कटाक्ष: नहीं रहे महान; अकबर और टीपू सुल्तान!
चलिए, अब ऑफिशियल हो गया। आरएसएस के प्रचार सचिव, आंबेकर साहब ने खुद अपने श्रीमुख से इसका एलान किया है कि अकबर और टीपू सुल्तान अब ‘‘महान’’ नहीं रहे। आजादी के सैकड़ों साल पहले से ये दोनों महान कहलाते आ रहे थे। आजादी के बाद भी पचहत्तर साल तक ये दोनों ही नहीं, वास्तव में और भी बहुत से मुसलमान महान कहलाते रहे थे। पर अब और नहीं। अमृत काल में नहीं। मोदी जी के विकसित होते भारत में नहीं। मोदी जी की भारतीय बना दी गयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू होने के बाद नहीं। न अकबर, न टीपू सुल्तान और न कोई और मुसलमान, कोई महान-वहान नहीं कहलाएगा।
स्कूली किताबों से उनकी महानता को मिटाने की शुरुआत हो गयी है। वह दिन दूर नहीं है जब पक्के तौर पर सैकड़ों साल पीछे का इतिहास बदल जाएगा। आखिरकार, मोदी जी ने अपने रामनाथ गोयनका व्याख्यान में गुलामी की निशानियों को मिटाने का दस साल का ही तो टार्गेट रखा है। यानी मोदीजी की पांचवीं पारी तक अकबर, टीपू, सब गायब नहीं भी हुए तो, पैदल जरूर हो जाएंगे।
वैसे और भी बहुत हैं जो खामखां में महान बने हुए हैं। काम करके ओह, सॉरी उनके हिसाब से फ्रॉड कर के महान बनने वालों में सिर्फ मुसलमान ही थोड़े ही हैं। अकबर से सैकड़ों साल पहले से जो अशोक महान बन बैठा था, उसका क्या? और उससे भी पहले से जो गौतम बुद्ध महान बने बैठे थे, उनका भी क्या? जाहिर है कि अमृत काल में इतिहास की बहुत बहुत दूर तक और गहरी सफाई की जरूरत है। आजादी के बाद के इतिहास की तो और भी गहरी सफाई की। नेहरू, गांधी, आजाद वगैरह से लेकर अम्बेडकर तक, न जाने कौन-कौन महान बने बैठे हैं।
अंगरेजों की विदाई की हड़बड़ी में न जाने कैसे-कैसे लोग महान कहलाने लगे थे। मोदी जी का विकसित होता भारत, कब तक इन फ्रॉडियों की महानता का बोझ ढोएगा। अब और ज्यादा दिन नहीं। नागपुर परिवार और उसकी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की शाखाएं तो पहले ही इस काम में जुटी हैं। धीरे-धीरे सब का नंबर आएगा, पर सब का नंबर एक साथ नहीं आएगा। फिलहाल मुसलमान यानी अकबर और टीपू सुल्तान!
