गृह मंत्रालय के आदेश ने नागरिकता पर बहस को फिर हवा दी

गृह मंत्रालय के एक आदेश द्वारा छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात के 13 जिलों के कलेक्टरों और पंजाब व हरियाणा के गृह सचिवों को अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले 6 समुदाय के लोगों को देशीयकरण या पंजीकरण द्वारा भारतीय नागरिक होने का प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार दिया है। फुजैल अहमद अय्यूबी और इबाद मुश्ताक लिखते हैं कि इस विषय पर काफ़ी बहस हो चुकी है, लेकिन CAA 2019 पहला विधेयक नहीं है, जिसमें इन 6 समुदायों के नामों का खास उल्लेख किया है।
पिछले हफ़्ते से सोशल मीडिया में गृहमंत्रालय द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के तहत एक आदेश जारी करने की चर्चा चल रही है, जबकि अब तक इसके नियम भी नहीं बनाए गए हैं।
चर्चा की वज़ह गृहमंत्रालय में विदेशियों से संबंधित विभाग द्वारा 28 मई, 2021 को जारी किया गया आदेश है। इसके ज़रिए अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) के लोगों से 'नागरिकता अधिनियम, 1955' की धारा 5 के तहत नागरिकता के पंजीकरण या धारा 6 के तहत देशीयकरण के जरिए नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदन मंगवाए गए थे।
कुछ लोगों ने पूछा कि CAA, 2019 के तहत बिना नियम बनाए यह आदेश कैसे और क्यों निकाले गए। हम यहां सही सवालों को उठाते हुए, उनके कानूनी जवाब अपने पाठकों के सामने पेश करने की कोशिश करेंगे।
28 मई का आदेश
28 मई के अपने आदेश के ज़रिए गृहमंत्रालय ने छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात के 13 कलेक्टरों और हरियाणा व पंजाब के गृह सचिवों को केंद्र सरकार की उस शक्ति के लिए अधिसूचित कर दिया है, जिसके ज़रिए ऊपर उल्लेखित देशों से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को धारा 5 के तहत नागरिकता और धारा 6 के तहत देशीयकरण का प्रमाणपत्र दिया जा सकता है। संबंधित अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार में रहने वाले लोगों के लिए इन शक्तियों का इस्तेमाल कर सकेंगे।
Centre empowers district magistrates of 13 districts situated in Gujarat, Chhattisgarh, Rajasthan, Harayana&Punjab to grant citizenship to any person belonging to minority communities in Afghanistan, Bangladesh& Pakistan, upon applicants applying for registration/naturalisation pic.twitter.com/1A069LENzU
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) May 29, 2021
यह शक्ति का हस्तांतरण है, जो केंद्र ने संबंधित कलेक्टर और गृह सचिवों को किया है। इसका प्रभाव वही होने वाला है, जो नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 का होगा। लेकिन इस कवायद को नागरिकता नियम, 2009 के तहत किया जा रहा है और यह पहली बार नहीं है, जब ऐसा किया जा रहा है।
इसी तरह से एक बार शक्ति का हस्तांतरण, नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 16 के तहत 2016 और 2018 में किया गया था। यह पूरा घटनाक्रम नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के आने से पहले का है।
नागरिकता नियम, 2009 क्या हैं?
नागरिकता अधिनियम, 1955 किसी व्यक्ति के भारतीय नागरिक बनने के लिए प्रावधान करता है। जैसे- जन्म के आधार पर (धारा 3), वंश के आधार पर (धारा 4), पंजीकरण के आधार पर (धारा 5), देशीयकरण के आधार पर (धारा 6), किसी क्षेत्र को भारत में शामिल करने के ज़रिए (धारा 7)। यहां असम समझौते के तहत शामिल किए गए नागरिकों के लिए धारा 6A भी है, वहीं नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा प्रबंधित धारा 6B भी है। लेकिन मौजूदा विश्लेषण सिर्फ़ धारा 5 और धारा 6, मतलब पंजीकरण और देशीयकरण तक सीमित रहेगा। क्योंकि जो अधिसूचना जारी की गई है, उनमें इन्हीं दो आधारों की चर्चा है।
