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सरकारी पुरस्कार वापस नहीं करने का लिखित वचन देना अलोकतांत्रिक : इप्टा

साहित्यकारों का विरोध पुरस्कार या सम्मान का विरोध करना नहीं बल्कि जनतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी करने वाली सत्ता को पुरस्कार वापसी के प्रतीक से आईना दिखलाना है।
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भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की राष्ट्रीय समिति संसद की एक समिति द्वारा पारित और संसद के इस मानसून सत्र में विगत सोमवार को सदन के पटल पर रखे गए इस प्रस्ताव का विरोध किया है जिसमें सरकारी पुरस्कार प्राप्त करने वाले से यह लिखित वचन लेने की बात कही गई है कि वह भविष्य में कभी भी किसी राजनीतिक कारणों से पुरस्कार वापस नहीं करेगा।

नाट्य संघ द्वारा सभी सांसदों से सदन में इस प्रस्ताव का विरोध करने की अपील की गई है और संसद के बाहर इन अलोकतांत्रिक प्रवृतियों के विरुद्ध संघर्ष का आह्वान किया गया है।

इप्टा की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत का संविधान अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है। सरकार के किसी कृत्य से आहत होने के बाद ही और जनतांत्रिक मूल्यों का हनन होने बाद ही कोई पुरस्कृत व्यक्ति अपनी असहमति दर्ज कराने, अपना क्षोभ प्रकट करने के लिए पुरस्कार वापस करता है। यह उसका मौलिक अधिकार है। संसद में पेश प्रस्ताव व्यक्ति को अपनी बात रखने से वंचित करने की एक सोची समझी साजिश है।

बता दें कि नोबेल पुरस्कार विजेता कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर ने जलियांवाला बाग की घटना के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई "नाईटहुड" 'सर' की उपाधि वापस कर दी थी। ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, पद्मश्री सम्मानित महाश्वेता देवी ने राजनीतिक असहमतियों को खुल कर और सत्ता को चुनौती दी।  

2015 में अशोक वाजपेयी, नयनतारा सहगल, उदय प्रकाश, कृष्णा सोबती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, केकी दारूवाला, अंबिकादत्त, मुनव्वर राणा, खलील मामून, सारा जोसेफ, इब्राहिम अफगान और अमन सेठी ने अपनी असहमति दर्ज कराते हुए पुरस्कार वापस किया है। इन साहित्यकारों का विरोध पुरस्कार या सम्मान का विरोध करना नहीं बल्कि जनतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी करने वाली सत्ता को पुरस्कार वापसी के प्रतीक से आईना दिखलाना है।

संसदीय समिति का यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी भी संगठन द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार, किसी कला कार का सम्मान करते हैं और इसमें राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

देश की राजनीति में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सांसद महोदय स्वयं ही लोकतांत्रिक मूल्यों की तिलांजलि दे रहे हैं। नाट्य संस्‍था इप्‍टा द्वारा इन अलोकतांत्रिक प्रवृतियों की निंदा की गई है।

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