पटना दूध मंडी प्रदर्शन : प्रशासन के लिखित आश्वासन के बाद प्रदर्शन ख़त्म

आजकल बिहार में सरकार द्वारा अतिक्रमण हटाने को लेकर एक अभियान चलाया गया है, 21 अगस्त को पटना के दूध मंडी पर बुल्डोज़र चलाया गया। इसके बाद से ही वहां के स्थानीय दूध व्यापारियों के साथ बिहार सरकार के मंत्री तेजप्रताप और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव धरने पर बैठ गए, जिसके बाद प्रशासन के लिखित आश्वासन के बाद इस धरने को ख़त्म किया गया। इस आश्वासन में दूधवालों के लिए नई मंडी बनाने की बात कही गई है। पटना ज़िला प्रशासन ने भरोसा दिलाया कि दूध मंडी को पटना स्टेशन के ही आसपास के इलाक़े में बनाया जाएगाा। इसके लिए जो दायरा तय किया गया है वह भी जंक्शन से मात्र डेढ़ किलोमीटर के भीतर का ही इलाक़ा होगा। इसका मतलब यह हुआ की दूधवालों को अपनी मंडी के लिए पटना जंक्शन से ज़्यादा दूर नहीं जाना होगा।
क्या है पूरा मामला ?
यह दूध मार्केट 28 साल पुरना है जिसे प्रशासन ने बुधवार को बुलडोज़र से मलबे में तब्दील कर दिया। सुबह साढ़े 11 बजे जैसे ही बुलडोज़र चलाना शुरू किया गया, स्थानीय दुकानदारों का हंगामा शुरू हो गया। पहले से मुस्तैद 300 जवानों ने उन्हें खदेड़ दिया। दूध मार्केट का निर्माण 1991 में तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने कराया था।
सरकारी लेटर के बाद ख़त्म हुआ धरना
नूतन राजधानी अंचल के कार्यपालक पदाधिकारी ने पत्र जारी किया है, इसमें साफ़ तौर पर लिखा है कि पटना रेलवे स्टेशन के सामने से विस्थापित दूध मार्केट से प्रभावित दुकानदारों के लिए नगर निगम द्वारा नियमानुसार जल्द से जल्द उचित स्थान उपलब्ध कराने के लिए क़दम उठाए जाएंगे। इस पूरे मामले पर धरने पर बैठे बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया और अपने इस प्रदर्शन को जन संघर्षो की जीत बताया और कहा कि सत्ता नहीं ग़रीबों के लिए संघर्ष ही हमारी राजनीति है।
धरने के दौरान स्थनीय लोगो ने विरोध का एक अनोखा तरीक़ा अपनाया और वो देर रत धरना स्थल पर ही कीर्तन करने लगे।
तेजस्वी यादव ने सरकार के इस क़दम को बदले की भावना और ग़रीब विरोधी बताते हुए ट्वीट किया जिसमें उन्होंने कहा कि सीएम को ग़रीबों से नफ़रत है। उन्हें पीड़ा है कि किसानों के बेटे पटना की मुख्य मार्केट में दुग्ध और मछली क्यों बेचते है? तत्कालीन CM लालू प्रसाद जी ने ग़रीबों के लिए दुग्ध और मछली मार्केट को बनवाया था यह नीतीश जी को कैसे हज़म होता इसलिए बिना वैकल्पिक व्यवस्था के इसे तुड़वा रहे हैं।
उन्होंने सरकार पर बिना किसी क़ानूनी कार्रवाई के मंडी को तोड़ने का आरोप लगाया उन्हाेंने ज़िला प्रशासन से मार्केट ताेड़ने के लिए जारी आदेश की काॅपी मांगी। लेकिन, माैक़े पर प्रतिनियुक्त दंडाधिकारी काग़ज़ नहीं दिखा सके। इसके बाद उन्हाेंने कहा कि प्रशासन ने बग़ैर आदेश के ग़रीबों के लिए सरकार द्वारा सरकारी ज़मीन पर बनाई गई दुकानाें और मंदिर काे ताेड़ा है। इस मार्केट काे लालू प्रसाद ने बनवाया था। सरकार ग़रीबों काे उजाड़ कर अमीरों काे बसा रही है।
ऐसा नहीं है बिहार में यह पहला मामला हुआ है। इससे पहले भी सरकार ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों को बेघर किया है या उनकी दुकानों को तोड़कर उनका रोज़गार छीना है। सरकार इसके पीछे तर्क देती है कि इन अवैध क़ब्ज़ों के कारण ट्रेफ़िक जाम की गंभीर समस्या होती है। इसके अलावा ये भी कहा है कि सरकार लोगों को अच्छी सुविधा दे पाए इसके लिए ज़रूरी है की इन अतिक्रमण को हटाया जाए।
सरकार इन दुकानों को विकास में एक बाधक मानती लेकिन यहाँ सवाल है कि विकास किस क़ीमत पर? यहां रह रहे लोगों को बिना वैकल्पिक व्यवस्था मुहैया कराये उनकी दुकानें उजाड़ना कितन उचित है, सरकारों को इस पर भी विचार करना चाहिए।
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