धारा 5 किसी भी व्यक्ति को उस स्थिति में पंजीकरण के ज़रिए नागरिकता उपलब्ध करवाती है, जब व्यक्ति धारा 5(1) के तहत उल्लेखित 7 वर्गों में से किसी से संबंध रखता हो। बशर्ते यह व्यक्ति "गैरकानूनी प्रवासी" ना हो।
यह धारा, अन्य अर्हताओं के साथ-साथ, भारत में 7 साल से रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक के पंजीकरण को भी शामिल करती है।
धारा 6, उस व्यक्ति को देशीयकरण द्वारा नागरिकता उपलब्ध करवाती है, जो नागरिकता अधिनियम, 1955 की तीसरी अनुसूची में देशीयकरण की शर्तें पूरी करता हो। बशर्ते वह गैरकानूनी प्रवासी ना हो।
इसमें वह पात्रता भी शामिल है, जिसमें कोई व्यक्ति पिछले 14 में से 11 साल और आवेदन लगाने के पहले लगातार 12 महीने से भारत में रहता आ रहा हो। 11 साल की यह कुल अवधि, अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के द्वारा घटाकर 5 साल कर दी गई है।
इस चीज पर गौर करना जरूरी है कि जिस प्रक्रिया से पंजीकरण या देशीयकरण का प्रमाणपत्र दिया जाता है, वह प्रक्रिया नागरिकता नियम, 2009 में बताई गई है। यह नियम, धारा 5(1) के तहत पंजीकरण (नियम 4 से 9 और फॉर्म II से VII) और धारा 6 के तहत देशीयकरण (नियम 10 और फॉर्म VIII) के तहत आवेदन करने की विशेष प्रक्रिया और आवेदकों द्वारा भरे जाने वाले जरूरी फॉर्म के बारे में बताते हैं।
2009 के नियमों में बताई गई प्रक्रिया के मुताबिक़, आवेदक को अपने इलाके के कलेक्टर को आवेदन देगा (नियम 11) और यह आवेदन कलेक्टर द्वारा राज्य/केंद्रशासित प्रदेश को अपनी रिपोर्ट के साथ आगे बढ़ाया जाएगा (नियम 12)।
इसके बाद संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश द्वारा बढ़ाए गए आवेदनों और जानकारियों की केंद्र सरकार द्वारा जांच की जाएगी (नियम 13)। तब पंजीकरण या देशीयकरण का प्रमाणपत्र केंद्र द्वारा जारी किया जाएगा। 2009 के नियमों के द्वारा यह प्रमाणपत्र एक ऐसे अधिकारी द्वारा जारी किया जाना चाहिए, जो "भारत सरकार में संयुक्त सचिव स्तर से नीचे का ना हो।"
28 मई और 2018 व 2016 के पुराने आदेश, इस पूरी प्रक्रिया को कम करते हुए, कलेक्टर और गृहसचिवों को न केवल धारा 5 और धारा 6 में आवेदन लेने की शक्ति देते हैं, बल्कि उन्हें पंजीकरण या देशीयकरण के अंतिम प्रमाणपत्र को जारी करने की ताकत भी देते हैं।
इससे एक और सवाल खड़ा होता है- अगर 28 मई का आदेश 2009 के नियमों के तहत जारी किया गया है, तो CAA, 2019 में जिन तीन देशों के 6 समुदायों का उल्लेख है, उनका 28 मई के आदेश में जिक्र क्यों?
आदेश की भाषा CAA की तरह
इसका जवाब बिल्कुल सीधा है- यह गलत धारणा है कि CAA, 2019 पहला विधेयक था, जिसमें 3 पड़ोसी देशों के 6 अल्पसंख्यक समुदायों के नाम का जिक्र किया गया है। हालांकि यह पहला विधेयक था, जिसने इस तरह की शब्दावली को इस स्तर पर लोकप्रिय बनाया और इतने बड़े पैमाने पर इसका राजनीतिक उपयोग किया गया।
2009 के नियमों का पंजीकरण और देशीयकरण की स्थितियों के साथ मेल करवाने की मंशा थी। बशर्ते संबंधित शख़्स गैरकानूनी प्रवासी न हो। लेकिन 2014 से 2016 के बीच, मतलब नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 के संसद में रखे जाने से भी काफ़ी पहले, न केवल 2009 के नियमों में बदलाव कर दिया गया, बल्कि पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) नियम, 1950 में भी फेरबदल कर दिए गए, ताकि उल्लेखित समुदाय के लोगों को पंजीकरण और देशीयकरण द्वारा नागरिकता दी जा सके। 2014 से 2016 के बीच किए गए इन सारे संशोधनों में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की तरह की भाषा उपयोग की गई थी। लेकिन CAA, 2019 की तरह इन्हें वो लोकप्रियता नहीं मिली।
इन संशोधनों के जरिए 2009 के नियमों के तहत भरे जाने वाले फॉर्म में बदलाव किए गए। फिर 2018 में एक सवाल भी जोड़ दिया गया कि जो व्यक्ति पंजीकरण या देशीयकरण के तहत नागरिकता लेना चाहता है क्या वो अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान में किसी अल्पसंख्यक समुदाय, मतलब हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदाय से है?
