गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत मामले में डॉ कफ़ील को ग़लत तरीके से आरोपी बनाया जा रहा है?

गोरखपुर के बाबा रघुबर दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज के डॉ कफ़ील अहमद खान पिछले आठ महीने से जेल में हैं। पिछले साल 10 और 11 अगस्त की मध्यरात्रि में 30 से ज़्यादा बच्चों की मौत के लिए ज़िम्मेदार होने का उन पर आरोप है। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था और ये ख़बर अंतरराष्ट्रीय बन गई थी। ये घटना उस वक़्त हुई जब इस सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन ख़त्म हो गई थी। मरने वालों में ज़्यादातर बच्चे थें जिनका इलाज एन्सेफलाइटिस वार्ड में चल रहा था। बड़ी संख्या में बच्चों की मौत 48 घंटे के भीतर हुई थी। लखनऊ स्थित निजी कंपनी पुष्पा सेल्स द्वारा ऑक्सीजन की सप्लाई रोक देने के बाद ये घटना हुई थी। इस कंपनी ने अस्पताल को बकाए को लेकर तक़ादा किया था। उस वक़्त कंपनी का लगभग 65 लाख रुपए बकाया था।
दिल दहला देने वाली ये घटना आरोप-प्रत्यारोप में ही समाप्त हो गई। यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपनी "बुनियादी ढांचे और विफलता" को छिपाने के लिए इस डॉक्टर को बलि का बकरा बना रही है। इस बीच डॉ कफ़ील के ख़िलाफ़ एक आरोप दाखिल किया गया है जिसमें हत्या करने के प्रयास का आरोप उनपर आरोप लगाया गया है।
राज्य सरकार की तरफ से डॉ कफ़ील के ख़िलाफ़ दाख़िल किए गए आरोप पत्र, एफआईआर तथा अन्य पुलिस के दस्तावेज़, कफ़ील की नियुक्ति तथा सेवा, उनके लीगल पिटीशन समेत सभी संबंधित दस्तावेज़ों का न्यूज़क्लिक ने समीक्षा किया ताकि जांच की जा सके कि उनके खिलाफ आरोप वैध हैं या नहीं। जो उभर कर सामने आया वह चौंकाने वाला है जो सत्य से परे है और बिना किसी उचित आधार के उन्हें फंसाने का एक पारदर्शी मनसूबा है। इसे यहां संक्षेप में दिया गया है:
1. बीआरडी कॉलेज में डॉ कफ़ील की आधिकारिक जिम्मेदारियां क्या थीं?
बाल रोग विशेषज्ञ होने के नाते वे बीआरडी में एक सहायक प्रोफेसर के तौर सेवा दे रहे थे। वह अपने बाल चिकित्सा विभाग के प्रमुख नहीं थें। डॉ महिमा मित्तल इस विभाग की प्रमुख थीं और डॉ सतीश कुमार जो कि इस मामले में आरोपी भी हैं इस विभाग के आधारभूत रखरखाव के प्रभारी थें।
डॉ कफ़ील 100 बिस्तरों में अक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) वार्ड के प्रभारी भी नहीं थें। डॉ भूपेंद्र शर्मा और डॉ रचना भटनागर क्रमशः 100 बिस्तर वाले एईएस वार्ड और नियोनटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) के प्रभारी थें जहां बच्चों की मौत हुई थी। इस मामले में पुलिस द्वारा दायर आरोपपत्र के साथ डॉ भूपेंद्र शर्मा और डॉ महिमा मित्तल के बीच पत्रों का आदान-प्रदान यह पुष्टि करता है कि भूपेंद्र एईएस वार्ड के नोडल अधिकारी थें।
उन्हें नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) के तहत नियुक्त किया गया था। ठेका पर उन्हें बीआरडी में तैनात किया गया था। ज्ञात हो कि एन्सेफलाइटिस के ख़िलाफ़ अभियान में राज्य सरकार के साथ मिलकर एनएचएम योजना के तहत काम किया जाता है। उन्हें 24 मई, 2013 से 8 अगस्त, 2016 तक बीआरडी मेडिकल कॉलेज में तैनात किया गया। इस अवधि के दौरान वे 100 बिस्तर वाले एईएस वार्ड के नोडल अधिकारी थें।
यूपी लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रवक्ता और सहायक प्रोफेसर के रूप में प्रभार लेने के लिए 8 अगस्त2016 को इस्तीफा दे दिया था। उनकी सेवा नियमित करने के बाद और अकादमिक में प्रवेश करने के बाद 29 दिसंबर, 2016 को एनएचएम के नोडल अधिकारी के रूप में भी उन्हें नियुक्त किया गया। इस पद पर वे 13 अगस्त, 2017 तक रहे। बच्चों की मौत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश पर यूपी सरकार ने उन्हें 13 अगस्त को हटा दिया।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एनएचएम के नोडल अधिकारी के रूप में डॉ कफ़ील इस मिशन के तहत नियुक्त कर्मचारियों की उपस्थिति, भुगतान और पर्यवेक्षण के लिए ज़िम्मेदार थें। उन पर सहायक प्रोफेसर के तौर पर अकादमिक कार्यों को करने और वार्ड में दाख़िल बच्चों के इलाज के अलावा उनसे वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश के अनुपालन और उनके लागू करने की भी अपेक्षाएं थीं।
2. क्या डॉ कफील ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए ज़िम्मेदार थें?
