PSU अफसरों ने साज़िश कर आंध्रप्रदेश की कोयला आपूर्ति का ठेका अडानी इंटरप्राइजेज को दिलाया: सीबीआई

15 जनवरी को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एआईएल) और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (एनसीसीएफ) के तीन पूर्व अधिकारियों को नामजद करते हुए आरोपित किया है कि उन्होंने अनुचित तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हुए 2010 के आयात किये जाने वाले कोयले की आपूर्ति आंध्र प्रदेश पावर जनरेशन कॉरपोरेशन (APGENCO) को करने का ठेका अडानी समूह की कंपनी को दिए जाने में अपनी भूमिका निभाई थी। जांच एजेंसी द्वारा दायर प्राथमिकी सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत सरकारी अधिकारी के ऊपर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत धोखाधड़ी और आपराधिक कदाचार के आरोप शामिल किये गए हैं।
न्यूज़क्लिक को हासिल हुई एफआईआर की कॉपी के अनुसार, एनसीसीएफ के तीन अधिकारियों- पूर्व चेयरमैन वीरेंद्र सिंह, पूर्व प्रबंध निदेशक जीपी गुप्ता, और पूर्व वरिष्ठ सलाहकार एससी सिंघल द्वारा- निविदा और टेंडर की प्रक्रिया के कई चरणों के दौरान उसमें हस्तक्षेप किया गया था। और "धोखाधड़ी और चूक के कृत्यों द्वारा ... टेंडर में भागीदारी करने वालों के चयन में हेरफेर करने, जिससे अडानी एंटरप्राइजेज को अनुचित लाभ पहुँचाया जा सके... बावजूद कि वह इसके अयोग्य पाया गया" ताकि कंपनी को ठेका मिल सके।
एनसीसीएफ की स्थापना 1965 में हुई थी, और यह खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में उपभोक्ता मामलों के विभाग के अंतर्गत कार्यरत आने वाले उपभोक्ता मामलों के अंतर्गत आता है, और भारत की उपभोक्ता सहकारी समितियों का सर्वोच्च संगठन है। इंटरनेशनल को-ऑपरेटिव अलायंस की सूची में एनसीसीएफ के कुल 136 सदस्य हैं, जिनमें प्राथमिक सहकारी संस्थाएं, दुकानें, होलसेल सोसायटी, राज्य स्तर के उपभोक्ता सहकारी संघ और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम शामिल हैं। एनसीसीएफ में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 78% तक है।
पहले पहल, एनसीसीएफ की ओर से कोई बोली आमंत्रित नहीं की गई
सीबीआई की प्राथमिकी के अनुसार, 29 जून 2010 को एपीजीईएनसीओ ( APGENCO) ने 6 लाख मीट्रिक टन के कोयले के आयात का टेण्डर जारी किया, जो गंतव्य तक मुफ्त-रेल सेवा के आधार पर भेजना था (इसमें खरीदार को ही भाड़े, बीमा और भारतीय पोत तक माल के पहुँचने तक के विभिन्न खर्चों को वहन करना था) से लेकर विजयवाड़ा और कडप्पा में स्थापित दो थर्मल पावर प्लांट तक पहुँचाने की जिम्मेदारी थी। एपीजीईएनसीओ ( APGENCO) द्वारा जारी निविदा को पाने वाले सात सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में से एक एनसीसीएफ भी थी।