अब प्लीज यह मत पूछिएगा कि अकबर और टीपू सुल्तान ही क्यों? सिंपल है, इन्हें ही महान कहलाने का शौक चर्राया था। शहंशाह, सुल्तान और भी तो हुए थे, पर अपने टैम में महान कहलाए होंगे तो कहलाए होंगे, पर बाद में तो किसी ने महानता की ऐसी लंबी दावेदारी नहीं की। यही बाद तक महानता के सिंहासन पर बैठे रहे थे, सो मोदी जी को दासता के चिह्न मिटाने के लिए, सबसे पहले इन्हीं को अपदस्थ करना था। अब अगर अकबर ने उस जमाने में सर्वधर्म समभाव का राज कायम कर के दिखाया था, उसने न हिंदू न मुसलमान, दीन ए इलाही नाम का नया मेल-मिलाप वाला धर्म चलाया था, तो मोदी जी क्या करें? ऐसे ही अगर टीपू सुल्तान ने अंगरेजों को युद्ध के मैदान में हराया था और अंत में वह ऐसा पहला शासक बना था जो ब्रिटिश सामराजी सेनाओं के खिलाफ लड़ते हुए युद्ध के मैदान में मारा गया था, तो मोदी जी इसका भी क्या करें? इससे मोदी जी की मुश्किल जरूर बढ़ती है, सर्वधर्म समभाव और ब्रिटिश-विरोधी देशभक्ति की पुकारें बीच में आती हैं; लेकिन मोदी जी ऐसी मुश्किलों से डरने वाले नहीं हैं। अकबर और टीपू सुल्तान को महानता की गद्दी खाली करनी ही पड़ेगी।
थैंक यू मोदी जी, आंबेकर साहब ने बताया है कि आप अकबर, टीपू सुल्तान वगैरह को सिर्फ महानता की गद्दी से उतार रहे हैं, पूरी तरह से मिटा नहीं रहे हैं। सिर्फ महानता मिटा रहे हैं, उनके नाम नहीं। उन्हें सिर्फ नायक से खलनायक बना रहे हैं, फिल्म से पूरी तरह काट नहीं रहे हैं। थैंक यू इस रहमदिली के लिए। पर हां! शुरुआत स्कूली किताबों में नायक से खलनायक बनाए जाने से हो जरूर रही है, लेकिन बात वहीं तक नहीं रहेगी। बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी। अकबर, टीपू टाइप की महानता से इंकार करने से ही काम नहीं चलेगा। उन्हें बाकायदा राक्षस बताना/ दिखाना पड़ेगा। इसे राष्ट्रवादी होने का सबूत बनाया जाएगा। देशभक्ति की परीक्षा में जै श्रीराम के साथ-साथ, अकबर और टीपू सुल्तान के मुर्दाबाद के नारे लगवाए जाएंगे। जो जितना जोर से मुर्दाबाद का नारा लगाएगा, उतना ही पक्का देशभक्त माना जाएगा। मरी सी आवाज में जो मुर्दाबाद का नारा लगाएगा, वह बहुरूपिया फौरन पकड़ा जाएगा।
जरूरत पड़ी तो मोदी जी की सरकार अपनी तीसरी पारी में ऐसे देशद्रोही बहुरूपियों के खिलाफ विशेष कानून बनाने में भी नहीं हिचकेगी। वैसे राजद्रोह का कानून तो पहले ही है और उसका काम भी मजबूत है यानी एक बार अंदर किया तो बंदा पांच-छह साल तो जमानत का ही इंतजार करता रह जाता है। फिर अब तो सरकार के सबसे बड़े वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बता ही दिया है कि अमृत काल में आतंकवादियों से भी बड़ा खतरा, बुद्धिजीवियों से है यानी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करने वालों से। यानी सरकार तो इस विचार की है कि– ए गोली मार भेजे में, कि भेजा शोर करता है! याद है, सत्या फिल्म के गाने में पिछली सदी के आखिर में ही भेजे के खतरनाक होने के बारे में आगाह कर दिया गया था। फिर भी देश को मोदी जी सरकार आने तक का इंतजार करना पड़ा। पिछली सरकारें अटकती, भटकती, उलझती और झिझकती जो रहीं। पर अब भेजे के खतरे से निपटने के लिए तेज रफ्तार से कदम उठाए जा रहे हैं। चुन-चुनकर पढ़े-लिखे निपटाए जा रहे हैं और जो ज्यादा ही किट-किट करें, जेलों के लिए पठाए जा रहे हैं।
और हां! महानों से महानता छीनने की इस मुहिम में हिंदू-मुसलमान खोजने की कोशिश कोई नहीं करे। मोदी जी इस मामले में एकदम सेकुलर हैं। महानता के आसन से सभी को हटाएंगे, हिंदू-मुसलमान सभी को। अकबर, टीपू सुल्तान को, तो गौतम बुद्ध, अशोक को भी, नेहरू, गांधी को भी और पेरियार, अम्बेडकर को भी। यह तो शुरुआत है। धीरे-धीरे सब का नंबर आएगा। महानता का आसन मोदी जी को एकदम खाली चाहिए– अपने लिए!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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