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ख़बरों के आगे-पीछे: बदल रही है पूर्वोत्तर की सियासत

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अनिल अंबानी केस के साथ शशि थरूर और केजरीवाल की राजनीति पर बात कर रहे हैं। साथ ही पूर्वोत्तर की सियासत में क्या कुछ बदल रहा है इससी भी चर्चा कर रहे हैं।
HIMANTA-RIO
तस्वीर में बाएं असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, दाएं- नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो

 

अनिल अंबानी की गिरफ़्तारी क्यों नहीं?

देश के सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी के छोटे भाई और एक समय सरकार के चहेते कारोबारी रहे अनिल अंबानी की मुश्किलें बढ़ रही है। लेकिन मुश्किलें बढ़ने के बाद यह भी सवाल है कि उन्हें इतनी रियायतें क्यो मिल रही हैं? उनके खिलाफ जितने मामले हैं और उनमें जिस तरह की कार्रवाई की खबरें आ रही हैं, उन्हें देखते हुए उनकी गिरफ्तारी बहुत पहले हो जानी चाहिए थी। 

ऐसे मामलों में आमतौर पर केंद्रीय एजेसियां गिरफ्तारी पहले करती हैं और बाकी कार्रवाई उसके बाद होती है। लेकिन अनिल अंबानी पर सारी कार्रवाई हो रही है, मगर गिरफ्तारी नहीं हो रही है। 

खबर है कि ईडी ने अनिल अंबानी समूह की कंपनियों की तीन हजार करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की है। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की जा रही है। इससे पहले खबर आई थी कि उनके बेटे जय अनमोल पर भी वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगे हैं। उससे पहले खबर आई थी कि देश के दो बड़े बैंकों ने अनिल अंबानी की कंपनी के एकाउंट को फ्रॉड घोषित किया है। उन पर 17 हजार करोड़ रुपए की आर्थिक गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं लेकिन उनसे टुकड़ों-टुकड़ों में पूछताछ हो रही है। इसीलिए सवाल है कि आगे क्या होगा? इसी तरह धीमी गति से मामला चलता रहेगा या सचमुच कोई कार्रवाई होगी या फिर मामला आहिस्ता-आहिस्ता ठंडे बस्ते में चला जाएगा? गौरतलब है कि अनिल अंबानी ही वह पहले शख्स थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कामना की थी।

कोयला घोटाले में भी कोई दोषी नहीं

डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की बदनामी और 2014 में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार की सबसे बड़ी वजह दो कथित घोटाले बने थे। पहले 2जी स्पेक्ट्रम यानी दूरसंचार घोटाला और फिर कोयला घोटाला सामने आया। कहा गया कि दूरसंचार घोटाला एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए का है और उसके बाद सामने आया कोयला घोटाला तीन लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का बताया गया। 

सरकार के खिलाफ ऐसा माहौल बना कि कांग्रेस बुरी तरह हार गई और भाजपा की ऐतिहासिक जीत हुई। इसी हवा में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार भी बन गई। लेकिन अब एक-एक करके इन दोनों घोटालों के आरोपी बरी हो रहे हैं। दूरसंचार घोटाले के मुख्य आरोपी तत्कालीन संचार मंत्री ए.राजा सहित सब बरी हो गए। काफी समय के बाद सीबीआई ने अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत मे चुनौती दी। हालांकि उसमें यह लगभग तय है कि किसी को कुछ नहीं होने वाला है। अब कोयला घोटाले में एक-एक करके सारे लोग बरी हो गए हैं। तत्कालीन कोयला सचिव एचसी गुप्ता पहले एक मामले में बरी हुए थे और अब छत्तीसगढ़ कोयला खदान से जुड़े मामले में भी बरी हो गए हैं। उनके साथ-साथ दूसरे अधिकारी और कारोबारी भी बरी हुए हैं। घोटाले की आरोपी एक कंपनी के मालिक नवीन जिंदल बहुत पहले ही भाजपा में शामिल हो गए। इन घोटालों का यह हश्र होने कारण ही अब भ्रष्टाचार चुनावी मुद्दा नहीं बन रहा है, जबकि बड़े-बड़े घोटाले हो रहे हैं।

पूर्वोत्तर में बदल रही है राजनीति 

भाजपा ने केंद्र में सरकार बनाने के बाद पूर्वोत्तर पर राजनीतिक रूप से बहुत ध्यान दिया। पूर्वोत्तर के लिए एनडीए का एक नया समूह नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस यानी नेडा बनाया, जिसका जिम्मा हिमंत बिस्वा सरमा को दिया गया। लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद नेडा अप्रभावी होता गया। पहले जहां भाजपा ने दो राज्यों को छोड़ कर सब जगह अपनी या सहयोगी पार्टियों की सरकार बना ली थी, अब वहां सरकार और राजनीति दोनों उसके हाथ से निकल रही है। उसकी सहयोगी पार्टियां उसको छोड़ कर अलग रास्ता पकड़ रही हैं। 

