इथियोपिया में पश्चिमी हस्तक्षेप की ज़मीन तैयार करने मानवीय संकट का इस्तेमाल कर रहे हैं UN WFP और USAID

हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका टीवी के संपादक एलियास अमारे कहते हैं, "संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यू एफ पी) द्वारा डेसी और कोमबोलचा के आज़ाद होने के बाद इन्हें खाद्यान्न की आपूर्ति 'अव्वल दर्जे की हास्यास्पद' बात है। यह दोनों शहर युद्धग्रस्त उत्तरी इथयोपियाई राज्य अम्हारा में पड़ते हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने इसके लिए अपने वेयरहाउस के लूटे जाने और स्टाफ को इन शहरों में टिगरे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट द्वारा धमकी दिए जाने को वज़ह बताया है। टीपीएलएफ ने नवंबर, 2020 में एक संघीय सेना के अड्डे पर हमला कर युद्ध की शुरुआत की थी। इसके बाद संगठन ने अमराहा और अफार पर जुलाई, 2021 में हमला किया।
लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा तब इन दो शहरों को खाद्यान्न आपूर्ति रोकी गई, जब टीपीएलएफ को राष्ट्रीय सेना और अम्हारा की स्थानीय नागरिक सेना ने मिलकर बाहर निकाल दिया। अमारे ने एक टेलिफोन इंटरव्यू में पीपल्स डिस्पैच को बताया, "पूरे वक़्त जब टीपीएलएफ अम्हारा में इन शहरों और कस्बों पर कब्जा कर बैठा था और यूएन के वेयरहाउस लूट रहा था, तब उन्होंने कुछ नहीं कहा।"
उन्होंने कहा, "सरकार के नियंत्रण में वापस आए शहरों में खाद्यान्न मदद को रोकना, जबकि टीपीएलएफ के नियंत्रण वाले टिगरे में लगातार मदद भेजना, जहां कथित तौर पर सैन्य मक़सद के लिए टीपीएलएफ के पास हजार ट्रक से भी ज़्यादा रसद मौजूद है, यह अपराध है। यह युद्ध के हथियार के तौर पर खाद्यान्न की मदद पहुंचाने जैसा है।"
टीपीएलएफ को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और अमेरिका से मिलने वाली मदद के बावजूद, अमारे को विश्वास है कि टीपीएलएफ हार रहा है। अमेरिका इस इलाके में अपने एक "कठपुतली देश" का इस्तेमाल इथयोपिया को अलग-थलग करने के लिए कर रहा है।
उन्होनें कहा कि डेसी से 120 किलोमीटर उत्तर में वेल्दिया में युद्ध अब भी जारी है, वहां टीपीएलएफ की फौजें बहुत मुश्किल स्थिति में हैं। "अहम बात यह है कि संघीय सरकार ने वेल्दिया को टिगरे की राजधानी मेकेले से जोड़ने वाले हाईवे को कब्जे में ले लिया है। तो उनकी रसद आपूर्ति की श्रंखला टूट गई है। इसके अलावा अम्हारा में सिर्फ़ सीमा के पास के कुछ क्षेत्र और पहाड़ी इलाके ही टीपीएलएफ के कब्ज़े में हैं।"
अमारे का विश्वास है कि सरकार टीपीएलएफ को टिगरे राज्य में अंदर घुसकर घेरेगी, ना कि इसकी सीमा पर रुककर बातचीत करेगी, जिसकी कोशिश अमेरिका अपनी कूटनीतिक कोशिशों के ज़रिए कर रहा है।
