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UP MLC चुनाव: फिर नेता विपक्ष से वंचित रह गया सदन, दोनों सीटों पर भाजपा की जीत

दो सीटों पर हुए एमएलसी चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल की है, वहीं विपक्षी एकता की दुहाई दे रहा पूरा विपक्ष बिखरा-बिखरा नज़र आया।
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उत्तर प्रदेश में एमएलसी की दो सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने बाज़ी मार ली है, और इसी के साथ एक बार फिर सदन को नेता प्रतिपक्ष मिलते-मिलते रह गया। फिलहाल दो सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा के पदमसेन चौधरी को 279 वोट मिले, जबकि उनके सामने चुनाव में लड़ रहे सपा के रामकरन को 115 वोट मिले। दूसरी सीट पर भाजपा के मानवेंद्र सिंह ने 280 वोट लेकर जीत हासिल की। जबकि सपा के रामजतन को 116 वोट मिले। यहां ये कहना ग़लत नहीं होगा कि दोनों ही सीटों पर भाजपा को बड़े अंतर से जीत मिली है।

इस चुनाव में 403 में से कुल 396 विधायकों ने मतदान किया। समाजवादी पार्टी के दो और सुभासपा का एक विधायक जेल में होने के कारण मतदान नहीं कर सका। वहीं, स्वास्थ्य खराब होने के कारण सपा विधायक मनोज पारस भी मतदान नहीं कर सके। कांग्रेस के दोनों विधायकों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। बसपा के भी एक विधायक ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।

ये दोनों सीटें लक्ष्मण आचार्य के इस्तीफा देने और बनवारी लाल दोहरे के निधन से खाली हुई थीं। इससे पहले दोनों ही सीटें भाजपा के पास थीं। जिस पर भाजपा ने मानवेंद्र सिंह और पदमसेन को प्रत्याशी बनाया। योगी आदित्यनाथ सोमवार सुबह करीब 9 बजे अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ विधानसभा पहुंचे, तिलक हाल में उन्होंने वोट डाला। विधान परिषद के इस उपचुनाव में 20 साल बाद मतदान किया गया। इससे पहले साल 2002 में ऐसी स्थिति बनी थी, जब आरएलडी के मुन्ना सिंह चौहान के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी यशवंत मैदान में थे। मुन्ना सिंह चौहान की जीत हुई थी। एक बार फिर से दोनों सीटों पर होने वाले उप चुनाव के लिए भाजपा के प्रत्याशियों के खिलाफ मुख्य विपक्ष सपा ने प्रत्याशी उतार दिए।

इस चुनाव में भले ही सपा की हार हुई हो, लेकिन उनकी तरफ से अति पिछड़ों व दलितों को यह संदेश देने की कोशिश की गई थी, कि पार्टी उनके साथ है। यही कारण है कि पार्टी ने एक प्रत्याशी पूर्वांचल के राजभर समाज से बनाया जो अति पिछड़े वर्ग में शामिल हैं, दूसरी तरफ कौशांबी निवासी रामकरण निर्मल अति पिछड़ी जाति से हैं, उन्हें प्रत्याशी बनाया।

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि जहां देश में आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए विपक्षी एकता की बात चल रही है, ऐसे में एमएलसी चुनाव के लिए सपा ने कांग्रेस का समर्थन लेने में रूचि नहीं दिखाई, यही कारण है कि कांग्रेस के दोनों ही विधायकों ने इस चुनाव की वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।

इसके अलावा हम बात करें आरएलडी और सुभासपा की... तो आरएलडी के जयंत चौधरी ने सपा को समर्थन देने की बात कही, क्योंकि वो सपा के साथ गठबंधन में भी हैं। ऐसे में सभी की निगाहें सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर पर टिकी हुई थी। क्योंकि सपा के एक प्रत्याशी राजभर समाज है, और दूसरे अति पिछड़ा बैकग्राउंड से आते हैं। इसके अलावा राजभर के तीन विधायक सपा बैकग्राउंड से भी आते हैं, इसके चलते हां या ना वाली स्थिति बनी हुई थी। आख़िरकार ओमप्रकाश राजभर ने पलटी मारी और भाजपा के सपोर्ट में चले गए। जिसका कारण पिछले दिनों हुई ओमप्रकाश राजभर और अखिलेश यादव के बीच हुई बयानबाज़ी को माना जा रहा है।

