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ख़बरों के आगे–पीछे: बिहार एनडीए के घटकों में घमासान

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में अमेरिकी उप राष्ट्रपति के भारत दौरे समेत कई राज्यों की राजनीति पर बात कर रहे हैं।
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‘बावरे गांव में ऊंट’ का आना!

नरेंद्र मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में बावरे गांव में ऊंट आया वाली कहावत कई बार चरितार्थ होती देखी गई है। ताजा मिसाल है अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेम्स डेविड वेंस यानी जेडी वेंस के भारत आने पर पूरी सरकार का उनके स्वागत में बिछ जाना। अमेरिका के उप राष्ट्रपति पहले भी भारत आते रहे हैं लेकिन किसी उप राष्ट्रपति का ऐसा स्वागत होता नहीं देखा गया, जैसा जेडी वेंस का हुआ है। वे उप राष्ट्रपति बनने के तीन महीने के अंदर भारत के दौरे पर आए हैं, जिसका एक कारण तो यह बताया जा रहा है कि वे भारत के दामाद हैं। आंध्र प्रदेश की रहने वाली उषा चिलकुरी से उनकी शादी हुई है। 

दूसरा कारण यह माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया भर के देशों पर जैसे को तैसा टैरिफ लगाया और व्यापार युद्ध छेड़ा है, उसके मद्देनजर वेंस की भारत यात्रा अहम हो जाती है। लेकिन इसके अलावा एक कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 11 साल के कार्यकाल में वेंस भारत आने वाले पहले अमेरिकी उप राष्ट्रपति हैं। उनसे पहले उप राष्ट्रपति रहीं कमला हैरिस भी भारत नहीं आई थीं। डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में माइक पेंस उप राष्ट्रपति थे और वे भी भारत नहीं आए थे। आखिरी बार बराक ओबामा के उप राष्ट्रपति रहे जो बाइडेन 2013 में भारत आए थे। इसीलिए लगता है कि उप राष्ट्रपति वेंस की यात्रा को इतना बड़ा इवेंट बनाया गया। 

नाराज़ हुए हैं भावी चीफ़ जस्टिस 

भाजपा नेताओं के गाली-गलौज वाले बयानों से न्यायपालिका में नाराजगी है और खास कर अगले महीने प्रधान न्यायाधीश बनने जा रहे जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ज्यादा नाराज हैं। उन्होंने बीते सोमवार को दो अलग-अलग मामलों की सुनवाई के दौरान तंज करते हुए कहा कि न्यायपालिका पर सरकार के कामकाज में दखल देने के आरोप लग रहे हैं एक मामले में तो उन्होंने इसी को आधार बताते हुए कोई भी आदेश देने से ही इनकार कर दिया। 

जस्टिस गवई की बेंच में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हो रही हिंसा के मद्देनजर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने और केंद्रीय बलों की तैनाती के आदेश देने की मांग की गई थी। इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि क्या याचिकाकर्ता चाहते हैं कि अदालत राष्ट्रपति को निर्देश दे? उन्होंने कहा कि अदालत पर कार्यपालिका के कामकाज में दखल देने के आरोप लग रहे हैं। यह कहते हुए अदालत ने याचिका पर आदेश नहीं दिया। दूसरी याचिका हिंदुत्व के झंडाबरदार विष्णु शंकर जैन की थी, जिसमें उन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील सामग्री दिखाए जाने पर रोक लगाने के लिए सरकार को कानून बनाने का निर्देश देने की मांग की थी। इस पर भी जस्टिस गवई ने कहा कि यह नीतिगत मामला है और क्या आप चाहते है कि अदालत इस मामले में निर्देश दे, जबकि अदालत पर सरकार के कामकाज मे दखल देने के आरोप लग रहे हैं? हालांकि इसके बाद अदालत ने मामले को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। इससे लग रहा है कि सर्वोच्च न्यायपालिका ने सत्तापक्ष के सांसदों की बयानबाजी को गंभीरता से लिया है।

विदेशी धरती से अपमान ज़्यादा होता है?