उन्होंने कहा, "अम्हारा और अफार में बड़े स्तर के नरसंहार के लिए टीपीएलएफ को जिम्मेदार ठहराया जाना होगा, जिसमें नागरिकों की हत्याएं, यौन हिंसा और बलात्कार, स्वास्थ्य केंद्रों, स्कूलों और दूसरी चीजों को नष्ट किया जाना शामिल है। संगठन ने युद्ध अपराध किए हैं। संगठन ने खुलकर आदिस अबाबा पर कब्जा करने और सरकार को उखाड़ फेंकने का ऐलान किया था। तो यह हमारे अस्तित्व के लिए एक ख़तरा है।"
टीपीएलएफ द्वारा जबरदस्ती सैनिक बनाए जाने से बचने के लिए लोग टिगरे से अम्हारा, अफार और यहां तक कि एरिट्रिया भी भाग रहे हैं। यह बताता है कि अपने गृह राज्य में टीपीएलएफ की स्थिति कमजोर हो रही है।
अमारे ने कहा, "हर परिवार को कम से कम एक बेटे और एक बेटी को जबरदस्ती सेना में भर्ती करवाना पड़ रहा है। किशोर सैनिकों का इस्तेमाल एक सामान्य व्यवहार है। टिगरे में स्थिति बहुत खराब है। कई परिवार खुलकर पूछ रहे हैं कि उनके बच्चे कहां हैं।"
दक्षिण में अम्हारा और पूर्व में अफार से टिगरे में टीपीएलएफ के गढ़ की तरफ घेराव बढ़ रहा है। इसके उत्तर में स्थित एरिट्रिया भी इथयोपिया सरकार को समर्थन दे रहा है। जबकि आरोप है कि सूडान टीपीएलएफ को समर्थन दे रहा है। सूडान के साथ सीमा पर स्थित वेलकाएट और हुमेरा के क्षेत्र संघ सेना और अम्हारा की नागरिक सेना द्वारा साझा तरीके से कब्जाए जा चुके हैं, इससे टीपीएलएफ की सूडान तक पहुंच बाधित हो गई है।
अमारे के मुताबिक टीपीएलएफ घिर चुकी है और यह उसके खात्मे की शुरुआत है। इस इंटरव्यू के बाद 12 दिसंबर को खबर आई कि टीपीएलएफ ने अम्हारा राज्य के लालीबेला (वेल्दिया के 115 किलोमीटर पश्चिम में) पर कब्जा कर लिया है। बाद में जब हमने अमारे से सवाल पूछा कि क्या यह संकेत है कि अब युद्ध सीमा एक बार फिर टीपीएलएप के पक्ष में बढ़ रही है। अमारे ने इसका जवाब ना में दिया।
उन्होंने कहा कि लालिबेला पर कब्जा करने के बजाए टीपीएलएफ टिगरे में एक दूसरा रास्ता खोजने की कोशिश कर रही है ताकि वेल्दिया में फंसे अपने सैनिकों तक पहुंच बनाई जा सके। क्योंकि उसे मेकेले से जोड़ने वाले हाईवे पर संघीय सेना का कब्जा हो चुका है।
इथयोपिया में 27 साल के तानाशाही शासन के बाद, 2018 में लोकप्रिय लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शनों के बाद टीपीएलएफ पूरी तरह हाशिए पर पहुंच चुकी है। हालांकि संगठन बहुत तबाही करने की क्षमता रखता है, लेकिन अब यह मुश्किल है कि वह इथयोपिया पर फिर से शासन कर पाए।
अमारे कहते हैं इसके बावजूद अमेरिका ने टीपीएलएफ को समर्थन जारी रखा है। क्योंकि जब साम्राज्यवादी ताकतें किसी क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर पातीं, तो वे उसे अस्थिर करने की कोशिश करती हैं, ताकि ऐसा वक्त आ सके, जब वे वहां नियंत्रण कर सकें।
