गोड्डा: अडानी के पॉवर प्लांट के लिए ज़मीन ज़ब्ती के ख़िलाफ़ ग्रामीणों का संघर्ष

भारत के एक दूर-दराज़ के हिस्से में लहलहाते चारागाहों, पेड़ों और फसलों के बीच एक बेहद बड़ा ढांचा बनाया जा रहा है। यह गोड्डा पॉवर स्टेशन है। अडानी द्वारा इस पॉवर स्टेशन पर तेजी से काम किया जा रहा है। क्वींसलैंड में उनकी कंपनी द्वारा उत्खनित कोयले को यहां खपाया जाएगा। गोड्डा से 1.6 GW का भारी-भरकम ऑउटपुट निकलेगा। यह विक्टोरिया राज्य में यॉलोर्न पॉवर स्टेशन की चारों यूनिट को मिलाकर जितना ऑउटपुट होता है, उससे भी ज़्यादा है।
गोड्डा अ़दानी की उस योजना का हिस्सा है, जिसमें दस हजार किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड से कोयला लाकर बिजली उत्पादित की जाएगी। फिर इस बिजली को बांग्लादेश को बेचा जाएगा। गोड्डा सबसे पास के बंदरगाह से 600 किलोमीटर और किसी भी बड़े शहर से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां बड़े स्तर पर अडानी को रोकने के लिए कैंपेन चलाया गया है, लेकिन यहां स्थितियां रहस्यमयी तरीके से उलझी हुई हैं और प्लांट के बनाने के काम में प्रगति के सबूत मिलते हैं। वहां क्या हो रहा है, यह जानने के लिए अडानीवाच (Adaniwatch) फरवरी 2020 में वहां गया। मेरे साथ स्वतंत्र पत्रकार और अडानी पर इस साल प्रकाशित होने जा रही एक किताब में कंट्रीब्यूटर अबीर दासगुप्ता मौजूद थे। मेरे इस टूर के लिए अबीर ने कई मीटिंग और इंटरव्यू तय करवाए, साथ में रिकॉर्डिंग और अनुवाद की व्यवस्था भी की।
हमें पहला झटका तब लगा, जब हम गो़ड्डा से सैंकड़ों किलोमीटर दूर झारखंड की राजधानी रांची में थे। दो जानकार लोगों, जिनमें से एक विधायक और एक वकील हैं, उन्होंने हमें बताया कि अडानी का प्लांट 40 फ़ीसदी बन चुका है। यह जानकारी रिकॉर्ड्स से बिलकुल उलट थी। रिकॉर्डों के मुताबिक़, अडानी ने अब तक गोड्डा में ज़मीन साफ कर कुछ ऑफिस बिल्डिंग का ही निर्माण करवाया है। अगर प्लांट 40 फ़ीसदी बन चुका है, तो अडानी 2022 में क्वींसलैंड के कोयले से बिजली बनाने के अपने लक्ष्य के सही रास्ते पर है।
साइन बोर्ड अडानी के गोड्डा पॉवर प्लांट का रास्ता दिखात हुआ। इस प्लांट को ऑस्ट्रेलियाई कोल से बिजली बनाकर बांग्लादेश को बेचने के लिए बनाया गया है। फोटो- जिऑफ लॉ
इस खबर के बीच स्थानीय लोगों द्वारा कोर्ट में प्लांट के विरोध के तरीकों की भी बातें सामने आती हैं, जहां एक अलग ही कार्रवाई जारी है। उन लोगों से बात करने के लिए हम गंगाटा गांव पहुंचे। उम्मीद थी कि हम अडानी के पॉवर प्लांट की कुछ तस्वीरें उतार सकेंगे। इस इलाके में हमें सावधानी बरतने की जरूरत है। हमें चेतावनी दी गई थी कि ऐसे इलाकों में अडानी जैसी कंपनियां इज़रायल और अमेरिका की सिक्योरिटी कंपनियों की मदद लेकर निगरानी का काम करती हैं और पत्रकारों को दूर रखने के लिए स्थानीय गुंडों की मदद भी लेती हैं। भारत में ज्वलनशील मुद्दे पर काम करते हुए विदेशी पत्रकारों की कहांनियां खूब सुनने को मिलती हैं, जिन्हें कंपनियों के सुरक्षाकर्मियों से उलझकर शहर छोड़ना पड़ा।
