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इज़रायल-ईरान युद्ध: 12 दिन की आग के बाद सीज़फायर, लेकिन क्या यह वास्तविक है!

युद्ध थमा तो है, लेकिन संदेह और साज़िश के बादल अब भी क़ायम हैं। साथ ही ग़ज़ा का सवाल एक बार फिर प्रमुखता से उठने लगा है।
iran israel ceasefire

पश्चिम एशिया में बीते दो हफ्तों से जारी तनाव उस मुक़ाम पर पहुँचा, जहाँ एक और क्षेत्रीय युद्ध वैश्विक संकट में बदल सकता था। इज़रायल और ईरान के बीच शुरू हुआ सैन्य टकराव धीरे-धीरे परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने वाली रणनीति में बदल गया। इस संघर्ष में अमेरिका ने इज़रायल के पक्ष में हस्तक्षेप किया, जबकि ईरान ने खाड़ी में मौजूद अमेरिकी अड्डों पर पलटवार किया।

12 दिन तक चले इस टकराव के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहल पर सीज़फ़ायर की घोषणा हुई है। युद्ध थमा तो है, लेकिन संदेह और साज़िश के बादल अब भी क़ायम हैं।

टाइमलाइन

12 जून 2025
इज़रायल ने ईरान के सैन्य और वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों पर हवाई हमले शुरू किए।

दावा किया गया कि ये हमले ईरान की परमाणु क्षमता को रोकने के लिए ज़रूरी थे।

14–20 जून 2025
हमले बढ़े: इस्फ़हान, नतान्ज़ और फ़ोर्डो जैसे परमाणु स्थलों को लक्ष्य बनाया गया।

ईरान ने जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी, सीमावर्ती इलाक़ों में रॉकेट दागे गए।

21 जून 2025
अमेरिका ने ईरान के तीन बड़े परमाणु ठिकानों पर लक्षित हमले किए।

अमेरिका ने दावा किया कि उसने ईरान की परमाणु क्षमता को लगभग पूरी तरह नष्ट कर दिया है। 

अमेरिका के इस जंग में शामिल होने से स्थिति ने नाज़ुक मोड़ ले लिया। अमेरिका के इस क़दम की अंतरराष्ट्रीय आलोचना भी हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ समेत रूस, चीन, पाकिस्तान आदि देशों ने अमेरिका की खुलकर निंदा की।

हालांकि अमेरिका ने सफ़ाई दी कि वह इज़रायल के साथ ईरान के साथ युद्ध में शामिल नहीं है। उसने केवल लक्षित कार्रवाई की। लेकिन ट्रंप के रवैये और ईरान के साथ रूस-चन के तेवर को देखते हुए पूरी दुनिया में आशंका के बादल गहरा गए कि यह जंग तीसरे विश्वयुद्ध की शक्ल न ले ले। 

23 जून 2025
ईरान ने “ग्लैड टाइडिंग्स ऑफ़ विक्ट्री” नाम से ऑपरेशन चलाया।

क़तर स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर मिसाइल हमले किए गए। हालांकि दावा किया गया कि इन हमलों से कोई बड़ा नुक़सान नहीं हुआ।

24 जून 2025
डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर घोषणा की:
“Complete and Total Ceasefire” लागू किया जा रहा है — पहले 12 घंटे ईरान के लिए, फिर 12 घंटे इज़रायल के लिए।

शुरूआती राहत के बावजूद संघर्ष पूरी तरह नहीं थमा:

कुछ मिसाइल हमले जारी रहे, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर सीज़फ़ायर उल्लंघन का आरोप लगाया।

क़तर के माध्यम से बातचीत जारी रही।

अधिकांश मोर्चों पर गोलीबारी रुकी, लेकिन सीमित मिसाइल हमलों की ख़बरें आती रहीं।

किसे कितना नुक़सान 

ईरान: स्वतंत्र सूत्रों के मुताबिक 610 से 974 लोग मारे गए, जिनमें सुरक्षा बलों के साथ आम नागरिक भी शामिल थे।

कुछ वैज्ञानिक और परमाणु कर्मचारी भी हमलों में हताहत हुए।

इज़रायल: 28 सैनिक मारे गए, कई घायल।

अधिकांश हमले सीमित दायरे में रोक लिए गए, नागरिक हताहतों की संख्या कम रही।

हालांकि कई विशेषज्ञों का कहना है कि इज़रायल ने नुकसान का सही आंकड़ा नहीं दिया है। जान-माल का नुक़सान इससे कहीं ज़्यादा है।  

वैसे कुल मिलाकर दोनों ओर से वास्तविक नुक़सान का आकलन अभी बेहद मुश्किल है। 

क्या यह युद्ध वाक़ई थमा है? 

