''देश की आज़ादी, संविधान और लोकतंत्र बचाने के लिए 'आज़ादी की दूसरी जंग' लड़नी होगी''

मौजूदा हालात में देश के संविधान और लोकतंत्र बचाने के लिए ‘दूसरी आज़ादी की लड़ाई’ लड़ने की ज़रूरत, अब समय संदर्भित ऐसा मुद्दा बनता जा रहा है, जिसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। जिसके तहत 2024 के आसन्न लोकसभा चुनाव को महज “सत्ता-परिवर्तन” के लिए नहीं बल्कि देश के नए लोकतान्त्रिक पुनर्गठन के लिए एक ज़मीनी जन आंदोलन बना देना आवश्यक है।
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर 13 अगस्त को पटना स्थित जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान सभागार में आयोजित ‘आज़ादी के 75 साल, देश किधर” परिचर्चा में उक्त बातें सर्वप्रमुख विमर्श-विषय के रूप में उभरकर आयीं। कार्यक्रम का आयोजन ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआइपीएफ़) के बिहार-पटना चैप्टर ने किया। जिसमें राजधानी पटना समेत बिहार प्रदेश के कई इलाकों से पहुंचे युवा एक्टिविस्टों, शिक्षाविद, वरिष्ठ बुद्धिजीवी, वकील, स्वतंत्र मीडियाकर्मी, छात्र-युवा संगठनों व नागरिक समाज के लोगों के अलावा कई वाम व गैर भाजपा विपक्षी दलों के सैंकड़ों प्रतिनिधि शामिल हुए।
ठसाठस भरे सभागार में परिचर्चा-विमर्श की शुरुआत फ करते हुए जानेमाने वामपंथी एक्टिविस्ट विचारक-स्तंभकार व संस्कृतिकर्मी प्रो. शमशुल इस्लाम ने कहा कि - भगत सिंह सरीखे जिन शहीदों ने आज़ादी को लेकर जिस भारतीय राष्ट्र और जन शासन की कल्पना थी, आज़ादी के 75 साल बीत जाने के बाद आज सब कुछ बिल्कुल विपरीत स्थितियों में पहुंचा दिया गया है। भाजपा-आरएसएस के रूप में इंसानियत व लोकतंत्र विरोधी विघटनकारी शक्ति ने देश की सत्ता और तंत्र पर पूरा क़ब्ज़ा कर रखा है। जिसे देश की जनता की ग़रीबी-बेकारी-भुखमरी व तंगहाली जैसे ज़रूरी सवालों से कोई लेना देना नहीं है बल्कि हिटलर-मुसोलिनी की तर्ज़ पर इस देश को “हिन्दू राष्ट्र” बनाने पर आमादा है। इसके निशाने पर भले ही मुसलमान दिखते हैं लेकिन अंतिम रूप से यह समस्त हिन्दू समाज के लिए ही विनाशकारी है। अपने तमाम किताबों व प्रकाशनों से “मनुस्मृति” के अमानवीय विचार-दर्शन को स्थापित कर पूरे समाज में भयावह अशांति फैलानेवाले वाले “गीता प्रेस” को गांधी शांति पुरस्कार दिया जाना इसी का एक उदाहरण है। कई शोध साक्ष्यों के हवाले से यह भी बतलाया कि हिन्दू-राष्ट्रवाद के यशगान की आड़ में तमाम ऐतिहासिक जीवंत सबूतों को मिटाकर सिर्फ झूठ और झूठ परोसा जा रहा है। जिसके मुकाबले के लिए सबसे ज़रूरी है कि व्यापक रूप से छात्र-युवाओं व आम लोगों को ज़मीनी स्तर पर जागरूक बनाते हुए लोगों को प्रशिक्षित किया जाय।
जाने माने चिन्तक-विश्लेषक-लेखक डा. राम पुनियानी ने कहा कि आज देश में “हिन्दू राष्ट्रवाद” का उभार लाकर जैसे सामंती समाज में होता था, वैसा ही “धर्म-राजसत्ता” का खेल हो रहा है। जिसका एक पैर, मुस्लिम-इसाई-दलित-महिला के दमनात्मक विरोध को लेकर टिकाया गया है तो दूसरा पैर, अब तक हासिल तमाम सकारात्मक उपलब्धियों को सिरे से नकार कर “अतीत के यशगान व इंसानियत विरोधी प्राचीन मूल्यों के अंधगुणगान पर टिका हुआ है। कई नामचीन विचारकों व इतिहासकारों के उद्धरणों के हवाले से कहा कि भाजपा व आरएसएस द्वारा बताया जा रहा नागरिकता का डीएनए किसी धर्म से नहीं बल्कि देश के संविधान से निर्धारित होगा। ‘स्वतंत्रता-समानता व बंधुता’ को “विदेशी विचार” के दुष्प्रचार से मनुस्मृति-दर्शन थोपने की जारी की कवायद पर टिप्पणी करते हुए कहा कि संघ-भाजपा द्वारा थोपे जा रहे नकली इतिहास का असली सच ये है कि- शिवाजी पर हमला औरंगज़ेब ने नहीं बल्कि उसके हिन्दू सेनापतियों ने ही किया था। जिस बाबर को हमलावर बताया जा रहा है, उसे भी यहां बुलाने का काम हिन्दू राजा ने ही किया था।
वर्तमान दुर्दशापूर्ण स्थितियों पर ध्यान दिलाते हुए बताया कि कैसे इसकी बुनियाद अंग्रेज़ी शासनकाल में ही रखी गयी थी। जब आज़ादी की जंग लड़ने के साथ साथ आधुनिक व लोकतान्त्रिक हिन्दुस्तान बनाने के विचारों को जनता के बीच ले जाया जा रहा था, तब अंग्रेज़ी हुकुमत के साथ मिलकर हिन्दू-मुसलमान विभाजन के लिए “हिन्दू महासभा व मुस्लिम लीग़” की स्थापना एकसाथ की गयी। बाद के समय में गांधी-अंबेडकर जैसे लोगों के सामाजिक अभियानों को तोड़ने के लिए ही “सोशल इंजीनियरिंग खेल” के माध्यम से दलित-आदिवासी व पिछड़ा वर्गों के अवसरवादी नेता सामने लाये गए। इसी प्रकार “गाय” का मुद्दा भी बेहद सुविचारित योजना के साथ उन्माद और सामाजिक विभाजन के जरिये उछाला गया।