सीबीआई की प्राथमिकी में एनसीसीएफ के भीतर चले घटनाक्रम को बारीकी से परखा गया है। एपीजीईएनसीओ ( APGENCO) से जारी निविदा सूचना 29 जून को एनसीसीएफ की हैदराबाद शाखा को प्राप्त हुई जिसे 1 जुलाई 2010 को एससी सिंघल के पास भेज दिया गया, जो कि उस समय एनसीसीएफ के हेड ऑफिस में वरिष्ठ सलाहकार पद पर नियुक्त थे। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि निविदा सूचना के प्राप्त होने पर पहले पहल एनसीसीएफ हेड ऑफिस ने कोयले की आपूर्ति के लिए कोयला आपूर्तिकर्ताओं से अपनी बोली लगाने के लिए ओपन टेंडर की घोषणा भी नहीं की। इसके बजाय महर्षि ब्रदर्स कोल लिमिटेड नामक एक कंपनी को 2.25% के मार्जिन पर (यानि कि एपीजीईएनसीओ ( APGENCO) को कोयले की बिक्री पर आपूर्तिकर्ता से एनसीसीएफ को प्राप्त होने वाले 2.25% लाभ का मार्जिन)।
एनसीसीएफ ढेर सारी प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के साथ निविदा आमंत्रण की प्रक्रिया को अंजाम देता है
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि इसके एक सप्ताह बाद, 7 जुलाई 2010 को जब एपीजीईएनसीओ ( APGENCO) के मुख्य अभियंता ने एनसीसीएफ की हैदराबाद शाखा को सूचित किया कि टेंडर जमा करने की अंतिम समय सीमा जो 7 जुलाई तक थी, उसे बढ़ा कर 12 जुलाई तक आगे कर दी गई है। इस सूचना के प्राप्त होने पर एनसीसीएफ ने महर्षि ब्रदर्स कोल को टेंडर अवार्ड किये जाने की घोषणा को रद्द कर दिया, और तय किया कि इस बार ओपन टेंडर होगा और खुली बोली लगाई जायेगी।
प्राथमिकी के अनुसार, एनसीसीएफ के प्रबंधन ने महसूस किया कि एपीजीईएनसीओ ( APGENCO) द्वारा टेंडर की समय सीमा के विस्तार के चलते अब उनके पास कोयले की आपूर्ति के लिए खुली निविदा को आमंत्रित करने का पर्याप्त समय था। एफआईआर में कहा गया है कि जहाँ मूल एपीजीईएनसीओ ने एनसीसीएफ को टेण्डर (1 से 7 जुलाई तक) जमा करने के लिए सात दिन का समय दिया था, वहीं विस्तारित अवधि इस बार मात्र पांच दिन (8 से 12 जुलाई) की थी।
7 जुलाई के दिन एनसीसीएफ के तीन वरिष्ठ अधिकारियों- सिंघल, गुप्ता और सिंह ने मिलकर एक बैठक की और निविदा के मसौदे को मंजूरी दी। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि उस बैठक में यह फैसला लिया गया था कि हैदराबाद कार्यालय 10 जुलाई 2010 को दोपहर 1 बजे तक निविदा स्वीकार करेगा, और जो बोलियाँ आई होंगी उन्हें सारणीबद्ध किया जायेगा और उसी दिन उस पर विचार करने के लिए शाम 4 बजे तक हेड ऑफिस को भेज दिया जाएगा।
प्राथमिकी में आरोप है कि इस कार्यवाही में तीनों अधिकारियों की ओर से ढेर सारी अनियमितताएँ पाई गई हैं। प्राथमिकी में कहा गया है कि एनसीसीएफ के वाणिज्यिक संचालन के दिशा-निर्देशानुसार, प्रबंध निदेशक की ओर से एक हेड ऑफिस कमेटी का गठन किया जाना चाहिए था। इस प्रकार की कोई कमेटी के गठन के नियम का पालन नहीं किया गया था, और इन तीनों अधिकारियों के स्वविवेक के आधार पर मसौदा निविदा सूचना को मंजूरी दे दी गई थी। एक और प्रक्रियागत अनियमितता के बारे में एफआईआर में बताया गया है कि मसौदा निविदा सूचना को एनसीसीएफ के वित्त प्रभाग में स्वीकृति के लिए नहीं भेजा गया था।
बोली के मूल्यांकन में किस प्रकार से हेरफेर की गई
10 जुलाई 2010 को हैदराबाद की शाखा ने कुल छह बोली लगाने वालों (बिडरस) से इसके लिए बोलियाँ प्राप्त हुईं। इसमें से चार हैदराबाद स्थित कोयले के सप्लायर - माहेश्वरी ब्रदर्स कोल लिमिटेड, स्वर्ण प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, गुप्ता कोल इंडिया लिमिटेड और क्योरी ओरमेन लिमिटेड थे। (एफआईआर में विभिन्न मौकों पर महर्षि ब्रदर्स और माहेश्वरी ब्रदर्स को संदर्भित करने के लिए उसके संक्षिप्त नाम एमबीसीएल (एमबीसीएल) का उपयोग किया गया है।