राहुल गांधी जब भी विदेश जाते हैं और वहां जो भी बोलते हैं, उसका विरोध करने के लिए भाजपा प्रवक्ताओं के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों की फौज मैदान में आ जाती है और टीवी चैनल भी राहुल के बयान पर हायतौबा मचाने लगते हैं। राहुल अभी अमेरिका के बोस्टन गए तो वहां छात्रों से बात करते हुए उन्होंने महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव मे गड़बड़ी की चर्चा की और कहा कि भारत में चुनाव आयोग ने समझौता कर लिया है। इस पर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि राहुल की आदत हो गई कि विदेशी धरती पर जाकर भारत का अपमान करें। 

टीवी चैनलों ने इस पर डिबेट कराई। चुनाव आयोग ने भी राहुल की बातों का जवाब दिया। सवाल है कि विदेशी धरती पर भारत सरकार की किसी संस्था पर लगाए गए आरोप से क्या ज्यादा अपमान होता है? क्या वही आरोप भारत में रह कर लगाए जाते हैं तो उससे उस संस्था का अपमान नहीं होता है? जब राहुल ने संसद में चुनाव आयोग पर आरोप लगाए और गड़बड़ी की बात कही थी, तब अपमान नहीं हुआ था क्या? इसलिए यह रुदन बेमतलब है कि विदेशी धरती पर जाकर अपमान किया। उलटे होता यह है कि भाजपा और टीवी चैनलों के रुदन के जवाब में कांग्रेस के प्रवक्ता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वे वीडियो पेश कर देते हैं, जिनमें मोदी दक्षिण कोरिया में कह रहे थे कि क्या देश है भारत, क्या पाप किए थे, जो भारत में पैदा हो गए। ऐसे वीडियो पेश करने पर भाजपा प्रवक्ता और टीवी चैनलों के एंकर बगले झांकने लगते हैं।

राज्यपाल रवि फिर टकराव पर आमादा

सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खाने के बाद भी तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार और बिना उनके दस्तखत के 10 विधेयकों के कानून बन जाने वाले फैसले के बाद भी वे विवाद पैदा करने की कोशिश में लगे हैं। पता नही किसकी शह पर वे ऐसा कर रहे हैं लेकिन बताया जा रहा है कि राज्य में भाजपा नेताओं के साथ-साथ सहयोगी पार्टियों के नेता भी उनसे नाराज हैं। प्रदेश भाजपा के नेताओ ने उन्हें शांत रहने की सलाह दी है और बताया जा रहा है कि अन्ना डीएमके और पीएमके ने भी उनके कामकाज से असहमति जताई है। उन्होंने राज्यों के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक बुला कर नया विवाद खड़ा किया है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कुलपतियों और रजिस्ट्रारों के साथ बैठक की थी। इसके बाद राज्यपाल रवि ने 25 से 27 अप्रैल तक ऊंटी में दो दिन की बैठक बुलाई। पिछले दिनों वे दिल्ली आए थे और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को उस कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता दिया। बताया जा रहा है कि प्रदेश में एनडीए के सारे नेता इससे नाराज है। 

यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी नाराज बताए जा रहे हैं। उनका कहना है कि राज्यपाल की गतिविधियों की वजह से राज्य सरकार के कामकाज पर फोकस नहीं बन पा रहा, जबकि चुनावी साल में ज्यादा जरूरी यह है कि राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाए। 

संजय मिश्रा की वापसी और ईडी की रफ़्तार

प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की गतिविधियों में अचानक तेजी आना हैरानी की बात है। पिछले साल लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें कम होने के बाद से माना जा रहा था कि ईडी की कार्रवाई पर लगाम लगेगी और विपक्ष के नेताओं को निशाना बनाना कम किया जाएगा। चुनाव से छह महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ईडी के निदेशक संजय मिश्रा को हटाया गया था। वे कई बार के सेवा विस्तार से करीब पांच साल तक पद पर रहे और उनके कार्यकाल में ही ईडी की सर्वाधिक कार्रवाई हुई। ईडी ने जितनी संपत्ति जब्त की है उसका 65 फीसदी उनके कार्यकाल में जब्त किया गया है। उनके हटने के बाद ईडी की कार्रवाई सामान्य रुटीन में लौट रही थी। यह क्या महज संयोग है कि कुछ ही दिन पहले संजय मिश्रा को प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार परिषद का सदस्य बनाया गया और ईडी की गतिविधियों में तेजी आ गई? ईडी ने सोनिया और राहुल गांधी को नेशनल हेराल्ड मामले में आरोपी बनाया है। सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से भी एक बार फिर पूछताछ शुरू कर दी है। छत्तीसगढ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पंजाब में आम आदमी पार्टी के विधायक कुलतार सिंह के यहां भी ईडी की छापेमारी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि संजय मिश्रा की वापसी और ईडी की सक्रियता आपस में जुड़े हो सकते हैं।