रिकॉर्डस से यह स्पष्ट है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति की व्यवस्था करने या उसकी निगरानी के लिए डॉ कफ़ील जिम्मेदार नहीं थें।
अभियोजन पक्ष ने कहा है कि "आरोपी व्यक्तियों को पता था कि अगर ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो जाती तो बच्चों की ज़िंदगी को संभावित ख़तरा था। उन्होंने जानबूझकर पुष्पा सेल्स को भुगतान नहीं किया जिसने ऑक्सीजन के आधिकारिक आपूर्तिकर्ता को अपनी सेवाओं को बंद करने के लिए प्रेरित किया जिसके परिणामस्वरूप घटना हुई।
रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि ऑक्सीजन की ख़रीद, उसके स्टॉक की निगरानी और सप्लायर को भुगतान करने में डॉ कफ़ील की कोई भूमिका नहीं थी। यह रखरखाव विभाग की ज़िम्मेदारी है जिसके प्रमुख डॉ सतीश कुमार थें। डॉ सतीश एनेस्थिसिया विभाग के प्रमुख थें जिन्हें ऑक्सीजन आपूर्ति की निगरानी करना था। आरोप पत्र की साक्ष्य संख्या 38, 39, 40 और 47 भी इसकी पुष्टि करते हैं।
पुष्पा सेल्स ने बकाया भुगतान के लिए 10 पत्र और 14 बार तकाज़ा भेजा था। सभी पत्र यूपी के मेडिकल एजुकेशन के महानिदेशक, बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और जिला प्रशासन को संबोधित थें। किसी पत्र में भी डॉ कफ़ील का ज़िक्र नहीं था।
3. जब ये दुखद घटना हुई तब वे क्या अनुपस्थित थें?