सीज़फ़ायर की शर्तों पर अब भी बहस है।

ईरान ने इज़रायल और अमेरिका पर “सांप्रभुता का उल्लंघन” बताया है।

वहीं, इज़रायल मानता है कि उसके अभियान ने ईरान की परमाणु तैयारी को “कम से कम दो साल पीछे” धकेल दिया है।

डोनाल्ड ट्रंप इसे अपनी “डील मेकिंग काबिलियत” की जीत बता रहे हैं। लेकिन सीज़फायर पूरी तरह लागू न होने की ख़बरों से ट्रंप काफ़ी परेशान नज़र आए और उन्होंने सार्वजनिक रूप से इज़रायल और ईरान के प्रति गुस्सा जाहिर किया। और इसमें भी अपने साझीदार इज़रायल को लेकर काफ़ी सख़्त भाषा का इस्तेमाल किया।  

अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस युद्धविराम को नाज़ुक, अस्थायी और असमाप्त मान रहा है। क्योंकि कोई लिखित या संयुक्त घोषणापत्र जारी नहीं हुआ है। कोई निरीक्षण तंत्र (monitoring mechanism) या गारंटी देने वाली तृतीय-पक्ष एजेंसी (जैसे यूएन) इसमें शामिल नहीं है।

दोनों देशों के आंतरिक हालात 

ईरान और इज़रायल इसे अपनी-अपनी जीत बता रहे हैं और जश्न मनाया जा रहा है लेकिन दोनों देशों के आंतरिक हालात बिल्कुल ऐसे नहीं हैं। ईरान के अंदर कट्टरपंथी धड़े ट्रंप और अमेरिका से समझौते के ख़िलाफ़ हैं। उधर, इज़रायल की सरकार पर आंतरिक दबाव है कि ईरान के परमाणु ढांचे को पूरी तरह नष्ट करे।

हालांकि फ़िलहाल के लिए माना जा सकता है कि सीज़फायर हो गया है। और जल्द शांति बहाल होगी। आख़िरी पलों में जो वार-पलटवार हुआ है उसे फेस सेविंग के तौर पर भी देखा जा सकता है। क्योंकि जब भी कोई देश अचानक युद्ध रोकता है, तो वह जनता को यह बताना चाहता है कि उसने कुछ "हासिल" किया है, खाली हाथ नहीं लौटा।

युद्ध के आख़िरी पलों में थोड़ी बहुत आक्रामकता या रक्षात्मक मुद्रा 'विजय' या 'सम्मानजनक वापसी' की पटकथा गढ़ने में मदद करती है। 

ऐसा हमने भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के दौरान भी देखा। जहां भारत ने अमेरिका की पेशकश को नकारते हुए कहा कि पाकिस्तान ने भारी नुक़सान के बाद सीज़फायर की पेशकश की लेकिन उधर पाकिस्तान ने ‘थैंक्यू ट्रंप’ कहते हुए इसे अपनी जीत बताते हुए बाक़ायदा जश्न भी मनाया। 

ख़ैर अब देखना है कि ईरान-इज़रायल के साथ पश्चिमी एशिया की यह शांति कितनी स्थायी रहती है। क्योंकि अभी ग़ज़ा का सवाल बाक़ी है और इज़रायल ने वहां अपना एकतरफ़ा हमला रोकने का कोई संकेत नहीं दिया है। ईरान के साथ युद्ध छेड़कर इज़रायल ने फ़िलहाल ग़ज़ा से भी लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश की थी। लेकिन ऐसा समझा जा रहा है कि अब सीज़फायर के साथ ग़ज़ा का सवाल फिर प्रमुखता से उठेगा, और ग़ज़ा के लिए ग्लोबल मार्च फिर शुरू होंगे। 
 

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