आदिवासियों के विरोध के चलते छत्तीगढ़ सरकार ने वापस लिया संशोधन

आदिवासी संगठनों के लगातार विरोध के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ लैंड रेवेन्यू बिल 1959 में किये गए संशोधनों को वापस लेने का फैसाला किया है I दरअसल इस बिल में संशोधन करके पिछले महीने ही पास कर दिया गया था पर इसका आदिवासी जनता ने शुरू से ही विरोध इसका किया I छत्तीसगढ़ में 30% आदिवासी आबादी है और इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी अहम भूमिका रहेगी शायद यही वजह है कि बीजेपी आदिवासियों को अभी नाराज़ नहीं करना चाहती है I
कल ही इस बिल के खिलाफ कांग्रेस के नेता छत्तीसगढ़ राज्यपाल के पास गए थे I काफी समय से कांग्रेस और सर्व आदिवासी समाज नामक एक आदिवासी संस्था इस बिल का विरोध कर रहे हैं I दरअसल बीजेपी की राज्य सरकार छत्तीसगढ़ ने लैंड रेवेन्यू बिल 1959 की धरा 165 में संशोधन किया था I ये संशोधन करने से सरकार आदिवासी ज़मीन को आसानी से ख़रीद सकती थी I इस संशोधन से पहले आदिवासियों की ज़मीन को इतनी आसानी से खरीदा या बेचा नहीं जा सकता था I
इससे पहले आदिवासी ज़मीन को खरीदा और बेचा तो जाता था पर वो केंद्र के भूमि अधिग्रहण बिल के अंतर्गत किया जाता था I आदिवासी ज़मीन को बेचने या खरीदने का निर्णय आदिवासी मिल-जुलकर ग्राम सभा में लिया करते थे I ऐसा इसीलिए किया जाता था क्योंकि आदिवासी इलाके में एक व्यक्ति की ज़मीन खरीदने से पूरे इलाके पर असर पड़ता है I इस संशोधन के बाद इसे सीधे आदिवासियों से लिया जा सकता था I आदिवासी संगठन इसका विरोध इसी वजह से कर रहे थे कि इससे सरकार आसानी से उनकी ज़मीन लेकर कॉपोरेटों को दे सकती थी I गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ खनिज संसाधनों के लिहाज़ से काफी संपन्न राज्य रहा है और यही वजह है कि कॉर्पोरेट कंपनियों की नज़र यहाँ की ज़मीन पर रहती है I ये संशोधन इसी वजह से महत्वपूर्ण था I
यही वजह थी कि इस बिल के खिलाफ आदिवासी सडकों पर आ गये थे I इसी विरोध के बाद गुरुवार 12 जनवरी को सरकार की एक बैठक हुई जिसमें इस संशोधन को वापस लेने का निर्णय लिया गया I
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