कटाक्ष: भागवत जी, आप भी...!

ये क्या अपने मोदी साहब के साथ सरासर चीटिंग नहीं है? माने चीटिंग हो नहीं गयी है। मोदी साहब के साथ चीटिंग इतनी ही आसान है क्या? मोदी साहब जब तक खुद न चाहें, उनके साथ चीटिंग कर जाए, इतनी किस में हिम्मत है। फिर भी चीटिंग की कोशिश तो है। बताइए, मास्टर स्ट्रोक मोदी जी की खास निशानी है या नहीं?
पीएम की कुर्सी पर आने के बाद ग्यारह साल में मोदी जी ने ज्यादा न सही, कम से कम दो-ढाई दर्जन तो मास्टर स्ट्रोक मारे ही होंगे। नोटबंदी से लेकर अब बिहार से शुरू वोटबंदी तक, मास्टर स्ट्रोक ही मास्टर स्ट्रोक बिखरे पड़े हैं, गिन तो लें। सच पूछिए तो ग्यारह साल में मोदी जी और मास्टर स्ट्रोक, एक-दूसरे का पर्याय ही हो गए हैं। मोदी जी को पुकारो को मास्टर स्ट्रोक सुनाई देता है। बल्कि अब तो ये आलम है कि मोदी जी जो भी करते हैं, मास्टर स्ट्रोक निकलता है। ऑपरेशन सिंदूर छेड़ा, मास्टर स्ट्रोक। डियर फ्रेंड ट्रम्प के नोबेल शांति पुरस्कार की खातिर, ऑपरेशन सिंदूर साढ़े तीन दिन में ही झटके से रोक दिया, वह भी मास्टर स्ट्रोक। यहां तक कि पिछले ही दिनों पांच देशों की आठ दिन की यात्रा पर, चार-चार मैडल बटोर लाए, वह भी मास्टर स्ट्रोक। पर अब उसी मास्टर स्ट्रोक को मोदी जी से चुराने की कोशिश हुई है। सिर्फ इसलिए कि मोदी जी ने मास्टर स्ट्रोक अपने नाम पेटेंट नहीं कराया था, क्या कोई भी ऐरा-गैरा इस पर अपना अधिकार जमा सकता है। भागवत जी ने क्या सोचा था कि मोदी जी ने पेटेंट नहीं कराया है तो कोई भी मास्टर स्ट्रोक लगाकर निकल जाएगा? कोई भी पचहत्तर साल में रिटायरमेंट की याद दिलाकर, इशारों में मोदी जी से इस्तीफा मांग लेगा और मोदी जी मार्गदर्शक मंडल ज्वाइन करने निकल पड़ेंगे?
माना कि भागवत जी भी कोई ऐरे-गैरे नहीं हैं। गैर तो हर्गिज ही नहीं हैं। मोदी जी जिसे अपना मात-पिता संगठन कहते हैं, उसके भी पिता हैं। परम आदरणीय हैं। और सिर्फ चार दिन ज्यादा सही, पर उम्र में भी बड़े हैं, इसलिए भी आदरणीय हैं। पर आदर के चक्कर में मोदी जी, भागवत जी को अपना मास्टर स्ट्रोक थोड़े ही उड़ा लेने देंगे? एक-तरफ मात-पिता संगठन है और दूसरी तरफ, एक सौ चालीस करोड़ देशवासियों की अंतिम सांस तक सेवा का संकल्प। पलड़ा तो अंतिम सांस तक सेवा का ही भारी रहेगा। वैसे भी भागवत जी उनके मात-पिता संगठन के पिता हैं जरूर, लेकिन वर्तमान ही। मात-पिता संगठन तो स्थायी है, पर उसके पिता आते-जाते रहते हैं। बहुत जल्दी-जल्दी नहींं, किसी के कहने पर नहीं, पब्लिक की डिमांड पर तो हर्गिज नहीं, फिर भी आते-जाते रहते हैं। बायोलॉजीकल जो ठहरे।
हमें डर है कि मास्टर स्ट्रोक लगाने के चक्कर में भागवत जी ने अपने जाने का ही टैम न्यौत लिया है? इसी 11 सितंबर को उन्हें भी पचहत्तर साल का शॉल ओढ़ना है। मोदी जी को पचहत्तर साल वाले शॉल में लपेटने के चक्कर में, ऐसा न हो कि भागवत जी खुद ही शॉल में उलझ कर रह जाएं और मोदी को शॉल ओढ़ा ही नहीं पाएं।
मोदी जी की नकल कर के मास्टर स्ट्रोक खेलने की कोशिश हमें तो उल्टी ही पड़ती नजर आती है। आखिर, भागवत जी यह कैसे भूल गए कि मोदी जी साधारण मनुष्य नहीं हैं, जो पैदा होता है, पचहत्तर साल तक चल पाया तो बुजुर्ग होता है, रिटायर होता है और एक दिन देह त्याग देता है।
