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ख़बरों के आगे–पीछे: प्रधानमंत्री की तस्वीरों का कारोबारी इस्तेमाल

सूचना के अधिकार कानून के तहत एक सामाजिक कार्यकर्ता ने प्रधानमंत्री कार्यालय से इस बारे में कुछ जानकारी मांगी है। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन का साप्ताहिक कॉलम “ख़बरों के आगे–पीछे”
GST

नौ साल पहले नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन सभी अखबारों के पहले पन्ने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ पेटीएम का एक विज्ञापन छपा था। तब इसे लेकर बड़ा विवाद हुआ था और यह सवाल उठा था कि कैसे पेटीएम को पता था कि नोटबंदी होने वाली है, जो उसने अगले दिन के अखबारों में पहले पन्ने का विज्ञापन बुक करा रखा था। हालांकि बात आई गई हो गई। लेकिन अब जब से केंद्र सरकार ने जीएसटी में कटौती का ऐलान किया है, तब से कंपनियां लगातार प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों के साथ अपने उत्पाद के विज्ञापन कर रही है। 

15 सितंबर सीमेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ने अखबारों में विज्ञापन दिया तो उसमें प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगाई। इससे पहले महिंद्रा समूह ने अपनी गाड़ियों का विज्ञापन किया तो प्रधानमंत्री की फोटो लगाई। हीरो कंपनी ने भी प्रधानमंत्री की तस्वीरों के साथ अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन छपवाया। ऐसी और भी कंपनियां हैं। सवाल है कि क्या ये कंपनियां भारत सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय की अनुमति से प्रधानमंत्री की तस्वीरों का विज्ञापन में इस्तेमाल कर रही हैं

सूचना के अधिकार कानून के तहत एक सामाजिक कार्यकर्ता ने प्रधानमंत्री कार्यालय से इस बारे में कुछ जानकारी मांगी है। कुणाल शुक्ला ने प्रधानमंत्री कार्यालय को आरटीआई के तहत आवेदन भेजा है और हीरो कंपनी के विज्ञापन में प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाने के बारे में अनुमति दिए जाने के आदेश की कॉपी मांगी है। देखते है प्रधानमंत्री कार्यालय के जन सूचना अधिकारी क्या जवाब देते हैं।

अब पहलगाम का मुद्दा कैसे उठाएगी भाजपा?

बिहार में विधानसभा के चुनाव की भले ही घोषणा नहीं हुई है लेकिन चुनावी माहौल बन चुका है। भाजपा के नेता देशभक्ति को मुद्दा बना कर प्रचार रहे हैं। भाजपा के विरोधियों को पाकिस्तान भेजने का बयान देने वाला विभाग संभाल रहे केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह मंदिर और मस्जिद के विवाद में जुटे हैं और इस बीच भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच हो गया है। अभी लोगों के दिमाग से पहलगाम कांड की तस्वीरें धुंधली नहीं हुई हैं और न ऑपरेशन सिंदूर के जरिये बनाया गया नैरेटिव पुराना हुआ है। गौरतलब है कि पहलगाम कांड के बाद प्रधानमंत्री का पहला दौरा बिहार का हुआ था और मधुबनी में उन्होंने आतंकवादियों को मिट्टी में मिला देने का संकल्प जताया था। लेकिन चुनाव में भाजपा कैसे यह मुद्दा उठाएगी, जब अपनी टीम को पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने भेज दिया? पहलगाम कांड के बाद देश भर के लोगों ने देखा था कि कैसे पाकिस्तान के क्रिकेटर और पूर्व क्रिकेटर आतंकवादियों का बचाव कर रहे थे और उनकी मौत पर आंसू बहा रहे थे। इसके बावजूद भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने की मंजूरी दे दी।

प्रधानमंत्री ने सिंधु जल संधि स्थगित करते हुए कहा कि पानी और खून एक साथ नहीं बहेगा लेकिन अब खून और क्रिकेट एक साथ चल रहा है। लोग इस बात को समझ रहे है कि पाकिस्तान के साथ टी20 विश्वकप में भारत का खेलना सिर्फ पैसे का खेल है। सैकड़ों करोड़ रुपए दांव पर लगे थे इसलिए मैच खेला गया। 

ईडी भी जुटी है राहुल की नागरिकता पर

सोनिया गांधी का नाम मतदाता सूची मे शामिल करने को लेकर एक याचिका अदालत में दाखिल की गई थी। इसमे कहा गया था कि सोनिया गांधी का नाम तभी मतदाता सूची में शामिल कर लिया गया था, जब वे भारत की नागरिक नहीं बनी थी। अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया। उधर राहुल गांधी की नागरिकता का मामला अभी इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है। 

