दिल्ली सरकार VS केंद्र: सर्वोच्च न्यायालय के जजों में सेवा के अधिकार को लेकर एक राय नहीं

दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी(आप) ने गुरुवार को दिल्ली सरकार के अधिकारियों के तबादले और तैनाती पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताया है। पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने यहां मीडिया से कहा, "दिल्ली सरकार ने आज चार वर्ष पूरे कर लिए हैं। जब हमने अपना काम शुरू किया था, तभी से केंद्र दिल्ली सरकार के काम में रोड़ा अटका रहा है। हम उम्मीद कर रहे थे कि चार वर्ष बाद, सर्वोच्च न्यायालय मामले में स्पष्ट निर्णय देगा।"
उन्होंने कहा, "अब हमें खबर मिल रही है कि कोई भी स्पष्ट निर्णय नहीं किया गया है। अब मामले को बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।"
पार्टी विधायक ने यह भी कहा कि यह निर्णय दिल्ली सरकार से ज्यादा दिल्ली के लोगों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।उन्होंने कहा, "अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। दोनों न्यायाधीशों की तबादला और तैनाती पर अलग-अलग राय है।"
न्यायमूर्ति ए.के.सीकरी ने कहा कि संयुक्त सचिवों व उनके ऊपर के रैंक के अधिकारियों के तबादले व तैनाती उप राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में होगी जबकि उनके नीचे के रैंक के अधिकारियों के लिए दिल्ली की निर्वाचित सरकार के मंत्रिपरिषद के जरिए सिफारिश की जाएगी।
हालांकि, न्यायमूर्ति अशोक भूषण की राय अलग थी। न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा कि दिल्ली सरकार का नियुक्तियों पर कोई नियंत्रण नहीं है और 'उच्च' अधिकारियों के तबादले व तैनाती केंद्र के हाथ में होगी।
भारद्वाज ने कहा कि सरकार उन अधिकारियों के साथ काम करने के लिए बाध्य है, जो उनके नियंत्रण में नहीं है। इसके अलावा सरकार अधिकारियों को बदल भी नहीं सकती।
उन्होंने कहा, "एक सरकार जिसके पास यह अधिकार तक नहीं है कि कौन अधिकारी क्या काम करेगा, वह पूरे राज्य को कैसे चलाएगी?"
आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने 2015 में आज ही के दिन दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।
क्या है पूरा मामला ?
पिछले साल 1 नवंबर को जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की पीठ ने विभिन्न अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है, जिसमें दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच चल रहे एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) की सेवाओं और सत्ता पर नियंत्रण को लेकर चल रहे तनाव शामिल था।
सुनवाई के दौरान, केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि उपराज्यपाल (एलजी) के पास दिल्ली में सेवाओं को विनियमित करने की शक्ति है।यह कहा था कि शक्तियों को दिल्ली के प्रशासक को सौंप दिया गया है और सेवाओं को उसके माध्यम से प्रशासित किया जा सकता है।
केंद्र ने यह भी कहा कि जब तक भारत के राष्ट्रपति स्पष्ट रूप से निर्देश नहीं देते हैं, तब तक एलजी जो दिल्ली के प्रशासक हैं, मुख्यमंत्री या मंत्रिपरिषद से परामर्श नहीं कर सकते।
पिछले साल 4 अक्टूबर को, दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि वह चाहती थी कि राष्ट्रीय राजधानी के शासन से संबंधित उसकी याचिकाओं पर जल्द सुनवाई हो क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि "प्रशासन में गतिरोध जारी रहे"।
दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि वह जानना चाहती थी कि वह चार जुलाई को शीर्ष अदालत के संविधान पीठ के फैसले के मद्देनजर प्रशासन के साथ वह कहाँ खड़ी है।
पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 4 जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए व्यापक मापदंडों को निर्धारित किया था, जिसने 2014 में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच एक शक्ति संघर्ष का मामला देख रही थी|
ऐतिहासिक फैसले में, इसने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन उपराज्यपाल (एलजी) की शक्तियों को यह कहते हुए छोड़ दिया गया है कि उसके पास "स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति" नहीं है और उसे चुनी हुई सरकार से सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा।
पिछले साल 19 सितंबर को केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि दिल्ली प्रशासन को दिल्ली सरकार के पास अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है और इस बात पर जोर दिया है कि देश की राजधानी होने के नाते यह "असाधारण" स्थिति है। केंद्र ने अदालत से कहा था कि शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
केंद्र ने अब तक यह तर्क देते हुए अड़ंगा डाला है कि क्या 'सेवाओं' के संदर्भ में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (GNCTD) के पास विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं? इस पूरी सुप्रीम कोर्ट का यह कहना है कि "दिल्ली की एक असाधारण स्थिति है क्योंकि यह देश की राजधानी है राष्ट्रीय राजधानी में संसद और सर्वोच्च न्यायालय जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों के कई संस्थान हैं और विदेशी राजनयिक भी यहीं मैजूद हैं।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एलजी अनिल बैजल और उनके पूर्ववर्ती नजीब जंग के साथ लगतार उलझते रहे हैं। केजरीवाल ने दोनों पर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के इशारे पर अपनी सरकार के कामकाज को रोकने का आरोप लगाया था।
( इस खबर के इनपुट लाइव लॉ से लिए गए हैं )
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