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पहलगाम आतंकी हमला: तुम बच सकते थे हुसैन...

तुम तो एक घोड़े वाले थे/ भाग सकते थे अपना घोड़ा लेकर/ तुम तो मुसलमान थे, लेकिन...
syed adil hussain shah
पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए स्थानीय घोड़े वाले आदिल हुसैन (बाएं), उनके पिता को सांत्वना देते हुए जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (दाएं)

 

तुम बच सकते थे हुसैन

 

तुम बच सकते थे 

सैयद आदिल हुसैन शाह*   

 

तुम तो एक घोड़े वाले थे

भाग सकते थे अपना घोड़ा लेकर

 

तुम तो मुसलमान थे 

फिर क्यों भिड़ गए आतंकियों से

अपने हिंदू मेहमानों (पर्यटकों) की 

जान बचाने के लिए

 

तुम्हे तो याद था पूरा कलमा

याद थीं क़ुरआन की आयतें

फिर तुमने क्यों जान गंवा दी

दूसरों की जान बचाते हुए

 

बिल्कुल बांग्लादेश के उस नौजवान

फ़राज़ हुसैन की तरह

जो 2016 में 

ढाका के एक रेस्टोरेंट में हुए आतंकी हमले में 

भारतीय मूल की अपनी दोस्त तारिषी जैन

को बचाते हुए मारा गया था

 

वहां भी पूछा गया था नाम

वहां भी पूछा गया था धर्म

 

लेकिन न उसने आतंकियों की परवाह की

न तुमने

क्योंकि तुम्हारे लिए तो 

इंसानियत ही 

सबसे पहला और सबसे बड़ा धर्म था

 

अपने मेहमानों की जान बचाना ही 

तुम्हारा पहला फ़र्ज़ था, ईमान था 

 

क्योंकि तुम भी तो कर्बला के वारिस थे

उन्हीं इमाम हुसैन के 

जो चाहते तो वह भी  

चौदह सौ साल पहले बच सकते थे 

कर सकते थे यज़ीद से बै’अत (समझौता-समर्पण)

लेकिन उन्होंने शहादत चुनी

क्योंकि वह जानते थे 

कि उन्हें क़त्ल तो किया जा सकता है

लेकिन मिटाया नहीं जा सकता

…..

और तुमने फिर इसी को साबित किया 

ज़िंदा रखा उसी उम्मीद को

कि अभी सबकुछ ख़त्म नहीं हुआ है

अब

नफ़रती गिरोह कहेगा कि

मैं बेवजह कर रहा हूं पैरवी

चुन कर दे रहा हूं उदाहरण 

सैयद आदिल हुसैन शाह तो चुनिंदा हैं

 

(हां, चुनिंदा हैं कश्मीर घाटी के लोग

जिन्होंने शोक में अपना कारोबार बंद रखा

चुनिंदा हैं पहलगाम के बाशिंदे जिन्होंने

मृतकों की याद में 

आंखों में आंसू लिए

इंसाफ़ के लिए 

कैंडल मार्च निकाला

चुनिंदा हैं वो घोड़े वाले 

जो अपनी जान जोखिम में डाल

हज़ारों को रेसक्यू कर आर्मी कैंप तक ले गए

चुनिंदा हैं वे होटल वाले, टैक्सी वाले 

जिन्होंने संकट की इस घड़ी में

न सिर्फ़ सुरक्षा दी बल्कि

अपना वाजिब किराया भी छोड़ दिया

ज़मीन पर रहने वालों ने

नहीं वसूला दो गुना-तीन गुना पैसा

तुम्हारे धन्ना-सेठों की एयर लाइंस की तरह)

 

और हां,

इसी तरह बिल्कुल 

चुनिंदा बचे हैं ‘मुकुल’ ‘सरल’ भी तो

तुम्हारे बीच

जिन्हें तुम कहते हो– ‘गद्दार’, मलेच्छ, धर्मद्रोही

 

जो देश के अलग-अलग हिस्सों से 

लगातार भेज रहे हैं संदेश कि

देश को हिंदू-मुस्लिम में मत बांटो

 

अब हमें इन्हीं चुनिंदा के सहारे ही

बनाना है अपना बहुमत

बचाना है अपना देश

अपनी दुनिया, अपनी धरती

बचानी है पूरी मनुष्यता


--23 अप्रैल 2025

 

(22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में कम से कम 26 लोगों की जान गई, जिनमें एक स्थानीय मुस्लिम घोड़ेवाला, सैयद आदिल हुसैन शाह भी शामिल थे। वे पर्यटकों को घोड़े पर सवारी कराते थे। और पर्यटकों की जान बचाने के लिए आतंकियों से भिड़ गए और अपनी जान गंवा दी।)

(मैंने 2016 में बांग्लादेश में हुए आतंकी हमले में फ़राज़ हुसैन की शहादत को लेकर भी इसी तरह की कविता लिखी थी। यह उसी का रूपांतरण है।) 


 

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