क्या भीमा-कोरेगाँव हिंसा के बारे में मुख्यमंत्री फडणवीस को नहीं पता था ?

महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगाँव में इस साल जनवरी में हुई हिंसा जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था, को लेकर कई सवाल हैं। सवाल खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर भी खड़े हुए हैं, क्योंकि हिंसा से पहले और हिंसा के समय फडणवीस के पास ही गृह मंत्रालय का कार्यभार भी था। कई फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्टों के अनुसार यह घटना हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा सुनियोजित तरीके से कराई गयी थी और इसमें दलितों को निशाना बनाया गया था। पुलिस ने जान बूझकर ढिलाई बरती जिस वजह से 1 से 3 जनवरी तक वहाँ दंगे हुए।
हर साल पहली जनवरी को दलित समाज के लोग पुणे से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भीमा-कोरेगाँव गाँव जाते हैं। उनका मकसद होता है 1818 में दलितों द्वारा ब्राह्मण पेशवाओं की फ़ौज को हराये जाने की घटना का उत्सव मानना। दरअसल जिस अंग्रेज़ों की फ़ौज ने पेशवा फ़ौज को हराया था उसमें ज़्यादातर दलित महार थे, दलित इसी का उत्सव मनाने हर साल भीमा कोरेगाँव जाते हैं। इस साल जब दलित इस जीत की 200वीं जयंती मानाने लाखों की संख्या में वहाँ पहुँचे तो उन पर हिंदुत्ववादी संगठनों ने हमला बोल दिया, जिससे राज्य दहल गया। इस मामले में मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े जो कि हिन्दू एकता अघाड़ी और शिवराज प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के संस्थापक हैं , को जाँचों में इस दंगे की साजिश रचने का दोषी पाया गया है और उनके खिलाफ कई केस दर्ज़ हैं। जहाँ एकबोटे को शुरू में गिरफ्तार किया गया था लेकिन बाद में उसे बेल मिल गयी थी वहीं दूसरी तरफ भिड़े को पुलिस ने अब तक नहीं पकड़ा है।
पुणे नगर निगम के उप महापालिकाध्यक्ष सिद्धार्थ धेंडे द्वारा की गयी फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की जाँच के अनुसार 1 जनवरी को हिंदुत्ववादी संगठनों ने दलितों पर हमला किया, तो वहाँ सामाजिक न्याय मंत्री दिलीप कांबले मौजूद थे। कांबले ने घटना के बारे में तुरंत ही मुख्यमंत्री फडणवीस को बता दिया था लेकिन पुलिस ने फिर भी हिंसा रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
रिपोर्ट में लिखा है "भगवा झंडे लिए कुछ लोग कोंधापुरी, चकन चौक, सनसवादी फाटा और मलथान फाटा जैसे गाँवों में उन गाड़ियों पर पत्थर फेंक रहे थे जिनपर नीले झंडे थे। वह उन गाड़ियों को तोड़ रहे थे जो सड़क पर खड़ी थीं। उस समय राज्य के मंत्री दिलीप काम्बले वहाँ मौजूद थे। जब एक इमारत से उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंके गए, तो कुछ कार्यकर्ता उन्हें वहाँ से दूर ले गए। दिलीप कांबले ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को वहीं से कॉल किया लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। कुछ देर बाद फडणवीस ने कांबले को उनके मोबाईल पर कॉल किया। तब कांबले ने उन्हें बताया कि क्या हुआ है और उनसे ज़्यादा पुलिस बल भेजने की दरख्वास्त की। लेकिन मुख़्यमंत्री ने फ़ोन काट दिया। पत्थरबाज़ी तब तक चल रही थी और उस समय पत्रकार प्राची कुलकर्णी कांबले की गाड़ी में मौजूद थीं। "
इस सितम्बर में न्यायिक आयोग ने जनवरी में हुई इस हिंसा के मामले में सुनवाई शुरू की। सुनवाई के पहले ही दौर में कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायधीश जे एन पटेल और राज्य सूचना आयोग अध्यक्ष सुमित मालिक मौजूद थे और यह दौर 5 से 7 सितम्बर तक चला। इसमें एक सामाजिक कार्यकर्ता संजय लाखे पाटिल ने मुख्यमंत्री फडणवीस को बुलाये जाने और उनसे पूछताछ करने की बात की। इस मामले में कुछ चश्मदीदों ने अपनी गवाही दे दी है और अगली सुनवाई 24 सितम्बर को होगी।
मार्च में विधानसभा में फडणवीस ने हिंसा के बारे में बयान दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस इन पूरे मामले में संभाजी भिड़े की भूमिका के बारे में कोई भी सबूत नहीं जुटा पाई है, जबकि उनके खिलाफ कई लोगों ने गवाही दी है और उनके खिलाफ काफी सबूत भी पाए गए हैं। ढेंढे की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा से दो हफ्ते पहले 16 दिसंबर 2017 को भिड़े और एकबोटे के संगठनों से जुड़े एक शख्स कौस्तुब कस्तूरे ने फेसबुक पर लिखा कि 1 जनवरी को एक ऐतिहासिक घटना होने वाली है जो दंगे के समान होगी। इसके आलावा कई गवाहों ने स्वतंत्र कमेटियों को यह कहा है कि 30 से 31 दिसंबर 2017 को हिन्दुत्ववादियों ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ बातें फैलाई थीं। यह खबर फैलाई गयी थी कि संभाजी भिड़े 1 जनवरी को भीमा कोरेगाँव में मीटिंग करेंगे।
जहाँ एक तरफ हिंसा के मामले में पुणे पुलिस ने 22 शिकायतें दर्ज़ कीं, वहीं दूसरी तरफ वे भिड़े के शिष्य तुषार दमगुड़े के द्वारा एल्गार परिषद् के आयोजन पर दर्ज़ की गयी एफआईआर पर ज़्यादा ध्यान देते रहे। 31 दिसंबर 2017 को पुणे के करीब हुए इस आयोजन में रिटायर्ड जज, दलित कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता भीमा कोरेगाँव की 200वीं वर्षगाँठ मनाने के लिए इकठ्ठा हुए थे। 6 जून को सुधीर धावले , सुरेंद्र जाडलिंग ,महेश राउत, शोमा सेन और रोना विल्सन जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 2 सितम्बर को इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुणे के कोर्ट ने पुलिस को चार्जशीट दायर करने के लिए 90दिन का और समय दे दिया। 28 अगस्त को इसी मामले में पांच बुद्धिजीवी और सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता वरवर राव, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वेर्नोन गोन्साल्वेज़ और अरुण फरेरा को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। लेकिन इस मामले में पुलिस इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपनी रिमांड में नहीं ले पाई क्योंकि इसके खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर और 4 अन्य सामाजिक कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट गए, जहां कोर्ट ने इन सभी को हाउस अरेस्ट यानी घर में ही नज़रबंद रखने का आदेश दिया। इस मामले में आज 19 सितंबर को भी सुनवाई हुई। और कल भी इस पर सुनवाई जारी रहेगी।
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