पिछले दिनों नगालैंड में सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) ने नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) में विलय फैसला किया। नई पार्टी का नाम एनपीएफ होगा और इसके नेता मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो होंगे। 60 सदस्यों की विधानसभा में इस नई पार्टी के 34 विधायक हो गए हैं। यानी बहुमत के लिए उसे अब भाजपा के 12 विधायकों की जरुरत नहीं है। 

इसी बीच नया घटनाक्रम यह है कि मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के नेता कॉनराड संगमा ने त्रिपुरा में भाजपा की सहयोगी तिपरा मोथा पार्टी से हाथ मिला लिया है। दिल्ली में एनपीपी के नेता और मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा और तिपरा मोथा के नेता प्रद्योद देबबर्मन ने प्रेस कॉफ्रेंस में इसका ऐलान किया। दोनों पार्टियां पूरे पूर्वोत्तर में साझा राजनीति करेगी। अपने क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची में बचा कर रखने के साथ-साथ अस्मिता की राजनीति के लिहाज से पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा से दूरी बना रही है।

कांग्रेस में थरूर के दिन पूरे हुए 

लगता है शशि थरूर ने मान लिया है कि अब कांग्रेस में उनके दिन पूरे हो गए हैं। अभी तक वे नीतिगत मसलों को लेकर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा रहे थे लेकिन अब उन्होंने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ रखते हुए वंशवाद का मुद्दा उठा दिया है। थरूर ने कहा है कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। केरल की तिरुवनंतपुरम से चार बार के सांसद शशि थरूर इतने पर ही नहीं रूके। उन्होंने कहा कि नेहरू-गांधी परिवार के कारण यह विचार भारत की राजनीति में स्थापित हुआ कि राजनीतिक नेतृत्व जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है। इस तरह से उन्होंने देश की सभी प्रादेशिक पार्टियों में चल रही वंशवादी राजनीति के लिए भी नेहरू-गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहराया है। 

शशि थरूर ने 'प्रोजेक्ट सिंडिकेट’ की ओर से 31 अक्टूबर को प्रकाशित लेख में यह भी कहा है कि दशकों से एक परिवार राजनीति के शीर्ष पर बना हुआ है। इससे पहले थरूर जो कुछ कह या कर रहे थे, उसकी कांग्रेस में माफी थी लेकिन शायद इसकी माफी नहीं है कि उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार को निशाना बनाया, वंशवाद पर सवाल उठाया और देश में वंशवादी राजनीति की जड़ें मजबूत करने में सोनिया और राहुल गांधी के परिवार का हाथ बताया। 

थरूर के लिए यह निर्णाय़क क्षण है। अब बिहार चुनाव खत्म होने वाला है और भाजपा का फोकस केरल पर बनेगा। थरूर उसमें अपनी भूमिका देख रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो तिरूवनंतपुरम सीट पर विधानसभा के साथ उपचुनाव हो सकता है। 

कायम है केजरीवाल का बंगला मोह!

अरविंद केजरीवाल एक बार फिर बंगले के विवाद में फंसे है। इस बार मामला चंडीगढ़ में कथित तौर पर मिले एक बंगले का है। असल में उन्होंने सस्ती नीली कमीज और वैगन आर गाड़ी से अपनी जो ब्रांडिंग की थी वह पिछले चुनाव में पूरी तरह से खत्म हो गई, जब कथित तौर पर उन्होंने 50 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करके अपने लिए बंगला बनवाया। इस बंगले ने केजरीवाल की सारी पुण्याई खत्म कर दी। लेकिन सवाल है कि क्या उन्होंने इससे कोई सबक लिया? ऐसा लगता नहीं है। उल्टे ऐसा लग रहा है कि बंगला उनकी दुखती नस बन गया है। अभी वे फिरोजशाह रोड पर अपनी पार्टी के सांसद और कारोबारी अशोक मित्तल को मिले बंगले में रह रहे है। उनकी पार्टी ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट तक लड़ कर उनके लिए एक बंगला आबंटित कराया है। राष्ट्रीय पार्टी के प्रमुख के नाते उन्हें लोधी इस्टेट में 95 नंबर बंगला आबंटित हुआ है। हालांकि इसमें भी उन्हें आपत्ति है कि टाइप आठ का बंगला क्यों नहीं मिला। अभी जो बंगला मिला वह टाइप सात का है। उस बंगले में रेनोवेशन के बाद केजरीवाल रहने जाएंगे। 

इस बीच एक और बंगले का विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि पंजाब सरकार ने चंडीगढ़ में दो एकड़ का एक बंगला मुख्यमंत्री भगवंत मान के कैम्प ऑफिस के लिए आबंटित किया है, जिसमें केजरीवाल रहते हैं। यह कोई नया बंगला नहीं है लेकिन इससे ऐसा लग रहा है कि दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ तक केजरीवाल का बंगला मोह नहीं छूट रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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