इस आरोपपत्र में आरोप लगाया गया है कि डॉ कफ़ील पूर्व सूचना के बिना घटना वाली रात अनुपस्थित थें। हालांकि न्यूज़क्लिक द्वारा प्राप्त उपस्थिति पत्र से पता चलता है कि वे छुट्टी पर थें जिसे एचओडी द्वारा मंज़ूरी दी गई थी।
अधिकृत छुट्टी पर होने के बावजूद डॉ कफ़ील को इस संकट के बारे में जब सूचना मिली तो उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी जैसे पेडियाआट्रिक्स विभाग एचओडी डॉ महिमा मित्तल, ऑक्सीजन आपूर्ति के प्रभारी डॉ सतीश कुमार और प्रभारी प्रिंसिपल डॉ राम कुमार जायसवाल को जानकारी दी। छुट्टी पर होने के बावजूद डॉ कफ़ील अस्पताल पहुंचे।
इस मेडिकल कॉलेज के एक अधिकारी ने कहा, "वह (डॉ कफ़ील) अस्पताल पहुंचे और दूसरों से आग्रह किया कि वे भी अस्पताल आएं।"
उनके सेल फोन का लोकेशन, उनका कॉल रिकॉर्ड, अस्पताल में मौजूद लोगों के बयान और कई अन्य दस्तावेज़ इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। ये सभी दस्तावेज़ जिसे बेल के लिए दिए गए आवेदन के साथ ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया गया था। ये सभी दस्तावेज़ न्यूज़़क्लिक को प्राप्त हुआ है।
उन्होंने गोरखपुर और संत कबीर नगर के जिला मजिस्ट्रेट से संपर्क किया जिन्होंने आपूर्तिकर्ताओं के मालिकों से बात की और ऑक्सीजन सिलेंडरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की बात की। सशस्त्र सीमा बाल के डीआईजी ने सिलेंडरों ले जाने के लिए मदद की थी।
पचास सिलेंडर घटना वाली रात लाई गई थी और उनका भी इस्तेमाल किया गया था। 11 अगस्त की सुबह तक फैज़ाबाद से 50 और सिलेंडर अस्पताल लाए गए थे। यह सब डॉ खान द्वारा की गई पहल के कारण ही संभव हो पाया था।
मेडिकल कॉलेज के एक अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को नाम न छापने के शर्त पर बताया कि, "डॉ कफ़ील ही थें जो मीलों चला कर गए और गोरखपुर और संत कबीर नगर के ज़िला मजिस्ट्रेट और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल की मदद से ये सारी व्यवस्था की।"
एसएसबी. जो कि केंद्रीय पुलिस बल है जो नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के साथ भारत की सीमाओं की रक्षा करता है, ने कहा कि डॉ कफ़ील की कोशिशों और एसएसबी की सहायता ने इस संकट से लड़ने में मदद की।
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट में एसएसबी के पीआरओ ओपी साहू के बयान को इस तरह लिखा "10 अगस्त को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक अभूतपूर्व संकट की स्थिति थी। डॉ कफ़ील ख़ान एसएसबी के डीआईजी के पास आए और एक ट्रक के लिए अनुरोध किया ताकि ऑक्सीजन सिलेंडरों को विभिन्न स्थानों से एकत्र किया जा सके और मेडिकल कॉलेज में ले जाया जा सके।"
4. पहली जांच पैनल की रिपोर्ट को क्यों नजरअंदाज कर दिया गया है?
इस घटना के तुरंत बाद ज़िला मजिस्ट्रेट ने उच्च रैंकिंग अधिकारियों का एक पैनल गठित किया। इसमें सिटी मजिस्ट्रेट विवेक कुमार श्रीवास्तव, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रविंद्र कुमार, अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (शहर) रजनीश चंद्र, अतिरिक्त आयुक्त (गोरखपुर डिवीजन) संजय कुमार सिंह और अतिरिक्त निदेशक(स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) डॉ पुष्कर आनंद शामिल थें। इस पैनल ने 13 अगस्त को डीएम राजीव रौतेला को एक रिपोर्ट सौंपी जिन्होंने इसे मेडिकल एजुकेशन मिनिस्टर आशुतोष टंडन गोपालजी को भेज दिया। इस रिपोर्ट में पुष्पा सेल्स को भुगतान मुद्दों पर ऑक्सीजन की आपूर्ति में बाधा डालने के लिए ज़िम्मेदार ठहराए जाने के अलावा तत्कालीन बीआरडी प्रिंसिपल राजीव मिश्रा, चीफ एनेस्थेटिस्ट डॉ सतीश कुमार और चीफ फार्मासिस्ट गजानंद जायसवाल को ऑक्सीजन संकट के लिए दोषी ठहराया गया था।
इस जांच समिति ने पाया था कि बाल चिकित्सा विभाग को उचित कार्य करने के लिए हर 24 घंटे लगभग 250 ऑक्सीजन सिलेंडरों की आवश्यकता होती है। जब ऑक्सीजन के कम आपूर्ति की सूचना मिली तो जांचकर्ताओं ने पाया कि स्टॉक में ऑक्सीजन का 52 सिलेंडर ही है। इस पैनल ने कहा था कि चीफ फार्मासिस्ट और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक द्वारा प्रदान किए गए दस्तावेजों के आधार पर ऑक्सीजन के 100, 120 और छह सिलेंडर 10-11 अगस्त को1:30 एएम बजे दो विभिन्न सप्लायरों- इम्पेरियल गैस तथा मोदी गैस और एक अस्पताल-आनंद लोक अस्पताल से ख़रीदा गया था। ये व्यवस्था डॉ कफ़ील द्वारा की गई थीं।
एफआईआर के अनुसार, "डॉ मिश्रा और डॉ सतीश ने बिना किसी जानकारी के मुख्यालय छोड़ दिया था जिससे आपात स्थिति से निपटने में परेशानी हुई।"
5. ऑक्सीजन की आपूर्ति कैसे समाप्त हुई?