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार महर्षि ब्रदर्स कोल लिमिटेड नाम की कोई कंपनी नहीं है, जबकि माहेश्वरी ब्रदर्स कोल लिमिटेड के मामले में रिकॉर्ड उपलब्ध है। लेकिन यह साफ़ नहीं हो पा रहा है कि यह महर्षि एक टाइपिंग की त्रुटि है या कुछ और, क्योंकि अपने सभी सन्दर्भों में सीबीआई ने उसी कम्पनी- माहेश्वरी ब्रदर्स कोल लिमिटेड का ही जिक्र किया है।) इसके अलावा दो और बोलियां (बिड) प्राप्त हुई थीं, एक अडानी एंटरप्राइजेज की ओर से, और एक दूसरी गुडगाँव स्थित कम्पनी व्योम ट्रेड लिंक्स प्राइवेट लिमिटेड से।
एफआईआर में कहा गया है कि 10 जुलाई को दोपहर 1 बजे निविदाएं खोलने का काम बोली लगाने वाली छह कंपनियों में से पांच की उपस्थिति में संपन्न किया गया था। इसमें से व्योम अनुपस्थित रही। निविदाओं के खोले जाने के बाद हैदराबाद में स्थित एनसीसीएफ अधिकारियों द्वारा निविदाओं के राज्यवार सारणीबद्ध किया गया था, और बोली लगाने वालों द्वारा प्रस्तुत बैंक गारंटी और अन्य दस्तावेजों को बयान के साथ हेड ऑफिस के लिए भेज दिया गया।
एफआईआर में इस बात का जिक्र है कि बोलियों के मूल्यांकन के सिलसिले में हेड ऑफिस में एक कमेटी गठित की गई थी, जिसमें सिंघल सहित एनसीसीएफ के दो अन्य अधिकारी शामिल थे जिनका नाम पी पी सिंह और एस के शर्मा था। कमेटी ने उसी दिन बोली लगाने वाले दस्तावेजों का मूल्यांकन किया था।
एफआईआर में इस बात का उल्लेख है कि मात्र दो कंपनियों ने अपनी बोली में मार्जिन की बात को उद्धृत किया था - गुप्ता कोल इंडिया ने 11.3% और एमबीसीएल ने 2.5% तक की मार्जिन को उद्धृत किया था। चार अन्य बोली लगाने वाली कम्पनियों में से तीन गुप्ता कोल, क्योरी ओरमेन और स्वर्ण प्रोजेक्ट्स की निविदाओं को एनसीसीएफ हेड ऑफिस के द्वारा रद्द कर दिया गया, क्योंकि वे निविदा शर्तों को पूरा कर पाने में अक्षम पाए गए थे। प्राथमिकी के अनुसार, एनसीसीएफ के टेंडर सूचना में स्पष्ट था कि "अधूरे और सशर्त आवेदन" को अस्वीकार कर दिया जाएगा, और कंपनियों को स्पष्ट दिशानिर्देश थे कि वे “अपने प्रस्ताव में एनसीसीएफ को इन आपूर्तियों के बदले में मार्जिन का उल्लेख करना था।" इसके अनुसार, जिन चार बोलियों में मार्जिन का जिक्र नहीं पाया गया, उन्हें अस्वीकार कर दिया गया।
अडानी को अयोग्य घोषित करने के बजाय, एनसीसीएफ ने उसे इसकी इत्तिला देने का काम किया
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि अडानी एंटरप्राइजेज की बोली रद्द करने के बजाय, “एनसीसीएफ के वरिष्ठ प्रबंधन ने अपने एक प्रतिनिधि श्री मुनीश सहगल को जो 10 जुलाई, 2010 की शाम को एनसीसीएफ हेड ऑफिस में बैठे थे, के माध्यम से मैसर्स अडानी इंटरप्राइजेज को एनसीसीएफ के ऑफर मार्जिन की इत्तला करवाई”। इस जानकारी के प्राप्त होते ही अडानी इंटरप्राइजेज ने इस बाबत एनसीसीएफ हैदराबाद के शाखा प्रबंधक के नाम एक पत्र भिजवाया, जिसमें कहा गया था कि वह माहेश्वरी ब्रदर्स की बोली की राशि का मिलान करते हुए 2.5% का मार्जिन देगा।
