रफाल डील : सामने आए नये तथ्य, रिलायंस को लेकर सरकार फिर कठघरे में?

रफाल डील पर आये दिन नए तथ्य सामने आ रहे हैं। इसी बीच फ्रांस के अख़बार 'मीडिया पार्ट' ने एक ख़बर के माध्यम से दावा किया है कि डसॉल्ट एविएशन के एक दस्तावेज़ के अनुसार डसॉल्ट के पास रिलायंस ग्रुप को चुनने के सिवाय और कोई विकल्प नहींथा। रिलायंस ग्रुप को साझेदार बनाने की उनके सामने शर्त रखी गयी थी। इससे पहले बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया का ब्योरा देने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायाधीश संजय किशन कौल और न्यायाधीश के.एम. जोसेफ की पीठ ने स्पष्ट किया कि मांगी गई जानकारी जेट विमानों की कीमत या उपयुक्तता से संबंधित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रफाल से जुड़ी प्रक्रियागत सूचना को सीलबंद कवर में पेश किया जाना चाहिए और यह सुनवाई की अगली तारीख यानी 29 अक्टूबर तक अदालत में पहुंचनी चाहिए।यह मामला पिछले दिनों फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान से काफी सुर्खियों में था। ओलांद ने ‘मीडिया पार्ट' अखबार के माध्यम से कहा था “हमारे पास पार्टनर चुनने का विकल्प नही था। भारत की सरकार ने रिलायंस को प्रस्तावित किया। डसॉल्ट ने अंबानी के साथ समझौता किया, हमारे पास कोई चारा नहीं था। हम उस वार्ताकार के साथ काम कर रहे थे जो हमें दिया गया। मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि इसका संबंध फिल्म 'जुली गयीए' से होगा।”
हालांकि भारतीय राजनीति में कई बार ऐसा समय आया है जब ऐसे विवादों ने भारतीय राजनीति को बहुत हद तक प्रभावित किया है जैसे कि 1986 का ‘बोफोर्स घोटाला’, जो राजीव गांधी की सरकार गिरने मे बहुत बड़ा कारण बना। ‘नेशनल हेराल्ड’ की एक ख़बर ने रफाल को ‘बीजेपी का बोफोर्स’ बताया।
10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ 36 रफाल विमान (पूर्णता हथियार युक्त) का समझौता साइन करते हैं। इस समझौते मेँ ‘डसॉल्ट एविएशन’ (इंटरनेशनल फ्रेंच एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरर ) के साथ अनिल अम्बानी की रिलाइंस ग्रुप की कंपनी को शामिल किया गया। जबकि वर्ष 2007 में कांग्रेस सरकार के समय हुए इस समझौते मे HAL (हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ) जो कि भारत सरकार के साथ साझेदारी की कंपनी है शामिल थी। कांग्रेस के समय इस समझौते में 126 विमान पर बात हुई थी जिसमें से 108 विमान HAL (‘डासो की ट्रांसफर टेक्नोलॉजी’ के साथ) बनाती और 18 ‘डासो एविएशन’ बनाता। बीजेपी सरकार ने जो समझौता किया है उसमे एक विमान की कीमत 1600 करोड़ बतायी जा रही है जबकि कांग्रेस के समय एक विमान की कीमत 526 करोड़ बतायी जा रही थी (गैरतलब अभी तक कोई सरकारी आंकड़े सामने नहीं आये हैं।) हालांकि बीजेपी सरकार की ओर से अरुण जेटली ने ‘राज्यसभा टीवी’ के अपने एक इंटरव्यू में कहा कि “बीजेपी ने जिन विमानों का सौदा किया है वे पूर्णता हथियार युक्त है जबकि कांग्रेस के समय मे हुए समझौते में जो विमान थे वो एक सामान्य विमान थे। उनका कहना था कि अगर इस तरह से देखा जाये तो यह समझौता कांग्रेस के समय हुए समझौते से 9 % सस्ता है।” जबकि प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति के मध्य हुए समझौते के जॉइंट स्टेटमेंट में साफ़- साफ़ लिखा हुआ है कि इन विमानों में वही विशेषताएं है जो पहले विमानों में थी।
कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि समझौता साइन होने से 15 दिन पहले डसॉल्ट एविएशन के CEO ने अपने एक स्टेटमेंट में HAL का जिक़्र किया। उनका कहना था – “आप हमारी उस संतुष्टि का एहसास कर सकते हैं, जब भारतीय वायुसेना प्रमुख ने कहा कि वे एक जांचा-परखा लड़ाकू विमान लेना चाहते हैं और वो रफाल हो सकता है और इसका अगला तार्किक कदम ये होता कि हम इस पर दस्तखत कर चुके होते। दूसरी तरफ रिकवेस्ट फॉर प्रपोज़ल और इससे जुड़े तमाम नियमों के दायरे में रहते हुए हम HAL चेयरमैन से सहमत है कि हम जिम्मेदारियों की साझेदारी परतैयार है, मुझे पक्का यकीन है कि बहुत जल्द ही डील को अंतिम रूप देकर दस्तखत हो जाएंगे।” कांग्रेस प्रेसिडेंट राहुल गाँधी ने अपनी पार्टी की मांग को आगे रखते हुए इस मुद्दे पर JCP (जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी ) बनाकर जाँच की मांग की है।
इन राजनीतिक आरोप -प्रत्यारोपण के मध्य पारदर्शिता का सवाल एक महत्वपूर्ण मुद्दा है , जो बहुत सारे सवाल खड़ा करता है जैसे कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति द्वारा दिए गए बयान का अभी तक किसी के द्वारा खंडन नही किया गया है और कुछ जायज़ सवाल इस समझौते के सन्दर्भ में उठते है –
• विमानों की संख्या एक दम से 126 से घटकर 36 हो जाना, जबकि भारतीय वायुसेना को 126 विमानों की जरूरत थी।
• 36 विमानों को बनाने में भारतीय वायुसेना उद्योग का कोई योगदान नहीं रहेगा, ये फ्रांस से लिए जाएंगे, जबकि पहले के समझौते मे 108 विमान HAL बनाती जिससे भारतीय वायुसेना उद्योग को काफी फायदा होता।
• HAL रिलाइंस की तुलना मे काफी पुरानी और अनुभवी कंपनी है जिसने HAL तेजस, HAL ध्रुव और HF -24 मारुत बनाए हैं।
• सरकार विमानों के दामों के असली आंकड़ों (दोनों 2007 में कांग्रेस के समय और अभी के) को सामने लाने से क्यों मुकर रही है।
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