पहले हम एक तेज-तर्रार स्थानीय वकील इनाम अहमद से मिले, जो ऐसे स्थानीय लोगों का केस लड़ रहे हैं, जिन्हें अपनी ज़मीन को अडानी को देना गंवारा नहीं था। महज़ एक लाख की आबादी वाला गोड्डा किसी भी दूसरे छोटे भारतीय शहर जैसा ही है। यहां खूब शोर-शराबा और प्रदूषण है। भारी मशीन, हॉर्नी की तेज आवाज, डीजल गाड़ियों से निकलती लपटें और कोयले की आग से निकलता धुआं मुझे असहज कराने लगा।
हमने बालेश पांडे और रामजी पासवान के लिए तमतमाती धूप में इंतज़ार किया। बालेश के पिताजी की ज़मीन भी पॉवर प्रोजेक्ट में ज़ब्त की जा रही है। कागजों में उनके पिताजी को मृत बता दिया गया, इससे उनकी रजामंदी की जरूरत नहीं पड़ी। जबकि वो जिंदा हैं। पासवान की ज़मीन का अधिग्रहण भी किया जा रहा है। उन्होंने अंबानी के खिलाफ़ SC-ST एक्ट में जातिगत उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया है। यह कानून हिंदू पदानुक्रम के बाहर की जातियों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। इन जातियों को अब भी छुआछूत और हिंसा का सामना करना पड़ता है। बालेश और रामजी हमें प्रोजेक्ट के पास वाले गांवों में ले जाएंगे। जैसे ही वो आए, हम एक तिपहिया ऑटो रिक्शॉ में रवाना हो गए।
मेन रोड पर चलते वक़्त ही हमें बड़े स्तर का काम नज़र आने लगा, इनाम ने बताया कि कि यह अडानी की रेल लिंक लाइन हैं। इसके बाद हम एक दूसरे रास्ते पर मुड़ गए। वहां एक साइनबोर्ड था, जो अडानी पॉवर प्लांट के रास्ते की तरफ इशारा कर रहा था। वहां से हम फिर मुड़े, यहां हमें एक नई-नई बनाई गई दीवार नज़र आई, जिससे भीतर के निर्माण स्थल का नज़ारा ढंक गया था। फिर एक गांव नज़र आया। गांव झोपड़ियों का एक झुंड था, जिसमें खाना बनाने वाली आग नज़र आई। कुछ छोटे-छोटे स्टॉल भी थे, जिनमें कुछ प्लास्टिक के आइटम बेचे जा रहे थे। आलसी आदमी और कुछ कुत्ते यहां-वहां नज़र आए। लेकिन यह गंगटा नहीं है। अडानी की दीवार से सटकर लगी यह झोंपड़ियां पॉवर प्लांट का निर्माण शुरू होने के बाद बनाई गई हैं। बालेश ने हमें बताया कि यहां रहने वाले लोग बाहरी हैं।
हमने झोपड़ियों को पीछे खेतों और पेड़ों के बीच छोड़ दिया। अब हमारा रिक्शॉ एक मंदिर के सामने आकर रुका। सकवा के पेड़ के नीचे स्वागत समिति थी। थो़ड़ी दूर वहां से एक रास्ता था, जिसके किनारे पेड़-पौधे लगे हुए थे। इस रास्ते के किनारे गंगटा और पास के गोविंदपुर गांव के साफ-सुथरे घर बने हुए थे। यहा गोड्डा के शोर-शराबे के उलट काफ़ी शांत जगह थी।
भूणि ज़ब्ती का शिकार हुए गांव वाले। सबसे आगे रामजी पासवान हैं। वे एक सरकारी स्कूल से रिटायर शिक्षक और किसान हैं। उन्होंने पुलिस में उत्पीड़न की शिकायत भी दर्ज करवाई है। फ़ोटो- जिऑफ़ लॉ
हमने अपने जूते हटाए और पेड़ की छाया के नीचे दरी पर बैठ गए। रास्ते के दूसरी तरफ एक सफेद बाल वाला दुबला आदमी अपने पैरों को कुएं में लगे वॉटर पंप के पानी से धो रहा था। कुछ बच्चों के पास से दो बड़ी सफेद गायें निकली, जिनके साथ एक महिला भी चल रही थी। खेतों में आम के पेड़ थे और दूर तक घास चरते जानवरों की कतारें दिखाई पड़ती थीं। एक दूसरे बुजुर्ग, जिनका नाम भगत था, वो साइकिल से आए और हमारे साथ बैठ गए। वो पॉवर प्रोजेक्ट के लिए हो रहे भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वाले तेज-तर्रार एक्टिविस्ट थे।