पुनियानी जी ने जोर देकर हाल ही में गठित विपक्षी INDA गठबंधन को ज़मीनी तौर पर मजबूती देने को मौजूदा भयावह स्थितियों से मुकाबले के लिए सबसे कारगर बताया।
बिहार विधान सभा पूर्व अध्यक्ष व राजद के वरिष्ठ नेता उदय नारायण चौधरी ने सवाल उठाया कि आज आज़ादी के 75 वर्षों बाद ये देश और हम कहां खड़े हैं- हर तरफ़ ग़ैर बराबरी, घोर जातीय-सांप्रदायिक दमन-उत्पीड़न और बेहद दयनीय जीवन स्थितियों के बीच। सत्तासीन ताक़तों द्वारा बेहद शातिराना ढंग से हमें गृहयुद्ध की ओर धकेला जा रहा है। जिसका मुकाबला सत्ता द्वारा व्यापक पैमाने पर फैलाए जा रहे झूठ का ज़मीनी भंडाफोड़ कर लोगों को जागरूक और एकजुट बनाना होगा।
जेएनयू छात्र संघ के चर्चित नेता रहे बिहार कांग्रेस के विधायक दल नेता शकील अहमद ने साहिर लुधियानवी की नज़्म- कल भी बूंदें बरसती थीं, को सुनाते हुए कहा कि केंद्र में बैठी राजसत्ता सच से बहुत घबराती है। सदन या सड़क पर कहीं भी आप इनसे बहसों में सच कहेंगे तो इनके लोग तिलमिलाकर झौं-झौं करेंगे या मारपीट पर उतारू हो जायेंगे और ज्यादा बोलियेगा तो देशद्रोही का तमगा दे डालेंगे। बिहार में उभर रही वैकल्पिक राजनीति को मजबूत बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि- आंदोलनों की धरती कहे जाने वाले बिहार ने हमेशा से देश को संकट से निज़ात पाने का रास्ता दिखाया है और इस बार भी देश को नयी राह देगा।
ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने संघ-मोदी-भाजपा शासन में महिलाओं पर हर स्तर पर बढ़ते हमलों की चर्चा करते हुए कहा कि- अब “हिन्दू राष्ट्र” के नाम पर नए सिरे से महिलाओं को ग़ुलाम बनाने के सार्वजनिक फरमान दिए जा रहें है। जिसका ताज़ा उदाहरण गुजरात है, लड़कियों के लिए माता-पिता की अनुमति के बगैर शादी नहीं करने का नया कानून बनाया जाना।
भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि देश के लिए अजीब विडंबना है कि जिनका देश की आज़ादी की लड़ाई से दूर दूर का भी वास्ता नहीं रहा वे ही आज “घर घर तिरंगा लहराकर” देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांट रहें हैं। मणिपुर से लेकर हरियाणा को जलाकर देश को समरस बनाने का दावा कर रहें हैं। वर्तमान समय देश व जनता के लिए सबसे कठिन दौर है। क्योंकि अब अंग्रेजों की ग़ुलामी की बात नहीं हो रही है बल्कि झूठ परोसकर 1000 साल की ग़ुलामी के मिथ्या प्रचार को नफरती विचारों को सर्वत्र फैलाया जा रहा है। एक ओर, देश का सब कुछ कॉर्पोरेट-निजी घरानों के हाथ बेचा जा रहा है तो दूसरी ओर, डिजास्टर राज चलाकर पूरे देश को ‘नयी ग़ुलामी’ के गर्त और फ़ासीवादी रास्ते पर धकेला जा रहा है। जिसका मुकाबला केवल चुनावी सत्ता-परिवर्तन से संभव नहीं है बल्कि फिर से ‘दूसरी आजादी’ की जंग लड़ने के जरिये फिर से एक मजबूत आज़ादी व लोकतंत्र को स्थापित करना होगा। मौजूदा चुनौतियों और फ़ासीवाद का मुकाबला सिर्फ एक बड़े ज़मीनी जन आंदोलन से ही संभव है। इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों को जो अपना काम करना है ज़रूर करें, लेकिन उसके साथ ही सबसे ज़रूरी है कि इस चुनावी जंग को भी व्यापक जनता के एकजुट जुझारू आंदोलन में तब्दील कर दिया जाय। निश्चय ही इसके लिए आंदोलन के ‘बिहार मॉडल’ को पूरी एकजुटता के साथ व्यापक बनाते हुए बड़े पैमाने पर लोगों और उनकी बेचैनी को भी जोड़ना होगा।
परिचर्चा में भाकपा माले समेत विपक्षी महागठबंधन दलों के कई महत्वपूर्ण विधायक व नेता-कार्यकर्त्ता भी शामिल हुए। जन संस्कृति मंच के कलाकारों के साथ साथ शमशुल इस्लाम जी ने भी जनगीत प्रस्तुत किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद व एक्टिविस्ट बुद्धिजीवी जनाब ग़ालिब व संचालन एआइपीएफ़ के बिहार संयोजक कमलेश शर्मा ने किया।
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