“हॉर्न ऑफ अफ्रीका” पर नियंत्रण अमेरिका के हितों के लिए जरूरी है, क्योंकि यह हिस्सा लाल सागर क्षेत्र और नील नदी बेसिन का हिस्सा है। यह चीन के “बेल्ड एंड रोड इनीशिएटिव” का भी हिस्सा है। अमेरिका का विश्वास है कि अफ्रीका पर नियंत्रण करने के क्रम में उसे ‘यूएस अफ्रीका कमांड (अफ्रीकॉम)’ का विस्तार इस क्षेत्र तक करना होगा।”
लेकिन नए “हॉर्न ऑफ अफ्रीका प्रोजेक्ट” के लिए एरीट्रिया, सोमालिया और इथयोपिया का एक साथ आना अमेरिकी महत्वकांक्षाओं के लिए बड़ा धक्का है। खासकर तब जब टीपीएलएफ को इथयोपिया के नए प्रधानमंत्री अबिय अहमद ने सत्ता में आने के बाद पूरी तरह दरकिनार कर दिया था। अमेरिका को अपने हितों के लिए इस खतरे को हटाना है, जो क्षेत्र में शांति स्थापित होने से उसके हितों के लिए पैदा होता है। उनका तर्क है कि इसलिए क्षेत्र में टीपीएलएफ को अमेरिका का समर्थन मिल रहा है।
लेकिन इस कदम का नागरिक समाज ने जमकर प्रतिरोध किया, जिसकी शुरुआत अमेरिका में रह रहे इथयोपियाई लोगों ने की और जो वहां एरिट्रिया और सोमाली लोगों तक पहुंचा, जिन्होंने “#NoMore” आंदोलन चलाया। नागरिक समाज द्वारा चलाया गया यह आंदोलन सकारात्मक नतीज़ों के आने में अहम भूमिका निभाएगा।
उन्होंने कहा, “यह इथयोपिया में युद्ध और “हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका” को अस्थिर करने की कोशिशों के खिलाफ़ शुरू हुआ था, जो साम्राज्यवाद के खिलाफ़ अखिल अफ्रीकी आंदोलन में बदल गया। कल को इसकी आवाज़ लैटिन अमेरिका में भी सुनाई दे सकती है। इसमें संभावना है कि यह कभी ख़त्म ना होने वाले युद्धों के खिलाफ़, साम्राज्यवादी ताकतों के विरोध में एक वैश्विक आंदोलन बन जाए।”
नीचे संपादित अंश पढें:
पीपल्स डिस्पैच: क्या आप सरकारी फौज़ों द्वारा डेसी और कोमबोलचा को वापस लेने की घटना का रणनीतिक महत्व बताने से शुरू कर सकते हैं?
एलियास अमारे: डेसी अम्हारा के वोल्लो राज्य की राजधानी है। कोमबोलचा एक औद्योगिक शहर है। यह उत्पादन और निर्माण का केंद्र है। तो इन दोनों पर कब्जे का मतलब है कि जल्द ही पूरे वोल्लो राज्य को आज़ाद करवा लिया जाएगा।
पीडी: अम्हारा और अफार में टीपीएलएफ के नियंत्रण में कौनसा क्षेत्र बाकी है?
ईए: अफार को पूरी तरह मुक्त करवा लिया गया है। टीपीएलएफ को इलाके से भगा दिया गया है। अम्हारा में वेल्दिया (डेसी से 120 किलोमीटर उत्तर में) में जंग जारी है। लेकिन उनकी फौज़ें तनाव में हैं। सबसे अहम कि संघीय सेना ने वेल्दिया को टिगरे की राजधानी मेकेले से जोड़ने वाले हाईवे पर कब्ज़ा कर लिया है। तो उनकी रसद आपूर्ति का रास्ता रुक गया है। इसके अलावा अम्हारा में टिगरे के सीमावर्ती इलाकों और कुछ पहाड़ी क्षेत्र टीपीएलएप के नियंत्रण में हैं। जल्द ही टीपीएलएफ को उनके गढ़ टिगरे में वापस भेज दिया जाएगा।
पीडी: क्या आपको लगता है कि सरकार टिगरे की सीमा पर रुक जाएगी और बातचीत करेगी या फिर टिगरे में भी टीपीएलएफ का पीछा किया जाएगा?