अगले डेढ़ घंटे तक हम लोगों ने स्थानीय लोगों से भूमि ज़ब्ती पर बात की। इसके तहत हमने वो प्रक्रिया समझी, जिसमें सरकार ने स्थानीय लोगों की ज़मीनों का अधिग्रहण किया, यह ज़मीनें किस तरह की थीं, इनकी क्या कीमत दी गई और अपने अधिकारों को बचाने के लिए इन लोगों ने किन कानूनी तरीकों का सहारा लिया। पूरी बातचीत हिंदी में हुई। मैंने अपने आसपास 15 लोगों की भीड़ इकट्ठा देखी। इनमें से ज़्यादातर बुजुर्ग थे, जो आदिवासी जनजातीय समाज से ताल्लुक रखते थे। यह लोग पिछले कुछ सालों से अपनी ज़मीनों की लड़ाई लड़ रहे हैं। बातचीत के दौरान कभी इन लोगों में गुस्सा नज़र आता, तो कभी यह लोग ऊंची आवाज में हंसने लगते हैं। एक तरफ कुछ महिलाओं का समूह भी है। वह शांत हैं। पता नहीं कितनी बार उन्होंने पत्रकारों को अपनी कहानी बताई होगी, जो रिकॉर्ड कर वापिस चले गए होंगे।
यह ज़मीन इन लोगों के परिवारों के पास पीढ़ियों से है। इस ऊपजाऊ ज़मीन साल में चार फ़सलें तक होती है। इससे गांव के लोगों को खाने के लिए अनाज मिलता है, फिर अधिशेष को बाज़ार में बेचकर नग़द भी हासिल हो जाता है। ज़मीन चली जाने से उनकी आर्थिक सुऱक्षा खत्म हो जाएगी। लेकिन सवाल सिर्फ रोजी-रोटी का नहीं है। ज़मीन के मालिकाना हक़ होने से लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं और उनके बच्चों की शादियों में तक मदद मिलती है। ज़मीन के छिन जाने से इन चीजों के नुकसान की संभावना होगी।
अडानी के अतिक्रमण के दूसरे प्रभाव भी हैं। खासकर स्थानीय पानी की आपूर्ति पर, जो लगातार कम हो रही है। हमें एक झोपड़ी में वॉटर-पंप दिखाया गया, जो लाल पानी छोड़ रहा है। यह पानी खाने के बर्तन में खराब अवशेष छोड़ता है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि अडानी के प्लांट में काम करने वाले लोगों के लिए जल अधिग्रहण की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि पानी का स्तर नीचे लौह-प्रचुर परत तक पहुंच चुका है।
अब तक किसी को गांव छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया गया है। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि जल आपूर्ति का खराब स्तर संकेत देता है कि ऐसा जल्द होगा। मैंने उनसे पूछा कि लोग कहां जाएंगे। मेरे सवाल का अनुवाद किया गया, सवाल से वहां एक चुप्पी छा गई। गांव छोड़ने का ख़याल भी परेशान करने वाला होता है। कुछ लोगों ने बताया कि शहरों में मज़दूरी का काम करना होगा। लोग यहां-वहां बिखर जाएंगे। साफ है कि इन लोगों की ज़मीनें लेने से आदिवासी परंपराएं और इनके जीवन-जीने का तरीका बिखर जाएगा।
इस बीच लगातार मशीनें चलने की आवाज आ रही थी। लोग बताते हैं कि यह आवाज 24 घंटे जारी रहती है। यह दिमाग की शांति भंग कर देती है। निर्माण कार्य शुरू होने से पहले भूसे के ढेर को कहीं भी छोड़ा जा सकता था, रात में मवेशियों पर भी नज़र रखना जरूरी नहीं था, महिलाएं एक से दूसरे गांव में सुरक्षित आना-जाना कर सकती थीं। लेकिन प्लांट पर बाहर से लाए गए लोगों के चलते सब बदल गया। उनमें से कई गुंडे हैं। वह शराब पीते हैं, चोरी करते हैं और महिलाओं की इज़्ज़त भी नहीं करते।
स्थानीय लोगों का आंदोलन कमजोर हो गया है। क्योंकि इस आंदोलन को नेतृत्व देने वाले स्थानीय विधायक को 2017 में 6 महीने के लिए जेल में डाल दिया गया। बहुत सारे लोगों ने अपनी ज़मीनें बेच दीं। लोगों में एकता नहीं रही। इनाम ने हमें अंग्रेजी में अकेले में बताया कि समूह के लोगों ने शुरूआत में ही मामला दर्ज न कर गलती कर दी। लेकिन अब यह लोग दृढ़ता के साथ खड़े हुए हैं।
