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‘भारत जोड़ो यात्रा’ के सहारे क्या प्लान कर रही है कांग्रेस?

राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है, सवाल ये है कि इसके ज़रिए क्या कांग्रेस साल 2024 में वापसी कर पाएगी?
Bharat Jodo Yatra

पिछले लंबे वक्त से आलोचनाओं का शिकार हो रही देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अब बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है। इस बदलाव में पार्टी को नए सिरे खड़ा करना, संगठन को मज़बूत करना, बूथ स्तर पर अपनी पहचान दोबारा पाना, मोदी सरकार की ग़लत नीतियों के ख़िलाफ घर-घर जाकर देशवासियों से बात करना, देश में फैलाए जा रहे झूठ को उजागर करना और सबसे प्रमुख राहुल गांधी को फिर से पार्टी के नेता के तौर पर स्वीकार्यता दिलवाना जैसे मुद्दे अहम हैं।

वैसे तो अक्टूबर के महीने में कांग्रेस अपने अध्यक्ष के लिए चुनाव करवाने वाली है, लेकिन राहुल गांधी की सक्रियता और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की ओर से उनके लिए मान-मनौव्वल बता रहा है कि आख़िरकार अध्यक्ष पद फिर से उन्ही की झोली में आने वाला है।

हालांकि चुनावों को दरकिनार कर राहुल गांधी ने ‘’भारत जोड़ो यात्रा’’ की शुरुआत कर दी है। जो राजनीतिक लिहाज़ से कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के भविष्य के लिए बेहतर माना जा रहा है।

क्योंकि कहा जाता है कि देश में गौतमबुद्ध, शंकराचार्य, गुरुनानक और महात्मा गांधी से लेकर विनोबा भावे तक की यात्रा का अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है। महात्मा गांधी जब यात्रा में पैदल चलते थे, तब लोग ख़ुद जुड़ते चले जाते थे, उस जुड़ाव का नतीजा इतना व्यापक रहा कि उस यात्रा की दिशा, देश को आज़ादी की ओर ले गई।

कुछ ऐसी ही राहुल गांधी की भी भारत जोड़ा यात्रा है, हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, क्योंकि राहुल और उनकी टीम लगातार इस बात को दोहरा रही है कि उनकी इस यात्रा का कोई राजनीतिक परिपेक्ष नहीं है। और इस यात्रा के महज़ तीन उद्देश्य हैं

  • केंद्र में एनडीए की सरकार की दौरान देश में बढ़ रहे आर्थिक असमानता के ख़िलाफ
  • जाति, धर्म, भाषा, नस्ल और रंग के आधार पर बढ़ रहे भेदभाव और अपराध के ख़िलाफ
  • केंद्र सरकार द्वारा सत्ता और सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग के ख़िलाफ

इन तीन मुद्दों को लेकर राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा 3570 किलोमीटर चलेगी। इस दौरान ये यात्रा 12 राज्यों और दो केंद्र शाषित प्रदेशों से होकर गुजरेगी। इसका समापन आख़िर में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में होगा।

कांग्रेस की इस भारत जोड़ो यात्रा की टैगलाइन है "मिले क़दम, जुड़े वतन"। कांग्रेस ने इस यात्रा से जुड़ा एक गीत भी रिलीज़ किया है जिसके बोल हैं "इक तेरा कदम, इक मेरा कदम, मिल जाए तो जुड़ जाए अपना वतन"।

पार्टी का कहना है कि इस यात्रा का मक़सद अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई, भेदभाव के खिलाफ खड़े होना और जुल्म के ख़िलाफ़ एकजुट होना है। इस यात्रा के ज़रिये वो देश में बढ़ रही आर्थिक मुश्किलें, सामाजिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक केन्द्रीयकरण को उजागर कर उस पर आम लोगों में बहस छेड़ना चाहती है।

बीते पांच अगस्त को महंगाई के खिलाफ काले कपड़े पहनकर दिल्ली की सड़कों पर उतरना, फिर रामलीला मैदान में विशाल रैली फिर उसके बाद भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत... क्रमवार चलने वाले कांग्रेस के इन कार्यक्रमों को देख ज़रा भी नहीं मालूम होता कि ये कहीं से भी ग़ैर राजनीतिक है। इसका प्रमाण देती हैं इतिहास में हो चुकी राजनीतिक यात्राएं।

उदाहरण के तौर पर राहुल गांधी की दादी या दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ही उदाहरण ले लीजिए.. जब साल 1977 के लोक सभा चुनाव में इंदिरा गांधी बुरी तरह हार गई थीं और ये कहा जाने लगा था कि अब उनका राजनीतिक करियर समाप्त हो जाएगा। लेकिन तभी बिहार में 500 की आबादी वाले गांव में दलितों का नरसंहार हुआ था जिसके बाद इंदिरा गांधी ने बेलछी जाने का फैसला किया और दिल्ली से हवाई जहाज के जरिए सीधे पटना और वहां से कार से बिहार शरीफ पहुंच गईं। इंदिरा के पहुंचने तक शाम ढल चुकी थी और मौसम के मिज़ाज भी कुछ ठीक नहीं थे, कहने का मतलब ये कि रास्ता कच्चा था और पानी लबालब भरा था या यूं कहें कि सड़कें कीचड़ से सनी हुई थीं। लेकिन इंदिरा थीं कि जाने के लिए अड़ी रहीं। आखिरकार उन्हें जीप पर बैठाकर ले जाया गया लेकिन वो रास्ते में ही फंस गया, फिर ट्रैक्टर का इंतज़ाम हुआ। कुछ दूर चलने के बाद उसने भी रास्ते के आगे दम तोड़ दिया। इसके बाद इंदिरा ने चौंकाने वाला काम किया और उस अंधेरी रात में पैदल ही चल पड़ीं, तब किसी ने हाथी का इंतज़ाम करवाया और इंदिरा और उनकी साथी को उसपर बिठाया गया। उस दौरान उबड़-खाबड़ सड़क, उसपर भरा लबालब पानी और बगैर महावत के हाथी पर बैठी इंदिरा... जान हथेली पर लेकर साढ़े तीन घंटे से ज्यादा का सफर किया। जब इंदिरा बेलछी पहुंची तब जाकर उन डरे हुए दलितों को यकीन हुआ कि कोई नेता है जिसे हमारी भी फ्रिक्र है। उसके बाद देश में ये कहा जाने लगा कि भले ही आधी रोटी खानी पड़े लेकिन जिताएंगे तो इंदिरा गांधी को ही।