ईए: मुझे शक है कि सरकार सीमा पर रुकेगी। टीपीएलएफ को अम्हारा और अफार में बड़े नरसंहारों- नागरिकों की हत्या, यौन हिंसा और बलात्कार, स्वास्थ्य सुविधाओं व स्कूलों को नष्ट करने समेत कई अपराधों के लिए सजा का सामना करना होगा। अब खुलासा हो गया है कि यह संगठन एक नृजातीय-फासीवादी संगठन है। इसने युद्ध अपराध किए हैं। कई मानवाधिकार संगठन इसकी निंदा कर रहे हैं। संगठन ने खुलकर आदिस अबाबा पर कब्ज़ा करने और सरकार को उखाड़ फेंकने का ऐलान किया था। यह हमारे अस्तित्व के लिए एक ख़तरा है। मुझे नहीं लगता कि सरकार सीमा पर जाकर रुक जाएगी।
अम्हारा में लालिबेला एयरपोर्ट को तब तबाह कर दिया गया था, जब यह टीपीएलएफ के कब्जे में था। अब इस शहर को सरकारी फौज़ों ने मुक्त करा लिया है। (फोटो: ब्रेकथ्रू न्यूज़)
पीडी: टिगरे के भीतर टीपीएलएफ की सैन्य और राजनीतिक स्थिति मजबूत है, क्या ऐसा है?
ईए: यह कहना मुश्किल है क्योंकि फिलहाल वहां तक पहुंच उपलब्ध नहीं है। लेकिन जो रिपोर्ट हम सुन रहे हैं, नागरिक टिगरे छोड़कर अम्हारा और अफार क्षेत्रों में भाग रहे हैं। कुछ लोग एरिट्रिया तक जा रहे हैं। टीपीएलएफ द्वारा जबरदस्ती सेना में भर्ती करवाया जाना इसका सबसे बड़ा कारण है। हर परिवार को कम से कम एक बेटा या बेटी फौज में भर्ती करवाना जरूरी है। किशोर सैनिकों का इस्तेमाल बेहद आम है। टिगरे के भीतर स्थिति बहुत खराब है। कई परिवार यह पूछना शुरू कर चुके हैं कि उनके बच्चे कहां हैं?
शुरुआत में जब टीपीएलएफ ने युद्ध को अम्हारा और अफार में फैलाया था, जबकि तब सरकार ने 29 जून को एकपक्षीय युद्धविराम की घोषणा कर दी थी, तब जिन टिगरे के जिन लोगों को जबरदस्ती फौज में भर्ती करवाया गया था, उनसे कहा गया था कि जल्द ही टीपीएलएफ आदिस अबाबा पर कब्जा़ कर लेगी। ऐसा दो तीन महीने में हो जाएगा। अब 6 महीने हो चुके हैं। उन्हें बहुत नुकसान हुआ है और वे वापस जाने पर मजबूर हुए हैं।
पीडी: दक्षिण में अम्हारा और पूर्व में अफार से टिगरे में टीपीएलएफ घिरता हुआ नज़र आ रहा है। फिर उत्तर में एरिट्रिया इसका ऐतिहासिक दुश्मन है, ऐसा लगता है कि टीपीएलएफ के सैनिकों को वापस लौटकर फिर से इकट्ठा होना होगा। उनके लिए सबसे अच्छा यह है कि वे पश्चिम में सूडान सीमा के भीतर चले जाएं, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वो टीपीएलएफ को समर्थन दे रहा है। तो पश्चिमी टिगरे का यह सीमावर्ती क्षेत्र कितने बेहतर ढंग से सुरक्षित है, जो अभी इथयोपियाई सेना और अम्हारा की नागरिक सेना के कब्ज़े में है?
ईए: वेलकाएत और हुमेरा क्षेत्र, जिसे पश्चिमी टिगरे के नाम से जाना जाता है, वह कभी पारंपरिक तौर पर टिगरे का हिस्सा नहीं था। टिगरे के लोग इस हिस्से में नहीं रहते। यह अम्हारा की ज़मीन थी। टिगरे की सूडान के साथ सीमा नहीं है। टीपीएलएफ ने इस हिस्से पर तब कब्ज़ा कर लिया था, जब उन्होंने 1991 में इथयोपिया की राज्य शक्ति पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन युद्ध के दौरान यह क्षेत्र फिर से अम्हारा के पास वापस चला गया।
जब सरकार ने एकपक्षीय युद्ध विराम घोषित किया, तो सरकार जून में सिर्फ़ पारंपरिक टिगरे से ही बाहर हुई थी, मतलब आज के टिगरे के नक्शे में टेकेजे नदी के पूर्व में स्थित क्षेत्र। इसके पश्चिम में अम्हारा की ज़मीन है, जिसकी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था है। टीपीएलएफ इस तक अब पहुंच नहीं बना सकता। बल्कि युद्ध विराम के बाद से ही वे कई सैन्य दस्ते भेज चुके हैं, ताकि वेलकाएत और हुमेरा के रास्ते सूडान तक का रास्ता खोला जा सके।
पीडी: अगर टीपीएलएफ के खात्मे की शुरुआत हो चुकी है, तो ओरोमो लिबरेशन फ्रंट के बारे में क्या, जो टीपीएलएफ के साथ आया था? ओएलएप सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक है, जिसके इथयोपिया के सबसे बड़े राज्य ओरोमिया में गहरी जड़े हैं?
