सुकुमा “मुठभेड़ कांड”: ये किसका लहू है, कौन मरा?

यदि सुप्रीम कोर्ट ने ‘सुकुमा मुठभेड़ काण्ड’ पर दायर याचिका की सुनवाई का संज्ञान न लिया होता तो शायद यह घटना भी महज़ एक ख़बर बनकर गुम हो जातीI ज्ञात हो कि विश्व आदिवासी दिवस से मात्र तीन दिन पहले 6 अगस्त को छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल्य इलाके सुकुमा ज़िले के नुलकातुंग गांव में पुलिस से “मुठभेड़” में 15 आदिवासी युवाओं के मारे जाने की खबर आईI सरकारी सूत्रों के अनुसार ये मुठभेड़ उस समय हुई जब जिले के कोंटा ब्लॉक स्थित गोलापल्ली थाना के सघन जंगल में डिस्ट्रिक रिजर्व गार्ड, एसटीएफ व सीआरपीएफ के जवान ‘ऑपरेशन मॉनसून’ के तहत घुसे थेI इस मुठभेड़ में माओवादी जन मिलिशिया के 15 लोग मारे गए और दो गिरफ्तार हुएI पुलिस-प्रशासन व सरकार मीडिया के माध्यम से इसे नक्सली हिंसा के खिलाफ एक बड़ी सफलता बताते हुए एक-दूसरे की पीठ ठोक रहे हैंI इसी दौरान ‘सिविल लिबर्टी कमिटी, तेलंगाना’ की ओर से एन.नारायण राव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि ये मुठभेड़ फर्जी था और इसमें निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया गया हैI इसलिए इस मुठभेड़ की एसआईटी से निष्पक्ष जाँच करवायी जायेI उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मृतकों में अधिकाँश कम उम्र के आम ग्रामीण युवा और नाबालिग हैI इसकी पुष्टि कांग्रेस पार्टी की 18 सदस्यीय जाँच टीम ने भी घटना स्थल के दौरे के बाद, करते हुए कहा कि मुठभेड़ में मारे गए सभी लोग आम ग्रामीण हैंI
याचिका पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट के चीफ जस्टिस बेंच ने 13 अगस्त की सुनवाई में छत्तीसगढ़ सरकार से स्टेटस रिपोर्ट मांगते हुए याचिकाकर्ता एन. नारायण राव से भी सबूत/शपथ पत्र पेश करने को कहाI इसकी अगली सुनवाई 29 अगस्त को होनी हैI कोर्ट में याचिकाकर्त्ताओं ने घटना के कुछ ऐसे फोटो पेश किये थे जिसपर राज्य सरकार ने आपत्ति दर्ज की थीI
मीडिया के ज़रिये छत्तीसगढ़ पुलिस ने यह बताया कि – मारे गए सभी लोग माओवादियों के जन मिलिशिया के कैडर थे और वहाँ उनका कैम्प चल रहा थाI जिसे ध्वस्त करने ‘ऑपरेशन मॉनसून’ के तहत जब पुलिस बल के जवान गए तो वहाँ मौजूद 15 से 50 लोगों ने पुलिस पर फायरिंग की जिसके जवाब में हमें भी गोली चलानी पड़ीI जिसमें 5 लाख की इनामी महिला नक्सली समेत 15 नक्सली मौके पर ही ढेर कर दिए गए और एक महिला व एक पुरुष को ज़िंदा गिरफ्तार किया गयाI मारे गए लोगों के पास से 16 हथियार व अन्य कई गैरकानूनी चीज़ों बरामद कर कैम्प को ध्वस्त करने में बड़ी सफलता मिली हैI