प्राथमिकी में स्पष्ट कहा गया है कि “इस बात के प्रथम दृष्टया प्रमाण हैं कि जब एनसीसीएफ हेड ऑफिस, नई दिल्ली में बोलियों की छानबीन की जा रही थी, तो उस समय मैसर्स अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के प्रतिनिधि को इस बात से अवगत कराया गया था कि एनसीसीएफ को मार्जिन देने का उल्लेख न होने की वजह से उनके अस्वीकृत किये जाने का आसन्न खतरा है, और यह कि मैसर्स एमबीसीएल ने जो कि इस बोली में योग्य पाई गई है, ने 2.25% मार्जिन को उद्धृत (कोट) किया है।
इसके अलावा भी एफआईआर में दावा किया गया है कि गुड़गांव की कंपनी व्योम असल में अडानी (एईएल) समूह के ही एक एजेंट के रूप में काम कर रही थी। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि एईएल (अडानी समूह) ने 2008-09 में व्योम को 16.81 करोड़ रुपये का असुरक्षित (प्रतिभूति-रहित) कर्ज दिया था, और उसी बैंक ने एईएल और व्योम की बैंक गारंटी जारी की गई थी, और वह भी ठीक उसी समय। प्राथमिकी के अनुसार 10 जुलाई की शाम 7.13 बजे व्योम ने एनसीसीएफ के मुख्य कार्यालय को एक पत्र भेजकर अपनी बोली (बिड) वापस लेते इस बात का जिक्र किया है कि “चूंकि काम के घंटे पहले ही समाप्त हो चुके हैं और जो समय बचा है, वह काफी कम है।
इसलिये समय की कमी को देखते हुए, आगे के लिए खुद के प्रस्तुतीकरण और अपनी कीमतों को दोबारा पेश करना उसके लिए मुश्किल होगा।” इन आधारों को देखते हुए प्राथमिकी में कहा गया है: “ प्रथम दृष्टया या स्पष्ट हो जाता है कि अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड ने खासकर इस टेंडर के लिए मैसर्स व्योम ट्रेड लिमिटेड को अपने एजेंट के रूप में नियुक्त कर रखा था, जिसने बिना किसी ठोस कारण बताये, अपने प्रस्ताव को वापस ले लिया था।"
इसके अतिरिक्त प्राथमिकी में इस बात के भी आरोप लगाये गए हैं कि 7 जुलाई से पहले, जब एनसीसीएफ ने माहेश्वरी ब्रदर्स को बिना कोई बोली की प्रक्रिया को लागू किये, अवार्ड कर दिया था तो बिज़नेस कमेटी की एक बैठक में, गुप्ता ने कमेटी को यह बताते हुए कि अख़बारों में निविदा सूचना प्रकाशित हुई हैं, भ्रामक सूचना देने का काम किया था।
आरोप
इन विवरणों के आधार पर सीबीआई की प्राथमिकी में कहा गया है कि “वरिष्ठ प्रबंधन की ओर से इस प्रकार की धोखधड़ी और चूक जिसमें तत्कालीन एनसीसीएफ चेयरमैन, नई दिल्ली, श्री वीरेंद्र सिंह, और तबके प्रबंध निदेशक श्री जीपी गुप्ता, नई दिल्ली, और एनसीसीएफ, नई दिल्ली के तत्कालीन वरिष्ठ सलाहकार, श्री एससी सिंघल की ओर से उपरोक्त कृत्य का खुलासा हुआ है। इनके एनसीसीएफ के कार्यकाल में, इन लोगों ने जिस प्रकार का आचरण किया है वह किसी भी प्रकार से सरकारी सेवाओं में कार्यरत के लिए सर्वथा अनुचित है, और अन्य आरोपियों के साथ बोली लगाने वाली कंपनियों के चुनाव में हेरफेर के तौर-तरीकों से अनियमितताओं को करने का आपराधिक षड्यंत्र रचा।
जिसके फलस्वरूप बोली कि प्रक्रिया में अयोग्य पाए जाने के बावजूद आंध्र प्रदेश पावर जनरेशन कंपनी को आयातित कोयले की आपूर्ति कराने का ठेका अनुचित तौर पर पक्षपात करते हुए मैसर्स अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड को दिलाने का कृत्य संभव हो सका।”