बिहार एनडीए के घटकों में घमासान

बिहार में भाजपा और जनता दल (यू) के नेताओं के साथ-साथ एनडीए के अन्य घटक दल भी पिछले कुछ दिनों से यह साबित करने में लगे थे कि राजद और कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है। कहा जा रहा था कि कांग्रेस कभी भी तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं स्वीकार करेगी। महागठबंधन बिखर जाने की भविष्यवाणी की जा रही थी। लेकिन अब उलटा हो रहा है। महागठबंधन की पार्टियों ने तो बैठक करके अपना नेता, एजेंडा आदि सब तय कर लिया है लेकिन एनडीए में घमासान छिड़ गया है। एनडीए के घटक दल अपनी अपनी बैठकें कर रहे हैं और सीटों को लेकर दावेदारी जता रहे हैं। 

चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा सबने राजनीति गरमाने वाले बयान दिए हैं। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने चिराग के विधानसभा का चुनाव लड़ने और उनके मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा का ऐलान किया है। दरअसल वे अपनी सीटों की संख्या बढ़वाने के लिए वे दबाव की राजनीति कर रहे हैं। उधर जीतन राम मांझी ने भी इस बार विधानसभा की 30 सीटें लड़ने का ऐलान किया है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के न्यायपालिका पर दिए बयान की आलोचना की है। 

भाजपा के सबसे बड़े सहयोगी जनता दल (यू) ने कह दिया है कि चाहे एक सीट ज्यादा लड़े लेकिन भाजपा से ज्यादा सीटों पर लड़ेंगे और बड़े भाई की भूमिका निभाते रहेंगे। उसने यह भी कह दिया है कि सहयोगी पार्टियां अपनी सीटों के बारे में भाजपा से बात करें। अब यह विवाद भाजपा नेतृत्व को सुलझाना होगा।

अखिलेश की गठबंधन की राजनीति

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव विपक्षी गठबंधन की राजनीति में दो कदम आगे और एक कदम पीछे की राजनीति कर रहे हैं। उनकी पार्टी गठबंधन के एजेंडे के कई मुद्दों से असहमति जताती है। वे संसद में कांग्रेस से दूरी भी बना लेते हैं। वे राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने पहुंच जाते हैं और दूसरी ओर गठबंधन में बने रहने का दावा भी करते हैं। अभी हाल ही में उन्होंने ओडिशा में कांग्रेस के ही नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीकांत जेना को तोड़ कर अपनी पार्टी का आधार बनाने का दांव चल दिया है, जिससे कांग्रेस बहुत नाराज है। इस मसले पर विवाद बढ़ा तो अब अखिलेश यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन बना रहेगा और 2027 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस व समाजवादी पार्टी मिल कर लड़ेंगी। इससे पहले दोनों पार्टियों ने 2017 का चुनाव एक साथ लड़ा था और बुरी तरह से हारे थे। उस समय कांग्रेस 100 सीटों पर लडी थी। क्या अखिलेश बार भी कांग्रेस को 100 सीटें दे देंगे? 

कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रभारी बना कर भेजा है और भूमिहार अध्यक्ष बना रखा है। इससे माना जा रहा है कि कांग्रेस भाजपा के सवर्ण वोट में सेंध लगाने का प्रयास कर रही है। यह राजनीति सपा के अनुकूल है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी पिछड़ा और दलित की राजनीति कर रहे हैं। अगर कांग्रेस आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में भी इसी लाइन पर लौटती है तब दोनों पार्टियों के बीच तनाव बढ़ सकता है, जैसे बिहार में बढ़ा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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