ईए: यह कहना सही नहीं है कि पूरी ओएलएफ ने टीपीएलएफ का साथ देने का ऐलान किया था। पार्टी में कई हिस्से हैं। ओएलएफ के सबसे कट्टरपंथी और अतिवादी हिस्से ने टीपीएलएफ के साथ जाने का फ़ैसला किया था और देश के पश्चिमी हिस्से में विप्लव की शुरुआत की थी। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे कोई गंभीर चुनौती हैं। पार्टी के इस हिस्से की ओरोमिया में बहुत अपील नहीं है। टीपीएलएफ ही असली ख़तरा था, उसके पास बहुत वित्त आपूर्ति है और सशस्त्र सेना है। एक बार टीपीएलएफ का खात्मा हो जाए, तो दूसरे सभी नृजातीय-राष्ट्रवादी विप्लववादियों से देश को ख़तरा नहीं है।
पीडी: हाल में आज़ाद हुए डेसी और कोमबुलचा शहर से क्या तस्वीर आ रही है? क्या वहां गंभीर स्तर की तबाही हुई है?
ईए: इसके बारे में एक सूची बनाई जा रही है। सरकार द्वारा अभी आंकड़े जारी किया जाना बाकी है। लेकिन रिपोर्ट्स और तस्वीरों से पता चल रहा है कि बड़े स्तर की तबाही हुई, जो योजनाबद्ध थी। कोमबोलचा में 80 फ़ीसदी औद्योगिक प्रतिष्ठानों को लूट लिया गया। फैक्ट्रियों और औद्योगिक केंद्रों को तबाह कर दिया गया। जो भी मशीनरी टीपीएलएफ अपने साथ ले जाने में सक्षम नहीं थी, उसे तबाह कर दिया गया। फिर स्कूल और हॉस्पिटल जैसे दूसरे संस्थानों पर घृणात्मक हमले हुए। इन दोनों शहरों, खासकर कोमबोलचा के पुनर्निर्माण में सालों लग जाएंगे।
पीडी: संयुक्त राष्ट्र ने डेसी और कोमबोलचा के आज़ाद होने के बाद, उनके सरकारी नियंत्रण में आते ही उन्हें खाद्यान्न आपूर्ति बंद कर दी है। ऐसा बड़े स्तर पर टीपीएलएफ के नियंत्रण के दौरान वेयरहाउसों को लूटने और संयुक्त राष्ट्र संघ के कर्मचारियों को धमकाने की वज़ह से हुआ है। लेकिन टीपीएलएफ के पीछे हटने के बाद मदद को बंद करने के पीछे क्या तर्क है?
