'ऑक्सीजन निगरानी' : एक कल्याणकारी राज्य के बारे में पुनर्विचार

केंद्र सरकार के भीतर पूर्वानुमान की कमी ने कोविड-19 की उपजी घातक दूसरी लहर को बढ़ा बेंतहा बढ़ा दिया है जिसके परिणामस्वरूप मरने वालों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है जिसका अनुमान हाल के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। केंद्र की गलत प्राथमिकताओं ने देश को एक गंभीर ऑक्सीजन संकट के साथ रसातल में धकेल दिया, जहां असहाय भारतीय ऑक्सीजन की मदद के लिए रोते-चिल्लाते रहे और इस स्थिति ने सोशल मीडिया पर हैशटैग #IndiaCantBreathe के साथ तूफान उठा दिया।
1,500 ऑक्सीजन बिस्तर: एक मील के पत्थर का क़दम
इस अभूतपूर्व स्थिति में, देश को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को अनिश्चितता और असममित जानकारी का सामना करना पड़ रहा है। केरल सरकार की दूरदर्शिता ने उसे कोविड-19 मामलों में आई तेजी को रोकने में मदद मिली। 2019 तक, केरल तरल ऑक्सीजन के मामले में मुख्यत पड़ोसी राज्यों पर निर्भर था। लेकिन उसने पहली लहर में ही सबक सीख लिया था और केरल का दैनिक ऑक्सीजन स्टॉक अप्रैल 2020 में 99.3 मीट्रिक टन से बढ़कर 219 मीट्रिक टन हो गया था।
एक साल के भीतर, केरल सरकार ने ऑक्सीजन क्षमता में लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि की थी। ऑक्सीजन का यह भंडार स्वास्थ्य क्षेत्र की मांग को पूरा करने में कारगर साबित हुआ। कोविड मामलों में वृद्धि को देखते हुए, सरकार ने हाल ही में सभी जिलों में ऑक्सीजन वॉर रूम शुरू कर दिए हैं। भारत की सबसे बड़ी ऑक्सीजन बेड सुविधा अमाबलमुगल, एर्नाकुलम में शुरू की गई, जिसकी क्षमता 1500 बेड की है।
चार्ट: 30 दिनों में कोविड-19 मामलों की तिथि-वार रिपोर्टिंग की गई है
Source: dashboard.kerala.gov.in
अन्य राज्यों के विपरीत, केरल का टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (TPR) लगभग 23.3 प्रतिशत था, जो कि काफी अधिक था। राज्य की घनी आबादी की जनसांख्यिकीय भेद्यता ने हमेशा कड़ी चुनौती पेश की है। कोविड-19 मामलों में भारी वृद्धि के बावजूद 87.22 प्रतिशत की उच्च रिकवरी दर और 0.3 प्रतिशत की बेहद कम मृत्यु दर केरल की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की दक्षता को दर्शाती है। सभी जिलों में से, एर्नाकुलम कोविड मामलों के सबसे बड़े केंद्र के रूप में उभरा है। जिले की बड़ी आबादी के प्रति चिंता के कारण, राज्य सरकार ने स्थानीय स्वशासन और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के सहयोग से 1,500 बिस्तरों वाला एक अस्थायी कोविड अस्पताल स्थापित किया है। भारत की सबसे बड़ी ऑक्सीजन बेड सुविधा होने की वजह से इसमें ऑक्सीजन की सीधी और बेरोकटोक आपूर्ति होती है।
“बीपीसीएल ऑक्सीजन और उपयोगिता की वस्तुओं को मुफ्त प्रदान कर रहा है और इसकी अधिकतम उत्पादन क्षमता 24 टन प्रति दिन है। बीपीसीएल के उप प्रबंधक प्रिंस जॉर्ज के मुताबिक, बड़ी संख्या में डॉक्टरों और नर्सों की देखरेख में इस सहायता के चलते लगभग 90 प्रतिशत रोगी ठीक हो सकते हैं।
केरल आरोग्य सुरक्षा पधाथी (केएएसपी) - एक ऐसी स्वास्थ्य देखभाल योजना है जो हर साल प्रति परिवार पांच लाख रुपये का बीमा कवर प्रदान करती है - लाभार्थी और सरकार द्वारा संदर्भित मरीज निजी अस्पतालों से इसके माध्यम से मुफ्त इलाज का लाभ उठा सकते हैं। इस योजना से संकट के समय में भी ओओपीई को बनाए रखने और उस पर नियंत्रण रखने में मदद मिली है। संकट के समय में जमीनी स्तर का लोकतंत्र और लोगों की व्यवहारिक प्रतिक्रियाएं सरकार की किसी भी नई पहल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
विकेंद्रीकृत योजना और डिजिटल ऑक्सीजन युद्ध-कक्ष