भाजपा के एक कार्यकर्ता विघ्नेश शिशिर ने यह याचिका दायर की है और आरोप लगाया है कि राहुल के पास ब्रिटेन की नागरिकता है इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता समाप्त की जाए। यह मामला अदालत में लंबित है लेकिन इसमें दिलचस्प कहानी यह है कि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने याचिका दायर करने वाले शिशिर को नौ सितंबर को तलब किया था। सवाल है कि क्या राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़े मामले में ईडी भी कोई सबूत जुटा रही है? हालांकि ईडी का कहना है कि उसे यह पता लगाना है कि कही फ़ेमा यानी फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन तो नहीं हुआ है। ईडी विदेश में कारोबार और आय के बारे में भी जानकारी जुटाना चाह रही है। 

असल में विघ्नेश शिशिर ने दावा किया है कि कारोबार के लिए राहुल ने ब्रिटेन की नागरिकता ले रखी है। उनका यह भी दावा है कि उन्हें लंदन, वियतनाम और उज्बेकिस्तान से दस्तावेज मिले हैं। इसीलिए कहा जा रहा है कि ईडी यह जानकारी हासिल करना चाहती है कि विदेश में राहुल का क्या कारोबार है या किस बैंक में उनका खाता है। ईडी के सामने विघ्नेश शिशिर ने क्या कहा है, इसकी जानकारी सामने नहीं आई है।

मणिपुर में फ़ैसला आसान नहीं होगा

करीब ढाई साल बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जातीय हिंसा में बुरी तरह झुलसे मणिपुर की सुध ली। उनके मणिपुर दौरे के बाद भाजपा का प्रचार तंत्र सब कुछ अच्छा हो जाने का प्रचार कर रहा है। लेकिन सब कुछ अच्छा हो जाना बहुत आसान नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री की यात्रा के बावजूद जातीय हिंसा में उलझे कुकी और मैतेई समुदायों के बीच बर्फ नहीं पिघली है। कुकी पहाड़ पर है और मैतेई घाटी में हैं। दोनों एक दूसरे के इलाके में नहीं जाते हैं। हालांकि पिछले कुछ दिनों से दोनों के बीच हिंसा थमी हुई है लेकिन जैसे ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होगी वैसे ही हिंसा शुरू हो सकती है। अभी राज्य में राष्ट्रपति शासन है और विधानसभा निलंबित रखी गई है, ताकि स्थिति सामान्य होने पर लोकप्रिय सरकार का गठन हो सके। लेकिन सबको पता है कि मैतेई बहुसंख्यक होने की वजह से मुख्यमंत्री तो कोई मैतेई ही बनेगा। ऐसे में कुकी समुदाय का भरोसा नहीं लौटेगा। गैर कुकी और गैर मैतेई मुख्यमंत्री बनाने के अपने खतरे हैं, जो भाजपा नहीं उठा सकती। इसलिए लोकप्रिय सरकार के गठन की प्रक्रिया मुश्किल है। इसका उपाय कुकी समुदाय ने प्रधानमंत्री मोदी को यह सुझाया कि उनको मणिपुर से अलग करके पहाड़ी इलाके में एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए। अगर ऐसा किया जाता है तो दोनों समुदायों के बीच का कम से कम राजनीतिक विवाद खत्म होगा। उसके बाद सामाजिक विभाजन को खत्म करने का प्रयास किया जा सकता है। लेकिन राज्य का विभाजन भी आसान फैसला नहीं होगा। 

केजरीवाल की लड़ाई अब सिर्फ कांग्रेस से

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अब दिखावे के लिए भी भाजपा से लड़ना लगभग बंद कर दिया है। अब उनकी लड़ाई कांग्रेस से है। अब वे राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दों पर भाजपा के खिलाफ दिखने की कोशिश भी नहीं करते हैं। उप राष्ट्रपति के चुनाव में भी खबर आई कि उनकी पार्टी के कुल 11 सांसदों में से छह ने क्रॉस वोटिंग की और भाजपा के उम्मीदवार को वोट किया। संजय सिंह आम आदमी पार्टी के इकलौते सांसद हैं, जो संसद में और संसद के बाहर भाजपा से लड़ते दिखते हैं। बताया जाता है कि असल में केजरीवाल पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए पोजिशनिंग कर रहे हैं, जहां उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस से है। पंजाब विधानसभा के चुनाव में डेढ़ साल का समय बचा है। केजरीवाल को पता है कि पंजाब में भाजपा और उसके मौजूदा नेतृत्व से बड़ी नाराजगी है। लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ भी लोगों की नाराजगी बढ़ रही है। इसीलिए केजरीवाल का प्रयास कांग्रेस को भाजपा जैसा बताने का है। इसीलिए उन्होंने कांग्रेस और भाजपा के बीच साठगांठ का आरोप लगाते हुए कहा कि नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी नहीं हो रही है। जबकि ऐसे मामलों में अन्य लोगों की गिरफ्तारी हुई है। इसी तरह उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस के चुनाव लड़ने पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा की मदद करने के लिए कांग्रेस लड़ी थी। दरअसल केजरीवाल को पता है कि अगर 2027 के मार्च में पंजाब बचा लिया तो ही उनकी राजनीति बची रहेगी। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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