सी.एस.डी.एस. सर्वेक्षण के अनुसार भाजपा का नारा “सबका साथ, सबका विकास” से लोग अब प्रभावित नहीं

क्या 2019 के आम चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) केंद्र में अपनी सत्ता बरकरार रख पायेगा?
आज की तारीख में, इस देश में ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं जो नहीं चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एनडीए के भेस में फिर से सत्ता में लौटे, यह संख्या मोदी के चाहने वालों से ज़्यादा है - राष्ट्र के इस मूड के बारे में हाल में हुए नवीनतम दौर (एमओटीएन) के सर्वेक्षण से पता चला जिसे लोकनीति, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस), दिल्ली द्वारा किया गया जोकि एक शोध संस्थान।
28 अप्रैल और 17 मई के बीच किए गए इस सर्वेक्षण में 15,859 उत्तरदाता भारत के 19 राज्यों में 175 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों से (जोकि प्रत्येक एक अलग लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से है) शामिल हैं।
सर्वेक्षण के निष्कर्षों के मुताबिक, 47 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि मोदी सरकार एक और मौका नहीं दिया जाना चाहिए, जबकि 39 प्रतिशत लोगों ने सोचा कि वह दूसरी पारी का हकदार है, और बाकी 14 फीसदी किसी भी और प्रतिबद्ध नहीं थे। एनडीए के लिए ये संख्या जुलाई 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की उस वक्त की स्थिति के लिए 2014 के चुनाव से नौ महीने पहले ऐसे ही दर्ज की गई थी।
नरेंद्र मोदी के शासन के पिछले चार वर्षों में उसके कार्यकाल से और 2014 के चुनाव अभियान के दौरान किए गए अपने वादे को पूरा करने में बीजेपी की पूरी तरह विफलता हो गई है, देश में विभिन्न समुदायों - किसानों, श्रमिकों, छात्रों, महिलाओं के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर अभूतपूर्व संघर्ष भी हुए। और अन्य उत्पीड़ित वर्ग भी इसमें शामिल हुए। इस परिदृश्य को प्रतिबिंबित करते हुए, सर्वेक्षण के केवल 30 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि सभी वर्गों के लिए विकास हुआ है, 42 प्रतिशत का मानना है कि वादा किया गया गरीबों को और विकास केवल अमीरों को लाभ पहुंचाने के लिए सीमित रहा। कुल मिलाकर, सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग दो-तिहाई मतदाता अब एनडीए शासन के तहत किए गए विकास की तरफ नकारात्मक राय रखते हैं।
भाजपा विरोधी लहर बढ़ रही है
सर्वेक्षण में मौजूदा शासन के खिलाफ बढ़ती विरोधी लहर की भावना मिली है, क्योंकि बीजेपी के लिए समर्थन आधार कम हो रहा है। बीजेपी शासन का समर्थन करने वाले मतदाता पिछले साल मई में 39 प्रतिशत (पहले एमओटीएन सर्वेक्षण) से घटकर 32 प्रतिशत रह गया यानी सात प्रतिशत की गिरावट आई है। यदि आज चुनाव होत्ते हैं, तो सर्वेक्षण के अनुसार एनडीए को कुल वोटों में से 37 प्रतिशत मिलेगा, और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए को राष्ट्रीय स्तर पर 31 प्रतिशत वोट मिलेंगे, जबकि अन्य पक्षों को 32 प्रतिशत वोट मिलेगा ( गैर-एनडीए और गैर-यूपीए)। कर्नाटक चुनावों के बाद, जहां कांग्रेस को जेडी (एस) में एक नया सहयोगी मिला है, उससे साथ ही साथ भविष्य में एक बड़े गठबंधन के लिए संकेत मिलता है, लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए जमीन खो रहां हैं।
बेरोजगारी, जीएसटी
सर्वेक्षण में पाया गया कि बेरोजगारी मतदाताओं की सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है। यह पाया गया है कि लगभग 57 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि पिछले तीन से चार वर्षों में उनके क्षेत्र में नौकरियां तलाशना अधिक कठिन हो गया है। जनवरी में किए गए अंतिम एमओटीएन सर्वेक्षण के दौरान यह आंकड़ा आठ अंकों के मुकाबले 49 फीसदी कम था। बेरोजगारी के अलावा, उत्पाद और सेवा कर (जीएसटी) की अलोकप्रियता केवल बढ़ रही है। 40 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि जीएसटी कठोर है, जो पिछले आयोजित (जनवरी) सर्वेक्षण से 11 प्रतिशत अधिक है।
इस बीच, व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति के विषय पर, सर्वेक्षण में पाया गया कि लोगों की संख्या जो महसूस करती है कि उनकी कुल घरेलू आय उनकी जरूरतों को पूरा करने में कम हो गयी है, जनवरी में वह 14 प्रतिशत से दोहरी होकर 27 प्रतिशत हो गई है।
क्षेत्रीय स्थिति
दक्षिण भारत वह क्षेत्र है जहां बीजेपी का प्रतिशत केवल 18 प्रतिशत वोट शेयर है, जबकि उत्तर भारत में भी मतदाताओं को पांच महीने पहले के मुकाबले अब बीजेपी की तरफ झुकाव कम लगता है। सर्वेक्षण में पाया गया कि एनडीए यूपीए के मुकाबके देश के पश्चिमी और मध्य भारत एवं उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थिर जमीन बनाए रखे हुए है। हालांकि, सर्वेक्षण भविष्यवाणी करता है कि कांग्रेस मध्यप्रदेश में भाजपा से बेहतर प्रदर्शन कर रही है। राजस्थान में, हालांकि बीजेपी कांग्रेस पर अपनी बढ़त बनाए हुए है, लेकिन बाद के पिछले पांच महीनों में यूपीए को काफी लाभ हुआ है।
निम्नलिखित तालिका देश के विभिन्न हिस्सों में जनता के मतदान के इरादे को दिखाती हैं:
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