मोदी जी ठहरे नॉन बायोलॉजीकल। उन्हें तो परमात्मा ने इस धरती पर अपने विशेष प्रयोजन से भेजा है। नॉन बायोलॉजीकल के लिए नो बुढ़ापा, नो रिटायरमेंट। और जब बायोलॉजीकल देह ही नहीं तो उसका त्याग कैसा? पचहत्तर साल पर रिटायरमेंट का नियम, भागवतों के लिए हो सकता है, मोदी जी को तो काम पूरा हो जाने के ईश्वरीय संदेश का इंतजार करना होगा।
वैसे भागवत जी को भी पचहत्तर साल के करीब पहुंचकर मास्टर स्ट्रोक लगाकर देखने की ये सूझी भी तो क्या सूझी? मास्टर स्ट्रोक लगाना हर किसी के बस की बात थोड़े ही है। सच पूछिए तो मास्टर स्ट्रोक लगाना किसी अकेले के बस की बात भी नहीं है। क्रिकेट-व्रिकेट की नहीं कहते, पर बाकी हर चीज में मास्टर स्ट्रोक टीम वर्क होता है। और टीमों में टीम, अमृत काल के मीडिया की टीम। मोदी जी का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक तो यही है कि मीडिया वाली टीम पूरी तरह से उनके पाले में। इसीलिए, जो पहले कभी नहीं हुआ वो हो रहा है और गेंद कहीं भी जाए, मोदी जी के हरेक शॉट पर मास्टर स्ट्रोक का एनाउंसमेंट हो रहा है। और क्यों न हो, मीडिया के सारे खिलाड़ी मोदी जी के पाले में हैं, क्योंकि सारे मालिक मोदी जी के पाले में हैं। भागवत जी को मास्टर स्ट्रोक लगाने का इतना ही शौक था, तो मोदी जी को बता देते, वह मीडिया की अपनी टीम के सहारे उनके भी दो चार शॉटों पर मास्टर स्ट्रोक का एनाउंसमेंट करा देते। पर मोदी जी के रिटायरमेंट की उछलती हुई गेंद पर मास्टर स्ट्रोक लगाने के लालच में उन्हें नहीं पड़ना चाहिए था। अब तो मोदी जी ही कोई मास्टर स्ट्रोक लगाकर बचाएं तो बचाएं वर्ना भागवत जी जरूर पचहत्तर साल वाले शॉल में लपेटे जाएंगे और मोदी जी दर्शक दीर्घा से तालियां बजाएंगे।
रही बात मोदी जी की तो मोदी जी तो फकीर आदमी हैं। झोला उठाकर पब्लिक की सभाओं में निकल जाएंगे, अपने मन की बात सुनाने। विरोधी अब कहते हैं कि मोदी बूढ़ा क्यों नहीं होता? पचहत्तर की उम्र में भी मोदी जवानों से भी ज्यादा जवान है। एक दम सीधा सतर चलता है, हवाई जहाज की सीढ़ियों से भी बिना रेलिंग का सहारा लिए उतरता है। अठारह-अठारह घंटे पब्लिसिटी का काम करता है। मैं कहता हूं कि यह मेरे एक सौ चालीस करोड़ देशवासियों का आशीर्वाद है, जो मोदी को सदा जवान रखता है। जब तक मेरे देशवासियों का आशीर्वाद बढ़ता जा रहा है, बुढ़ापा मोदी के आस-पास फटक भी नहीं सकता है। फिर मोदी क्यों रिटायर्ड हो? मोदी के लिए उम्र बस एक संख्या है, आंकड़ा है। मोदी ऐसे खाली-पीली आंकड़ों से डरने वाला नहीं है। वैसे भी ये पचहत्तर साल, रिटायरमेंट, ये सब पश्चिम की बातें हैं। मोदी क्यों करे पश्चिम की नकल? मोदी क्यों ढोए विदेशी गुलामी की निशानियां? हमारी महान परंपरा, हमारी संस्कृति, हमारा इतिहास कुछ और है। राम, कृष्ण, दोनों राजा थे या नहीं? कोई रिटायर्ड हुआ था क्या? पश्चिम की नकल पर मोदी क्यों रिटायर्ड हो? पर भागवत, तुम भी...!
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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