अफ़ग़ानिस्तान की घटनाओं पर एक नज़र : भाग - 8

यह सप्ताह राष्ट्रपति जोए बाइडेन के राष्ट्रपति पद के लिए एक महत्वपूर्ण पल जैसा है। कहा जा सकता है कि उनके लिए यह एक विनम्र सा पल रहा है, फिर भी साहसिक और निर्णायक, दूरदर्शी लेकिन कार्यनीतिक, और अमेरिका के स्वार्थों पर केंद्रित रहा है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि अन्य देशों (या यहां तक कि गैर-राज्य प्रभावशाली समूहों) पर अपनी इच्छा को लागू करने की अमेरिका की क्षमता नाटकीय रूप से कम हो गई है।
बाइडेन के विरोधियों और आलोचकों को यह एक उसकी कमजोरी का पल लग सकता है - क्योंकि सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स को काबुल हवाई अड्डे से अमेरिकन और अन्य देशों के लोगों को निकालने के लिए 31 अगस्त की समय सीमा बढ़ाने के लिए तालिबान नेतृत्व से गुहार लगाने के लिए काबुल की यात्रा करनी पड़ी। जबकि तालिबान राजनीतिक प्रमुख मुल्ला गनी बरादर ने साफ तौर पर ऐसी कोई भी रियायत देने से इनकार कर दिया है।
बहरहाल, बाइडेन विश्व के राजनेताओं के प्रबुद्ध नेताओं में से एक हैं, जिनमें कठिन निर्णय लेने और लाइन को पकड़ कर चलने का दुस्साहस दिखाया है। वे पूरी तरह से आश्वस्त है कि अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध लड़ने से राष्ट्रीय उत्थान की अमेरिका की प्राथमिकताओं को नुकसान होगा।
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वास्तव में, काबुल में इस धुंधलके में तालिबान के साथ टकराव करना सरासर पागलपन होगा। बाइडेन में एक घाघ राजनेता छिपा है और इसलिए उन्होने सभी को अफ़ग़ान से बाहर निकालने की जरूरत को समझा होगा, इससे पहले कि समाचार चक्र उनकी नाकामी का पर्दाफाश करे वे इसे जल्द से जल पूरा कर लेना चाहते हैं। इसके अलावा, यदि अमेरिकियों को देश जल्दी वापस नहीं लाया जाता है तो यह अभियान तेजी से एक बेहद खतरनाक मोड पर पहुँच सकता है – क्योंकि इस्लामिक स्टेट के लड़ाके हवाई अड्डे के आसपास दुबके बैठे हैं।
इस तरह 31 अगस्त की मियाद ख़त्म होने बाद, तालिबान काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर कब्ज़ा कर लेगा। यह भी तय हैं कि तालिबान अत्यधिक कुशल पेशेवरों - डॉक्टरों, इंजीनियरों, आदि को देश से नहीं जाने देगा। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने पश्चिम से शिक्षित अभिजात वर्ग को देश न भागने की सलाह दी और अपील भी की है।
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31 अगस्त को पश्चिमी सैनिकों के चले जाने के बाद तालिबान द्वारा एक नई सरकार का गठन किया जाएगा, जिसमें व्यापक संभव प्रतिनिधित्व वाली समावेशी सरकार होगी। पंजशीर विद्रोह पर बहुत अल्पकालिक उत्साह समाप्त हो गया है। निस्संदेह, तालिबान ड्राइविंग सीट पर है।
कल जी-7 की बैठक में यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पांच-सूत्रीय योजना में एक आइटम शामिल किया, अफ़ग़ानिस्तान के संबंध में जी-7 नेताओं की एक विशेष बैठक बुलाई गई थी। इस एजेंडा का मक़सद "एक एकीकृत और ठोस तरीके से नए अफ़ग़ान शासन से निपटने के लिए एक स्पष्ट योजना विकसित करना था।"
बैठक के बाद जॉनसन ने दावा किया कि जी-7 आर्थिक, राजनयिक और राजनीतिक मसलों में "बहुत अधिक लाभान्वित समूह है और इसका असर अफ़ग़ानिस्तान के साथ रिश्तों पर पड़ेगा।" ऐसा लगता है कि जी-7 तालिबान को डांट और प्यार से - मानवीय सहायता, अंतर्राष्ट्रीय मान्यता, आदि देने की नीति के साथ प्रोत्साहन देने की नीति अपना रहा है – ताकि काबुल में अपने प्रभाव को बरकरार रखा जा सके।