फिर हमारी बातचीत खत्म हो गई। हम पेड़ की छांव से निकल कर आटे की चक्की से होते हुए चावल के खेतों में पहुंचे और आखिर में छप्पर वाले घरों के बीच में। धूप में रंग-बिरंगे कपड़े और कालीन सूख रहे थे। महिलाएं वॉटर पंप के पानी से कपड़े धो रही थीं। प्लांट से आने वाली मशीनों की आवाज तेज होती गई और जल्द ही वहां से धूल उड़ाते ट्रक निकलना शुरू हो गए। कंटीली तार के दूसरी तरफ निर्माण सामग्री का ढेर लगा था। दूसरी तरफ शिपिंग कंटेनर रखे हुए थे। दूर पॉवर स्टेशन का ढांचा दिखाई देता है। यह करीब़ 20 मंजिल ऊंचा है, जिसके आसपास ऊंची-ऊंची क्रेन लगी हुई हैं।
हम कंटीले तार तक पहुंचने के लिए मक्के, गोभी और कई तरह की दलहन फ़सलों के खेतों और प्याज़ ढेर से होते हुए निकले थे। लेकिन अब इन फसलों की पत्तियों पर धूल जमा हो जाती है। जैसे ही कंटीले तार आते हैं, यह चीजें एकदम से रूक जाती हैं। हम परेशानी के साथ उस दुखदायी इमारत की ओर देखते हैं, जो आकाश छू रही है।
एक आदिवासी किसान अपने पिता, माता और भाई की कब्र पर खड़ा हुआ है। यह कब्र अडानी के गोड्डा पॉवर प्लांट के निर्माण स्थल से चंद मीटर दूर हैं। फोटो- जिऑफ़ लॉ
हम सूर्यनारायण हेमब्रॉम के खेत में खड़े हुए हैं। सूर्यनारायण इस भूमि ज़ब्ती के खिलाफ़ मजबूती से खड़े होने वाले लोगों में से एक हैं। यह खेत अब तीन तरफ से अडानी के निर्माण स्थल से घिरा है। एक वक़्त तो कंपनी ने इस खेत में भी कंटीले तार लगाने की कोशिश भी की। उन्होंने तारों को नीचे कर दिया और हम उसके पार चले गए।
यह वो जगह थी, जहां स्थानीय लोगों और अडानी के बीच ज़बरदस्त टकराव हुआ था। इसके वीडियो इंटरनेट पर बड़ी संख्या में फैले हैं। 31 अगस्त, 2018 को कुछ किसान महिलाओं ने अडानी के अधिकारियों के पैर तक पकड़ लिए थे। उस दौरान आर्मी की तरह ड्रेस में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने महिला का हाथ संबंधित अधिकारी के पैर से हटा दिया।
अब डेढ़ साल बाद, सीता मुरमू उसी जगह खड़े होकर कंटीले तारों के पार स्थायी तौर पर तबाह हो चुकी ज़मीन देख रही हैं। एक किस्म का वैराग्य और आत्मसम्मान दिखाती सीता चुप हैं।
बाद में हम गंगटा से निकल गए, इस दौरान अडानी की दीवार के पार खिड़की से देखने की कोशिश की। पतली सड़क पर भार ढोने वाले ट्रक और कार अपनी जगह बनाने के लिए बेताब थे। रास्ते में कुछ ट्रैक्टर, साईकिल और गाय भी नज़र आईं। हम कंपनी के तीन कर्मचारियों के बगल से निकले। यह लोग कंटीले तार लगा रहे थे। हमने एक-दो मोड़ और लिए। इसके बाद ट्रैफिक और आवाज, दोनों ही बढ़ गए। हमारा तिपहिया एक टीले पर आकर रुक गया, जहां ट्रक पार्क थे और काफ़ी धूल उड़ रही थी। जैसे ही हम बाहर निकले, हमारा सामना हेलमेट और जैकेट पहने मज़दूरों से हुआ। कुछ दूसरे लोग भी झोपड़ियों से निकल आए।
मुझे पता चला कि हम जहां रुके हैं, वह जगह एक आश्रम है। यहां अडानी का विरोध करने वाले लोग इकट्ठे होते हैं। हमने वहां एक चाय पी, इतनी देर में हमारा ड्राईवर भी आ गया। पार्किंग में उसकी कुछ लोगों से बहस हुई थी। हम उसके साथ वापस गए, जहां कुछ गुंडे बालेश को धमकियां दे रहे थे। हमें इस टूर पर ले जाने वाले वकील इनाम उनसे जोरदार ढंग से बहस कर रहे थे। दोनों तरफ से गरमा-गरम माहौल था।