अकेले ऑक्सीजन से राज्य की सभी जरूरतें पूरी नहीं होती हैं। आपूर्ति की मांग और वितरण पर चौकसी बरतने के लिए रोगियों के कुल दाखिलों को प्रबंधित करने के लिए सभी जिलों में "ऑक्सीजन वॉर रूम" स्थापित किए गए हैं। वॉर रूम चौबीसों घंटे काम करते हैं और इसकी निगरानी जिला कलेक्टर करते हैं। एक टास्क फोर्स बनाई गई है जिसमें विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, नौकरशाह, हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से महामारीविद, और डेटा विश्लेषक इन गतिविधियों का समन्वय करते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में दक्षता और समानता सुनिश्चित करने के लिए डेटा को 'कोरोनासेफ नेटवर्क' नामक एक विशेष सॉफ्टवेयर द्वारा संकलित किया जाता है। विकेन्द्रीकृत रोगी प्रबंधन की प्रणाली वार्ड स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल और उनका ध्यान रखने में मदद करती है जिससे जनता का विश्वास बना रहता है।
“अच्छी तरह से तैयार एकीकृत प्रणाली वास्तविक समय में ऑक्सीजन की चौकसी, ऑक्सीजन के खत्म होने की दर और तरल ऑक्सीजन को खाली करने के समय में मदद करती है। इंटीग्रेटेड टेलीमेडिसिन, बीमार को वक़्त पर पड़ने वाले इलाज़ की जरूरत और एम्बुलेंस से शिफ्टिंग सूचना के असमान अधिकार से बचने में मदद करती है जिसका सामना लोगों को एक विशिष्ट किस्म के स्वास्थ्य बाजार में करना पड़ता है,'' आपातकालीन नेटवर्क संचालन के प्रमुख अपर्णा सत्यनाथन ने उक्त बातें बताई।
राष्ट्रीय उदासीनता और उससे सबक
सत्ताधारी निज़ाम की राजनीतिक अक्षमता ने महामारी की इस दूसरी लहर को मानव निर्मित तबाही में बदल दिया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रति केंद्र की ढिलाई उनके केंद्रीय में भी नज़र आती है क्योंकि सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा परिकल्पित राशि की तुलना में उसे काफी कम आवंटन दिया है। एक ऐसे देश में जहां कम आय वाले परिवारों का एक बड़ा वर्ग ऑक्सीजन के लिए हांफ रहा है, सरकार को परीक्षा में देर से जाने वाले छात्र की तरह व्यवहार करने के बजाय हालात को संभालने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करना चाहिए। भारत में, सामाजिक दूरी और हाथ धोना ऐसे विशेषाधिकार हैं जिन्हे निम्न मध्यम वर्ग और गरीब तबके के लिए हासिल करना सस्ता नहीं हैं। देश की बहुमत आबादी बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल से वंचित और बहिष्कृत हैं।
केंद्र सरकार की नीतियों और केरल की नीतियों के बीच तुलना करना एक जुदा सड़क जैसा दिखता है। केरल में, कोविड-19 के इलाज़ के लिए जरूरी सभी चिकित्सा वस्तुओं को केरल एसेंसियल आर्टिकल कंट्रोल अधिनियम, 1986 के तहत आवश्यक वस्तु बना दिया गया और उनका अधिकतम खुदरा मूल्य तय कर दिया है। कोई भी सरकार जो कम से कम कर सकती है, वह यह है कि चिकित्सा वस्तुओं/उपकरणों, विशेष रूप से ऑक्सीजन पर जीएसटी को शून्य कर सकती है। अफसोस की बात है कि केंद्र की प्रतिगामी कराधान नीतियों ने असमानता को और गहरा कर दिया है और गरीबों को इस आर्थिक गिरावट का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सरकार सार्वजनिक व्यय को बढ़ाने के बजाय स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी पूंजी के संचय को अनुकूल बनाने का माहौल तैयार कर रही है। पहली नज़र में देखा जाए तो, सबका सामूहिक टीकाकरण सुनिश्चित करना ही इसका एकमात्र समाधान है, लेकिन अब तक कुल आबादी में से मुश्किल से सिर्फ तीन प्रतिशत को ही टीका लगाया जा सका है। 'ईश्वर' नहीं, बल्कि कड़े उपाय ही इस घातक महामारी के दुष्चक्र को तोड़ सकते हैं।
लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में अर्थशास्त्र के छात्र हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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