इसी तरह 1990 में चुनाव हारने के बाद राजीव गांधी ने ट्रेन के दूसरे दर्जे में बैठकर भारत यात्रा की, जिसने राजनेता के तौर पर उनका कद और ज्यादा बढ़ा दिया।

ऐसे ही चंद्रशेखर ने भी भारत की यात्रा की और आगे जाकर देश के आठवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। फिर लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, साल 2003 में कांग्रेस नेता वाई के राजशेखर की 1400 किलोमीटर वाली यात्रा, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा के सहारे पार्टियों ने अपनी सरकारे बनाई हैं।   

इन्हीं छोटे बड़े-नेताओं से सबक लेकर शायद राहुल गांधी ने 3570 किलोमीटर पैदल चलने का मन बनाया है। इसमें बड़ी बात ये रही कि राहुल इस यात्रा के शुरु होने से पहले वहां पहुंचे जहां 21 मई 1991 के दिन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल एलम के आतंकवादी ने उनके पिता यानी राजीव गांधी की हत्या कर दी थी।

इस दौरान उन्होंने एक बेहद भावनात्मक ट्वीट भी शेयर किया था, उन्होंने लिखा कि- अपने पिता को "नफरत की राजनीति" में खो दिया था और वो "अपने प्यारे देश को इसमें खोने" के लिए तैयार नहीं हैं।

इसके बाद राहुल गांधी कन्याकुमारी के ‘गांधी मंडपम’ में एक प्रार्थना सभा में शामिल हुए, इसके बाद उन्हें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने राष्ट्र ध्वज सौंपा। यात्रा शुरू करने से पहले राहुल कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल, तिरुवल्लुवर स्टैच्यू और कामराज मेमोरियल भी गए।

इस यात्रा से राहुल या कांग्रेस को क्या मिल सकता है?

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस की ये यात्रा साफ बता रही है कि इसके ज़रिए 321 लोकसभा सीटें टारगेट पर हैं। कन्याकुमारी से शुरू हुई ये पदयात्रा.. केरल के तीन शहरों तक जाएगी जिसमें तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, और नीलांबुर शामिल हैं। इसके बाद कर्नाटक के मैसूर, बेल्लारी और रायचूर से होते हुए ये तेलंगाना के विकराबाद पहुंचेगी और फिर महाराष्ट्र के नांदेड़ और जलगांव से ये मध्य प्रदेश के इंदौर और फिर राजस्थान के कुछ ज़िलों में पहुंचेगी। आखिर में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब से ये श्रीनगर तक जाएगी, और इस तरह इस पदयात्रा में कुल 12 राज्य कवर होंगे। ये वो 12 राज्य हैं, जहां लोकसभा की कुल 321 लोक सभा सीटें हैं।

इन सीटों को साधने के अलावा देश में बाकी विपक्ष को भी एक संदेश देने की कोशिश है, कि बग़ैर कांग्रेस मोदी सरकार से टक्कर नहीं ली जा सकती। इसके अलावा कांग्रेस जिस तरह से राहुल गांधी को आगे कर रही है, इससे ये भी साफ दिख रहा है कि विपक्ष के महागठबंध का नेता राहुल गांधी ही हो सकते हैं।

राहुल गांधी पहले ही कई बार कह चुके हैं कि उनकी पार्टी को टेलीविज़न पर कम दिखाया जाता है, अब उन्हें मीडिया का सहारा नहीं रह गया है, यही वजह है कि वो लोगों से ख़ुद मिलेंगे और देश के हालातों से रुबरू करवाएंगे।

इन सबके बावजूद कुछ सवाल ऐसे हैं कि जब राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष नहीं बनना चाहते तो इतने मुखर होकर सभी आंदलनों या रैलियों की अगुवाई क्यों कर रहे हैं। इसको लेकर राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि वो बैक सीट से भी पॉलिटिक्स कर सकते हैं। और अगर सबकुछ ठीक रहा तो आख़िर वक्त में जाकर प्रधानमंत्री पद के लिए दावा ठोक सकते हैं।

कांग्रेस के लिए यह यात्रा अपने कुनबे को जोड़ने और टूट से रोकने के लिए भी काफी अहम है। जी-23 के प्रमुख नेता आनंद शर्मा ने भारत जोड़ो यात्रा के लिए समर्थन दिखाया है। आनंद शर्मा के अलावा राज बब्बर और मुकुल वासनिक भी कांग्रेस की इस यात्रा को अपना समर्थन दे चुके हैं। जी-23 ग्रुप मेंबर्स का भारत जोड़ो यात्रा को अपना समर्थन देना पार्टी के लिए अच्छा संकेत है। हालांकि देखने वाली बात होगी क्या आने वाले दिनों में भी यह बरकरार रहता है?

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