए महीने तक का जुर्माना लगता है। पिछले दिनों यह मामला राज्यसभा में उठाते हुए आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने कहा था कि बैंकों ने सिर्फ इस जुर्माने से वित्त वर्ष 2022-23 में साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए खाताधारकों से वसूले। इसके अलावा बैंक, एक्स्ट्रा एटीएम यूज फीस, बैंक स्टेटमेंट फीस, इनएक्टिविटी फीस और एसएमएस अलर्ट फीस के नाम पर भी ग्राहकों के अकाउंट से पैसे काट लेते हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में बैंकों ने न्यूनतम बैलेंस नहीं होने पर जुर्माने के तौर पर 2,331 करोड़ रुपए खाताधारकों से वसूले हैं। सब जानते हैं कि न्यूनतम बैलेंस मेंटेन नहीं कर पाने वाले सबसे गरीब तबके के लोग होते हैं, लेकिन उनसे भी बैंक हजारों करोड़ रुपए वसूल रहे हैं। केनरा बैंक ने एक रास्ता दिखाया है और अब सार्वजनिक क्षेत्र के बाकी बैंक भी अगर यह रास्ता अपनाए तो निजी बैंकों को भी मजबूरन ऐसा करना पड़ेगा। 

पाकिस्तानी मीडिया में राहुल की चर्चा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के आगे सरेंडर बताने वाले राहुल गांधी के बयान की पाकिस्तानी मीडिया में चर्चा हो रही है। इसे लेकर पूरी भाजपा राहुल को गद्दार और पाकिस्तानी मीडिया का नायक बता रही है। भारत के टीवी चैनल भी भाजपा के सुर में सुर मिलाते मिलाते हुए राहुल और कांग्रेस से सवाल पूछ रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी प्रधानमंत्री मोदी पर राहुल से भी ज्यादा तीखा हमला करते हुए 6 भारतीय विमानों के गिरने का दावा कर रहे हैं। यही नहीं, वे सीजफायर कराने के अमेरिकी राष्ट्रपति के दावे को भी सही बता रहे हैं। भारतीय विमानों के गिरने की बात भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने भी मानी है। मगर पाकिस्तानी मीडिया स्वामी और जनरल चौहान के बयानों को तवज्जो न देते हुए सिर्फ राहुल के बयान की चर्चा कर रहा है। ऐसा क्यों? बहुत सीधी सी बात है- जैसा टेलीविजन मीडिया भारत का है, वैसा ही पाकिस्तान का भी है। जब हमारे यहां के टीवी चैनल पैसे के लिए किसी भी हद तक गिरने को तत्पर रहते हैं तो पाकिस्तानी टीवी चैनल ऐसा क्यों नहीं कर सकते? जब हमारे टीवी चैनल देश में युद्धोन्माद पैदा करने के लिए सरकार की शह पर पाकिस्तानी सेना के किसी भी पूर्व अधिकारी, वहां के किसी भी नेता, पत्रकार या किसी टपोरी को 10-20 हजार रुपये देकर भारत को, भारतीय प्रधानमंत्री और भारतीय सेना को गालियां दिलवा सकते हैं तो पाकिस्तान के टीवी चैनलों को कुछ पैसे देकर उनसे राहुल गांधी के बयानों पर चर्चा कराना कौनसी बड़ी बात है?

आपातकाल के 50 साल पर विशेष सत्र?

केंद्र सरकार आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर संसद का विशेष सत्र बुला सकती है। कांग्रेस के महासचिव और संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने कहा है कि सरकार 25 और 26 जून को दो दिन का विशेष सत्र बुला सकती है, जिसमें आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर चर्चा होगी। पता नहीं सरकार का इस तरह की कोई इरादा है या नही लेकिन कांग्रेस ने उससे पहले ही इसका माहौल बना दिया। कांग्रेस की ओर से कहा जा रहा है कि पहलगाम कांड और उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए सरकार विशेष सत्र नहीं बुला रही है। गौरतलब है कि कांग्रेस, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस आदि पार्टियों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। लेकिन सरकार ने इससे इनकार किया है। अगर इंदिरा गांधी द्बारा 1975 में लगाए गए आपातकाल के 50 साल पूरे होने के मौके पर विशेष सत्र होता है तो कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा बनाएगी। अगर विशेष सत्र होता है तो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल उसमें आपातकाल की बजाय पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग करेंगे और अपनी ओर से विपक्ष के नेता इसी मसले पर बोलेंगे। वैसे विपक्ष की ओर से केंद्र सरकार पर देश मे अघोषित आपातकाल लगाने का आरोप लगाया जाता है। वह मुद्दा भी विशेष सत्र में आ सकता है। सरकार को भी अंदाजा है कि विशेष सत्र बुलाया तो पहलगाम, ऑपरेशन सिंदूर, सीजफायर जैसे तमाम मुद्दे उठेंगे।