मुरमू और उनकी एक रिश्तेदार पॉवर प्लांट द्वारा की गई तबाही को देख रही हैं। दोनों उस जगह खड़ीं हैं, जहां किसानों और अडानी के बीच 2018 में टकराव हुआ था। यहीं सीता ने अडानी के अधिकारी के पैर पकड़ लिए थे, ताकि उनकी ज़मीन की जब्ती रुक जाए। फोटो- जिऑफ़ लॉ
बाद में मुझे बताया गया कि इनाम ने जब अपना नाम बताया, तो सामने वाले ने उससे कहा- 'अच्छा तो तुम मुस्लिम हो'। जिसके जवाब में इनाम ने कहा,'अगर तुम मुझे मारना चाहते हो तो अभी मार दो।’ इसके साथ इनाम ने उन लोगों को वो तमाम वज़हें गिनाईं कि क्यों ऐसा करना बहुत बुरा साबित हो सकता है। इस मुठभेड़ से भारत की मौजूदा राजनीतिक स्थिति की भी झलक मिलती है, जहां हिंदू राष्ट्रवादी सत्ताधारी पार्टी कई तरह के विधायी उपाय अपना रही है। बहुत सारे लोगों का मानना है कि ऐसा मुस्लिम समुदाय के लोगों को वंचित करने के लिए किया जा रहा है।
हम अपने युवा साथियों को अडानी के समर्थकों से अलग करने में कामयाब रहे। मैं जल्दी निकलने की आशा कर रहा था। ठीक इसी वक़्त हमारे साथी ने एक रस्सी निकालकर तिपहिये में नीचे किसी चीज से बांधी। मैं हैरानी से देखता रहा।
इनाम ने रस्सी पकड़ी और ड्राईवर के साथ तेजी से खींची। हमारा ऑटो चालू हो गया। जब ऑटो मुड़ रहा था, इनाम तेजी से ड्राईवर को निर्देश दे रहा था। तब तक ताकतवर वकील से झगड़ा करने वाले लोग शांत हो चुके थे। हम ऑटो में सवार हुए और निकल गए।
लेकिन झगड़ा अभी खत्म नहीं हुआ। इनाम ने प्लांट के एक सीनियर अधिकारी को फोन लगाकर दुनियाभर की बातें सुनाईं। इनाम और उसके साथियों को धमकी दी गई थी। वह पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने जा रहा है। एक माफ़ी जरूरी है। अब गोड्डा पर बहुत सारे लोगों का ध्यान है। इसलिए अडानी को किसी तरह का गलत कदम नहीं उठाना चाहिए।
अब हम पावर प्लांट से दूर जा रहे थे। हम चौड़ी सड़क पर थे, जहां सामान्य ट्रैफिक था। सूरज डूब रहा था। आसमान में शाम की लालिमा छा चुकी थी।
इस बीच इनाम का जोरदार एकालाप जारी था। कुछ किलोमीटर दूर जाने पर एक बड़ी कंपनी का चार पहिया वाहन हमें ओवरटेक कर रोकता है। उसमें से दो अच्छी पोशाक पहनें लोग निकलते हैं। एक ने उनमें से गुलाबी शर्ट पहनी हुई थी। बताया गया कि वो अडानी का साइट मैनेजर है। वो लोग सड़क किनारे इनाम के साथ खड़े होकर बहस करते हैं। 15 मिनट बाद तक इनाम धाराप्रवाह बोलते हुए गुस्से का इज़हार करता रहता है।
सड़कों पर जीवन जारी है। एक पुराना ट्रैक्टर भूसा लेकर जा रहा है। गाड़ियां लगातार हॉर्न बजा रही हैं। युवा महिलाओं का एक समूह आपस में बात करते हुए हम पर नज़र डालता है। उन्होंने रंग-बिरंगे रंगों वाली साड़ियां पहन रखी थीं। इस बीच गेहुंआ रंग के कपड़े पहने हुए एक सफेद बालों वाला आदमी शांति से हमारे बगल से साईकिल चलाते हुए गुजरता है।
हमारे दाहिनी तरफ अडानी के पॉवर प्लांट का भीमकाय ढांचा है, जिसकी बत्तियां शाम होने के चलते जलने लगी हैं।
फ़रवरी, 2020 में मौके पर पहुंचे जिऑफ़ लॉ, साथ में अबीर दासगुप्ता का अहम योगदान है। यह उनके निजी विचार हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।
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