गैस सिलेंडर के दामों में गिरावट : 10 साल की महंगाई, 6 महीने में भरपाई?

महंगाई के इस दौर में अब जनता की आवाज़ें मुखर होकर सत्ताधीशों के कानों तक पहुंच रही हैं। यहां हम ये नहीं कह रहे हैं सत्ताधीशों ने अपने कान खोल लिए हैं और जनता की आवाज़ सुनने लग गए हैं बल्कि जनता की बग़ावत इतनी ज़्यादा बढ़ चुकी है कि अब ये लोग उसे अनसुनी नहीं कर पा रहे हैं। इन्हें इन आवाज़ों में सत्ता परिवर्तन का इशारा दिखाई देने लगा है। इन्हें लगने लगा है कि अब जनता ने मुखौटों के पीछे छुपे चेहरे और तस्वीरें पहचाननी शुरु कर दी हैं।
मुखौटों के पीछे से उस वक्त की तस्वीरें निकलकर आईं जब देश में यूपीए की सरकार थी और डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। तब घरेलू गैस सिलेंडर 450 रुपये की कीमत में मिला करता था और 150 रुपये बढ़ जाने पर मौजूदा केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सड़क पर सिलेंडर लेकर बैठ गई थीं। फोटो साभार : नवभारत टाईम्स
सिर्फ इतना ही नहीं इन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह को चूड़ियां भिजवाईं थीं। वैसे तो चूड़ियां कमज़ोरी या ग़लत नीतियों की निशानी नहीं होती हैं लेकिन स्मृति ईरानी के मन में मंशा क्या थी, ये वो ही जानें।
अब आज की तारीख़ में आ जाइये। सरकार ने सिलेंडर की कीमतों पर 200 रुपये कम कर दिए हैं। जिसके बाद से ये लाइने सोशल मीडिया पर दौड़ रही हैं ’100 महीने की लूट.. आखिर के 100 दिन में रत्तीभर छूट।’’ हालांकि सरकार इसे महिलाओं के लिए रक्षाबंधन का तोहफा बता रही है।
अब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और तमाम मंत्रियों से एक सवाल है कि 1103 रुपये के सिलेंडर में 200 रुपये कम कर देना क्या जनता के साथ खुले तौर पर धोखेबाज़ी नहीं है? या अपनी सरकार के ख़िलाफ़ भी बोलने की ताकत इन मंत्रियों में है। या फिर स्मृति ईरानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी कुछ भिजवाने वाली हैं।
ख़ैर, इन सबका जवाब इस सरकार के मंत्रियों की ओर से एक ही है, नहीं!
फिलहाल आपको बता दें कि रक्षा बंधन से पहले मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने सिलेंडर के दामों में 200 रुपये की कटौती करने का फैसला किया है।
सिलेंडर में 200 रुपये की कमी होने के बाद कीमत कितनी हुई:
· दिल्ली में अब 903 रुपये, पहले 1103
· मुंबई में अब 902 रुपये, पहले 1102
· कोलकाता में अब 929 रुपये, पहले 1129
· चेन्नई में अब 918 रुपये, पहले 1118
· भोपाल में अब 908 रुपये, पहले 1108
सिलेंडर के दामों में की गई इस कटौती को लेकर जहां एक ओर सरकार बड़ी राहत का दावा कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर इस कदम के सियासी मायने पढ़ने की कोशिश की जा रही है।