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बैठक के बाद जी-7 द्वारा जारी किए गए के बयान में "अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा नए सिरे से मानवीय प्रयास" करने की पुष्टि की है। बयान कहता हैं:
"इस उद्देश्य के लिए हम क्षेत्र में तत्काल अंतर्राष्ट्रीय मानवीय हस्तक्षेप के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र का समर्थन करते हैं, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान में निरंकुश मानवीय पहुंच शामिल है, और इस किस्म की प्रतिक्रिया के लिए सामूहिक रूप से योगदान दिया जाएगा। इसके हिस्से के तौर पर, हम एक समन्वित दीर्घकालिक क्षेत्रीय प्रतिक्रिया के तौर पर अफ़ग़ान शरणार्थियों और मेजबान समुदायों का समर्थन करने के लिए क्षेत्र के पड़ोसी और अन्य देशों के साथ मिलकर सहयोग करेंगे। हम अफ़ग़ानिस्तान के सभी भागीदारों या हितधारकों से इस प्रयास और बहुपक्षीय चैनलों के माध्यम से व्यापक क्षेत्रीय स्थिरता का समर्थन करने का आह्वान करते हैं।”
यह काफी स्मार्ट सोच है। हालाँकि, इसमें मजबूत अंतर्धाराएँ मौजूद हैं, जैसा कि जी-7 नेताओं की बैठक के बाद यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल का बयान इस बात की गवाही देता है। महत्वपूर्ण रूप से, बयान का समापन "अफ़ग़ानिस्तान में जो कुछ हुआ उससे सबक लेने की जरुरात है" के साथ हरी झंडी दिखाकर किया जाता है। इन घटनाओं से पता चलता है कि यूरोप के भविष्य के मद्देनज़र अपने गठबंधनों को हमेशा की तरह मजबूत रखते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को विकसित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय आने पर, मैं यूरोपीय परिषद के अपने साथी नेताओं को इस प्रश्न पर चर्चा का प्रस्ताव दूंगा।
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यह जानते हुए कि अब तालिबान पश्चिमी प्रतिबंधों के खतरे से नहीं डरेगा। तालिबान राष्ट्रवादी लहर की सवारी पर सवार है। वे 1990 के दशक के जाल में फंसने से बचना चाहते हैं। वे चीन (और निश्चित रूप से पाकिस्तान) के साथ चर्चा कर रहे हैं।
बीजिंग इस सोच को सबसे अधिक ग्रहण करने वाला देश है। इसलिए, चीन जो अपेक्षा करता है वह महत्वपूर्ण हो जाता है। कल, पाकिस्तानी एनएसए मोईद यूसुफ ने अपने चीनी समकक्ष झाओ केझी, स्टेट काउंसलर और सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय (चीनी खुफिया एजेंसी) के मंत्री और पार्टी समिति सचिव के साथ फोन पर बात की थी। यूसुफ ने बाद में ट्वीट किया:-
मुझे "हमारे दो देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के तरीकों पर मेरे चीनी समकक्ष, महामहिम झाओ केझी से बात करते हुए खुशी हुई है। हमने अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की और वार्ता को पटरी से उतारने वालों का मुकाबला करने सहित निकट समन्वय बनाए रखने पर सहमत हुए। हम संयुक्त दृष्टि के साथ आगे की ओर बढ़ रहे हैं।"
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एक समय था जब यूसुफ का व्हाइट हाउस में एनएसए जेक सुलिवन के साथ अफ़ग़ानिस्तान के संबंध में "संयुक्त दृष्टि" पर "निकट समन्वय" होता था, लेकिन वह आज नहीं है।