बंगाल में भाजपा के सामने संकट

पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के सामने एक बड़ा संकट आता दिख रहा है। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा को तोड़ने की कोशिश में हैं। हालांकि इसमें कितनी कामयाबी मिलेगी यह नहीं कहा जा सकता है लेकिन फिलहाल एक नाम ऐसा दिख रहा है, जो अपनी पार्टी से दूरी बनाए हुए है। वह नाम है पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सांसद दिलीप घोष का। वे पिछले कुछ दिनों से पार्टी से नाराज चल रहे है। वे हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए और उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में भी नहीं गए। इसका मुद्दा बना तो दिलीप घोष ने कहा है कि उन्हें बुलाया नहीं गया था इसलिए वे नहीं गए। असल मे पिछले दिनों दिलीप घोष ने 61 साल की उम्र में अपनी पार्टी की एक नेता रिंकू मजूमदार से शादी की है। उसके बाद से ही वे पार्टी में कई नेताओं के निशाने पर हैं। इसी दौरान ममता बनर्जी से हुई उनकी मुलाकात से भी पार्टी के नेता नाराज हैं। एक कारण यह भी है कि दिलीप घोष लगातार प्रदेश में भाजपा विधायक दल के नेता सुवेंदु अधिकारी पर हमला कर रहे हैं। उन्होंने सुवेंदु को बाहरी बताते हुए कहा कि बाहर से नेता लाने के बाद भाजपा कमजोर हो रही है, जबकि उनके नेतृत्व में भाजपा मजबूत हुई थी। कहा जा रहा है कि दिलीप घोष जल्दी ही तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।

पूजा खेडकर पर इतनी मेहरबानी क्यों

फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर करीब एक दर्जन बार संघ लोकसेवा आयोग यानी यूपीएससी की परीक्षा में बैठ कर आईएएस बनी पूजा खेडकर को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ गिरफ्तारी से राहत दी है, बल्कि उन्हें अग्रिम अंतरिम जमानत देते हुए, जो टिप्पणी की उससे ऐसा लग रहा है कि आगे शायद ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हो। सर्वोच्च अदालत ने सवालिया लहजे में कहा कि पूजा खेडकर ने क्या कोई हत्या की है या वह कोई ड्रग कार्टेल चला रही है। अदालत ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि पहले ही उनकी नौकरी चली गई है, अब ज्यादा परेशान करने की जरुरत नहीं है। हैरानी की बात है कि जिस महिला ने देश की सर्वोच्च सेवा में नियुक्ति की परीक्षा आयोजित करने वाले संघ लोक सेवा आयोग जैसी संस्था के लूप होल्स का फायदा उठा कर फर्जीवाड़ा किया, जिसके ऊपर कई बार नाम बदलने और फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर परीक्षा में शामिल होने के आरोप लगे हैं, उसके फर्जीवाड़े की वजह से यूपीएससी की बदनामी हुई और अंत में यूपीएससी ने उसकी नियुक्ति रद्द की, जिस महिला ने ट्रेनी आईएएस के तौर पर लक्जरी गाड़ी पर लाल बत्ती लगा कर तमाशा खड़ा किया, उसे हर जगह से राहत मिलती जा रही है! जो नौकरी उसने फर्जीवाड़ा करके हासिल की थी वह नौकरी वापस ले लेना कोई सजा नहीं है। सजा तो फर्जीवाड़े की मिलनी चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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