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तिरछी नज़र: इस बार चोरी में क्या कमी रह गई, जो पकड़ी गई!

बादशाह चिंतित थे…क्या इस बार चोर्य कर्म में कोई कमी रह गई कि कोई एक या दो व्यक्ति नहीं, सारी जनता उन्हें चोर कह रही थी।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। सोशल मीडिया से साभार

 

बादशाह चिंतित थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें चोर क्यों कहा जा रहा था। चोरी तो जिंदगी में ना जाने कितनी की थी पर उन्हें कभी चोर नहीं कहा गया था। क्या इस बार चोर्य कर्म में कोई कमी रह गई कि कोई एक या दो व्यक्ति नहीं, सारी जनता उन्हें चोर कह रही थी।

बादशाह को समझ नहीं आया तो उन्होंने अपने ऐसे सारे कर्मो के साथी, अपने दाएं हाथ, अपने सबसे बड़े रत्न अलिफ़ को बुलवा भेजा। चाणक्य की नीतियों से अनजान लोग रत्न अलिफ़ को चाणक्य भी कहा करते थे। सच्चाई तो यह है कि अगर चाणक्य आज जिन्दा होते तो 'उसको' अपने नाम से पुकारे जाता देख कर आत्महत्या कर लेते।

तो सरकार जी के दाएं हाथ, अलिफ़, दौड़ते दौड़ते आये। 'दौड़ते दौड़ते आये' तो सिर्फ कहावत है। आये तो अपनी शोफर ड्रिइवन सरकारी गाड़ी से ही। चंद लम्हों में ही पहुंच गए। पर वे चंद लम्हे बादशाह को सदियों जैसे लगे। पहुँचे तो देखा कि बादशाह चिंता मग्न हैं।

अपने सबसे प्यारे, सबसे दुलारे रत्न अलिफ़ को देखते ही बादशाह बोले, "आओ, भाई, आओ। हम सोच में हैं कि इस बार हमारी चोरी में ऐसी क्या कमी रह गई कि सारी दुनिया हमें चोर, चोर कह रही है। क्यों भाई, टीम तो सोच समझ कर ही बनाई थी ना"।

"हाँ जहांपनाह, टीम तो सोच समझ कर ही बनाई थी। टीम में सारे के सारे बाशिंदे मेरे अपने ही आदमी थे। और टीम लीडर तो सालों से मेरे लिए ही काम कर रहा था। पता नहीं फिर उससे गलती कैसे हो गई", अलिफ़ ने जवाब दिया। 

"हूँ, टीम अपनी बनाने के लिए ही तो इतना सारा पंगा लिया। कानून तक बदल दिए। फिर भी...", बादशाह कुछ सोच में डूब गए। "हम सालों से चोर्य कर्म कर रहे हैं। कभी पकड़े नहीं गए पर पता नहीं इस बार क्या कमी रह गई जो पकड़े गए"।

"हाँ, ना जाने कितनी बार चोरी की। और चोरी भी इतनी सफाई से की कि कभी पकड़े ही नहीं गए। बल्कि कुछ ऐसा स्वांग रचा कि लोग चोरी की भी भरपूर प्रशंसा करते रहे। वो नोटबंदी, क्या कम बड़ी चोरी थी। खूब सारी जमीनें खरीदी, अपने बड़े बड़े ऑफिस बनवाये। और लोग मास्टर स्ट्रोक समझते रहे", जब दो चोर अकेले में मिले तो अपनी चोरी की पुरानी यादों में खो गए।

"और जहांपनाह, वो जो हवा में उड़ने वाले जहाज ख़रीदे थे ना, दूसरे देश से, उनमें भी तो खूब मोटा चूना लगाया था। जनता के पैसे से जहाज ख़रीदे और उन्हें ही कीमत नहीं बताई। उनको देशभक्ति की चाशनी में भी डुबो कर रख दिया। जिसने भी कीमत पूछी, उसी को देशद्रोही बता दिया"।

"और वह मंदिर बनाने का कांड। उसमें भी तो बढ़ चढ़ कर चोरी की थी ना। जमीन की कीमत मिनटों में कई गुना बढ़ा दी। निर्माण इतना बढ़िया कि पहली बारिश में ही चूने लगे। लोगों को राम नाम जपने में लगा दिया और खूब चोरी की, नोट की भी और वोट की भी", बादशाह और अलिफ़ एक साथ हँसने लगे। 

"कंस्ट्रक्शन में भी ना, बहुत मोटी कमाई है। तो देश में खूब निर्माण करवाया। सड़कें, पुल, बिल्डिंग्स, सब बनवाये। और खूब बनवाये। वह सेंट्रल विस्टा भी हमने ही तो बनवाया था। पहली बारिश में ही चूने लगा। इस सारे निर्माण में हमने जितना कमाया उतनी कमाई किसी और काम में नहीं की। और चोरी भी इनमें जितनी है ना, उतनी किसी भी काम में नहीं है", अलिफ़ ने जोड़ा। 

"और वह, बादशाह केयर्स फंड। वह क्या कम बड़ी चोरी थी। सबसे पैसा डलवा लिया। क्या प्राइवेट कम्पनी, क्या सरकारी, सबने पैसा दिया। और तो और, नौकरी पेशा लोगों, कर्मचारियों से भी एक एक दिन की तनख्वाह काट कर डाल दी उसमें। और जब हिसाब किताब की बात आई तो कह दिया, यह तो प्राइवेट है। प्राइवेट फंड में सरकारी कम्पनी पैसे देगी क्या? लोगों से जबरदस्ती एक एक दिन की तनख्वाह ले सकते हो क्या?" दोनों हंसने लगे। "और जब पूछा तो कह दिया, वेंटीलेटर लगवाये हैं, वेंटीलेटर", दोनों और जोर से हंसने लगे। "तीस हज़ार करोड़ में तो हर घर में वेंटीलेटर लग जायें और फिर भी पैसे बच जाएं"।

अचानक ही बादशाह गंभीर हो गए, "इस बार कैसा आदमी लाये हो तुम अलिफ़। इस अमृत काल में, मरे हुए को जिन्दा करना, उसका वोट बनाना तो ठीक है। उसके बदले कोई न कोई जा कर वोट डाल ही आएगा। पर यह क्या कि खुद यमराज बन गए। जिन्दा लोगों को ही मार दिया। उनका वोट काट दिया। अरे भाई, मरा बताना था तो यह भी तो पक्का करना था कि वे लोग कोर्ट पहुंचें ही नहीं। जब मार ही दिया था तो उनको जेल में भी डाल देते। और यह भी क्या कि किसी छोटे से घर में, एक ही कमरे के मकान में अस्सी, सौ, दो सौ वोटर बना डाले। इतने वोटर किसी महलनुमा मकान में बनाते तो किसी को शक भी नहीं होता। क्या बौड़म आदमी ढूँढा है तुमने इस बार"।

"चिंता ना करें जहांपनाह, मैं हूँ ना। मैं सब ठीक कर दूंगा," रत्न अलिफ़ ने बादशाह को सांत्वना दी। बादशाह को विश्वास था कि अलिफ़ सब ठीक कर देगा। उसके पास ईडी और सीबीआई जैसी संस्थाएं जो हैं। और देश में बादशाहद्रोह जैसे कानून भी हैं।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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