गुजरात चुनाव: मुस्लिम विरोधी विडियो किया जा रहा है वायरल

गुजरात में चुनाव करीब हैं और लग रहा है कि बीजेपी अपने हिंदुत्व के एजेंडा पर वापस आ रही है । इलेक्शन कमीशन और गुजरात पुलिस के पास एक वीडियो की शिकायत आयी है जिसमें मुसलमानों को गुजरात के लिए खतरा बताया गया है। मानवधिकार कार्यकर्ता और वकील गोविन्द परमार ने इस विडियो के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज़ करायी है , उनका कहना है कि इसे चुनावों में ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस विडियो में दिखाया गया है कि एक लड़की शाम के समय डरी हुई घर जा रही है और पीछे अज़ान की आवाज़ सुनाई दे रही है। उसके घर वाले घर में बेचैनी से उसका इंतज़ार कर रहे है , जैसे ही वो घर आती है उसके घर वाले उसे गले लगा लेते हैं। इसके बाद लड़की की माँ कैमरा में देखकर गुजराती में कहती है कि "एक मिनट, आप क्यों हैरान हैं कि ये गुजरात में हो रहा है ,22 साल पहले यही हुआ करता था और ये फिर से हो सकता है अगर वो लोग वापस आ गये , पर डोंट वरी कोई नहीं आएगा क्योंकि यहाँ मोदी है "
ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के गोविन्द परमार जिन्होंने ये शिकायत की है , का कहना है कि इस वीडियो को बनाने वालों और इसके पर कार्यवाही होनी चाहिए। कांग्रेस आई टी सैल के गुजरात प्रमुख का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि इसके पीछे कौन है और वो किसी पार्टी का नाम भी नहीं ले रहे। पर हो सकता है कि ये वीडियो बीजेपी द्वारा बनाया और फैलाया जा रहा हो , क्योंकि इस तरह के प्रचार से उन्हें ही फायदा होगा। वहीं बीजेपी ने ये वीडियो बनाने के आरोप से इनकार किया है।
कुछ समय पहले अहमदाबाद के पालड़ी इलाके में एक पोस्टर लगा हुआ मिला था जिसपर गुजराती में लिखा हुआ था कि " पालड़ी को जूहापुरा बनने से बचाइए ". भगवा रंग के इस पोस्टर पर किसी पार्टी का नाम तो नहीं लिखा था पर इशारा साफ़ था । ये पोस्टर आम जन से ये अपील कर रहा था कि पालड़ी को जूहापुरा की तरह मुसलमान इलाका नहीं बनने देना है। इसी कड़ी में आरएसएस के द्वारा सोशल मीडिया ग्रुप्स पर वायरल किये गए राम vs हज वाले पोस्टर को कैसे भुलाया जा सकता है , जिसने कुछ ही दिन पहले अखबारों की सुर्खियाँ बटोरी थी। इस पोस्टर में रुपानी , शाह और मोदी के नाम के पहले अक्षरों से राम बनाकर उन्हें हिन्दुओं का नेता दर्शाया गया है वहीँ हार्दिक , अल्पेश और जिगनेश के पहले अक्षरों से हज शब्द बनाया गया है । संघ और बीजेपी इस कलात्मक पोस्टर द्वारा वही करना चाह रही है जो वो सालों से कर रही है।
ये तीनों घटनाएँ ये दर्शा रही है कि बीजेपी को पता है कि उनके विकास के दावों की हवा निकल रही है। उन्हें लग रहा है कि हिन्दू बनाम मुसलमान की राजनीति के ज़रिये ही वह सत्ता में वापस आ सकती है। गुजरात का पाटीदार समाज , पाटीदार आन्दोलन से बाद से ही बीजेपी से नाराज़ दिखाई पड़ रहा है। नोटबंदी और जीसटी ने गुजरात के छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ दी है , और हालांकि दलितों राज्य में सिर्फ 7% हैं पर ऊना आदोलन ने उन्हें भी सरकार के खिलाफ़ कर दिया है। अल्पेश ठाकोर जो राज्य में ओबीसी के नेता हैं , का कांग्रेस में शामिल हो जाना भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ता ही दिख रहा है।
जहाँ तक बात है गुजरात मॉडल की , तो उनके खोखले दावों की असलियत पहले ही CAG की रिपोर्टों द्वारा ज़ाहिर हो चुकी है । इन रिपोर्टों गुजरात में स्वास्थ सुविधाओं की ख़राब स्थिति, स्किल डेवलपमेंट की नाकामी और आदिवासियों की बिगड़ते हालत पर रोशनी डालतीं है। न्यूज़क्लिक की "उड़ता गुजरात " नामक लेखों की सिरीज़ में सरकार के इन्हीं विकास के दावों की असलियत पर रौशनी डालती है । साथ ही जीसटी के बाद से गुजरात के छोटे व्यापारियों के प्रदर्शन और आंगनवाड़ी महिलाओं का बीजेपी के खिलाफ़ प्रचार बीजेपी की नींदें उड़ा रहा है।
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गुजरात हमेशा से ही साम्प्रदायिक राजनीति की प्रयोगशाला रहा है। 2002 के दंगे जिसमें करीबन 2000 लोगों की जाने गयी थीं और न जाने कितने लोगों की ज़िंदगियाँ बर्बाद हुई थीं इसी बात पर मुहर लगता है। 2002 के बाद से फेक एनकाउंटर , अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफ़रत और गुजरात मॉडल के जुमले बीजेपी की राजनीति के केंद्र में रहे हैं। सम्प्रदियिकता और कॉर्पोरेट विकास की इसी राजनीति की वजह से ही लगातार मोदी और बीजेपी को जीत मिलती रही है। पर अब जब गुजरात मॉडल की असलियत खुलकर सामने आने लगी है तो बीजेपी पूरी तरह साम्प्रदायिकता की शरण में जाती दिख रही है।
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