देश में महंगाई की मार और महंगे गैस सिलेंडर को लेकर विपक्ष पिछले काफी समय से सरकार को घेरता रहा है। जब सिलेंडर के दाम बढ़ने शुरू हुए तो विपक्ष की ओर से इस पर सवाल खड़ा करने पर सत्तारूढ़ दल की ओर से दलील दी जाती थी कि विपक्षी दल अपने सरकार वाले राज्यों में इस पर सब्सिडी क्यों नहीं देते।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार के इस फैसले पर उसे घेरने की कोशिश की, उन्होंने ट्वीट में लिखा कि 'जब वोट लगे घटने तो चुनावी तोहफे लगे बंटने!' जनता की गाढ़ी कमाई लूटने वाली निर्दयी मोदी सरकार अब माताओं-बहनों से दिखावटी सद्भावना जता रही है। खड़गे ने आगे लिखा कि साढ़े 9 सालों तक ₹400 का एलपीजी सिलेंडर, 1100 ₹ में बेच कर, आम आदमी की ज़िंदगी तबाह करते रहे, तब कोई “स्नेह भेंट” की याद क्यों नहीं आई? भाजपा सरकार ये जान ले कि 140 करोड़ भारतीयों को साढ़े 9 साल तड़पाने के बाद “चुनावी लॉलीपॉप” थमाने से काम नहीं चलेगा। आपके एक दशक के पाप नहीं धुलेंगे।
आपको बता दें कि कर्नाटक में भाजपा की हार के पीछे एक कारण सिलेंडर की कीमतों के चलते महिलाओं में नाराजगी भी वजह निकलकर सामने आई थी। राजस्थान में गहलोत सरकार इंदिरा गांधी गैस सब्सिडी योजना के तहत इस साल अप्रैल से 500 रुपये में सिलेंडर दे रही है तो वहीं हाल ही में मध्य प्रदेश में भाजपा की शिवराज सरकार ने 450 रुपये में सिलेंडर देने का ऐलान किया। हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दावा किया था कि देश में सबसे सस्ता सिलेंडर देने वाला एकमात्र राज्य राजस्थान है, जहां 500रुपये में सिलेंडर मिल रहा है।
क्योंकि पूरा मसला एनडीए और यूपीए की सरकार में तुलना पर आकर टिक जाता हैं, तो देख लेते हैं कि दोनों की सरकारों के आंकड़े क्या कहते हैं?
मौजूदा सरकार द्वारा एलपीजी के दाम घटाने के बाद आम आदमी के सिलेंडर में 200 रुपये की कटौती हुई है, वहीं उज्ज्वला योजना वाले गैस सिलेंडर में 400 रुपये की कटौती हुई है। जिसके बाद आम आदमी के लिए गैस सिलेंडर की कीमत 903 रुपये और उज्जवला योजना वालों के लिए गैस सिलेंडर की कीमत 703 रुपये हो गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एनडीए-1 के शासनकाल में प्रति गैस सिलेंडर पर 414 रुपये की सब्सिडी थी, इसके अलावा बिना सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर की कीमत 928.50 थी। वहीं यूपीए-1 में 241.60 रुपये प्रति सिलेंडर सब्सिडी थी।
एनडीए-2 के शासनकाल में सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत बढ़कर 903 रुपये हो गई। जबकि यूपीए-2 के शासनकाल में इसकी कीमत 414 रुपये हुआ करती थी। वहीं, बिना सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर की अगर बात की जाए तो एनडीए-2 में इसकी कीमत 1103 रुपये हो गई और यूपीए-2 शासनकाल में इसकी कीमत 1241 रुपये हुआ करती थी।
गैस सिलेंडर के दाम तय कैसे होते हैं?