इसके भी पहले, 2016 में ही 2009 के नियमों में बदलाव किए गए थे ताकि निश्चित किया जा सके कि अगर इन समुदायों के लोग कलेक्टर की अनुपस्थिति में आवेदन करें, तो एसडीएम रैंक और इसके ऊपर का अधिकारी जिसे कलेक्टर द्वारा इस कार्य के लिए चुना गया है, वो आवेदकों की प्रक्रिया आगे चला सके।
इसके पहले, 2015-16 में पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) नियम, 1950 में बदलाव कर इन समुदायों को भारत में प्रवेश करने के लिए जरूरी दो अनिवार्यताओं/शर्तों से छूट दे दी गई थी, जबकि 1950 के नियमों के हिसाब से इन शर्तों का पालन होना जरूरी था।
इसी वक़्त फॉरेनर्स ऑर्डर, 1948 में अनुच्छेद 3A जोड़कर यह व्यवस्था की गई कि अगर तीन पड़ोसी देशों से अल्पसंख्य समुदाय के लोग, जो धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक उत्पीड़न के डर से शरण लेना चाहते हैं और भारत में 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले आए हैं, भले ही उनके पास कोई दस्तावेज ना हो, तो भी उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 के प्रावधानों से छूट दी जाएगी।
पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) नियम, 1950
1950 के नियम, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत बनाए गए थे, जो केंद्र को ऐसे नियम बनाने की ताकत देता है, जिनसे भारत में प्रवेश लेने वाले व्यक्ति के पास पासपोर्ट और दूसरे उद्देश्यों के दस्तावेज़ होने को अनिवार्य शर्त बना सके।
यही 1920 का अधिनियम, जिसमें स्वतंत्रता के बाद पर्याप्त संशोधन हुए, वह सरकार को ऐसे नियम बनाने का अधिकार देता है- जो पासपोर्ट रहित व्यक्ति को भारत में प्रवेश करने से रोकते हों [धारा 3(2)(a)]; उस प्राधिकरण को तय करता जो पासपोर्ट जारी या उसका पुनर्नवीकरण करेगा [धारा 3(2)(b)]; सबसे अहम, किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह को ऐसे किसी नियम से पूर्ण या सशर्त छूट देगा [धारा 3(2)(c)]।
इस तरह 1950 के नियम ऐसी शर्तें तय करते हैं, जो किसी व्यक्ति पर भारत में प्रवेश पर लागू होती हैं। नियम संख्या 3 और नियम 5 को एक साथ पढ़ने पर दो प्रावधान पता चलते हैं- पहला, कोई भी व्यक्ति जो भारत में जल, जमीन या हवाई मार्ग से प्रवेश करता है या करने की कोशिश करता है, उसके पास वैधानिक पासपोर्ट होना चाहिए, जिसमें संबंधित शख़्स की फोटो, उसकी राष्ट्रीयता और वीज़ा का जिक्र होना चाहिए। दूसरा, संबंधित शख़्स को केवल केंद्र द्वारा तय किए गए बंदरगाहों, हवाईअड्डों या दूसरी जगहों से ही भारत में प्रवेश करना होगा।
नियम 4, कुछ व्यक्ति समूहों जिनमें नौसेना, सेना या हवाई सेना के सदस्य शामिल हैं, उन्हें भारत में अपने कर्तव्यों के लिए प्रवेश करने, उनके परिवार के प्रवेश करने, नेपाल या भूटान के व्यक्तियों को नेपाल या भूटान सीमा से प्रवेश करने, जेद्दा और बसरा से लौटने वाले प्रमाणित मुस्लिम तीर्थयात्री जो भारत में रहते हों, उन्हें भारत में प्रवेश करने की स्थिति में छूट देता है। इसके अलावा भी कई समूहों को इस नियम के तहत छूट दी जाती है।
2015 में 1950 के नियमों में संशोधन के ज़रिए, उपरोक्त नियम-4 में उपनियम(ha) जोड़ा गया, जो "बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों, जो 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले, बिना जरूरी दस्तावेजों (पासपोर्ट या दूसरे यात्रा दस्तावेज़) के, धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक उत्पीड़न के डर से भारत में शरण लेने को मजबूर हुए हैं", उन्हें छूट देता है।
2016 में एक और संशोधन के ज़रिए नियम-4 में उपनियम (ha) में अफ़गानिस्तान को भी जोड़ दिया गया। इसलिए 2015-16 में भी, जो व्यक्ति तीन पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक समुदाय से आता था, उसे 1950 के नियमों में उल्लिखित दोनों शर्तों से छूट मिली हुई थी।
CAA, 2019 ने क्या किया?
CAA, 2019 ने ऊपर उल्लिखित व्यक्ति समूहों को सिर्फ़़ दो सहूलियत और दी हैं- उनसे अब "अवैध प्रवासियों" की तरह बर्ताव नहीं किया जाएगा और उनके देशीयकरण के लिए जरूरी 11 साल की अवधि को 5 साल कर दिया गया है।
जब इस समूह से अवैध प्रवासियों का दर्जा हटाया जा रहा था, तो CAA, 2019 ने इन व्यक्तियों को 'पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 2019' की धारा 3(2)(c) से छूट प्राप्त व्यक्तियों के तौर पर उल्लेखित किया।
इसलिए 28 मई को दिए गए आदेश से ऐसी आशंका होती है, जैसे यह आदेश CAA, 2019 के तहत जारी किया गया है, जो धारा 6B के तहत देशीयकरण और पंजीकरण की प्रक्रिया से नागरिकता दिए जाने से संबंधित नियमों का प्रबंध करता है। लेकिन इन नियमों को बाद में संसूचित किया जाएगा। अब तक यह नियम संसूचित नहीं किए गए हैं।
यह लेख मूलत: द लीफलेट में प्रकाशित हुआ था।
फुजैल अहमद अय्यूबी सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं। इकबाल मुश्ताक दिल्ली स्थित वकील हैं। यह उनके निजी विचार हैं।
इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
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