सच्चाई का पता लगाने जब मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं तथा आम आदमी पार्टी सदस्यों की जाँच टीम के लोग 18 अगस्त को जब इलाके में जा रहे थे तो पुलिस ने न सर्फ उनका पीछ किया, बल्कि कई स्थानों पर उन्हें रोक-रोककर पहचान पत्र चेक किया तथा जिस होटल में वे टिके थे उसके मालिक को उन्हें न ठहराने की हिदायत भी दीI तब भी बस्तर–संवाद व कई अन्य स्थानीय आदिवासी संगठनों के युवा कार्यकर्त्ता छिप–छिपाके के इलाके में पहुँच कर गाँव के लोगों से मिलकर जानकारी लीI जिसे उन्होंने सोशल मीडिया वेबसाईट पर जारी कर बताया है कि किस तरह से ‘प्रमोशन-पोस्ट और पैसों’ के लिए ऐसे नाबालिग व युवाओं को, जो वहाँ अपनी परंपरागत कृषि–कार्य के लिए आये थे, पुलिस ने ठंढे दिमाग से मारकर ‘मुठभेड़’ बता रही हैI नुल्कातोंग–मुठभेड़ से पहले गोनपाड़, किन्देमपाड़ व एटेगड्डा समेत आसपास के कई गांवों में भी सर्च अभियान चलाकर दहशत फैलाने का काम किया थाI कई बार राज्य दमन का शिकार होकर भी इस क्षेत्र में आदिवासी अधिकारों के लिए निरंतर सक्रिय रहनेवाली सामाजिक कार्यकर्त्ता सोनी सोरी जी ने भी घटना की जाँचकर यही बातें कहीं हैं और स्वतंत्र न्यायिक कर दोषी पुलिसकर्मियों को सज़ा देने कि मांग की हैI
सवाल उठता है कि जब मुठभेड़ सही है तो पुलिस वहाँ जाँच करने जा रहे लोगों से परेशान क्यों हो रही है और आखिर मामले की सच्चाई सामने आने से उसे भय क्यों लग रहा है? यही नहीं, कांग्रेस की जाँच टीम के जाने पर खुद राज्य के मुख्यमंत्री ने यहाँ तक कह डाला कि – नक्सल हिंसा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिएI इलाके में जाकर ग्रामीणों से मिलनेवालों के अनुसार उन्हें भयग्रस्त ग्रामीणों ने बताया कि सन 2005-06 में जब से ‘सलवा जुडुम’ शुरू हुआ है, पुलिसिया अत्याचारों का तांता सा लग गया हैI कुछ माह पहले पुलिसवालों द्वारा एक आदिवासी महिला के साथ गैंग-रेप कर हत्या कर देने का केस न्यायालय में चल रहा हैI गौरतलब है कि माओवादी हिंसा रोकने के नाम पर राज्य के बस्तर समेत वे सभी आदिवासी इलाके जिन्हें कंपनियों के खनन एवं उद्योग के लिए लक्षित किया गया था, वहाँ नक्सली हिंसा रोकने के नाम पर ‘सलवा–जुडूम’ के तहत किये गए पुलिसिया अत्याचारों पर खुद सुप्रीम कोर्ट राज्य की सरकार व पुलिस-प्रशासन को दोषी करार देकर फटकार लगा चुका हैI बावजूद इसके आज भी पूरे जंगल इलाकों में भारी संख्या में मौजूद अर्द्ध सैन्यबल व पुलिस की टुकड़ियाँ मौजूद हैं जो आये दिन ग्रामीणों को नाना प्रकार से उत्पीड़न का शिकार बनाती रहती हैंI इसकी खबर देने वाले कई पत्रकारों को प्रताड़ित– आतंकित करने के साथ–साथ उन पर फर्ज़ी मुकदमे लगा कर जेल में भी डालने की ख़बरें अक्सर आती रहती हैंI
बहरहाल, फिलहाल देखना है कि आदिवासियों पर दमन ढाने के लिए कुख्यात हो चुकी छत्तीसगढ़ सरकार व पुलिस इस मुठभेड़–काण्ड की असली सच्चाई को कब तक दबाये रखती हैI साथ ही माननीय सुप्रीम कोर्ट कब तक फर्जी मुठभेड़ में मारे गए मासूमों के परिजनों को न्याय तथा सरकार के पुलिसिया आतंक से छुटकारा दिला पाता है! और सबसे बढ़कर, आदिवासियों को विकास की मुख्य धारा में लाने का दावा करने वाली वर्तमान सरकार ज़मीनी धरातल पर कैसा सकारात्मक उदहारण पेश करती है?
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