आपको बता दें कि सपा ने राम जतन राजभर और रामकरन निर्मल को एमएलसी चुनाव में उतारा था, और दोनों ने चुनाव से पहले ये संदेश देने की कोशिश की है कि सपा पिछड़ों और दलितों का उत्थान करने वाली पार्टी है। जिसे दोनों प्रत्याशियों ने अपने-अपने पत्र के ज़रिए केशव प्रसाद मौर्य, जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद, अपना दल (सोनेलाल) के आशीष पटेल, सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर, सरकार के मंत्री अनिल राजभर, दिनेश खटीक और लक्ष्मी नारायण चौधरी को लिखा था। यानी दोनों प्रत्याशियों ने दलित-पिछड़ा कार्ड चला था, क्योंकि भाजपा ने जो प्रत्याशी उतारे थे, उनमें एक क्षत्रीय और दूसरा कुर्मी समुदाय से है।

सपा की जीत से एक उम्मीद और लगाई जा रही थी, इस बार सदन को नेता प्रतिपक्ष मिल जाएगा। कहने का मतलब ये है कि मौजूदा वक्त में सदन बग़ैर नेता प्रतिपक्ष चल रहा है। क्योंकि 100 सदस्यों वाली विधान परिषद में विपक्षी पार्टी सपा के पास सिर्फ 9 सदस्य हैं, जबकि विधान परिषद का संविधान कहता है कि नेता प्रतिपक्ष के लिए विपक्ष के पास कुल सीटों का 10 प्रतिशत होना अनिवार्य है। यानी यहां सपा के लिए जीत बहुत ज़रूरी है। वहीं भाजपा ने इन दोनों सीट को जीतकर अपने सदस्यों की संख्या में इज़ाफा करते हुए 82 कर लिया है। इसके अलावा विधान परिषद में बसपा का एक सदस्य, अपना दल सोनेलाल(एस) का एक, निर्बल इण्डियन शोषित हमारा आम दल के पास एक, जन सत्ता दल लोकतांत्रिक के पास एक, शिक्षक दल (ग़ैर राजनीतिक दल) के पास एक, निर्दलीय समूह के पास दो और निर्दलीय के एक सदस्य हैं।

विधान परिषद चुनाव के लिए वोटिंग का एक फॉर्मूला है, जिससे तय किया जाता है कि एक सीट के लिए कितने सदस्य की जरूरत होती है? एमएलसी सदस्य के जितनी सीटों पर चुनाव होता है यानी जितनी सीटें खाली होती हैं, उससे विधायकों की कुल संख्या से भाग करने पर जो संख्या आती है, उसमें एक जोड़ दिया जाता है। इस तरह एक एमएलसी के लिए उतने ही वोटों की जरूरत होती है।

उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधान सभा सदस्य हैं और दो विधान परिषद सीटों पर चुनाव हुए। गणित के मुताबिक ऐसे में 403 को 2 से भाग देते हैं तो करीब 201.5 आता है, जिसमें एक जोड़ देते हैं तो 202.5 हो जाता है, इस प्रकार से सूबे की एक एमएलसी सीट के लिए 202 विधायकों के वोट चाहिए।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 403 सदस्य हैं, जिसमें से एनडीए के पास कुल 273 विधायक है, जिसमें से भाजपा के पास 255, अपना दल(एस) के पास 12, निषाद पार्टी के पास 6 विधायक हैं। वहीं बात विपक्ष की करें तो कुल 130 सदस्य हैं, जिसमें से 110 सपा के विधायक हैं, आरएलडी के 9 सदस्य हैं। इसके अलावा कांग्रेस के 2 विधायक, सुभासपा के 6 विधायक, जनता दल के 2 और बसपा के पास 1 विधायक है।

फिलहाल यहां पर एक बार फिर सपा की भाजपा के हाथों हार हुई है, दूसरी ओर विपक्षी एकता का बिखराव भी बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। ऐसे में देखना ये होगा कि अब आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए सपा किसके साथ मिलकर और कैसी रणनीति तैयार करती है।

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