ईए: पूरे वक़्त जब टीपीएलएफ का इन शहरों और दूसरे कस्बों पर कब्ज़ा था, तब पूरे अम्हारा में टीपीएलएफ खुलेआम यूएन के भंडार गृहों को लूट रहा था, उन्होंने तब इसके बारे में कुछ नहीं कहा। लेकिन अब जब दोनों शहरों को आज़ाद करा लिया गया है, तब उन्होंने वितरण रोक दिया। जबकि अब सरकारी नियंत्रण में आने के बाद उन्हें यह तेज करना था। अकेले अम्हारा में दस लाख से ज़्यादा आंतरिक विस्थापित मौजूद हैं। वे अस्थायी शरणार्थीगृहों में रहने के लिए मजबूर हैं। उन्हें मदद की बहुत जरूरत है। इन स्थितियों में खाद्यान्न आपूर्ति को बंद किया जाना अव्वल दर्जे का माखौल है। यह अपराध है। इसका मक़सद खाद्यान्न मदद को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना है। अभी आप देखिए सरकार टीपीएलएफ द्वारा नियंत्रित टिगरे में हवा और अफार क्षेत्र से ज़मीन के रास्ते खाद्यान्न मदद जाने दे रही है।
पीडी: यूएन इथयोपिया का कहना है कि टिगरे में मध्य जुलाई से गए उनके 400 से ज़्यादा ट्रक वापस नहीं लौटे हैं। कथित तौर पर इनका इस्तेमाल टीपीएलएफ द्वारा सैनिक कार्यों में किया जा रहा है। क्या इन ट्रकों की वापसी के लिए कोई प्रयास किए जा रहे हैं?
ईए: यह वापस नहीं आए हैं, इन ट्रकों का हालिया आंकड़ा 1,010 ट्रक है। संयुक्त राष्ट्र में इथयोपिया के राजदूत ताये अत्सके सेलासी ने हाल में एक वक्तव्य में कहा था कि टीपीएलएफ द्वारा संयुक्त राष्ट्र के 1,010 ट्रकों को सैनिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी संयुक्त राष्ट्र ने कोई निंदा नहीं की। और आप उन तीन ट्रकों के लिए रो रहे हैं, जो सरकार के इलाके में गायब हो गए। यह लोग राहत और खाद्यान्न मदद के ज़रिए राजनीति कर रहे हैं। पिछले पूरे साल चले विवाद के दौरान ऐसा होता रहा। किसी तरह की निष्पक्षता नहीं रखी जा रही है।
बल्कि टिगरे क्षेत्र में काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के कर्मियों ने संयुक्त राष्ट्र के संगठनों की पोल खोल दी है कि वे टीपीएलएफ के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इसका खुलासा करने के लिए उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम और USAID इस मानवीय संकट का इस्तेमाल पश्चिमी हस्तक्षेप का आधार बनाने के लिए कर रहे हैं। मेरे हिसाब से हम इसके करीब आ रहे हैं।
पी़डी: इस बीच हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका में अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि, राजदूत जेफरी फेल्टमैन तुर्की, यूएई और इजिप्ट के दौरे पर इस युद्ध के बारे में चर्चा करने के लिए गए हैं। तो इथयोपिया के पड़ोसियों की भूराजनीतिक स्थिति कैसे विकसित हो रही है?
ईए: फेल्टमैन इथयोपिया के पड़ोसी सूडान और इजिप्ट, पूर्वी अफ्रीका और खाड़ी देशों में इथयोपिया पर दबाव बनाने के लिए यात्रा कर रहे हैं। तो मुझे लगता है कि यह यात्राएं इसी उद्देश्य से की गई हैं कि इलाके में इथयोपिया को अलग-थलग किया जाए। यह प्रतिबंध लगाए जाने के पहले की तैयारी है। लेकिन इथयोपिया सरकार अपने दावे पर दृढ़ है कि यह एक आंतरिक युद्ध और संप्रभुतापूर्ण मामला है और इसमें विदेशी दबाव महसूस नहीं किया जाएगा।
पीडी: यह साफ़ दिख रहा है कि टीपीएलएफ का इथयोपिया की सत्ता में वापसी मुमकिन नहीं है। इन स्थितियों में टीपीएलएफ को समर्थन देकर अमेरिका और सूडान व इजिप्ट जैसे पड़ोसियों के क्या हित सध रहे होंगे?