प्राथमिकी में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 120-बी को आईपीसी के 420 के तहत प्रथम-दृष्टया संज्ञेय अपराधों और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत धारा 13 (2) के जिसे 13 (1) (डी) के साथ जोड़ा जाये, जो इन तीन अधिकारियों, अडानी (एईएल) और अन्य के द्वारा किये गए हैं।
इसी प्रकार का महाराष्ट्र वाला मामला
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि पहले के एक मामले में सीबीआई ने महाराष्ट्र के उर्जा क्षेत्र की सार्वजनिक निगम की कंपनी को अडानी समूह की कम्पनी द्वारा आपूर्ति के एक तुलनीय मामले से संबंधित प्रारंभिक जांच शुरू कर चुकी थी। जिसे बाद में इस दावे के साथ बंद कर दिया गया था कि महाराष्ट्र सरकार से इस बारे में अनुमति प्राप्त नहीं हो सकी, जैसा कि सीबीआई द्वारा अपने दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे में कहा गया। उस मामले में मुद्दा अडानी इंटरप्राइजेज द्वारा दक्षिण कोरिया और चीन से आयातित ट्रांसमिशन उपकरणों और इसके साथ ही एक अन्य मामला अडानी समूह की कंपनी का महराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड से संबंधित था।
महाराष्ट्र वाला मामला और एपीजीईएनसीओ (APGENCO) के इन दोनों मामलों में राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) की ओर से आरोप हैं कि अडानी समूह द्वारा कोयले और उर्जा उत्पादन / ट्रांसमिशन उपकरण के आयात पर बढ़ा-चढ़ाकर चालान (बिल) बनाये हैं। इस मामले की गहरी जानकारी वाले एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए खुलासा किया है कि, जहाँ यह देखते हुए कि टेंडर और बोली लगाए जाने की प्रक्रिया में धांधली हुई थी, इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता है कि अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा आयातित ओवर-इनवॉइस कोयले को एनसीसीएफ द्वारा एपीजीईएनसीओ (APGENCO) को ही इसकी आपूर्ति की गई थी या नहीं, क्योंकि यह अभी अज्ञात है कि एनसीसीएफ के द्वारा एपीजीईएनसीओ (APGENCO) की इस ख़ास बोली (बिडिंग) सफल रही थी या नहीं। लेकिन यह सच्चाई है कि एईएल (अडानी समूह) के द्वारा आयातित ओवर-इनवॉइस कोयले (जैसा कि डीआरआई द्वारा आरोप लगाये गए हैं) को एनसीसीएफ के माध्यम से एपीजीईएनसीओ (APGENCO) को आपूर्ति की गई है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि एपीजीएनसीओ के मामले में सीबीआई की ओर से जब एक नया मामला खोला जा रहा है तो क्या वह अपने महाराष्ट्र वाले मामले पर भी गौर करेगी? यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि, जबकि सीबीआई ने दावा किया था कि उसे महाराष्ट्र सरकार द्वारा जांच की अनुमति नहीं दी गई, वहीं कानूनी विशेषज्ञों का दावा है कि पहली बात तो यह है कि ऐसी किसी प्रकार की अनुमति की कोई आवश्यकता ही नहीं थी, और यदि वास्तव में इस प्रकार के किसी अनुमति की जरूरत पड़ती भी है तो इस बात की संभावना मौजूद है कि महाराष्ट्र में हाल ही में निर्वाचित महा विकास अघाड़ी सरकार, इस मामले पर एक बार फिर से विचार करने को तैयार हो सकती है, जिसका फैसला पूर्ववर्ती भाजपा-शिवसेना सरकार ने किया था।
अंग्रेजी में लिखा गया मूल आलेख आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
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