दरअसल एक 14.2 किलो सिलेंडर में 90 प्रतिशत कीमत एलपीजी की होती है, बाकी अन्य की कीमतें जुड़ कर फिर पूरे सिलेंडर का रिटेल प्राइस तय होता है।
सबसे पहले एलपीजी की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार तय करता है, फिर भारत में आने के बाद बाकी की कीमतें उसमें जुड़ जाती हैं। जैसे डीलर का कमीशन, जीएसटी आदि उसमें जुड़ता जाता है।
एलपीजी की कीमत जोड़ने का एक फॉर्मूला होता है, जिसे हम ‘इंपोर्ट पैरिटी प्राइस’ यानी आईपीपी कहते हैं।
आईपीपी में सबसे पहले सऊदी अरब की सऊदी अरामको तेल और गैस कंपनी की कीमत जुड़ती हैं, सऊदी अरामको अगर गैस का दाम बढ़ाता-घटाता है तो उसका असर भारत के एलपीजी की कीमत पर पड़ेगा। एलपीजी गैस सऊदी अरामको से ही आयात की जाती है।
इसकी कीमत के अलावा इसमें फ्री ऑन बोर्ड कीमत जोड़ी जाती है। फ्री ऑन बोर्ड एक तरह का भाड़ा है जो गैस खरीदने वाले को भरना होता है। यह भाड़ा दरअसल गैस को कंपनी से बंदरगाह पर खड़े जहाज तक लाने के लिए वसूला जाता है।
इसके बाद आईपीपी में समुद्र से जहाज द्वारा गैस को लाने का भाड़ा, पोर्ट के चार्जेज होते हैं, आयात करने के लिए कस्टम ड्यूटी देनी होती है। ये सारी कीमतें जुड़ने के बाद गैस सउदी से भारत के बंदरगाह पर पहुंचती है।
इसके बाद इस कीमत में देश में लगने वाले शुल्क जोड़े जाते हैं। जैसे लोकल फ्रेट- इसमें बंदरगाह से लेकर आपके घर तक सिलेंडर पहुंचने के अलग-अलग चार्जेज शामिल हैं।
फिर बॉटलिंग के चार्जेज यानी एलपीजी को सिलेंडर में भरना, मार्केटिंग की कीमत, डीलर का कमिशन, जीएसटी आदि चार्ज लगाकर 14.2 किलो के सिलेंडर की कीमत तय हो जाती है।
इंपोर्ट पैरिटी प्राइस में जो-जो शुल्क शामिल हैं इन सभी शुल्कों का भुगतान डॉलर में किया जाता है। ज़ाहिर है अगर डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है तो एलपीजी की कीमत भारी पड़ेगी। वहीं रुपया मजबूत मतलब कीमतों में थोड़ी राहत मिल सकती है।
डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना मतलब, एक डॉलर में ज्यादा रुपये देना और सस्ता मतलब बिलकुल इसका उलट। मान लीजिए कि एक डॉलर 70 रुपये का है, अगर एक डॉलर के मुकाबले रुपया 70 से घट कर 60 हो जाएगा तो रुपये को मजबूत माना जाएगा। वहीं एक डॉलर के मुकाबले रुपया 70 से बढ़कर 80 हो जाएगा तो रुपया कमजोर माना जाएगा।
बता दें कि एलपीजी का दाम हर महीने की एक तारीख को बदलता है, हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है, अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम की कीमत में महीने के बीच में ही उतार-चढ़ाव हो जाए तो एलपीजी का दाम उसी अनुसार बढ़ाया-घटाया जा सकता है।
भारत में हर राज्य में एलपीजी की कीमतें अलग-अलग हैं क्योंकि हर राज्य में फ्रेट से लेकर अन्य शुल्क में अंतर है।
सिलेंडर के दाम बढ़ना राजनीतिक मुद्दा कैसे?
दरअसल हमारे समाज और घरों में कुछ चीजें ऐसी हैं जो महंगाई की सूचक होती हैं, जैसे गैस सिलेंडर।
गैस सिलेंडर के दाम ऊपर-नीचे होने से ये तय हो जाता है कि देश के परिवारों की जेब पर कितना असर पड़ा रहा है। यही कारण है कि मौजूदा सरकार गैस सिलेंडर के दामों को लेकर हर वक्त कटघरे में खड़ी रहती है। क्योंकि एनडीए की मौजूदा सरकार में सिलेंडर 1000 रुपये पार कर गया है। जो हमारे देश की औसत पारिवारिक आय के लिए मुफीद नहीं है।
अब ये महंगाई मौजूदा सरकार को कितना प्रभावित करती है और इंडिया गठबंधन के लिए कितना फायदेमंद होती है, ये आने वाले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में पता लग जाएगा। लेकिन इतना तो तय है कि जनता की हालत बहुत ज़्यादा ख़राब है।
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