आईएमए के सचिव डॉ आरपी शुक्ला ने कहा कि प्रशासनिक सुस्ती, गोरखपुर से लखनऊ तक उत्तरदायित्व की अनुपस्थिति और अधिकारियों के भ्रष्टाचार के कारण ऑक्सीजन की कमी की स्थिति उत्पन्न हुई। हालांकि राज्य सरकार के पास ऐसी स्थिति को रोकने के लिए सभी सुविधाएं थीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके विपरीत उसने एक डॉक्टर को गिरफ्तार किया जिन्होंने सीमित सुविधाओं के साथ स्थिति को रोकने की कोशिश की।
दिलचस्प बात यह है कि यूपी सरकार के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति ने पाया था कि बीआरडी कॉलेज में बच्चों की मौत का कारण ऑक्सीजन की कमी नहीं थी। ये रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से जारी नहीं की गई है। लेकिन इस सरकार ने इस आधार पर अस्पताल के डॉक्टरों के ख़िलाफ़ गंभीर मामले दर्ज किया है।
डॉ शुक्ला ने कहा कि उन डॉक्टरों को ज़मानत भी नहीं दी गई और न ही इस घटना के मामले में किसी भी तरह की पूरी जांच की गई। उन्होंने इस मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग की।
अस्पष्ट तथ्यों पर आरोप पत्र की निर्भरता
उपर्युक्त तथ्यों को अनदेखा करते हुए पुलिस ने डॉक्टर के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), 308 (आपराधिक हत्या के प्रयास) और 409 (भरोसे के आपराधिक उल्लंघन) के तहत मामला दर्ज किया। जांचकर्ताओं द्वारा डॉ कफ़ील के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार और निजी प्रैक्टिस के आरोपों को हटा दिया गया है।
आईपीसी की धारा 308 तब लगाई जाती है जब कोई व्यक्ति इरादे से कोई ऐसा काम करता है या उसे पता है कि उसके काम से किसी की मौत हो सकती है। लेकिन इस मामले में पूरे एफआईआर और आरोपपत्र में उस व्यक्ति के नाम का कोई जिक्र नहीं है जिसके ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 308 के तहत दंडनीय अपराध किया गया है।
ज़मानत याचिका पर भी कोई सुनवाई नहीं
इस मामले में नौ आरोपियों में से ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने 9 अप्रैल को जमानत दे दी थी। आपूर्तिकर्ता के ख़िलाफ़ आपराधिक षड्यंत्र और आईपीसी की धारा के तहत भरोसे के आपराधिक उल्लंघन को लेकर मुक़दमा दर्ज किया गया था।
गोरखपुर में एक अदालत से अस्वीकार करने के बाद डॉ कफ़ील के ज़मानत के आवेदन पर सात महीने तक सुनवाई नहीं हुई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लगातार स्थगित होता रहा कि कभी सरकारी वकील मौजूद नहीं हुए या सरकार द्वारा दिए गए जवाब में और जानकारी की ज़रूरत है आदि।
स्थानीय वकील ने जो कहा वह पूरी तरह से अद्वितीय है कि हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए एक जगह पर दो तारीख़ दिए दोनों ही "लंबित" है। द सिटिजन की रिपोर्ट के मुताबिक़ फिलहाल सुनवाई के लिए नई तारीख अभी भी खान के वकीलों को नहीं दी गई है। वकील ने जज को तारीख़ के लिए लिखा है।
दिलचस्प बात यह है कि यूपी वकीलों ने "अद्वितीय" के रूप में जो कहा वह है कि हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए दो 'अगली' तारीख़ दी हैं और दोनों को 'लंबित'बताया गया है।
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