अरुंधति, लोकपाल और रिलायंस : पूर्व सचिव ने उठाए गंभीर सवाल लेकिन सरकार खामोश

सबसे अधिक जरूरी है कि सवाल पूछे जाएं।
तब तक पूछे जाएं जब तक जवाब न मिल जाए।
जवाब भी ऐसा हो जो सवाल के हर पहलू का हल हो।
जब से अरुंधति भट्टाचार्य को रिलायंस इंडस्ट्रीज में पांच साल के लिए स्वतंत्र निदेशक के तौर पर नियुक्त करने की खबर फैली है तब से उनकी नियुक्ति पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इन सवालों के लिए अब तक कोई जवाब नहीं आया है।
भारत सरकार के पूर्व सचिव ईएएस शर्मा ने अरुधंति भट्टाचार्य के लोकपाल सर्च कमेटी का सदस्य बनने पर 10 अक्टूबर 2018 को भारत सरकार को पत्र लिखा। इस पत्र का विषय था कि अरुंधति भट्टाचार्य को लोकपाल सर्च कमेटी का सदस्य बनाने से पहले सरकार ने पद की योग्यता से जुड़ी जरूरी प्रक्रियागत छानबीन नहीं की। अंग्रेजी में लिखे अपने पत्र में शर्मा में कहते हैं –
“एसबीआई की पूर्व चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य का जुड़ाव फाइनेंसियल सर्विस प्रदान करने वाली कम्पनी क्रिस कैपिटल को सलाह देने वाले पद से है। इस फाइनेंसियल कम्पनी का नाम भी कर चोरी से जुड़े पनामा पेपर्स में शामिल है। अगर इस तरह की कम्पनी के साथ अरुंधति भट्टाचार्य का नाम जुड़ा है तो इसका मतलब है कि सरकार को सलाह देने वाले लोगों ने लोकपाल सर्च कमेटी के सदस्य का चुनाव करने में यथोचित प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया है। इस तरह की नियुक्तियां लोकपाल जैसी ऊँची संस्था की साख पर बहुत गंभीर चिंता उठाती हैं। लोकपाल को प्रधानमंत्री से लेकर कैबिनेट मंत्री जैसे ऊँचे सरकारी पदों पर बैठे लोगों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले की छानबीन करने की अधिकारिता हासिल है। ऐसे में अरुंधति की नियुक्ति लोकपाल के साख पर बट्टा लगाती है। इसके साथ लोकपाल सर्च कमेटी का सदस्य बना दिए जाने के बाद अरुंधती का रिलायंस इंडस्ट्रीज का स्वतंत्र निदेशक बनाया जाना परेशान करने वाली बात हो जाती है। साल 2011-12 की एसबीआई रिपोर्ट की तहत यह बात ध्यान देने वाली हो जाती है कि बैंक ने आरबीआई द्वारा कम्पनियों को दिए जाने वाले कर्ज की सीमा से अधिक रिलायंस इंडस्ट्री को कर्ज दिया। इस समय एसबीआई के प्रबंधन बोर्ड में आरबीआई और कांग्रेस के वित्त मंत्रालय के लोग भी शामिल थे।
इसी साल के अप्रैल महीने में एसबीआई रिलायंस की जियो डिजिटल पेमेंट बैंक के 30 फीसदी शेयरहोल्डर का मालिक बन चुका है, जबकि इसकी शुरुआत अरुंधति भट्टाचार्य के दौर पर में ही हो चुकी थी। जब एसबीआई ने अपना खुद का डिजिटल प्लेटफोर्म बनाने के बजाय रिलायंस के माय जियो एप के साथ जुड़ने का समझौता किया था।
रिलायंस इंडस्ट्री अनिल अम्बानी के रिलायंस कम्युनिकेशन की डूबती हुई हालत को बचाने कोशिश कर रही है। एसबीआई भी इसके साथ हो चली है। 26 अगस्त 2018 के अखबारों के बिजनेस पेज की खबर है कि एसबीआई ने अनिल अम्बानी के कर्ज को राहत देने के लिए दूरसंचार विभाग को पत्र लिखा है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एसबीआई का सीनियर प्रबंधन रिलायंस इंडस्ट्री और रिलायंस कम्युनिकेशन को बहुत बड़े कर्ज से बाहर निकालने में लग गया है। जिसकी वजह से एसबीआई के वित्तीय हालत को बहुत अधिक परेशानी झेलनी पड़ सकती है। इस पृष्ठभूमि में एसबीआई की पूर्व चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य का लोकपाल कमेटी का सदस्य बनाया जाना और रिलायंस इंडस्ट्री का स्वतंत्र निदेशक बनना सरकार की तरफ कई तरह के सवाल खड़ा करता है।”
अपने पत्र में वे लिखते हैं कि लोकपाल चुनने के लिए बनी सर्च कमेटी के सदस्य में केवल अरुंधति भट्टाचार्य के नाम पर ही सवाल नहीं उठते बल्कि दूसरे नाम भी सवालों के घेरे में नजर आते हैं। इस कमेटी में प्रसार भारती के पूर्व अध्यक्ष, एसबीआई की पूर्व चेयरमैन से लेकर गुजरात के पूर्व पुलिस अफसर और राजस्थान सरकार के रिटायर्ड आईएस अफसर तक शामिल हैं, जबकि इस कमेटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज द्वारा की जा रही है, लेकिन लोकपाल सर्च कमेटी के अन्य सदस्य कमेटी में बने रहने के लिए जरूरी योग्यताओं को पूरा नहीं करते।
ईएएस शर्मा ने आरोप लगाया कि पूर्व नौकरशाहों और पूर्व बैंकरों को शामिल कर केंद्र सरकार ने लोकपाल सर्च कमेटी का मजाक बनाया है। सरकार और व्यापार से जुड़े लोग ही सरकार और व्यापार पर नकेल कस पायेंगे, यह नामुमकिन लगता है। इस मामले से अरुंधति भट्टाचार्य का उजागर हुआ नाम सरकार द्वारा गुड गवर्नेंस के लिए गवर्नमेंट रिफार्म के काम पर कई तरह के सवाल खड़ा करता है।
सरकार फिलहाल किसी भी सवाल और आरोप का जवाब देने के मूड में नहीं दिख रही है। ईएएस शर्मा के सवालों और अन्य आरोपों का जवाब तभी मिल सकता है, जब जमकर सवाल खड़े किये जाए और तब तक सवाल खड़े किये जाए जब तक जवाब न मिल जाए।
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