ईए: सूडान और इजिप्ट सीधे-सीधे अमेरिका के पिछलग्गू हैं। इथयोपिया को अस्थिर करने से उनके किसी भी तरह के राष्ट्रीय हितों की पूर्ति नहीं होगी। लेकिन इस तरह के भूराजनीतिक अहमियत वाले मामलों में कठपुतली देशों के पास स्वतंत्र विदेश नीति नहीं होती। उन्हें अपने साम्राज्यवादी आकाओं के हुक्म का पालन करना पड़ता है। फिर अमेरिका इन देशों पर पूरा दबाव डाल रहा है ताकि इथयोपिया को अलग-थलग किया जा सके और नए “हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका” के उदय को रोका जा सके। ऐसा क्षेत्र जिसमें शांति हो, स्थिरता हो और जहां के देशों में आपसी टकराव का चक्र चालू ना रहे।
इथयोपिया, एरिट्रिया और सोमालिया के एक साथ आने से इस क्षेत्र में अमेरिकी सेना के गढ़ों का प्रभाव कम होता है, जो रणनीतिक ढंग से बेहद अहम हैं। यह लाल सागर क्षेत्र और नील नदी बेसिन का हिस्सा है। यह चीन की “बेल्ड एंड रोड इनीशिएटिव का भी हिस्सा है।”
फिर अमेरिका का यह भी मानना है कि अफ्रीका को नियंत्रित करने के क्रम में इसे अपने यूएम अफ्रीका कमांड (अफ्रीकॉम) का “हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका, ग्रेटर हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका”, और पूर्वी अफ्रीका में विस्तार करना होगा। जो कांगो और बड़ी झीलों वाले इलाके तक होगा। फिर जैसा हमेशा से होता आया है, जब साम्राज्यवाद किसी क्षेत्र को नियंत्रित नहीं कर सकता, तो वहां विवाद फैलाकर उसे अस्थिर करने की कोशिश करता है, ताकि ऐसा वक़्त आ सके, जब साम्राज्यवाद संबंधित क्षेत्र पर कब्जा कर सके।
इसलिए अमेरिका नए हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका प्रोजेक्ट को बाधित करने के लिए सबकुछ कर रहा है। पहले ही वह एरिट्रिया पर प्रतिबंध लगा चुका है। वह इथयोपिया पर भी प्रतिबंध लगाने के क्रम में है। कौन जानता है कि कई दशकों तक युद्ध से जूझने के बाद सोमालिया क आने वाले वक़्त में कई छद्म युद्धों से भी जूझना पड़ सकता है।
पीडी: इस क्षेत्र के विदेशों में रहने वाले लोग, खासकर अमेरिका में रहने वाले इथयोपिया और एरिट्रिया के लोगों ने इन देशों पर अमेरिकी प्रतिबंधों और टीपीएलएफ को समर्थन देने के खिलाफ़ #NoMore आंदोलन शुरू किया था। यह आंदोलन कितना प्रभावी रहा है?
ईए: यह वाकई बेहद शानदार बात है। इथयोपियाई, एरिट्रियाई और सोमाली लोगों द्वारा इसे शुरू करने के एक महीने के भीतर ही इसने वैश्विक रूप ले लिया। वाशिंगटन डीसी, सान फ्रांसिस्को और अमेरिका व पश्चिमी देशों के कई दूसरे शहरों में बड़े प्रदर्शन हुए, इस दौरान नारा लगाया गया- “इथयोपिया से हाथ हटाओ, एरिट्रिया से हाथ हटाओ, हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका से हाथ हटाओ”। यह लोग कह रहे हैं कि अब पश्चिमी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं होता, ना ही प्रतिबंधों के तौर पर पश्चिमी देशों का आर्थिक युद्ध होना चाहिए।
हमने अफ्रीका में ही, हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका क्षेत्र के बाहर, पश्चिमी अफ्रीका और नाइजर में प्रदर्शन देखे, जहां “नव साम्राज्यवाद और नहीं” के नारे लगाए गए। दक्षिण अफ्रीका में दीवारों पर #NoMore के नारे लिखे गए। यह इथयोपिया में युद्ध के विरोध के तौर पर शुरू हुआ था। लेकिन अब यह साम्राज्यवाद के खिलाफ़ अखिल अफ्रीकी आंदोलन में बदल गया है। कल को यह नारे लैटिन अमेरिका में भी लग सकते हैं। इसमें कभी ख़त्म ना होने वाले युद्धों के खिलाफ़ एक वैश्विक साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन में बदलने की संभावना है।
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