तो बीजिंग क्या चाहता है? ग्लोबल टाइम्स के प्रभावशाली प्रधान संपादक हू ज़िजिन ने लिखा है: "सबसे पहले, उन्हे (तालिबान) पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) और अन्य आतंकवादी ताकतों के खिलाफ एक स्पष्ट रेखा खींचनी है, जो 'शिनजियांग में स्वतंत्रता' की मांग करते हैं, और वे यानि ताललिबान चीन के झिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र को अस्थिर करने के उद्देश्य से किसी भी गतिविधि का समर्थन नहीं करेंगे।
“दूसरा, वे एक खुली, समावेशी और व्यापक हिस्सेदारी वाली प्रतिनिधि सरकार बनाएंगे, जो स्थायी शांति लाएगी और नागरिक संघर्ष को पूर्ण रूप से समाप्त कर देगी। उन्हें क्षेत्रीय तनाव को कम करने के लिए और अफ़ग़ान लोगों की भलाई को बढ़ावा देने में भी योगदान देना होगा, और इसे सुनिश्चित करने के लिए किसी भी बाहरी ताकत को भविष्य में संभावित हस्तक्षेप का कोई भी बहाना नहीं देना चाहिए।
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“तीसरा, उन्हे अमेरिका और अन्य ताकतों से दूरी बनाए रखनी छाइए जो चीन के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार रखती हैं। उन्हें चीन के रणनीतिक हितों को खतरे में डालने वाली ताकतों के मोहरे बनने से साफ इनकार करना चाहिए। इसके बजाय, हम आशा करते हैं कि वे चीन और अन्य पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और सहकारी संबंध विकसित करेंगे और क्षेत्रीय शांति और विकास के सामान्य अभियान में सबको साथ लाने के लिए प्रतिबद्ध होंगे।
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"चौथा, उन्हे बुनियादी घरेलू सामाजिक नीतियों में बदलाव को बढ़ावा देना चाहिए, मानवाधिकारों को बढ़ावा देना चाहिए, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए, और अफ़ग़ानिस्तान को एक उदार इस्लामी देश में बदलना चाहिए।"
बीजिंग पश्चिमी दबावों के खिलाफ तालिबान सरकार के लिए एक फ़ायरवॉल प्रदान करने के लिए लगभग तैयार है। दूसरे शब्दों में कहें तो अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी प्रभाव मुह के बल पड़ा है।
यूसुफ द्वारा "खेल बिगाड़ने वालों" के बारे में दिए गए संदर्भ और हू की सलाह कि तालिबान सरकार को "अमेरिका और अन्य ताकतों से दूरी बनाए रखनी चाहिए जो चीन के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार रखती हैं"। चीनी विदेश मंत्रालय के बयान में भी हाल ही में दी गई एक चेतावनी मौजूद है जो कहती है कि "किसी भी बल या विदेशी ताक़त द्वारा भू-राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए आतंकवाद का इस्तेमाल करने" की इजाजत नहीं दी जाएगी और ज़ोर देकर कहा कि "सभी आतंकवादी समूहों को मिटाने के लिए क्षेत्रीय देशों को मिलकर काम करना होगा।"
पाकिस्तान सरकार ने तालिबान नेतृत्व को अपने वांछित आतंकवादियों की एक सूची सौंप दी है। चीन की ख़ुफ़िया एजेंसी के साथ अत्यधिक संवेदनशील बातचीत को प्रचारित करने के इरादे से इस्लामाबाद की तरफ से एक ज़ोरदार संदेश जाता है - कि दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा हित आपस में जुड़े हुए हैं, और विरोधी ताकतों को ठिकाने लगाने के लिए संयुक्त प्रयास के लिए पूरी तरह से तैयार है।
एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत थे। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
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